ज़िन्दगी के पथ पर गुरुजी अपनी संगत के साथ हैं

आशा दुआ, मार्च 2010 English
गुरुजी की शरण में आने से पहले मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। मेरे मस्तिष्क में अस्थिर खून के थक्के थे जिनके कारण मुझे अक्सर बेरोक चक्कर आते और उल्टियाँ होतीं। मेरा इलाज चल रहा था और मैं बहुत सारी दवाइयाँ ले रही थी (एक दिन में 15-20 गोलियाँ तक) जिनसे मेरा शरीर फूल गया था और मैं असहनीय दर्द में थी। अगर मैं दवाई की एक भी खुराक लेना भूल जाती थी तो मेरी हालत और बिगड़ जाती थी। फिर हमें गुरुजी के बारे में पता चला और हमने गुरुजी के दर्शन के लिए आना शुरू किया। गुरुजी का दर्शन अपने आप में ही बहुत शान्तिदायक और मन को संतुष्ट करने वाला होता था। परम पूजनीय गुरुजी महाराज की उपस्थिति में बैठना एक दिव्य अनुभव था। हम बाहरी दुनिया भूल जाया करते थे। गुरुजी के चरण कमलों में होने से बढ़कर कोई खुशी नहीं है।

जो भक्त हमें गुरुजी के पास लेकर आए थे, एक दिन उन्होंने मुझसे पूछा, "आप कितनी दवाइयाँ लेते हो आंटी?" तब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक भी दवाई नहीं ले रही थी फिर भी बिलकुल ठीक थी!

गुरुजी सर्वोत्तम हैं। उन्होंने ना केवल मेरा उपचार किया, परन्तु मुझे यह एहसास भी नहीं होने दिया कि मेरा उपचार हो रहा था। ऐसा केवल भगवान ही कर सकते हैं और कोई नहीं। गुरुजी मनुष्य नहीं हैं, इसलिए कुछ विशेष सामर्थ्य तक ही सीमित नहीं हैं। वह पृथ्वी पर भगवान हैं। वह हमें अपार आशीर्वाद देते हैं और कभी भी हमें यह एहसास नहीं कराते हैं कि उन्होंने हमारे लिए कितना किया है। मैं अपनी ज़िन्दगी के लिए उनकी एहसानमंद हूँ और मेरे पास शब्द नहीं हैं जिनसे मैं उनका धन्यवाद अदा कर सकूँ। उनके गुणगान असंख्य हैं और शब्द काम पड़ जाते हैं। मैं बस अपने हृदय की गहराइओं से यही कह सकती हूँ : "धन्यवाद, गुरुजी!"

एम्पायर एस्टेट चमत्कारी ढंग से आना-जाना

एक बार हम एम्पायर एस्टेट से घर जा रहे थे और बारिश होने लगी। जो लोग उस रास्ते से आते-जाते हैं वो जानते होंगे कि एम्स जाने के लिए कुतुब मिनार के भीड़ भरे ट्रैफिक सिग्नल से दायें मुड़ना होता है और उस चौराहे पर एक बहुत ही कम ऊँचाई वाला गोलचक्र था। उस दिन जब बत्ती हरी हुई, मैं उस गोलचक्र के ऊपर से जाने वाली थी। मेरे पति ने गुस्से से चिल्लाकर मुझे सावधान किया। यद्यपि, अगर मैं उस गोलचक्र के ऊपर से होकर जाती तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि उसकी ऊँचाई अधिक नहीं थी, मैं चुप रही और वहाँ से आगे चल पड़ी।

अगली बार जब हम एम्पायर एस्टेट से वापस जा रहे थे मैं उस गोलचक्र के लिए पहले से ही चौकस थी। पर मुझे हैरानी हुई यह देखकर कि वह गोलचक्र ही हटाया जा चुका था। मैंने अपने पति से कहा कि गुरुजी ने वह उकसाव ही हटा दिया जो उनके गुस्से का कारण बना था।

