सद्गुरु प्यारा मेरे नाल है

आरती गुप्ता, अगस्त 2015 English
2 अगस्त 2012, श्रवण पूर्णिमा, रक्षाबंधन: मेरी ज़िन्दगी का सब से भाग्यशाली दिवस जब गुरुजी की कृपा से मुझे और मेरे परिवार को परम गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और हम गुरुजी के साथ रक्षा और प्रेम के दिव्य और अनादि बंधन में बंध गए। गुरुजी से हमारा संबंध तत्कालीन हुआ, जो एक सुंदर अनुभव है और वर्णन से परे है। यह अनुभव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। गुरुजी की दिव्य शरण में आने के तीन महीने के भीतर गुरुजी ने मेरे बड़े बेटे को तीन दुर्घटनाओं से बचाया। गुरुजी ने मेरे पिता कि आयु को बढ़ाया और मेरा मधुमेह का रोग एक ही दिन में 75 प्रतिशत ठीक कर दिया। इसके अतिरिक्त भी गुरुजी ने अनगिनत तरीकों से हमारी लगातार सहायता की। गुरुजी के कई आशीर्वाद तो इतने विशिष्ट होते हैं कि हमें उनका पता ही नहीं चलता। गुरुजी प्रेम का अनंत भंडार हैं जो देते हैं, देते हैं और केवल देते ही हैं; वह कभी भी बदले में हमारे आत्मसमर्पण के अलावा कुछ भी नहीं चाहते। गुरुजी का प्यार मेरे दिल के हर कोने को छूता है।

गुरुजी से मिलने से पहले मेरा जीने का उत्साह खत्म हो गया था। मुझे ऐसा लगता था जैसे कि मैं अपने जीवन की नैया बहुत समय से चलाती जा रही थी और अब मुझ में और शक्ति नहीं बची थी। मुझे ऐसा महसूस होता था जैसे कि मैं समुद्र में एक छेद वाली नाव में एक निष्प्राण प्राणी की तरह लेटी हुई हूँ और मुझे किनारा नज़र नहीं आ रहा। तब मेरे गुरुजी आए और उन्होंने मुझे इस बात का एहसास कराया कि मुझे चिंता नहीं करनी चाहिए, मैं अकेली नहीं थी और गुरुजी सब संभाल लेंगे (सद्गुरु प्यारा मेरे नाल है)। गुरुजी ने मेरी नाव के सब छेद भर दिए हैं और स्वयं नाव चला कर किनारे पर अंतिम मंज़िल की ओर ले जा रहे हैं। मेरी आँखों से कृतज्ञता के आंसू बहते हैं क्योंकि शब्द कभी भी उस रक्षा सूत्र का व्याख्यान नहीं कर सकते जिस से गुरुजी ने मुझे बांध कर सुरक्षा दी है। मैं नहीं जानती कि मैंने ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिस के फलस्वरूप गुरुजी ने मुझे अपनी शरण में लिया।

जब किसी के जीवन में प्यार की कमी हो जाती है तो वह व्यक्ति असुरक्षित महसूस करने लगता है और अपने वास्तविक निजी व्यक्तित्व से भटक जाता है। गुरुजी का प्यार ऐसी भटकती आत्माओं का परिवर्तन कर देता है। मेरे अंदर यह दिव्य परिवर्तन आरम्भ हो चुका है। गुरुजी का प्यार भरा हाथ मेरे सिर पर होने के कारण मैं अपने आप को सुरक्षित, संतुष्ट और खुश महसूस करती हूँ। परिस्थितियाँ अब भी वही हैं और लोग भी वही हैं परन्तु मेरी प्रतिक्रिया अब बहुत संतुलित होती है और मेरी स्वाभाविक अच्छाई अब वापस आ गई है। धीरे-धीरे मैं अपने आप से प्यार करने लगी हूँ। गुरुजी का माँ के जैसे देख-रेख करना और पिता की तरह रक्षा करने के कारण मेरे मन की सभी चिंताएँ समाप्त हो गई हैं। मैं जानती हूँ कि गुरुजी सदैव मेरे साथ हैं और मुझे अब संसार में किसी भी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

"ना कुछ पूछा, ना कुछ माँगा; तूने दिल से दिया जो दिया
ना कुछ बोला, ना कुछ तोला; मुस्कुरा के दिया जो दिया
तू ही धूप तू ही छाया, तू ही अपना पराया
और कुछ ना जानूँ; बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ
सजदे सिर झुकता है, यारा मैं क्या करूँ।"

गुरुजी हमें हमारे दोषों के साथ स्वीकारते हैं, हमें बिना शर्त के प्रेम करते हैं और हमें वह सब कुछ देते हैं जो हमारे लिए अच्छा होता है। अगर वो हम से कुछ लेते हैं, तो वह हैं हमारे बुरे कर्म और केवल 10 प्रतिशत ही हमारे भोगने ने लिए छोड़ देते हैं। यह सोचने वाली बात है कि हर एक संगत के 90 प्रतिशत कर्म हमारे प्यारे गुरुजी अपने ऊपर ले लेते हैं; हमारी खुशी के लिए वह कितना कष्ट उठाते हैं! गुरुजी यह सब केवल हमें खुशी देने के लिए करते हैं। इतने कष्ट सहने के बावजूद गुरुजी हमेशा मुस्कराते रहते हैं और हमें आश्वासन देते रहते हैं कि बाकी 10 प्रतिशत बुरे कर्म सहने में भी वह सदैव हमारे साथ हैं। इस पवित्र प्रेम के बारे में मैं क्या लिख सकती हूँ? क्या ऐसा कर पाना किसी भी मनुष्य के लिए संभव है? गुरुजी सच्चे दिल से की गई हमारी मौन प्रार्थना का उत्तर अपने अद्भुत तरीके से देते हैं। कभी यह उत्तर टेलीपैथी के द्वारा होता है और कई बार गुरुजी का दिव्य सन्देश उचित समय पर उचित व्यक्ति को उचित स्थान पर मिलता है। गुरुजी की कृपा में कभी चूक नहीं होती।

जीवन का प्रत्येक क्षण गुरुजी का सत्संग होता है। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि गुरुजी ने मुझे आशीर्वाद दिया है कि मेरी आत्मा नित्य गुरुजी की शरण में रहती है। गुरुजी की दी हुई सुरक्षा परम है, उनकी चिकित्सा करने की विधि दिव्य है और गुरुजी प्रेम और दया के प्रतीक हैं। गुरुजी के अपार स्नेह और असीम कृपा के बिना मैं अपनी ज़िन्दगी के एक क्षण की भी कल्पना नहीं कर सकती। मैं यही चाहती हूँ कि गुरुजी का आशीर्वाद सबको प्राप्त हो और वे मुझे अधिक से अधिक योग्य बनायें।

"मैनूं सेवादारा दी जमात विच रखीं;
मैनूं मेरे मालिकां औकात विच रखीं"

गुरुजी की लाडली आरती गुप्ता

अगस्त 2015