आरम्भ में ही मैं बड़ी विनम्रता और हार्दिक श्रद्धा के साथ सर्वशक्तिमान गुरुजी से दिव्य आज्ञा लेता हूँ अपने अनुभव साधारण शब्दों में व्यक्त करने के लिए। मैं जानता हूँ कि ना ही मैं इतना सक्षम हूँ और ना ही काबिल कि सर्वशक्तिमान गुरुजी की विशाल दिव्यता और आध्यात्मिकता का वर्णन कर सकूँ। तथापि, ऐसा कर पाने के लिए मैं सर्वव्यापी गुरुजी से प्रार्थना करता हूँ।
हम गुरुजी के पास तीन साल बाद गए
हम 18 दिसम्बर 2008 को राकेश अंकल और उनके परिवार के साथ पहली बार बड़े मंदिर गए। मेरी पत्नी नीरा और बेटी माल्विका भी साथ थी। यह बताना कि उस दिन हम कैसे गुरुजी के दर पर पहुँचे अनुपयुक्त नहीं होगा।
राकेश अंकल की बेटी वृभा, मेरी बेटी की सहेली और साल 2007 तक एमिटी स्कूल में उसकी सहपाठी थी। वो माल्विका को गुरुजी के बारे में बताती रहती और उसे एम्पायर एस्टेट चलने के लिए भी कहती। पर हमारी इसमें कोई रूचि नहीं थी और हमने इसके लिए माल्विका को प्रोत्साहित नहीं किया; हम नहीं चाहते थे कि 'ऐसी बातों' से वो प्रभावित हो। लेकिन माल्विका की सोच कुछ और थी और अन्त में अक्टूबर 2008 में वह अपनी सहेली के परिवार के साथ बड़े मंदिर गई। नवम्बर 2008 में वो गुड़गॉंव के वार्षिक समारोह में भी गई। जब भी वो गुरुजी के यहाँ जाती तो बहुत खुश और संतुष्ट आती। परन्तु हमें इस बात से परेशानी होती थी कि वो बहुत देर से आती थी और साथ ही राकेश अंकल को भी असुविधा होती। माल्विका हमेशा गुरुजी का गुणगान करती और हमें भी मंदिर चलने के लिए कहती। क्योंकि हम उसे गुरुजी के यहाँ जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते वो बहुत अशांत हो जाती। जब भी वह हमें मनाने में नाकाम होती मैं उसका जोश काम होते हुए देखता।
फिर भी माल्विका बड़े मंदिर जाती रही और अपनी खुशी हमारे साथ बाँटने के लिए उत्सुक रहती। एक बार, करीब आधी रात को बड़े मंदिर से लौटने के बाद वो अत्यधिक खुश आई। मैंने उसके चेहरे पर एक चमक देखी; उसका चेहरा खिला हुआ और दमकता दिखाई दे रहा था। उसने हमें बताया कि उस शाम गुरुजी के साथ उसका पहला अनुभव हुआ था। उस शाम उसने सेवा भी की थी और वो हमारे लिए लंगर प्रसाद भी लेकर आई थी जो हमने अगली सुबह ग्रहण किया। तब, अपनी बेटी की खुशी की लिए हमने 18 दिसम्बर 2008, बृहस्पतिवार, को गुरुजी के मंदिर जाने का निश्चय किया।
शिव मंदिर में कदम रखते ही मुझे अनुभूति हुआ कि इतने साल मैं किससे वंछित था। हमें ऐसा लगा जैसे हम स्वर्ग पहुँच गए थे -- सब कुछ इतना शांत, स्थिर और निर्मल था। शिवजी की भव्य मूर्ति और शिवलिंग, तेजस्विता से चमक रहे थे और सकारात्मक ऊर्जा और सम्मोहक आकर्षण से भरे हुए थे। हम मंत्रमुग्ध थे। मेरी सारी शंकाएँ दूर हो गईं। मेरा अहंकार, जिसने इतने साल हमें गुरुजी और उनके बुलावे से दूर रखा, एक पल में विलीन हो गया। मैंने गुरुजी को सम्पूर्ण और शर्तरहित समर्पण कर दिया। राकेश अंकल ने एक उत्प्रेरक का काम किया जिसने हमें गुरुजी की अथाह आध्यात्मिक महिमा और कृपा समझने में सहायता की।
उस शाम हमने शबद और लंगर का आनंद उठाया और फिर घर वापस गए, प्रबुद्ध और परिवर्तित।
गुरुजी के साथ मेरा पहला संपर्क