गुरुजी सदैव अपनी संगत के लिए विद्यमान हैं, अपने हर भक्त के साथ हैं चाहे वह कहीं भी हो। चाहे घर पर, मंदिर में या गाड़ी में, गुरुजी अपनी संगत का धयान रखने के लिए और उनकी रक्षा करने के लिए सदैव विद्यमान होते हैं। गुरुजी सदैव सुनिश्चित करते हैं कि उनकी संगत को किसी तरह की हानि ना हो।

एक और दिन हम एम्स और साउथ एक्सटेंशन से होते हुए एम्पायर एस्टेट से लाजपत नगर में अपने घर को जा रहे थे। मूलचंद चौराहे पर अंडरपास के निर्माण कार्य का काम चल रहा था। इस कारण उस चौराहे पर बहुत विकट ट्रैफिक जाम होता था। मेरे पति ने सुझाव दिया कि अगली बार हमें दूसरा रास्ता लेना चाहिए और मैंने उनकी बात को हामि भर दी।

अगली बार हम फिर से मूलचंद चौराहे से गुज़रे। अपेक्षा अनुसार वहाँ बहुत बड़ा ट्रैफिक जाम था और एक छोटा सा फासला पार करने में हमें 20-25 मिनट लग गए। मेरे पति मुझसे नाराज़ थे। मैंने उनसे माफी माँगी और कहा कि अगली बार वह मुझे पहले ही याद दिलायें कि हम कोई और रास्ता लें।

किस्मत का खेल था कि अगली बार हमने फिर वही रास्ता चुना। मैं उस रास्ते की इतनी आदी हो गयी थी कि स्वाभाविक रूप से वह रास्ता ले लेती थी। मैं फिर से उस रास्ते पर भारी ट्रैफिक जाम की अपेक्षा कर रही थी और डर रही थी कि फिर मेरे पति गुस्सा हो जायेंगे। अब कोई और रास्ता लेना मुमकिन नहीं था। परन्तु मुझे हैरानी हुई जब मैंने देखा कि अंडरपास अब गाड़ियों के लिए खुल गया था और वहाँ कोई ट्रैफिक जाम नहीं था।

यह गुरुजी का चमत्कार था। एक तरफ तो मेरे और मेरे पति के बीच में होने वाली एक मुश्किल घड़ी टल गई, और दूसरी तरफ हमारा वहाँ से जाना आसान हो गया। मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। और इस सबका श्रेय जाता है गुरुजी को!

मेरे कंधे का उपचार

एक समय था जब मैं अपना बायाँ कंधा इतना भी नहीं उठा सकती थी कि अपना मुँह धो सकूँ। इसका हल केवल ऑपरेशन था और उससे भी मैं केवल अपनी बाँह का प्रयोग कर पाती, मेरे कंधे का इससे उपचार नहीं होता। इसे अपनी किस्मत समझकर मैंने स्वीकार कर लिया और ऑपरेशन करवा लिया।

दो साल बाद, रविवार के दिन, मैं अपनी माँ से मिलने गई तो उन्होंने मेरे कंधे के बारे में पूछा। मैंने उदासीनता से जवाब दिया कि शरीर का कोई अंग काम करना बंद कर देता है तो उसका उपचार नहीं हो सकता; इसलिए किसी भी सुधार की उम्मीद करना बेकार था।

आगामी बुधवार को मुझे बैठक में ही नींद आ गई। उठने पर मैं अंदर शयन कक्ष में चली गई। यद्यपि अंधेरा था, मैंने बत्ती नहीं जलायी और बैठने से पहले मैंने अपने बायें हाथ से बिस्तर का सहारा लिया। मैंने अपना संतुलन खो दिया और गिर पड़ी। मैं उठी, और यद्यपि मुझे थोड़ा दर्द महसूस हुआ, मैं सो गई। सुबह उठकर मैंने देखा कि मुझे थोड़ी चोट आई थी। शाम को मैंने देखा कि मेरा बायाँ कंधा, जो पहले एक तरफ लटका हुआ था, अब अपनी सामान्य जगह पर था। मैं हैरान थी।

