हम सब एक ही सफर के मुसाफिर हैं; फर्क सिर्फ है रास्तों में जो हम अपनाते हैं, अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने के लिए। ऐसा ही एक मुसाफिर होते हुए, मैंने भी कई रास्ते आज़माये, कुछ का पालन किया.... काफी सारे रास्ते छोड़े और फिर भी उनमें से किसी पर भी मुझे पक्की तरह से यकीन नहीं हुआ। खुशी मेरे पास आती और चली जाती, सफलता एक ऐसी चीज़ थी जिसकी मुझे आशा थी, प्यार वो चीज़ थी जिसके लिए मुझे लोभ था, और मेरा स्वास्थ्य - वो मेरी ज़िन्दगी का एक मुख्य मसला था। मेरे स्वास्थ्य की वजह से मुझे बहुत कष्ट उठाना पड़ रहा था और मैं पूरी तरह से उम्मीद खो चुका था! संक्षेप में कहूँ तो, मेरे लिए ज़िन्दगी का मतलब जीना नहीं रहा था। एक बदनसीब पीड़ित व्यक्ति की तरह, जिसके साथ कोई बड़ी दुःखान्त घटना घटी हो, मैं अपनी किस्मत के साथ समझौता करने की कोशिश कर रहा था।
मैं एक असाधारण रोग - मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी का मरीज़ हूँ, जो लाइलाज है। मैं अपनी बीमारी से भागने के लिए उसके बारे में भूलने की कोशिश करता हूँ ताकि मैं अपनी ज़िन्दगी जी सकूँ, अपने काम और फर्ज़ पूरे कर पाऊँ, अपने रिश्ते निभा सकूँ और वो सब चीज़ें कर सकूँ जो मेरे लिए महत्त्व रखती हैं। फिर भी, असल बात तो यह है कि यह रोग एक ऐसी हकीकत है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। या तो मैं कुछ कर नहीं पाता हूँ, या फिर जो काम दूसरे कर पाते हैं और मैं नहीं, उनको लेकर मैं उदास और दुःखी हो जाता हूँ। ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी बीमारी से जीत नहीं पा रहा हूँ। मेरी पत्नी और दोनों बेटियों ने हमेशा मुझे संभाला है, मुझे प्यार दिया है और मेरा ख्याल रखा है पर मुझे हमेशा उनकी चिन्ता रहती है। मुझसे ज़्यादा, वे ज़िम्मेदार रहे हैं और उन्होंने कभी भी मुझे विकलांग महसूस नहीं होने दिया है।
फिर भी मेरी अंतरात्मा संतुष्ट नहीं थी। बिना किसी वजह के मुझे शिकायतें रहतीं। मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरी ज़िन्दगी में मज़ा और सुख नहीं था। हालाँकि मेरे पास मेरा परिवार और मित्र थे, पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता था जैसे मैं एक मुसाफिर था जो एक ऐसी स्थिर राह की तलाश में था जो मुझे मेरी मंज़िल तक ले जाए, जो मुझे याद दिलाए कि मैं कौन था और क्या करना चाहता था जिससे मुझे खुशी मिले। यकीनन मुझे अपनी मार्गदर्शक रोशनी की तलाश थी।
फिर, एक दोपहर, मुझे डॉ जेथरा का फोन आया और उन्होंने मुझे गुरुजी से एक बार मिलने के लिए कहा। उस एक मुलाकात से असंख्य मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। और अचानक से मेरी ज़िन्दगी बदल गई जब मैं अपने प्रकाशस्तम्भ से मिला - गुरुजी।
मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझ पर जादू कर दिया हो। मैं एक ऐसे छोटे बच्चे की तरह महसूस कर रहा था जिसे उसका जिन्न मिल गया हो। मैं गुरुजी से सितम्बर 2006 में मिला और उस दिन से मेरी ज़िन्दगी बेहतर हो गई। इस सच्चाई को अपनाने में कि वाकई में एक गुरु हो सकते थे जो मेरी ज़िन्दगी को सुखद और सरल बना सकते थे, मुझे काफी समय लगा। मुझे वो क्षण याद है जब गुरुजी ने मेरी ओर देखा था और वो जान गए कि मैं बीमार हूँ। वह मुझसे कुछ नहीं जानना चाहते थे क्योंकि जितना मैं खुद के बारे में जानता था, वे पहले से ही उससे ज़्यादा मेरे बारे में जानते थे।
वो ताम्बे का लोटा जो उन्होंने मुझे अभिमन्त्रित करके दिया, मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफा है जो मुझे कभी मिल सकता था। गुरुजी ने मुझे उम्मीद दी, एक नयी ज़िन्दगी दी, ज़िन्दगी जीने की वजह दी और मुझे चिन्ता मुक्त कर दिया। मेरी ज़िन्दगी का तूफान थम गया; अब सब कुछ स्थिर है और ठीक चल रहा है। इन सब के पीछे बस एक शक्ति है: मेरे गुरुजी जो मेरे साथ सदा रहेंगे और उनकी खुशबू, जो मुझे याद दिलाती रहती है कि चाहे कुछ भी हो जाए वो हमेशा मेरे लिए हैं।
अजय चौधरी, एक भक्त
जुलाई 2011