हमारे घर में एक छोटा सा मंदिर है जिसमें हमने कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखी हुई हैं। जिस शाम को हम बड़े मंदिर गए थे, उसकी अगली सुबह, मैं अपनी दैनिक पूजा के लिए बैठा और सारे देवी-देवताओं से हाथ जोड़कर आज्ञा ली और भगवान गणेश की मूर्ती छोड़कर शेष सारी मूर्तियाँ मंदिर से हटा दीं। मेरे पास एक छोटा शिवलिंग था जो मैंने अन्दर रखा हुआ था और जिसकी पूजा मैंने बहुत सालों से नहीं की थी। मैंने शिवलिंग को धोकर साफ किया और अपने मंदिर में रख दिया। इससे पहले कि मैं अगरबत्ती जला पाता, मुझे एक बड़ी सुहावनी सुगन्ध आई। मुझे एकदम गुरुजी के होने का एहसास हुआ। गुरुजी ने मुझे आशीर्वाद दिया, इस विचार से ही मैं उल्लासित और बहुत खुश हुआ। ऐसी दिव्य सुगन्ध की कुझे पहले कभी अनुभूति नहीं हुई थी। राकेश अंकल मुझसे पूछते रहे कि क्या बड़े मंदिर में मुझे कोई सुगन्ध आई थी, पर तब मुझे इस सुगन्ध का एहसास नहीं हुआ था। गुरुजी के अपने तरीके होते हैं अपने होने का एहसास कराने के और उनकी सुगन्ध ऐसी ही एक सूचक है।
मेरे चचेरे भाई पर गुरुजी की कृपा
गुरुजी के पास कोई भी उनकी आज्ञा के बिना नहीं आ सकता। जिन पर गुरुजी की कृपा होती है वे ही गुरुजी के मंदिर या उनके सत्संग में पहुँचते हैं। हम इस तथ्य के साक्षी हैं: हमारे पूरे घर में गुरुजी की तस्वीरें लगी हुई हैं और पिछले एक साल में हमारे बहुत मित्र और रिश्तेदार हमारे घर आए हैं पर किसी ने भी गुरुजी में रूचि नहीं दिखाई।
किन्तु इंदौर स्थित मेरा एक चचेरा भाई कुछ अलग था। जब वो पहली बार हमारे यहाँ रहने आया तो उसने गुरुजी के बारे में जानने में रूचि दिखाई। सत्संग सुनने के बाद वह बड़े मंदिर जाना चाहता था। मुझे उसकी इच्छा में सच्चाई और ईमानदारी दिखाई दी।
हमें शुक्रवार को बरेली, हमारे गृह नगर, जाना था और हमने सोचा कि अगर हम रविवार को समय से वापस पहुँच गए तो हम मंदिर जा पाएँगे। वो रविवार को इंदौर जा रहा था और उसकी ट्रेन का समय रात को 10.10 बजे का था। बरेली जाकर हम अपने कामों में इतना व्यस्त हो गए कि हम भूल ही गए कि रविवार शाम को हमें मंदिर जाना था।
काम खत्म करने के बाद हम बरेली से दिल्ली के लिए गाड़ी से चल पड़े। चार घंटों में हम नोएडा पहुँच गए जबकि साधारणतया इसमें छः घंटे लगते हैं। रास्ते में हमें कोई ट्रैफिक जैम या बंद रेल-मार्ग अवरोध नहीं मिले। सड़कों की खराब हालत के बावजूद हमें थकान भी नहीं हुई थी। पिछले चालीस सालों से मेरा बरेली से दिल्ली आना-जाना रहा था पर कभी भी मेरी यात्रा इतनी आरामदायक नहीं रही थी।
नोएडा पहुँचकर हमने एक चचेरे भाई को उसके घर छोड़ा। इंदौर से मेरे भैय्या ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उसे गुरुजी के बड़े मंदिर ले जाऊँ। मैं हैरान होने के साथ खुश भी था क्योंकि मुझे लगा था कि दो दिन पहले हुआ सत्संग भैय्या भूल चुके होंगे। उस समय शाम के सात बजे थे और भैय्या की गाड़ी निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन रात 10.10 बजे की थी। ज़्यादा समय ना होने की कारण से मेरे बड़े भाई ने इसका विरोध किया और भैय्या को कहा कि वह फिर कभी गुरुजी के पास जाए। पर भैय्या अड़े रहे और उनकी गाड़ी भले ही छूट जाए, उसके लिए तैयार थे। हम उसी समय बड़े मंदिर के लिए निकले और आठ बजे तक वहाँ पहुँच गए। हम तीनों ने चाय प्रसाद लिया, शबद सुने और नौ बजे वहाँ से चल पड़े। भैय्या तो किसी और ही दुनिया में थे। 9.50 पर हमने उनको इंदौर के लिए निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर छोड़ा।