यह बात समझने में मुझे ज़्यादा समय नहीं लगा कि पिछली रात को गुरुजी ने एक छोटे से झटके में वह कर दिया था जो चिकित्सक नहीं कर पाये थे। मेरा कंधा अब बिलकुल ठीक है। शुक्रिया, गुरुजी, हर अनुग्रह के लिए।

शादी के स्थान पर सुरक्षित पहुँचे

2 सितम्बर 2006 को हमें फरीदाबाद में नाहर सिंह स्टेडियम में जाना था। उस दिन बहुत अधिक बारिश हो रही थी और सड़कों पर घुटनों तक पानी था। पहले तो हमने फरीदाबाद में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ जाने का सोचा कि फिर वहाँ से सब शादी के स्थान पर साथ ही जाते। परन्तु जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने हमें उनके घर आने से मना किया और यह बोले कि हम शादी के स्थान पर सीधे पहुँचें क्योंकि उनके घर के आगे बहुत पानी इकट्ठा हो गया था। इसलिए हम सीधा स्टेडियम के लिए गाड़ी में निकले।

मुझे रास्ता पक्की तरह से मालूम नहीं था इसलिए हम लोगों से पूछते हुए जा रहे थे। एक जगह पहुँचने के लिए हमें फ्लाईओवर के नीचे से जाकर मुड़ना था परन्तु लोगों ने हमें दूसरा रास्ता लेने को कहा क्योंकि इस रास्ते पर बहुत पानी इकट्ठा था।

अब हमें एक तंग गली से होकर निकलना था और वह भी पानी से भरी हुई थी। पहले तो मैं वहाँ जाने से घबरा रही थी, पर फिर किसी ने हमें कहा कि आगे जाकर वहाँ हालत इतनी खराब नहीं थी; केवल थोड़ा सा ही रास्ता था जहाँ थोड़ा पानी भरा हुआ था। हम उस रास्ते पर गये और जल्द ही हमारी मारुति 800 पानी में आधी डूबी हुई थी। मेरा ध्यान बस इस बात पर केंद्रित था कि मैं गाड़ी चलाती रहूँ, पर जब सामने से एक और गाड़ी आई और मुझे उसे रास्ता देना पड़ा तो गाड़ी बंद पड़ गई। मुझे एहसास हुआ कि मेरी बीस साल पुरानी गाड़ी वहाँ से निकल नहीं पायेगी। अब उसका पुनप्रारंभ होना सम्भव नहीं लग रहा था। तभी मेरे पति बोले कि हमें गुरुजी पर विश्वास रखना चाहिए और गाड़ी दोबारा शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए। मैंने गुरुजी का नाम लिया और मैं इतनी हैरान हुई जब बिना किसी दिक्कत के गाड़ी चल पड़ीं। ऐसे ही हालात में गाड़ी दो से तीन किलोमीटर चली और गुरुजी की कृपा से हम शादी के स्थान पर पहुँचे।

यह बात स्पष्ट थी कि सारे रास्ते गुरुजी ने हमारी सहायता की क्योंकि शादी के स्थान पर हम सबसे पहले पहुँचे थे। यहाँ तक कि, दूल्हा और दुल्हन के परिवारों को ट्रक में आना पड़ा क्योंकि वहाँ तक गाड़ियाँ नहीं आ पा रही थीं।

क्योंकि मेरा बेटा और उसका परिवार भी वहाँ आने के लिए निकले थे, हमने गुरुजी से उनका ख्याल रखने के लिए अनुरोध किया और वे बिना किसी परेशानी के पहुँच गए। उस रात स्टेडियम में पहुँचने वाली केवल हमारी दो गाड़ियाँ थीं। हमारा वहाँ सुरक्षित पहुँचना गुरुजी की कृपा से ही सम्भव हुआ, इसमें कोई शंका नहीं थी। जय गुरुजी!

