मैं और मेरी पत्नी इंदु, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर के भ्रमण पर गये थे। गुड़गांव वापस आने के लिए, मैं स्वयं गाड़ी चलाकर, राष्ट्रीय राजमार्ग आठ पर आ रहा था। यह घटना 6 जनवरी 2008 की है। सुबह के लगभग 10 बजे होंगे। मैं एक ढालूदार स्थान पर ट्रक से आगे निकलने की कोशिश कर रहा था। अचानक एक और ट्रक तेज़ी के साथ सामने से आता हुआ दिखाई दिया। हम 90-100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रहे थे; और ट्रक सिर्फ 250-300 मीटर की दूरी पर 80-90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हमारी तरफ आ रहा था। हम सामने से आती हुई मौत को देख रहे थे: मैंने न तो मेरी गाड़ी की गति बढ़ा सकता था और न ही रोक सकता था क्योंकि गाड़ी फिसलकर गिर सकती थी। मेरे दिमाग में कई विचार आ जा रहे थे: मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि हमारा जीवन इतनी जल्दी समाप्त होगा; गाड़ी सड़क के किनारे पर ध्वस्त पड़ी हुई; पुलिस दुर्घटना की औपचारिकताऐं पूर्ण कर रही; हमारे बच्चे और रिश्तेदार हमारी असामयिक मौत पर रो रहे।
उस समय, मैं अपने जीवन के बारे में परेशान नहीं था और मैं गुरुजी को याद कर रहा था। मैंने मानसिक रूप से गुरुजी से कहा कि, "मैं इस तरह से इंदु की मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं होना चाहता। उसी पल, सामने से आ रहा ट्रक अपनी बाईं ओर झटके से मुड़ा और सड़क के किनारे पर ही एक रेतीली सतह पर जाकर रूक गया। अचानक एक विराम सा आ गया, और हम सुरक्षित रूप से उसी गति से पार हो गये !
इंदु भय से कांप रही थी। हमने गुरुजी का ठीक समय पर हस्तक्षेप करने के लिए तहे-दिल व आत्मा से धन्यवाद किया। अगर उन्होंने यह नहीं किया होता तो हम आज अपनी कहानी बताने के लिए जीवित नहीं होते।
गुरुजी से मुलाकात
1985 के बाद कई अवसरों पर मैंने गुरुजी के बारे में सुना था, लेकिन उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर, अंतत: कर्नल (सेवानिवृत्त) डी. एस .चटर्जी के माध्यम से जुलाई 2004 में आया। उस समय तक मैंने 1997 में सेना से समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी। मैंने अपना पिछला काम भी छोड़ दिया था क्योंकि मुझे हैदराबाद से बाहर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा था, और उनकी शर्तों पर काम करना मेरे लिए सुविधाजनक नहीं था। उस दिन, मेरी कर्नल चटर्जी के साथ एक लंबी बातचीत हुई और उन्होंने मुझसे गुरुजी की संगत में आकर आशिर्वाद लेने के लिए पूछा। मायूस रूप से, किन्तु जिज्ञासा और उत्सुकतावश, बिना किसी उम्मीद के, मैंने एक बार जाकर देखने की सोची।
हमारी पहली यात्रा किसी भी स्पष्ट परिणाम के बिना थी। लेकिन गुड़गांव में हमारे घर पर गुरुजी की खुशबू आने लगी - और कई मौकों पर बाद में भी हमने यह महसूस किया।
