आशीर्वाद से भरे लोटे से गुरुजी ने मेरे गुर्दे का उपचार किया

अनुराग मैनी, दिसम्बर 2009 English
मेरे गुर्दे-सम्बन्धी रोग के बारे में 1995 में पता चला। छः साल बाद मेरे गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया और मेरा गुर्दा स्थानांतरण किया गया। मेरे ऑपरेशन से एक दिन पहले सर्जन ने आकर मुझे बताया कि मेरा रोग ऐसा था कि स्थानांतरण के बाद भी 70 प्रतिशत सम्भावना थी कि मुझे यह रोग दोबारा हो जाएगा। मेरा परिवार और मैं निराश हो गए पर हमारे पास इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था।

मेरे ऑपरेशन के बाद मैंने चिकित्सक की दी गई हिदायतों का पालन किया, परन्तु हर साल मुझे हस्पताल में भर्ती होना पड़ता। साल 2003 में मैं तुर्की में था जब मेरा रक्त चाप बहुत बढ़ गया। मुझे फौरन भारत वापस आकर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। गुर्दे की बायोप्सी से पता चला कि यह रोग दुसरे गुर्दे में भी हो गया था।

हमने भारत और अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकों से विचार-विमर्श किया; परन्तु हमें कहा गया कि कुछ ही महीनों में मुझे डायलिसिस शुरू करना पड़ेगा; इसका कोई उपचार नहीं था। मुझे स्टेरॉइड्स की भारी मात्रा पर डाला गया। मेरी पत्नी, माँ, पिता और बेटा ध्वस्त हो गए। हम बहुत सारे मंदिरों और ज्योतिषयों के पास गए, बहुत पैसे बर्बाद किए पर कुछ नहीं हुआ। उसी समय मेरी तरक्की भी हुई। मेरी नयी ज़िम्मेदारियों की माँग थी कि मुझे हर महीने अन्य देशों की यात्रा करनी थी। हम असमंजस में थे कि मुझे यह तरक्की स्वीकारनी चाहिए या नहीं।

इस पड़ाव पर हमारी एक परिचित, भाटिया आंटी, ने अपने गुरुजी और उनकी चमत्कारी शक्तियों के बारे में हमें बताया। हमने उनका विश्वास नहीं किया पर क्योंकि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था, हमने गुरुजी के पास जाने का निश्चय किया। मेरी माँ उनके दर्शन के लिए गयीं और मेरी समस्या के बारे में गुरुजी को बताया। गुरुजी ने अगली बार मेरी पत्नी अंजना को एक तांबे के लोटे के साथ आने को कहा। मेरी पत्नी लोटा लेकर गयी, जिसे गुरुजी ने अभिमंत्रित किया। मुझे उसमें रात को पानी भर कर रखना था, सुबह आधा पानी पीना था और बाकी अपने नहाने के पानी में मिला देना था। यद्यपि मैं स्वयं गुरुजी के पास नहीं गया था, मैंने उनके निर्देश का पालन किया . . . . "मरता क्या ना करता?"

गुरुजी के निर्देश का पालन करने के तीन महीनों के भीतर पहला चमत्कार हुआ। मेरे गुर्दे ठीक होने लगे। और छः महीनों के अंदर मेरे गुर्दे सामान्य हो गए। मेरा चिकित्सक स्तंभित था और उसने मुझसे पूछा कि मैं कौनसा इलाज करवा रहा था क्योंकि एलोपथिक दवाइयों से मेरे गुर्दे ठीक नहीं हो सकते थे। हमने गुरुजी और उनके आशीर्वादों के बारे में बात की और चिकित्सक ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं ऐसा करना जारी रखूँ। हम विस्मित थे: कैसे एक गुरु किसी को आशीर्वाद दे सकते थे जो उनसे कभी मिला भी नहीं था, जिससे उन्होंने कुछ लिया नहीं था और बिना एक बार भी दावा किये कि उन्होंने उसका इलाज किया था। यह अनोखी और कभी-कभार ही होने वाली बात थी; हमने ऐसा ना तो पहले कभी सुना था और ना ही अनुभव किया था।

गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त करने के छः महीने बाद मुझे उनके दर्शन हुए और वो मुस्कुराते हुए और आँखों में एक चमक लिए मुझसे मिले। पहली बार मैंने चाय प्रसाद और लंगर ग्रहण किया। इस बात का मुझे बाद में एहसास हुआ कि यह मेरी दवाइयों की अगली खुराक थी। मैं दुनिया के किसी भी कोने में यात्रा पर जाता हूँ तो अपना अभिमंत्रित लोटा साथ लेकर जाता हूँ। दुनिया के किसी भी देश के कस्टम्स ने ना कभी मुझे रोका है और ना ही लोटे के बारे में पूछताछ की है।

पुछदे नहीं, मंगदे नहीं - आशीर्वाद सदैव

जहाँ मैंने गुरुजी के यहाँ महीने में एक बार जाना शुरू किया, मेरी पत्नी गुरुजी के यहाँ अधिक जाने लगी। उसे श्याटिका था और अक्सर उसे दर्दनाक दौरे पड़ते। उसने कभी भी गुरुजी से इसके बारे में बात नहीं की और हर हफ्ते वह छोटे मंदिर में चुप-चाप बैठती और मेरी सेहत के लिए प्रार्थना करती। एक साल के अंदर उसे एहसास हुआ कि अब उसे दर्द नहीं था। उसके श्याटिका का इलाज अपने आप हो गया था!

इस अवधि में हमें गुरुजी का एक सिद्धांत याद आया जो उनके एक भक्त ने हमें बताया था। गुरुजी ने कहा था: "पुछदे नहीं, मंगदे नहीं।" एक शिष्य को अपने गुरु से कुछ नहीं माँगना चाहिए। शिष्य दूरदर्शी नहीं होते जबकि गुरु दूरदर्शी होते हैं और संगत के बिना बोले, अपने आप ही उन्हें आशीर्वाद दे देते हैं। वह अगर कुछ चाहते हैं तो सिर्फ सम्पूर्ण श्रद्धा और विश्वास; उनके आशीर्वाद अनगिनत हैं और दुनिया की किसी भी शक्ति से अधिक शक्तिशाली।

मेरे पूरे परिवार पर उनकी कृपा बरसनी शुरू हो गयी थी। स्टेरॉइड्स के कारण मुझे दोनों आँखों में मोतियाबिन्द हो गया था और मुझे उसका ऑपरेशन कराना पड़ा। मेरी पत्नी चिन्तित थी कि हम ऐसे डॉक्टर और ऐसे हस्पताल जा रहे थे जिसे हम जानते नहीं थे। ऑपरेशन से एक दिन पहले हमने गुरुजी का आशीर्वाद लेने का निश्चय किया और सब उनपर छोड़ दिया।

अगले दिन जब हम दिल्ली के एक अस्पताल गए तो मेरी पत्नी ने देखा कि अस्पताल के मालिक के कमरे में गुरुजी की तस्वीर थी। अस्पताल के कर्मचारियों ने हमें बताया कि हस्पताल के मालिक गुरुजी के पक्के भक्त थे और पिछली शाम को संगत में थे जब हमने गुरुजी से आशीर्वाद लिया था।

गुरुजी ने अपने आप ही उस हस्पताल की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जिसे उन्होंने आशीर्वाद दिया था। मेरा ऑपरेशन बहुत अच्छा रहा। एक बार फिर गुरुजी ने प्रमाण दिया कि हमें उनसे कुछ भी माँगने की आवश्यकता नहीं है। उनका आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है, हर जगह है और हर समय है।

यद्यपि मेरे गुर्दे में सुधार हो रहा था, मुझे महँगी आयातित दवाइयाँ खानी होती थीं, जिसके कारण हमारी बचत समाप्त होती जा रही थी। हर हफ्ते गुरुजी की संगत में बैठे हुए हम चिंता करते थे कि कुछ और महीनों में जब हमारी बचत समाप्त हो चुकी होगी तो हम कैसे यह खर्चा उठाएँगे। जब भी हम लंगर के बाद आज्ञा लेते तो गुरुजी हमेशा मुस्कुराते पर हम कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि उनसे कुछ पूछते।