बरेली से दिल्ली तक, फिर मंदिर जाना, वहाँ से निज़ामुद्दीन और अन्त में रात के ग्यारह बजे गुड़गाँव पहुँचना, शरीर को बहुत थका देने वाला होना चाहिए था। पर मैं पूरी तरह फुर्ती से भरा हुआ महसूस कर रहा था—गुरुजी की कृपा से।
अगले दिन इंदौर से भैय्या ने फोन करके कहा कि वह गुरुजी के ग्रन्थ का आनंद उठा रहे थे, जो वह हमसे लेकर गए थे। अब जब भी वो दिल्ली आते हैं तो गुरुजी के मंदिर जाना चाहते हैं। हमारे पास गुरुजी के ग्रन्थ की एक ही कॉपी थी पर हमने खुशी से वो भैय्या को दे दी। दो दिनों में ही गुरुजी ने हमारे लिए एक और कॉपी का इंतज़ाम कर दिया।
गुरुजी की ओर मेरा सफर
बड़े मंदिर जाते हुए हमें एक साल से अधिक हो गया है। मेरा यह पूरे विश्वास से मानना है कि गुरुजी से मेरा जुड़ाव 18 दिसम्बर 2008 को शुरू हुआ।
1999-2000 में जब मैं अहमदाबाद में रहता था तो मेरा एक मित्र हर रविवार अपने गुरु के यहाँ जाता। उसे देखकर मैं सोचता कि काश मुझे भी किसी गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता पर तब ऐसा नहीं हुआ। उस समय मुझे व्यापार में बहुत भारी हानि हुई और एक साल में मेरी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई और ऐसा लग रहा था कि अब ठीक नहीं हो पाएगी। परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि 2001 में मुझे अपनी फैक्ट्री बेचनी पड़ी और 2002 में अपना घर और निजी संपत्ति भी। इतने बड़े धक्के के बाद भी मुझे अपने मित्रों द्वारा व्यापार के और अवसर मिलते रहे। ये अवसर इतने होते कि बस हमारी ज़रूरतें पूरी होती रहतीं।
इसी समय हम बहुत ज्योतिषियों के पास गए जिन्होंने मुझे और मेरी पत्नी को पूजा करने को, पत्थर पहनने को और अन्य उपाय बताये। हमें हर सोमवार शिवजी के मंदिर जाने के लिए भी कहा गया, जो पता नहीं क्यों मैंने नियमित रूप से किया। शायद गुरुजी की ओर यह हमारा पहला कदम था। यद्यपि हमें तुरंत कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ, कुछ सोमवार जाने के बाद मुझे व्यापार के अन्य अवसर मिले और अब मैं मानसिक रूप से निश्चिंत था।
अक्टूबर 2003 में मुझे गुड़गाँव में आकर बसने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरी नौकरी की सबसे अच्छी बात यह थी कि मुझे वो मेरी शर्तों पर मिली थी और अहमदाबाद में करीब 24 साल रहने के बाद हम दिसम्बर 2003 में आकर गुड़गाँव में बसे। यद्यपि यह आसान नहीं था, मैंने इसको भगवान की मर्ज़ी और अपनी किस्मत माना। मेरे बच्चों के वार्षिक इम्तिहान होने के उपरान्त मार्च 2004 में मेरा परिवार भी गुड़गाँव आकर बस गया।
साल 2005 के करीब माल्विका की सहेली, वृभा ने उसे गुरुजी के बारे में बताना शुरू किया पर हमें तीन साल लग गए गुरुजी के पास 2008 में पहुँचने में। पिछले एक साल के अनुभवों के बारे में लिखते हुए, मुझे पिछले कुछ सालों के वृत्तांत भी याद आ रहे हैं।
मुझे लगता है कि ये अनुभव मेरे साथ इसलिए हुए क्योंकि मैं गुरु की कृपा प्राप्त करने का इच्छुक था। मेरा यह मानना है कि जिस समय मैं गुरुजी से जुड़ा वह मेरी यह इच्छा पूरा होने का समय था। कहा जाता है कि गुरु तक पहुँचने का मार्ग आसान नहीं होता है। इस मार्ग पर सब्र का परीक्षा देनी पड़ती है और लम्बे समय तक श्रम, दर्द और कष्ट सह पाने की क्षमता और सामर्थ्य भी नापे जाते हैं। सहनशीलता का यह परीक्षा पास कर लेने के बाद गुरुजी से जुड़ना हमारे लिए सबसे बड़ा इनाम था। इससे ज़्यादा हमें कुछ नहीं चाहिए था। गुरु को पाने की मेरी मनोकामना पूरी हो गई थी, और वो भी कैसा गुरु! गुरुजी महाराज के रूप में हमें स्वयं भगवान शिव की कृपा प्राप्त हुई।
