सत्संग, का अर्थ है, सत्य की संगत। संक्षेप में, जो सुनना लाभकारी हो। गुरुजी के दरबार में, हर एक भक्त सत्संगी है, जिसमें दुखियों को संदेश देने की क्षमता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यहाँ पर श्रोताओं को लगता है कि सुनाया जा रहा प्रवचन उनकी ही आपबीती है।
श्री अरुण सहगल, जिन्होंने कभी गुरुजी के दर्शन नहीं किये थे, मस्तिष्क में खून के क्लोट के कारण हस्पताल में भर्ती थे। एक भक्त जो सहगल को जानते थे, उनसे मिलने पहुंचे और बातों बातों में उन्होंने गुरुजी का सत्संग करना शुरू किया।
सत्संग के बाद, डॉक्टरों ने पाया कि क्लोट मस्तिष्क के मरे हुए हिस्से में चला गया था। यह चमत्कार सुनने के बाद उस भक्त ने सहगल को बताया कि उनपर गुरुजी की कृपा हुई है और अब उनको चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है। मगर सहगल ने उनकी उपेक्षा करी और सोचा कि यह गुरुकृपा नहीं, महज़ एक संयोग है।
अगले ही दिन चिंतित डाक्टर ने सहगल को बताया कि मस्तिष्क को जाती हुई एक नस में बहुत ज्यादा खून के क्लोट्स हैं और तुरन्त गंभीर परिक्षर्ण करने की आवश्यकता है। डाक्टर ने बताया कि यह परिक्षण बहुत संकटपूर्ण होगा और इलाज उससे भी ज्यादा कठिन।
यह सुनकर सहगल और उनका परिवार बहुत चिंतित हो उठे और गुरुजी से सहायता के लिए विनती करने लगे। हस्पताल से छुट्टी लेकर सहगल ने परिवार सहित गुरुजी के यहाँ आना शुरू कर दिया। तीन-चार बार गुरुजी के यहाँ आने के बाद गुरुजी ने सहगल को लंगर खाने को कहा। उसके पश्चात गुरुजी ने सहगल को स्वस्थ्य घोषित कर दिया।
गुरुजी के कहे गए वचन सच साबित हुए जब सहगल ने फिरसे परीक्षण कराये और पाया कि वह वास्तव में ठीक हो गया था।
अरुण सहगल, दिल्ली
जुलाई 2007