गुरुजी ने हमारा भाग्य बदल दिया

एक दिन मैं बड़े मंदिर जाना चाहती थी। मैंने देखा कि मेरी गाड़ी का गियर लॉक अटका हुआ था। मैंने दूसरी चाभी से भी कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ। मेरा बड़े मंदिर जाने का बहुत मन कर रहा था पर मुझे और कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। तभी मेरा बेटा आ गया और मेरी स्थिति देखकर उसने मुझे उसकी गाड़ी ले जाने को कहा।

हम उसकी गाड़ी लेकर बड़े मंदिर के लिए निकल पड़े। रास्ते में तिवोली गार्डन के नज़दीक एक टाटा सूमो ने आकर हमें करीब-करीब टक्कर मार ही दी थी पर हम बाल-बाल बच गए। मेरे पति ने टिप्पणी की, "यह आदमी (सूमो का ड्राइवर) तो किसी को मार देगा।" और तभी उस गाड़ी ने एक साइकिल पर सवार फेरी वाले और उसकी साइकिल-रिक्शा को टक्कर मारकर गिरा दिया। वह सूमो तब भी नहीं रुकी।

तब हमें समझ आया कि क्यों हमारी स्विफ्ट गाड़ी का गियर अटक गया था और हमें अपने बेटे की आइकॉन गाड़ी में आना पड़ा। यहाँ तक कि, मैंने मारुति सर्विस में फोन करके उन्हें यह तक कहा कि गियर लॉक हमें उसके मूल्य से कहीं ज़्यादा परेशानी देता था। मारुति सर्विस के कर्मचारी ने हमें कहा कि गाड़ी के गियर लॉक का ऐसे अटकना अजीब था और उसमें क्या खराबी हुई थी यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। पर हमें समझ आ गया था; गुरुजी ने हमें एक बड़ी दुर्घटना और संभवतः जान के नुकसान से बचाने के लिए बड़े सूक्ष्म तरीके से हमसे गाड़ी बदलवाई।

गुरुजी होनी को अनहोनी करके किसी भी संगत को बचा सकते हैं। गुरुजी भगवान हैं, वह सर्वव्यापी हैं और उनसे कुछ भी छुपा नहीं है। वह हम जैसे साधारण इंसान को भी कैसे बचा लेते हैं।

सपने में गुरुजी के दर्शन से मेरा उपचार

9 जुलाई 2008 को हम लोग रात का खाना खाकर आराम से बैठे हुए थे। करीब नौ बजे अचानक मेरी गर्दन से सिर तक एक ओर बहुत तीव्र से दर्द उठा। दर्द इतना अधिक था कि मुझे लग रहा था कि मेरा सिर फट ही जाएगा। दर्द के कारण मैं पसीने-पसीने हो गई और मुझे उल्टी जैसा लग रहा था। मैंने एक दवाई ली जो मैं गुरुजी से मिलने से पहले सिर दर्द और उल्टी के लिए लिया करती थी। फिर भी मुझे उल्टी हुई। मैंने कुछ और दवाइयाँ लीं पर मुझे दर्द से कोई आराम नहीं मिला। मैंने ए. सी. चलाया पर कुछ देर बाद ठंड लगने के कारण से मुझे पंखा भी बंद करना पड़ा।

तभी मेरा बेटा, जो डॉक्टर है, आया और उसने मुझे कुछ दवाइयाँ दीं पर उनसे भी मुझे आराम नहीं मिला। मैंने उससे पूछा कि अब हम और क्या कर सकते थे क्योंकि मेरा दर्द असहनीय था पर उसके पास इसका कोई जवाब नहीं था।

