यह आश्चर्यजनक बात है, कि मुझे गुरुजी के दर्शन का बुलावा उसी दिन आया जिस दिन मैनें अपनी 16 वर्ष पुरानी नौकरी से त्यागपत्र दिया। मैं उनसे दिसम्बर, 2003 में उस वक्त मिली जब मेरा जीवन दिशाहीन था, और मैं कुछ समय से एक असाध्य रोग मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस से ग्रसित थी।
मैं गुरुजी के दर्शन करने से लिए एम्स में एक भक्त के घर पर गई।मैं तब गुरुजी के बारे में कुछ ज्यादा नहीं जानती थी। मैंने सोचा कि, वह एक आम आदमी की तरह ही हैं - जो जीन्स पहनते हैं। मुझे जाने से पूर्व गुरुजी को 'माथा टिकाओ' (गुरुजी के चरणों में सिर झुकाने) को कहा गया किन्तु मेरी चिन्ता यह थी, कि यह माथा टिकाओ है क्या? मैं बहुत कम पूजा-पाठ करती थी, और उस वक्त भी जब मैं माथा टेक रही थी, अपनी माँ के द्वारा कही यह बात याद कर रही थी कि औरत तीन बार आदमी के चरण छूती है। मैंने गुरुजी के चरण एक बार छूए, किन्तु मेरे मन में यह दुविधा बनी रही कि मुझे दो बार और चरण छूने चाहिए या रूक जाना चाहिए और मैं एक बार में ही लौट गई।
मुझे एक भक्त, जोकि हमारे विद्यालय मैं अभिभावक शिक्षक संघ (पेरेंट टीचर एसोसिएशन) में थे, उनसे गुरुजी ने कहा कि मुझे दर्शन के लिए आना है। वह भक्त हमारे विद्यालय के लिए बहुत सारा काम कर चुके थे, विशेषकर कमप्यूटर विभाग के लिए।
मुझे बड़े मंदिर आने के लिए कहा गया, जहाँ पर गुरुजी ने मुझ पर कृपा की। मुझे ताँबे के लोटे का पानी पीने को कहा और चावल खाने को भी मना किया। गुरुजी को पहले ही पता था कि मैं पढ़ाती थी। जब मैं दुबारा गुरुजी के पास गई, तब गुरुजी ने मुझसे मेरी नौकरी के बारे मैं पूछा। मैंने तुरंत जवाब दिया कि मैं नौकरी करती थी, फिर मैंने खुद को ठीक करते हुए कहा, कि मैंने नौकरी छोड़ दी है। उन्होंने कहा, "तो क्या! घर से काम शुरू कर"। इस बात को स्वीकारने में कि गुरुजी ने मुझे नई राह दिखा दी, मुझे थोड़ा वक्त लगा।
मैंने नौकरी क्यों छोड़ी? यह कहानी की शुरूआत 1997 में हुई जब छाञों की वार्षिक परीक्षाऐं चल रही थी। एक दिन, मैं विद्यालय की बस से उतर रही थी, जब मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे सिर पर हल्के से वार किया, और कुछ तरल सी चीज मेरे सिर के अंदर से कुछ समय तक बाहर आई। लेकिन सब ठीक रहा, और मैं अपना काम ठीक तरह से कर रही थी।
जब मैं घर लौट रही थी तब मुझे पहला झटका लगा: जब मैंने रास्ते में एक कार दूसरी के ऊपर देखी। फिर घर के शौचालय में मुझे दो बाल्टियाँ दिखी, जबकि मुझे पता था कि वहाँ पर एक ही बाल्टी थी। मैंने अपने पिताजी को, जोकि पेशे से एक डॉक्टर थे यह बात बताई। मेरे पिताजी, डॉ. माथुर, मुझे एम आर आई के लिए ले गए जिससे पता चला कि मुझे मल्टिपल सक्लेरोसिस था। एक ऐसा रोग जिसका कई डॉक्टरों को पता ही नहीं, और जिसका पूरी दुनियाँ में कोई इलाज नहीं है। उसके बाद चिकित्सिय जाँच, अस्पताल में रहना, ड्रिप और बार-बार काम से छुट्टी का सिलसिला शुरू हो गया।
मल्टिपल सक्लेरोसिस एक तेज़ी से फैलने वाली बिमारी है, और डॉक्टर सिर्फ इसके घात को रोकने का प्रयास कर सकते हैं। इसकी वजह से, मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। मुझे विकलांग कुर्सी और शरीर के दोनों तरफ़ आलंबन लगाने पड़ते थे। मेरी दृर्ष्टि, भाषा और लेखन सब रोग से प्रभावित हो गए थे।
इस पर भी मैं खुश थी—इस बात के लिए मैं गुरुजी की आभारी हूँ। मेरे मन में अपार शाँती है इसके लिए भी गुरुजी का धन्यवाद करती हूँ। मैं कई धार्मिक कार्यक्रम देखती हूँ, और पता नहीं उनके द्वारा कैसे मेरे सवालों के जवाब मिल जाते हैं। मैंने अब कुछ बच्चों को घर पर ही पढ़ाना आरंभ कर दिया है।
अब मैं भाग्य और भगवान पर अटूट् विश्वास करने लगी हूँ। अब मैं एक बिल्कुल परिवर्तित शख्सियत हूँ।
एक भक्त
अगस्त 2008