हम में से अधिकतर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की इच्छा रखते हैं। हम अपनी कल्पना से या इधर उधर से पढ़-सुन कर आध्यात्मिकता के बारे में गलत विचार बना लेते हैं। हमारे विचारों में आध्यात्मिकता का मतलब हिमालय की गुफा में रहना या फिर देश की लम्बाई और चौड़ाई नापना है। हम इससे अनजान रहते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान तो केवल गुरु के कमल चरणों में सिर झुका कर ही पाया जा सकता है। वही हमें इस संसार के मोह-माया के जाल से निकाल कर सही मार्ग पर आगे बढ़ा सकते हैं।
गुरु का अर्थ ही 'अन्धकार का नाशक' है। हम तो अँधेरे में भटक रहे हैं; केवल गुरु में इतनी शक्ति है कि वे हमें वहां से निकालें। गुरु साक्षात भगवान हैं। उनकी मौजूदगी ही सफ़लता के रास्ते पर आगे बढाने के लिए काफी है। उनकी मदद से ही तो हम अपनी आत्मा को प्रकाशित कर सकते हैं। जीवन में उनकी मदद से ही भक्ति का ज्ञान मुमकिन है।
हमारे पवित्र पुराण गुरु-शिष्य के उदाहरणों से भरे हुए हैं। हमारे वह सारे महापुरुष जिन्हें हमने साक्षात भगवान माना है, उन सबने मनुष्य रूप में इस प्रथ्वी पर जन्म ले कर गुरु से ज्ञान प्राप्त किया था। कृष्ण जी संदीपन के चरणों में बैठे तो राम जी ने वशिष्ठ से उपदेश प्राप्त किया। यीशू ने जॉन से जोर्डन नदी के किनारे ज्ञान प्राप्त किया, और देवताओं के गुरु वृहस्पति को कौन नहीं जानता?
हमारा सौभाग्य है कि हमारी गुरु की खोज में हमें गुरुजी का आशीर्वाद मिला है। वह इश्वरत्व के मनुष्य रूप में प्रतिबिम्ब हैं। वह अंतर्यामी, सर्वव्यापी और परम शक्ति शाली हैं।
करुणा की बौछार
1991 में मेरे घुटनों में अचानक दर्द शुरू हो गया था। पीड़ा इतनी ज्यादा हो गयी थी कि दर्दनाशक दवाइयां लेने के बाद भी मैं रात भर सो नहीं पाती थी। मैंने एलॉपथी, होम्योपथी और घरेलू चिकित्सा, सब प्रयोग कर लिए पर दर्द बना रहा। जब मैंने गुरुजी को इसके बारे में बताया तो उन्होंने रसोई से एक चम्मच मांगा कर मेरे घुटनों पर रख कर एक मंत्र का जाप किया। उसी समय दर्द समाप्त हो गया और उसके बाद फिर कभी लौट कर नहीं आया। मैं अब भी अपनी घर की तीसरी मंजिल तक सीड़ियाँ चढ़ती हूँ और प्रतिदिन दो घंटे घूमने भी जाती हूँ।
कोलकत्ता में मुझे टाइफॉइड होने के बाद हल्का बुखार रहने लगा। उस डेढ़ महीने में मैंने सारी जांच करा ली और कई तरह की दवाइयां भी लीं पर कोई असर नहीं हुआ। मेरा ये वर्णन सुन कर गुरुजी ने जैसे ही पान के पत्ते मेरे ऊपर रखे, बुखार गायब हो गया।
अपने दिल्ली तबादला होने की खबर पा कर मैं ब्यूटी पार्लर खोलना चाह रही थी क्योंकि मैंने इसकी और बाल संवारने की शिक्षा ली थी और पहले एक ऐसी जगह पर काम कर चुकी थी। पर गुरुजी ने इसकी इजाज़त नहीं दी। उन्होंने कहा की इससे मुझे दमा हो जाएगा।
कुछ समय बाद मुझे वास्तव में ही दमा हो गया। एक दिन मेरी हालत इतनी गंभीर हो गयी कि मैं अपने जीवन के लिए संघर्ष करने लगी। मुझे सांस लेने में बहुत मुश्किल हो रही थी और मुझे लगने लगा कि ये मेरी ज़िन्दगी का अंत है। मुझे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। पूरे रास्ते में गुरुजी की तस्वीर को अपने दिल से लगा कर उनसे अपनी जीवन रक्षा के लिए प्रार्थना करती रही। मुझे तुरंत आक्सीजन और कुछ इन्जेकशन दिए गए। बाद में डॉक्टर ने बताया कि दो मिनट की देरी भी मेरे लिए जानलेवा हो सकती थी।