दर्द से तड़पते हुए मैं बार-बार अपने बेटे से पूछती रही कि इसका क्या उपाय था पर वह बोला कि कुछ नहीं हो सकता था। तब मैंने गुरुजी को याद करके बस एक बार "जय गुरुजी" कहा और लेट गई। कुछ ही क्षणों में मुझे नींद आ गई। तब गुरुजी मेरे पास आये और जहाँ मेरे सिर में दर्द था वहाँ हाथ रखकर मुझे उठाया और बोले, "लै! ऐ गोली लै लै, ठीक हो जाऊगी, पैले भी दो वार देती सी। (यह दवाई ले ले, ठीक हो जाएगी। मैंने ये दवाई पहले भी दो बार दी थी।)" यद्यपि मुझे बिलकुल पता नहीं कि गुरुजी ने यह दवाई मुझे पहले कब दी थी, उस दवाई ने कमाल कर दिया। मैं आराम से सो गई और जब सुबह उठी तो मुझे बिलकुल दर्द नहीं था, मैं पूरी तरह से ठीक थी।

गुरुजी ने मुझे 'सपने' में दवाई देकर ठीक कर दिया। ऐसा केवल भगवान ही कर सकते हैं, कोई और नहीं।

8 अगस्त 2008 को मुझे गुरुजी के दर्शन हुए। सपने में, गुरुजी ने मेरे सिर की दायें ओर हाथ रखा और बोले : "खराब है।" मैं बस गुरुजी को देखती रही और उन्होंने दोबारा मेरा सिर छूआ और बोले, "खराब है, ठीक कर देयांगे (कुछ गड़बड़ है, मैं ठीक कर दूँगा।)" सुबह उठकर मैंने अपने पति को गुरुजी के दर्शन के बारे में बताया। हम हैरान हो गए क्योंकि सपने में जहाँ गुरुजी ने मेरे सिर पर हाथ रखा था वहाँ बहुत समय से एक मोटी गाँठ सी बनी थी परन्तु सुबह वह गाँठ बहुत छोटी हो गयी थी, इतनी छोटी कि बहुत ध्यान से देखने पर ही दिखाई देती है।

मैंने बहुत चिकित्सकों के पास उस गाँठ की जाँच करायी थी पर किसी ने भी उस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया और उसका इलाज केवल ऑपरेशन ही बताया था। मुझे वहाँ दर्द होता था और दायीं ओर सोने में भी कष्ट होता था। बिना मेरे कहे, बिना बताये, गुरुजी ने मेरी परेशानी को मिटा दिया। वाह, मेरे भगवान ! आपका बहुत, बहुत धन्यवाद। भगवान को कुछ बताना नहीं पड़ता है, उनसे कुछ माँगना भी नहीं पड़ता है, फिर भी सब कुछ मिल जाता है।

अद्भुत दिव्य मार्गदर्शन

गुरुजी हमारे मार्गदर्शक हैं और हमें अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाते हैं। जब भी हमें मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है गुरुजी आते हैं और पूरी तरह से हमारा मार्गदर्शन करते हैं।

यह सत्संग उनका दिव्य मार्गदर्शन ही दर्शाता है। एक बार गुरुजी के सत्संग का आयोजन फारुख नगर में किया गया जो गुड़गाँव से भी और आगे है। हमारा वहाँ जाने का कोई विचार नहीं था क्योंकि फारुख नगर हमारे घर से बहुत दूर था। परन्तु सत्संग वाले दिन हमारे पड़ोसी ने आकर पूछा कि क्या हम उनके साथ सत्संग में जाना चाहेंगे। हमने खुशी-खुशी हाँ कर दी और जल्द ही हम सत्संग के लिए निकल पड़े। परन्तु कुछ ही देर में हमें एहसास हुआ कि हम में से किसी के पास भी वो निमंत्रण पत्र नहीं था जिस पर सत्संग के स्थान का पता लिखा हुआ था।

हम फिर भी फारुख नगर की ओर बढ़ते रहे। फारुख नगर के पास, एक चौराहे पर हमने बायें तरफ मुड़कर किसी से रास्ता पूछने का निश्चय किया। तभी हमें एक गाड़ी नज़र आई जिस पर 'गुरुजी' लिखा हुआ था और वो दायें ओर मुड़ गई। हमने उस गाड़ी के पीछे-पीछे जाने का निश्चय किया। हम गाड़ी में पाँच लोग थे और हम सब ने गाड़ी के पीछे 'गुरुजी' लिखा हुआ देखा था। हम उस गाड़ी के पीछे 2-3 किलोमीटर तक गए और जब हम उस गाड़ी के थोड़ा पास पहुँचे तो हमने देखा कि गाड़ी पर 'गुरुजी' नहीं बल्कि 'पंडितजी' लिखा हुआ था। पर तब तक उस गाड़ी ने हमें सत्संग के स्थान के निकट पहुँचा दिया था !यह कितना आश्चर्यजनक था!