मेरी ज़िन्दगी का यू-टर्न
पहले दिन से ही सत्संग द्वारा हम इस बात से परिचित थे कि हमें गुरुजी से कुछ नहीं माँगना है, क्योंकि गुरुजी हमारी इच्छाओं और ज़रूरतों से पूरी तरह अवगत होते हैं। गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त करते रहने के लिए संगत को गुरुजी के सत्संग में और बड़े मंदिर जाते रहना चाहिए। यह बात पूरी तरह से सच है। गुरुजी ने हम पर स्वास्थ्य, संपत्ति, समृद्धि, प्रसिद्धि, नम्रता, सकारात्मकता और सुकून की बारिश की है। जो कुछ भी कोई सोच सकता है, गुरुजी ने वह सब और उससे कहीं अधिक दिया है। उनकी कृपा हर पल सब पर बरसती रहती है, पर कभी-कभी हमें ही इस बात की अनुभूति नहीं हो पाती है।
गुरुजी ने हमारे स्वास्थ्य को लेकर भी हमारा मार्ग-दर्शन किया है और स्वास्थ्य सम्बन्धी बड़े-बड़े कष्टों से हमें बचाया है। यहाँ तक कि सही चिकित्सकों की ओर भी हमारा मार्ग-दर्शन किया है।
इसका एक उदाहरण मेरा हर्निया का ऑपरेशन है। ऑपरेशन थिएटर में मुझे बहुत घबराहट और व्यग्रता की अनुभूति हो रही थी, जो एक क्षण में गायब हो गई जैसे ही मुझे गुरुजी के उपस्थित होने का आभास हुआ। अप्रैल 2009 में मुझे स्लिप डिस्क हुआ जिसका पुष्टिकरण एम आर आई से हुआ; वह अपने आप ही ठीक हो गया और मुझे पता भी नहीं चला। गुड़गाँव में हमारे घर से कुछ मिनटों की दूरी पर एक एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ की ओर मुझे गुरुजी ने निर्देशित किया और पिछले बीस सालों से जो मुझे कमर का दर्द, स्थायी रूप से पेट में दर्द, साइनोसाइटिस और सर्वाइकल था, इन सबका उपचार अपने आप बिना दवाइयों के हो गया।
गुरुजी का सुरक्षा कवच
गुड़गाँव में हमारे गेस्ट हाउस के लिए दिसम्बर 2008 में हमने एक अकाउंटेंट रखा। जनवरी में एक व्यक्ति जाते समय गलती से अपना कॉर्पोरेट क्रेडिट कार्ड वहीं छोड़ गया। उस अकाउंटेंट ने यह हमें नहीं बताया और एक बड़ी रकम निकालकर उस कार्ड का गलत उपयोग किया।
अगली सुबह चेन्नई से हमें उस व्यक्ति का फोन आया। यद्यपि यह मानना कि हमारा एक कर्मचारी ऐसा कुछ कर सकता था, मुश्किल था, हम उस दुकान पर गए जहाँ उस कार्ड का उपयोग हुआ था और वहाँ की सी सी टी वी फुटेज देखी। उस अकाउंटेंट को इस बात का पता चल गया और उसने तुरंत अपना अपराध स्वीकार लिया। एक घंटे के अंदर सारा मामला सुलझ गया, क्रेडिट कार्ड वापस मिल गया और जो सामान खरीदा गया था वह भी उससे वापस ले लिया गया। वह मेहमान बहुत प्रसन्न हुआ और इतनी जल्दी और ईमानदारी से यह सब करने के लिए उसने हमारा धन्यवाद किया। उसने हमारे विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की, जिससे हम ब्लैकलिस्ट भी हो सकते थे और हमारे व्यापार को बहुत नुकसान पहुँचता। जिस आसानी और सहजता से यह सब सुलझ गया, बिना किसी बाहर वाले के हस्तक्षेप के, यह बहुत अद्भुत था। गुरुजी के संरक्षण का आशीर्वाद का यह पहला अनुभव था। इसके बाद और अनुभव बहुत जल्द हुए। धन्यवाद, गुरुजी!