मैंने कुछ साल सेना में काम किया था पर अब उनसे सम्पर्क में नहीं था। एक दिन एक बुज़ुर्ग भूतपूर्व सेना के अफ्सर ने, जो हमारे घर के पास रहते थे, हमारे घर की घंटी बजाई और हमें कुछ फॉर्म दिए। उन्होंने हमें बताया कि सरकार ने भूतपूर्व सैनिकों के लिए एक नयी योजना की घोषणा की थी जिसके तहत अगर हम अपना नाम लिखवाते तो हमें आजीवन मुफ्त चिकित्सक सुविधा प्राप्त होती।

हमने तुरंत सारी औपचारिकताएँ पूरी कीं और कुछ ही समय में हमें मुफ्त दवाइयाँ मिलने लगीं। हमें 4,500/- रुपये का शुल्क चुकाना पड़ा जिससे हमें 20,000/- रुपये प्रति माह की दवाइयाँ आजीवन मिलतीं। इतने सारे आशीर्वाद इतने कम समय के अंदर। गुरुजी बस अपनी मुस्कुराहट के द्वारा हमसे बात करते--यह कितना दिव्य अनुभव था!

क्योंकि हम इन्सान हैं, गुरुजी का आशीर्वाद मिलने के प्रतिकूल हम लोग बहुत चिंता करते हैं। हमारी पिछली चिंताएँ समाप्त हो गईं तो अब नयी शुरू हो गई थीं। मेरी पत्नी मुझे कहती रहती कि अगर मेरे गुर्दे फिर से खराब हो गए तो मेरी नौकरी जा सकती थी। यह संभव था क्योंकि मैं कॉरपोरेट सेक्टर में काम करता था।

मैं जिस कम्पनी में 17 सालों से काम कर रहा था, वह कम्पनी 2005 में किसी और ने अधिग्रहीत कर ली। मुझे चुनने का अधिकार दिया गया कि मैं वहीं काम करना जारी रख सकता था या स्वेच्छापूर्वक सेवानिवृत्ति ले लेता, मैंने जितने साल काम किया उससे बद्ध पृथक्करण वेतन के साथ। इसके बारे में दोबारा सोचे बिना, हमने रुपये लेने का निर्णय लिया और हम जितना सोच सकते थे, हमें उससे कहीं अधिक मिला। इस रकम से मेरी पेंशन की भरपाई हो गई।

मेरी और एक चिंता थी कि मेरे गुर्दे की समस्या के साथ मुझे नौकरी कैसे मिलती। नयी कम्पनी में काम शुरू करने से पहले मेडिकल जाँच के समय मेरी समस्या का उन्हें पता चल जाता। गुरुजी के आशीर्वाद से मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये जिसमें से मैंने एक चुना। नयी कम्पनी में काम शुरू करने से एक महीना पहले मेरी मेडिकल जाँच हुई और मैंने नयी कम्पनी में अपनी मेडिकल रिपोर्ट दे दी। उस रिपोर्ट में मेरे गुर्दे की समस्या, रक्त चाप और मैं जो दवाइयाँ खाता हूँ, उस सब की पूरी सूचि थी। मुझे पूरा यकीन था कि वो कम्पनी अपनी नौकरी का प्रस्ताव रद्द कर देगी, पर हैरानी की बात है कि मुझसे कोई सवाल नहीं पूछे गये। और मैंने नयी कम्पनी में काम शुरू कर दिया।

काम शुरू करने के तीन महीने बाद मैंने सम्बंधित व्यक्ति से अपनी रिपोर्ट के बारे में पूछा कि क्या उसने मेरी रिपोर्ट पढ़ी थी और उनको मेरी रिपोर्ट ठीक लगी। उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि जब मैंने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी वह बहुत व्यस्त था और उसे वह पढ़ने का समय ही नहीं मिला था। एक और चमत्कार हो गया था!

संगत के लिए गुरुजी के आशीर्वाद अनंत हैं। वह हमें अच्छी सेहत, अच्छे रिश्ते, सुदृढ़ वित्तीय स्थिति और अन्य सब कुछ का आशीर्वाद इतने प्रेम भरे रूप में देते हैं। हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम गुरुजी के रूप में स्वयं भगवान शिव की शरण में हैं। उन्होंने हमारी सभी चिंताओं और समस्याओं का धयान रखा है और उनके बदले हमें खुशियाँ, मुस्कुराहट और एक प्यारा संगत परिवार दिया है!

जय गुरुजी!

अनुराग मैनी, एक भक्त

दिसम्बर 2009