मैं गुरुजी को जितना भी धन्यवाद दूँ, वह कम है। हम गुरुजी के पास अपनी व्यापार सम्बन्धी समस्या लेकर पहुँचे थे और उन्होंने हमें तुरन्त अपनी शरण प्रदान की। परन्तु अभी उससे भी बड़ी परीक्षा शेष थी।
मेरे विवाह को 35 वर्ष बीत चुके थे। हमारे एक पुत्र और एक कन्या हैं - दोनों विवाहित, और घर में एक पोती भी है। कहते हैं किसी को भी जीवन में सब सुख प्राप्त नहीं होते... मेरे पति की आदतों में बहुत सुधार संभव था। वह जीवन को आनंदपूर्वक जीना चाहकर भी परिवार के किसी उत्तरदायित्व को लेने को तैयार नहीं थे। और जब वह मद्यपान करते थे मुझे भय लगता था - वह आक्रामक और अत्याचारी हो जाते थे।
गुरुजी की दया से मेरे बच्चे सदा मेरा आधार रहे हैं। मैं गुरुजी के पास आकर उनसे अपनी पुत्री के लिए संतान की कामना करती थी। अपितु गुरुजी पहले मेरे परिवार का वातावरण स्वच्छ करना चाह रहे थे। संतान सुख देना तो उनके लिए कोई समस्या नहीं थी।
एक दिन मैं गुरुजी के दर्शन के बाद घर पहुँची तो मेरे पति वहाँ पर नहीं थे। मुझे कोई चिंता नहीं हुई क्योंकि वह गोल्फ खेलते थे और सप्ताह में चार दिन देर से आते थे। बासठ वर्ष की आयु में भी उन्हें अपने मित्रों के साथ मद्यपान कर भोजन करने की आदत थी। मैंने क्रोध और प्रेम के दोनों मार्ग अपना कर देख लिए थे पर कभी सफलता हाथ नहीं लगी थी। मैं कभी उनका विरोध नहीं कर सकी क्योंकि फिर वह अपना हाथ उठाने लगते थे। मुझे अत्यंत भय लगता था।
अक्सर रात को उनके घर में प्रवेश करते समय, किसी भी हंगामे की आशंका से, मैं सोने का बहाना करती थी। उस रात मैंने अपने सिरहाने के तरफ की बत्ती बंद की ही होगी कि मुझे गुरुजी की आवाज़ का आभास हुआ, जैसे उन्होंने कहा कि मालूम करो तुम्हारे पति कहाँ हैं। मैंने बत्ती पुनः जलाकर उनसे अपने मोबाईल पर संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया। गुरुजी की दया से उनका मोबाईल काम कर रहा था और मैंने उनको एक स्त्री से बात करते हुए सुना। मेरे पति एक और स्त्री के साथ थे - ऐसा लगा कि वह उनकी प्रेमिका थी। मैं स्तब्ध रह गयी।
मुझे पता था कि जब वह युवा थे तब लड़कियों के साथ घूमा करते थे। जब भी मैंने आशंका जतायी थी उन्होंने कहा कि एड्स के कारण वह ऐसा करने की सोच भी नहीं सकते। चूँकि मेरे पति अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखते थे और इतने आत्मविश्वास के साथ बोलते थे, मुझे उन पर कभी शंका नहीं हुई।
अतः इस प्रेम सम्बन्ध से मुझे बहुत आघात पहुँचा। मैंने अपनी बुद्धि पर नियंत्रण रखते हुए अपनी पुत्रवधू को भी फोन पर हो रही बात सुनवाई। मुझे पता था कि इसमें प्रमाण की आवश्यकता होगी, अन्यथा वह मुझ पर अत्याचार करेंगे। मेरा बेटा उस समय दिल्ली से बाहर था।
गुरुजी, मैं क्षमा प्रार्थी हूँ कि उस दिन उनके वापस आने पर मैंने उनको मारा और घर से निकाल दिया। वह नशे में इतने धुत्त थे कि उन्हें पता ही नहीं लगा कि क्या हो रहा है। उन्हें दस दिन तक घर से बाहर रखा गया - बीच-बीच में वह आकर क्षमा माँगते रहे। उनमें अभूतपूर्व अहंकार रहा है और कभी शर्मिंदगी प्रकट नहीं करते थे।
इस घटना के दो माह उपरान्त उनमें बहुत परिवर्तन दिखाई दिया। मुझे 35 वर्ष तक कष्ट देने के बाद वह भले मानुस हो गये। आज वह मुझसे, अपने बच्चों और पौत्री से अति प्रेम करते हैं। यदि आजकल वह कभी नशा करते भी हैं तो बहुत रोकर क्षमा याचना करते हुए कहते हैं कि वह अच्छे इंसान हैं और उन्होंने मुझे बहुत कष्ट दिये हैं।
गुरुजी की कृपा से मैं सब कुछ भूल गयी हूँ। मेरे पति और मेरा आगाढ़ प्रेम नव विवाहित दम्पति सा है।
गुरुजी उन सब कष्ट सहने वाली महिलाओं को अपनी कृपा से धन्य करें। मैं सबसे गुरुजी के चरणों में आने का निदेवदन करती हूँ। वह साक्षात् भगवान हैं। मैं उनसे अथाह प्रेम करती हूँ।
एक भक्त, जुलाई 2007
जुलाई 2007