जून 2009 में हमने नयी गाड़ी खरीदी और उस बृहस्पतिवार की शाम को गुरुजी का धन्यवाद करने और उनका आशीर्वाद लेने हम बड़े मंदिर गए। हम अरावली पहाड़ियों पर घूमने गए और वापसी में पता नहीं कहाँ से एक बहुत बड़ा पत्थर हमारी गाड़ी के नीचे आ गया और गाड़ी के निचला हिस्से से टकरा गया। हम रुके पर हमने उतरकर नहीं देखा कि गाड़ी को क्या नुकसान पहुँचा था। हम आगे बढ़ते रहे क्योंकि गुरुजी के मंदिर होकर आने से जो मधुर भावदशा थी वो हम नष्ट नहीं करना चाहते थे। अगली सुबह जाकर जब मैंने गाड़ी का निरीक्षण किया तो यह देखकर कि एक छोटी सी खरोंच को छोड़कर गाड़ी को कोई और नुकसान नहीं पहुँचा था, मैं आश्चर्यचकित और खुश भी हुआ और अपने कार्यालय के लिए निकल पड़ा। उस समय मुझे यह अनुभूति नहीं हुई कि गुरुजी के आशीर्वाद से हम सबको एक नया जीवन मिला था।
शनिवार सुबह को मुझे सपना आया जिसमें मैंने 'देखा' कि कैसे गुरुजी ने हमारे पूरे परिवार को एक बड़ी दुर्घटना से बचाया जो कुछ ही मिनटों बाद होने वाली थी। मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने 'देखा' कि हमारी गाड़ी पहाड़ी से 50 फीट नीचे चली गई और मेरा परिवार बुरी तरह से घायल हो गया। सपने में, मैं जैसे-तैसे वापस सड़क पर पहुँचा और मुझे मदद मिली। हम सबको गुड़गाँव में पारस अस्पताल ले जाया गया।
उस दिन हम गुरुजी का विनयपूर्ण धन्यवाद करने दोबारा बड़े मंदिर गए।
वाहन चालक को गुरुजी का आशीर्वाद
गुरुजी की कृपा हमारे वाहन चालक को भी प्राप्त हुई। वह बहुत बार सोमवार को हमारे साथ बड़े मंदिर चला था और चाय और समोसा प्रसाद ग्रहण किया था। एक रात, वह बहुत तेज़ गति से जयपुर से गुड़गाँव गाड़ी चलाते हुए आ रहा था जिसमें और लोग भी थे। उसके आगे एक सवारी बस थी। अचानक वो बस बायीं ओर मुड़ी और हमारी गाड़ी सीधे एक डम्पर ट्रक के सामने आ गई जो सड़क की गलत ओर से हमारी ओर तेज़ गति से आ रहा था। हमारे चालक ने बताया कि टक्कर होनी सुनिश्चित थी और वह भौच्चका रह गया।
कुछ क्षण बाद उसने गाड़ी को सड़क की बायीं ओर खड़े पाया। गाड़ी पर एक खरोंच तक नहीं थी और डम्पर आगे निकल गया था। सोमवार को बड़े मंदिर जाते समय चालक ने हमें यह सब बताया। मैंने तुरंत कहा कि गुरुजी ने उसे, बाकी लोगों को और गाड़ी को बचाया था। जब मैं गुरुजी के बारे में बात कर रहा था, मुझे गुरुजी की विशिष्ट और पवित्र सुगन्ध आई, मानो मेरे ऐसे कहने को वह अपनी सम्मति और आश्वासन दे रहे हों।
माल्विका की टैक्सी का समाधान
2007 से माल्विका गुड़गाँव से नॉएडा में अपने कॉलेज तक आना-जाना टैक्सी से कर रही थी और टैक्सी के मालिक के घमंडी बर्ताव और समय का ताल-मेल ना हो पाने की कारण तंग आ गई थी। अब उसने इस बात का हठ कर लिया कि उस टैक्सी में वो नहीं जाएगी और कॉलेज के तीसरे साल से उसके आने-जाने के लिए कोई और प्रबंध किया जाए। एक हफ्ते में उसका कॉलेज खुलने वाला था; जो पहले वाली टैक्सी का मालिक था उसने किसी और की बुकिंग ले ली थी और वो भी हमारी मदद करने को तैयार नहीं था। फिर भी हमें पूरा विश्वास था कि गुरुजी इस समस्या का कोई हल निकाल लेंगे। पर हमने अपनी कोशिशें जारी रखीं।