खो कर मिल गया

एक बार मैंने बड़े मंदिर में देखा कि मेरे कान की बाली का पीछे का अवरोध गुम था। मैं मंदिर के बेसमेंट में थी और उसे वहाँ ढूँढ़ने लगी। वहाँ कुछ और सेवादार भी मेरे साथ उसे ढूँढ़ने लगे। इतनी छोटी सी वस्तु मिलना मुश्किल था, इसलिए मैंने उन सेवादारों को जाने को कहा और वे चले गए। मैं लंगर बेसमेंट से रसोईघर की ओर जाते हुए ढूँढ़ती जा रही थी। जैसे ही मैं रसोईघर पहुँची, एक महिला भक्त ने मुझसे पूछा कि मैं क्या ढूँढ़ रही थी। मैंने जब उसे बताया तो वह बोली कि इतनी छोटी सी वस्तु का मिलना समझो असम्भव ही था।

जैसे ही मैं मुड़कर रसोई से बाहर जाने लगी उस महिला की निगाह कुछ चमकीली वस्तु पर पड़ी। मैंने देखा कि मेरी बाली के पीछे का हिस्सा था। वास्तव में मंदिर के इतने बड़े क्षेत्र में इतनी छोटी सी वस्तु मिलना असम्भव था, पर गुरुजी की कृपा तो असम्भव को सम्भव कर सकती है।

ऐसा ही कुछ मेरे कार्यालय में भी हुआ। एक दिन मेरी नथुनी गुम हो गयी। मैंने अपनी कुर्सी के आस-पास उसे ढूँढ़ा पर वो नहीं मिली। मैंने एक चपरासी से पूछा तो वह बोला कि मैंने पिछले दिन से नथुनी नहीं पहनी हुई थी। वो नथुनी दो दिनों से गुम थी; वो कहाँ गिरी थी अब यह तय कर पाना असम्भव था। मैंने उसे ढूँढ़ना छोड़ दिया।

अगले दिन घर पर मेरी काम वाली नहीं आयी इसलिए मैं खुद सफाई कर रही थी। तभी, दो दिनों बाद, मुझे वह नथुनी दिखाई दी। उसकी कुंडी अभी भी नहीं मिली थी पर उससे इतना फर्क नहीं पड़ता था। नथुनी गुम हो जाने से मैं चिन्तित थी क्योंकि यह बुरा शगुन माना जाता है (सिन्दूर की तरह नथुनी सुहाग की निशानी मानी जाती है)।

फिर, जब मैं नहाने गयी तो स्नानघर में पाँव के मैट के पास कुछ चमकीली वस्तु पर मेरी निगाह पड़ी। वो मेरी नथुनी की कुंडी थी।

कुछ लोग इन सब घटनाओं को संयोग कह सकते हैं पर मैं जानती हूँ कि यह सब संयोग नहीं है। यह सब गुरुजी की मेहर और कृपा है !

गुरुजी ने हमें इतना दिया है कि उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना असम्भव है। इन सबका सार यही है कि आज मेरा पूरा जीवन गुरुजी के आशीर्वाद से परिपूर्ण है। हम उनके अनन्त आशीर्वाद और प्रेम का आनंद उठाते हैं और उनको कुछ नहीं दे सकते हैं। अगर हम कुछ कह सकते हैं तो केवल, शुकराना गुरुजी! गुरुजी ना केवल हमारे बड़ी-बड़ी कष्टों को सम्भालते हैं पर उसके अतिरिक्त नथुनी जैसी छोटी सी वस्तु को भी।

आशा दुआ, एक भक्त

मार्च 2010