हमारी ज़िन्दगी उनके हाथों में है

अनीशा अग्रवाल, मार्च 2008 English
भक्त जन गुरुजी के पतंगों की तरह हैं, हमारी ज़िन्दगी की डोर उन्होंने थामी हुई है। वह हमें अपनी ओर खींचते हैं; वह हमें ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव से पार कराते हैं और वे ही हैं जो हमारी ज़िन्दगी अपने चरण कमलों से जोड़ते हैं।

हमारे लिए उनका बुलावा तब आया जब मेरे पति अपने मामा को देखने जा रहे थे। बस अचानक ही उन्हें एम्पायर एस्टेट गुरुजी के यहाँ चलने के लिए कहा गया। वह साल 2000 था और हम बहुत खुशकिस्मत थे: हमारे पहले दर्शन में ही गुरुजी ने मेरे पति से पूछा कि उन्हें क्या चाहिए।

उस समय हम बहुत परेशानियों से गुज़र रहे थे। हमारी शादी भी, जो उसी साल हुई थी, बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रही थी। मेरी पति के पारिवारिक व्यापार का दिवालिया निकल गया था और क्योंकि आर्थिक तौर पर वह इतनी मुश्किल स्थिति में थे, इसलिए हमारी शादी से एक रात पहले तक भी वह यही सोच रहे थे कि उनको यह शादी करनी चाहिए या नहीं। उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि शादी की सभी रस्में पूरे रीति-रिवाज़ के साथ हों, फिर भी हमारी परेशानियाँ खत्म ही नहीं हुईं।

फिर, हमें गुरुजी के दिव्य दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ और हमें उनका आशीर्वाद मिला। गुरुजी के रूप में हमें भगवान शिव का संरक्षण प्राप्त हुआ और हमें लगा जैसे हमारी शादी स्वयं भगवान ने कराई है और हमारी ज़िन्दगियाँ बच गयीं।

हम गुरुजी के यहाँ निरंतर जाते रहे। अक्टूबर 2006 में मैं गंभीर रूप से बीमार पड़ गई। मैं बिस्तर से उठकर स्नानघर तक भी चलकर नहीं जा पा रही थी। मैं अपने चार महीने के बच्चे के साथ श्री गुरुजी के यहाँ जाती। क्योंकि चार महीने के बच्चे के साथ लंगर करने में मुझे असुविधा होती, मैं सिर्फ चाय प्रसाद लेती। परन्तु, जनवरी 2007 में गुरुजी ने हमें लंगर करके फिर घर जाने का आदेश दिया।

आम तौर पर संगत हॉल के बाहर लंगर नहीं दिया जाता था, पर उस दिन हमने बाहर लंगर किया और फिर घर गए। वह रात मेरी ज़िन्दगी की सबसे भयानक रात थी। मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि पृथ्वी पर वह मेरी आखरी रात थी और मैं निरंतर गुरुजी को प्रार्थना करती रही।

अगली सुबह मैं एक चिकित्सक के पास गई जिसने मुझे कुछ परीक्षण कराने को कहा। परीक्षण के नतीजे आए और मुझे दूसरे चिकित्सक के पास भेजा गया। परन्तु मुझे कोई नहीं बता रहा था कि आखिर मुझे हुआ क्या है। मुझे इसका जवाब गुरुजी महाराज के सपने में दर्शन के रूप में मिला। मेरे पति ने देखा कि वह और मैं गुरुजी के आगे बैठे हुए हैं। गुरुजी ने मेरे पति को बताया कि मेरे ऊपर किसी ने काला जादू किया था और गुरुजी ने मेरे पति को एक लाल कपड़ा और काला धागा लाने के लिए कहा।

उस दिन से मैं बिलकुल ठीक हूँ - सिर्फ हमारे प्यारे गुरुजी के वजह से।

मेरे ससुरजी और पिताजी का उपचार

मेरे ससुर दिल के मरीज़ हैं और उनके काफी छोटे और बड़े ऑपरेशन भी हो चुके हैं। वह कभी-कभी गुरुजी के यहाँ चलते थे पर मेरी सास थीं जो उनकी पक्की भक्त थीं।

वे नजीबाबाद में रहते थे, जो मेरे पति का होमटाउन है और गाड़ी से जाएँ तो दिल्ली से कुछ 5-6 घंटे दूर है। अक्टूबर 2006 में मेरे ससुर को दूसरा दिल का दौरा पड़ा। मेरी सास ने गुरुजी से प्रार्थना की और सर्वव्यापी स्वामी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपने पति को दिल्ली ले जाने को कहा। परमेश्वर ने जैसा मेरी सास को कहा, उन्होंने वैसा ही किया।