मेरी तीसरी यात्रा पर, मुझे गुरुजी के पास बैठने का मौका मिला। लंगर के बाद, उन्होने मेरा नाम और मैंने किस कोर में काम किया था पूछा। मेरे बताने के बाद उन्होंने कहा कि सिग्नल कोर के अधिकारी कभी बेकार नहीं बैठते ("कदी वेल्ले नहीं रेहन्दे")। मैंने इस बात को आशीर्वाद के रूप में लिया।
समाधि में एक अद्भुत अनुभव
संगत में मेरी पहली कुछ यात्राओं में से एक के दौरान, मैं योगासन की स्थिति में बैठा हुआ था और कुंडलिनी (एक आध्यात्मिक ऊर्जा, जिसका आधार रीढ़ के आरंभ में होता है) के जागरण के बारे में सोच रहा था। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था कि एक व्यक्ति में जब उसकी ब्रह्मा नाड़ी के माध्यम से ऊर्जा प्रवाहित होती है, बहुत दर्द सहना पड़ता है और यह भी कि इस तरह के योग प्रयासों में उन लोगों को अक्सर अतिसंवेदनशील अनुभव भी होते हैं। अचानक मैंने महसूस किया कि मैं सर से पाँव तक अमृत में स्नान कर रहा हूँ! वास्तव में वह परमानंद की अवस्था बहुत सुंदर थी जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वह वास्तव में, समाधि में एक अनुभव था, या सत् - चित - आनंद (सद्चितानन्द) की भावना जिसका की शास्त्रों में वर्णन है। वह अनुभव लंगर की घोषणा होने तक जारी रहा, जब तक कि हमें बाहर स्थानांतरित होने के लिए नहीं कहा गया। मैं वास्तव में इस स्थिती में नहीं था कि गुरुजी को इस आशीर्वाद के लिए किन शब्दों में धन्यवाद करूँ।
यदि इस यात्रा में गुरुजी के आशीर्वाद का आनंद मिला था, तो इसके पूर्व एक अवसर पर, लगातार होने वाले दर्द से राहत पाई। मैं फिर एक दिन लंगर के लिए गुरुजी के करीब बैठा हुआ था। लंगर खत्म करने के बाद, पीठ के दर्द के कारण मैं बड़ी मुश्किल से उठ पा रहा था। यह दर्द कुछ वर्षों से बना हुआ था और हर कुछ सप्ताह में वापस आ जा रहा था। मैंने महसूस किया कि गुरुजी मुझे देख रहे हैं, और मुझे आश्चर्य हुआ कि उसके बाद जल्द ही मेरा दर्द गायब हो गया और शायद ही कभी हुआ।
मेरी बेटी को स्थायी वीजा मिलना
गुरुजी के आशीर्वाद से मेरी छोटी बेटी का विवाह नवंबर 2005 में हुआ। विवाह के बाद उसे एक अस्थायी वीजा प्राप्त हुआ हांलाकि वह स्थाई वीजा चाहती थी जिससे वह अमेरिका में काम करने में सक्षम हो। अमेरिका ने वीजा की संख्या पर प्रतिबंध हटा दिया। सितंबर 2006 में जब एक बैंक में, मैं उसका वीजा फार्म भर रहा, मैनें गुरुजी की खुशबू महसूस की और मुझे तुरंत आभास हो गया कि इस प्रक्रिया को गुरुजी ने आशीर्वाद दिया है।
हमें बताया गया था, कि वीजा की प्रक्रिया में दूतावास में पूरे एक दिन का समय लग सकता है और ढेरों सवाल पूछे जाते हैं। तदनुसार, जब तक मेरी बेटी दूतावास में थी मैं अपने कुछ काम निपटाने चला गया। लेकिन जैसे कि गुरुजी चाहते थे, बेटी को छोड़ने के बाद मैं अभी चाणक्यपुरी क्षेत्र में ही गाड़ी चला रहा था तभी बेटी का फोन आ गया कि उसका वीज़ा मंजूर हो गया है!