कॉलेज खुलने का समय आ ही गया था जब मेरी पत्नी नीरा को माल्विका की एक सहेली की माँ का फोन आया। वो दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे और वो लड़की पिछले दो सालों से हॉस्टल में रह रही थी। अब उसके माता-पिता चाहते थे कि वो गुड़गाँव आकर रहे और यहीं से प्रतिदिन अपने कॉलेज के लिए आये-जाये। उन्होंने हमें कहा कि बारी-बारी दोनों लड़कियाँ अपनी गाड़ी शेयर कर सकती थीं। हमने उनकी बात मान ली। यह प्रबंध बहुत अच्छा रहा क्योंकि टैक्सी के कारण अब दोनों लड़कियों का समय नष्ट नहीं हो रहा था। गुरुजी का धन्यवाद कि उनके कारण सब कुछ इतनी सरलता से हो गया और आज भी हो रहा है।
मेरे बेटे को उसकी मनपसन्द नौकरी मिली
मेरे बेटे, श्रीवर ने अप्रैल 2009 में सिम्बायोसिस, पुणे से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और फिर 2-3 साल नौकरी करके वो एम बी ए करना चाहता था। ग्रेजुएशन के तुरंत बाद वो पहले नौकरी करना चाहता था पर आर्थिक मंदी के कारण उसे अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी। कुछ महीनों की कोशिशों के बाद उसे एक नौकरी मिल गई। यद्यपि यह नौकरी ना तो उसकी पढ़ाई के अनुकूल थी, और ना ही उसे पसंद थी पर उसने सोचा कि घर पर खाली बैठे रहने से तो अच्छा ही था इसलिए हम भी मान गए।
क्योंकि यह नौकरी मार्केटिंग से सम्बंधित थी, उसे अपने वाहन की आवश्यकता थी। दुपहिया वाहन के बारे में तो हम सोचना भी नहीं चाहते थे, जन-परिवहन उपयोग करने में व्यवहारिक कठिनाइयाँ थीं और हमारे पास अतिरिक्त गाड़ी नहीं थी। हमने बैंक से ऋण लेकर उसके लिए गाड़ी लेने का निश्चय किया। पर गुरुजी ने हमारे लिए कुछ और ही सोच रखा था।
मेरे व्यापार से सम्बंधित एक व्यक्ति था जिसने मुझसे एक बड़ी रकम ली हुई थी और जो मैं उससे बहुत समय से वापस माँग रहा था। एक दिन हमें बड़ा अचम्भा हुआ जब इस रकम का एक हिस्सा उसने हमें भिजवाया। वह इतना था कि बिना किसी ऋण या किसी के एहसान के हम गाड़ी खरीद सकें। मार्केटिंग की वो नौकरी लेने के एक महीने के अंदर, श्रीवर को एक विदेशी बैंक, जिसके हेड क्वार्टर्स अमेरिका में थे, में अपनी मनपसन्द नौकरी गुड़गाँव में ही मिल गई। यह सब किया सर्वशक्तिमान गुरुजी ने!
इस सत्संग का एक-एक शब्द गुरुजी से प्रेरित है। जब से हम गुरुजी से जुड़े हैं गुरुजी हमारा मार्ग-दर्शन कर रहे हैं। गुरुजी की इतनी कृपा रही है मेरे ऊपर कि मेरी पूरी कोशिश रहती है कि जहाँ तक हो सके मैं उनके निर्देशों का पालन करूँ। पिछले एक साल में मेरा व्यापार कई गुना बढ़ गया है। सब कुछ इतनी सहजता से होने लगा है, ना केवल मेरे व्यापार में, परन्तु हमारे निजी जीवन और घर में भी। कोई काम या चुनौती अब बड़ी या जटिल नहीं लगती है। मैंने गुरुजी को पूरी तरह से समर्पण कर दिया है, और अब मैं नेक और भले काम करता हूँ जिनका परिणाम मैं गुरुजी पर छोड़ देता हूँ।
और हाँ, मैं और मेरा पूरा परिवार राकेश अंकल और उनके परिवार का आभारी है जो गुरुजी के पास हमें लेकर जाने के लिए माध्यम बने। बहुत, बहुत धन्यवाद गुरुजी, हमें अपनी संगत का अंश बनाने के लिए !
एक भक्त
जून 2010