जब वे हस्पताल पहुँचे, मेरे ससुर का ह्रदय अपनी सामान्य गति के 20 प्रतिशत पर धड़क रहा था। चिकित्सक हैरान थे। ह्रदय की इतनी धीमी गति के साथ वह कैसे 5-6 घंटों का सफर तय कर पाये थे? हमें इसका जवाब मालूम था। हमारे प्रिय भगवान शिव, श्री गुरुजी ने हमारी रक्षा की थी।

मेरे पिता भी उन खुशकिस्मत लोगों में से थे जो गुरुजी के यहाँ जाते थे। वह एक बुरे दौर से गुज़र रहे थे। उनके व्यापार का दिवालिया निकल गया था। उन्होंने इतना बड़ा व्यापार 18 साल की उम्र से खड़ा किया था और वह प्रति दिन नष्ट हो रहा था। उन्हें देखने वाला कोई नहीं था क्योंकि वह परिवार में सबसे बड़े थे।

एक बार मैंने उनको इतना उदास देखा कि पहली बार मैंने उनको मेरे साथ बड़े मंदिर चलने को कहा। वह 2007 के नवरात्रों (पावन माता को पूजने के नौ दिन) का एक शुभ दिन था। सोमवार के दिन हम बड़े मंदिर रात को 8:15 पर पहुँचे; सत्संग खत्म हो गए थे, और ऐसा जान पड़ा कि चाय प्रसाद भी। हमें पता नहीं था कि सोमवार के दिन सब कुछ जल्दी शुरू होता था और थोड़ा जल्दी खत्म होता था। परन्तु, सर्वव्यापी गुरुजी की दिव्य मर्ज़ी से, हमें जल्द ही पवित्र चाय मिली। बाद में, जब हम जा रहे थे, एक भक्त अपनी गाड़ी से बाहर आए और उन्होंने हमारे साथ सत्संग किया। मेरी इच्छा पूरी हुई: मैं चाहती थी कि मेरे पिता गुरुजी का सत्संग सुनें।

उस दिन से, मेरे पिता की श्रद्धा और उनकी आय बढ़ी है। आज, वह मेरा धन्यवाद करते हैं कि मैं उन्हें गुरुजी के पास लेकर गई परन्तु मैं भली-भाँति जानती हूँ कि वे गुरुजी ही हैं जो हमें अपने दिव्य चौखट पर बुलाते हैं।

मेरा पूरा परिवार बड़े मंदिर के प्रेम में पागल है। मेरे बेटे के लिए बड़ा मंदिर अमेरिका है और छोटा मंदिर, ऑस्ट्रेलिया। (बड़ा होकर वह अमेरिका में बसना चाहता है)। मेरे पति कहते हैं कि गुरुजी ने खुद बड़ा मंदिर हवा में उठाया हुआ है; मैं यह मानती हूँ और महसूस करती हूँ कि वह पृथ्वी पर स्वर्ग है।

गुरुजी के आशीर्वाद से हमारा परिवार पूरा हुआ। मैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ और वे गुरुजी की तरफ से मुझे भेंट हैं, मेरे और मेरे पति के बीच में गहरा प्रेम है। हम सब भगवान को 'गुरुजी' बुला सकते हैं और गुरुजी के मंदिर को अलग-अलग नामों से पुकार सकते हैं, परन्तु अंत में हम सब मिलेंगे और एक ही परमेश्वर को जवाबदेह होंगे, चाहे वो ब्रह्मा, विष्णु या महेश हों। यहाँ, हम सबको अपनी जगह, अपना घर, दिव्य माता की पनाह मिली है।

गुरुजी की महत्ता, महिमा और कृपा व्यक्त नहीं की जा सकती। ना ही वह कभी खत्म होती है; भक्त उनका व्याख्यान चिरकाल तक करते रह सकते हैं। हमें हमेशा हमारे भगवान शिव, गुरुजी को प्रेम से याद करना चाहिए, उनका अभिवादन करना चाहिए, उनके आगे नतमस्तक होना चाहिए और उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह सदैव हमें अपने चरण कमलों में रखें और हम पर अपनी कृपा बरसाते रहें।

गुरु माता, पिता
गुरु बंधु, सखा
तेरे चरणों में, स्वामी
मेरा कोटि-कोटि प्रणाम

अनीशा अग्रवाल, गुरुजी की बेटी-भक्त

मार्च 2008