बाद में जब मैं गुरुजी के पास गयी तो मेरे बोलने से पहले ही उन्होंने कहा कि उन्होंने मुझे दलदल से निकला है। यह सच्ची बात थी। बाद में जब मैंने उन्हें इन्हेलर और तीव्र दवाइयां से मुक्त करने की बार-बार बात करी तो उन्होंने डांट कर कहा कि उन्हें याद न दिलाया जाए, उन्हें मेरी समस्या के बारे में पता है। एक महीना बीत जाने पर मुझे अचानक आभास हुआ कि मुझे दमा नहीं था। इसका मतलब यह था कि मुझे इन्हेलर की ज़रूरत नहीं थी। सफ़र करते समय सुरक्षा के लिए मैं अब भी इन्हेलर खरीद कर ले जाती हूँ और घर वापिस आने पर उसी नयी अवस्था में उसे दूकान पर वापिस कर देती हूँ। दमा अब पूरी तरह से ख़तम हो चूका है।
एक बार संगत में गुरुजी ने एक भक्त के सिर पर अपने हाथ रख दिए तो वहां से गुलाब के फूल झड़ने लगे। गुरुजी ने वहीँ एक महिला के सिर पर किया तो वहां पर भी यही हुआ। उस महिला ने अपने दुपट्टे में वह गुलाब इकट्ठे कर लिए। वह बहुत ही सुन्दर चमत्कार था।
मेरे जन्म दिवस पर गुरुजी ने पूरी संगत के सामने मुझे अपने दोनों हाथ आगे करने को कहा। अचानक मेरे हाथों में ऊपर से एक साड़ी आकर गिर गयी। गुरुजी ने कहा कि उसे मैं साफ़ जगह पर रखूँ और कभी न पहनूँ। उस साड़ी में से आज दस साल बाद भी गुरुजी की वह अनुपम खुशबू आती है।
गुरुजी ने कुछ साल पहले कहा था कि मेरी बेटी का विवाह एक सज्जन व्यक्ति से होगा। मेरे बिना किसी कोशिश के मेरी बेटी का विवाह ऐसे ही घर में हुआ और गुरुजी की कृपा से वह आज दो बच्चों की माँ है।
गुरुजी प्रसाद बाँट कर सबको आशीर्वाद देते हैं। मैंने कई बार उनको, स्वयं अपने खाली हाथों से, किसी बर्तन में से नहीं, शुद्ध घी का प्रसाद प्रकट कर बांटते हुए देखा है। एक बार इसी तरह उन्होंने एक भक्त को कड़ा प्रसाद दिया था। कई बार उन्होंने इसी तरह खाली हाथों में से अपनी खुशबू से भरे लड्डू निकाल कर भक्तों में बांटे हैं।
सबको मेरा परामर्श यही है: बहुत सारे कम गहरे कुएं मत खोदिये। इनका जल या तो खारा होगा या यह जल्दी सूख जायेंगे। एक गहरा कुआं खोदिये जिसका जल आप जीवन भर प्राप्त कर सकें। भक्ति ज्ञान एक गुरु से प्राप्त करने की कोशिश कीजिये; उस ज्ञान के अर्थ को समझिए। कुछ समय तक उनके चरणों में रहिये। यहाँ वहां घूम कर, उत्सुकतावश कई लोगों के बीच बैठ कर आप, थोड़े ही समय में, अपना विश्वास खो सकते हैं। केवल एक गुरु के वचनों का पालन कीजिये। औरों के पास जाने से आप हैरान हो सकते हैं। आप असमंजस में पड़ सकते हैं। एक कहावत है, कि एक डॉक्टर से आपको निर्धारित दवाई मिलती है, दो से सुझाव और तीन से दाह संस्कार की विधि।
एक गुरु आपको हनुमान जप करने को कहेंगे; दूसरे कहेंगे कि राम नाम जपो। यदि तीसरे के पास गए तो वे हर रोज़ पूजा करने की सलाह देंगे। आप इन्ही बातों में उलझ कर रह जायेंगे। एक गुरु के चरणों में बैठ कर उनकी आज्ञा का पालन कीजिये। सबको सुनिए पर पालन एक का ही कीजिये। सबको सम्मान दीजिये पर विश्वास एक पर ही करना ठीक है। उनसे ज्ञान एकत्र कीजिये और उनके वचनों का पालन कीजिये। इस प्रकार आप जल्दी ही भक्ति के मुश्किल मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।
अनीता वर्मा, नॉएडा
जुलाई 2007