दिव्य ईंधन पर परिवार का भ्रमण
जून 2007 में, हम अपनी दोनों बेटियों और पोते के साथ लैंसडाउन गये थे। लैंसडाउन से 30 किलोमीटर दूर तारकेश्वर महादेव एक बहुत पुरानी सिद्धपीठ (आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र) है। यात्रा से पहले, ईंधन टंकी की सुई आधे स्तर के निशान पर थी, जो दर्शा रही थी कि यात्रा पर आने-जाने के लिए पर्याप्त ईंधन उपलब्ध है। किन्तु, 12 किलोमीटर की यात्रा के बाद ही, सुई लाल सूचक पर पहुँच गई थी। जांच करने पर पता चला कि करीबी पेट्रोल पंप 50 किलोमीटर की दूरी पर (लैंसडाउन में नहीं) कोटद्वार में है। गाड़ी का ईंधन सूचक खराब हो गया था, और हमें इसके बारे में पता नहीं था। उस अपरिचित क्षेत्र में गाड़ी में एक दो वर्षीय बच्चे के साथ तीन महिलाऐं थी।
उस समय मैं एक घटना याद कर रहा था, जो पंजाब में उग्रवाद के समय की थी और जिसमें गुरुजी ने ईंधन के बिना एक गाड़ी में लंबी दूरी की यात्रा की थी। हम सभी मदद के लिए गुरुजी से प्रार्थना करने लगे। मैंने भी भगवान शिव और अनजनेय (श्री हनुमान) से प्रार्थना की। अचानक एक काला कुत्ता गाड़ी के सामने आ गया और धीरे-धीरे आगे चलने लग गया। मुझे मजबूर होकर गाड़ी को मंदगति करना पड़ा। कुछ देर के लिए ऐसे ही चलने के बाद, कुत्ता एक तरफ को मुड़ा और दूर चला गया। यह कहा जाता है कि भगवान शिव कभी-कभी इस रूप में उनकी उपस्थिति का संकेत देते हैं! मैंने प्रभु और गुरुजी को धन्यवाद दिया और यात्रा जारी रखी। यद्यपि मुझे विश्वास था कि अब चिंता की कोई आवश्यकता नहीं, हमने कुछ वाहनों से पेट्रोल का अनुरोध किया, लेकिन उनमें से कोई भी हमारी मदद नहीं कर सका। जिस समय हम मंदिर पहुंचे, सुई सफेद निशान पर पहुंच गयी थी, जो टंकी खाली होने का संकेत था! इस सब के होते हुए भी, हमने मंदिर में पूजा की। जब हम पार्किंग में वापस आये, वहाँ पर एक सज्जन अपने वाहन की टंकी से कुछ पेट्रोल देने करने के लिए सहमत हो गये। लेकिन, हम ऐसा नहीं कर सके। एक वाहन चालक ने हमसे कहा कि हमें लैंसडाउन के लिए चलना चाहिए; वह हमारे पीछे ही चलेगा और अगर गाड़ी बंद हो गई तो शहर तक गाड़ी रस्सी से खींच देगा। लेकिन गुरुजी के आशीर्वाद से हम सुरक्षित रूप से लैंसडाउन पहुंच गये।
मैं एक स्थानीय दुकानदार से पांच बोतलों में कुछ पेट्रोल लेने में कामयाब रहा (उसके स्टॉक में अंतिम)। पांच बोतलें और केवल 3.75 लीटर पेट्रोल, जिससे कोटद्वार पहुँचना, जो कि एक पहाड़ी मार्ग से होते हुए करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर था, बहुत मुश्किल था। लेकिन गुरुजी की कृपा से हम अगले ही दिन कोटद्वार पहुंचे और हमें टंकी भरी मिली।
मीठा प्रसाद के लिए बुलावा
मैं जून 2008 में एक सुबह गुरुजी को याद कर रहा था कि अचानक मुझे विचार आया कि - असामान्य रूप से - पिछले लंगर में कोई भी मीठा प्रसाद नहीं थी। दोपहर में मेरी पत्नी, एक विद्यालय की प्रिंसिपल (गुरुजी को इसके लिए धन्यवाद), ने फोन किया। उनका विद्यालय पहली बार ग्यारहवीं की कक्षा में दाखिले ले रहा था। मैं जैसे ही दोपहर का भोजन समाप्त करके लेटा, मुझे और एक झपकी आ गई, जिसमें शब्द 'बड़ा मंदिर' मेरे मन के माध्यम से प्रकाशित होने लगा। और कुछ ही मिनटों में मैंने अपना मन बना लिया, और मैं बड़े मंदिर के लिए रवाना हो गया।
मैंने गुरुजी और गणपति को उनकी दया के लिए श्रद्धांजलि दी और कुछ देर के लिए प्रार्थना की। जब मैं गाड़ी की तरफ वापस लौटने लगा, तभी एक सज्जन ने मुझे रोका और कढ़ा प्रसाद दिया। मैंने वह प्रसाद लिया और अपने घर की तरफ वापस चल दिया। कुछ देर गाड़ी चलाने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि यह गुरुजी ही थे जिन्होंने प्रसाद के लिए मुझे मंदिर बुला लिया, क्योंकि पिछले लंगर पर किसी भी मीठे प्रसाद के नहीं होने का विचार मेरे मन में आया था!
आज, हम गुरुजी की अथाह कृपा के अत्यंत आभारी है। उनके आशीर्वाद की वर्षा सदैव उनके भक्तों पर होती रहे।
अमिताभ शास्त्री, एक भक्त, गुड़गांव
अगस्त 2008