जाको राखे साईंया...

दीपा गुप्ता, जुलाई 2015 English
मैं गुरुजी की शरण में 2014 में आयी थी। इस दौरान उन्होंने मुझे बहुत कुछ दिया और मेरे इकलौते बेटे की भी रक्षा की।

कुछ साल पहले एक पंडित ने हमें कहा था कि मेरे बेटे के ग्यारहवें साल में उसे कोई खतरा था। यहाँ तक कि पंडित ने हमें आने वाली विपत्ति की तारीख और समय तक लिख कर दे दिया था - 20 जुलाई 2015। लेकिन मुझ पर दिव्य कृपा हुई और गुरुजी की शरण में आकर मैं चिंतामुक्त हो गई।

जैसे-जैसे वो तारीख करीब आ रही थी, मुझे डर लग रहा था। पर गुरुजी की कृपा और प्रेरणा से मैंने गुरुजी के जन्मदिन पर अपने घर में सत्संग रखा। उस दिन मेरे बेटे ने गुरुजी का लॉकेट पहना और मैं बहुत खुश थी कि गुरुजी उसके साथ थे।

अगले दिन जब मेरा बेटा स्कूल से वापस आया तो मैंने लॉकेट पर एक बड़ा निशान देखा। मैं डर गई और मैंने उससे पूछा कि क्या वो गिर गया था या उसे चोट लगी थी। उसे कोई चोट नहीं लगी थी और उसे यह भी नहीं पता चला था कि लॉकेट पर निशान कैसे लगा था। मैं फौरन समझ गई कि उस पर आने वाली विपदा गुरुजी ने अपने ऊपर ले ली थी। मैंने गुरुजी का शुक्रिया किया और जैसे-जैसे 20 जुलाई करीब आ रही थी मेरा तनाव और बढ़ता जा रहा था।

उस तारीख से एक दिन पहले मैंने घर में पूजा की, कंढ़ा प्रसाद बनाया और भोग लगाया। मेरे परिवार ने प्रसाद पर दो बार गुरुजी के आशीर्वाद का पावन चिन्ह, 'ॐ' देखा। गुरुजी के आशीर्वाद से 20 जुलाई की तारीख आई और शान्तिपूर्वक निकल गई। मेरे और मेरे परिवार के साथ होने के लिए और सदा हमारी रक्षा करने के लिए मैं गुरुजी का शुक्रिया करती हूँ। मैं आपसे प्यार करती हूँ गुरुजी! जय गुरुजी!

[जून 2016]

शल्य चिकित्सा के बावजूद गुरुजी ने माँ की गरिमा की रक्षा की

साल 2013 में हमें गहरा धक्का लगा जब अचानक हमने अपने पिता को खो दिया। हमारी माँ ने जीने की उमंग खो दी थी और उदासीन रहती थीं। हम चार बहनें पूरी कोशिश करतीं कि उन्हें खुश रख सकें पर उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।

एक साल बाद, जून 2014 में माँ ने नाक के पास और दाहिने गाल में दर्द की शिकायत की। यह सोचकर कि दर्द सर्दी-ज़ुकाम के कारण होगा, हमने उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया; मगर दर्द बढ़ता गया और हम उन्हें अपने घरेलू चिकित्सक के पास ले गए। ज़ुकाम की दवाईयों से कोई राहत नहीं मिली थी और फिर उनके एक्स-रे कराये गए। हमें एक्स-रे की रिपोर्ट न्यूरोलॉजिस्ट को दिखानी थीं और संयोग से मेरी बड़ी बहन की सहेली न्यूरोलॉजिस्ट थी जिसने वो रिपोर्ट देखीं। उसने हमें एम आर आइ कराने की सलाह दी जिससे पता लगा कि एक आक्रामक ट्यूमर था जो उनकी गाल की हड्डी पर तेज़ी से बढ़ रहा था।

हमें माँ को दिल्ली में एक बड़े हस्पताल ले जाने की सलाह दी गई। एक भी दिन बर्बाद किए बिना मेरी बहन माँ को दिल्ली ले गई। उन्होंने माँ को तीन हस्पतालों में तीन डॉक्टरों को दिखाया पर सबका पूर्वानुमान एक जैसा था: ट्यूमर बहुत बड़ा था और बहुत तेज़ी से बढ़ रहा था। उसने पहले ही ऊपरी जबड़े पर असर कर दिया था और जिस तेज़ी से वह बढ़ रहा था, माँ की आँखों और सिर की हड्डी पर भी जल्द ही असर करता। शल्य चिकित्सा शीघ्र ही करानी ज़रूरी थी।

हमें उनमे से एक हस्पताल के चिकित्सक सबसे अच्छे लगे। जिस चिकित्सक को माँ की शल्य चिकित्सा करनी थी उसने हमें सारी स्थिति समझाई। क्योंकि ट्यूमर बड़ा था, चिकित्सक को गाल को काटकर उस तक पहुँचना था। गाल की हड्डी, जिस पर आँख टिकी होती है, भी हटाई जाती। इसका परिणाम यह होता कि ऑपरेशन के बाद माँ का चेहरा विकृत हो जाता, उनका गाल अपनी आकृति खो देता और आँख नीचे लटक जाती। माँ की आँखों की रोशनी भी जा सकती थी। चिकित्सक ऑपरेशन आने वाले बृहस्पतिवार को करना चाहते थे, तीन दिन बाद।

हम बहुत दुःखी थे। हमारी माँ, 74 साल की उम्र में भी, अपने रूप को लेकर बहुत सचेत थीं; जब हम उन्हें ऑपरेशन की आवश्यकता से अवगत कराते तो वह बहुत दुःखी होतीं।

जब हमने माँ से बात की तो वह चुप रहीं। उसी दोपहर मेरी छोटी बहन, जो नॉएडा में रहती है, ने अपनी आंटी से गुरुजी के बारे में सुना, जिन्होंने गुरुजी द्वारा किये गए चमत्कारों के बारे में बताया। हमने सोमवार को ही माँ को बड़े मंदिर ले जाने का निश्चय किया।

मंदिर में सकारात्मक तरंगें महसूस करके हम सबकी मनोदशा को सहारा मिला। हम सबने गुरुजी को समर्पण कर दिया। क्योंकि हमारे पिता नहीं हैं, हमने गुरुजी को अपने परिवार का मुख्य माना, हमारे पिता, हमारे दादा...हम सब की बस एक ही सोच थी: हम वही करेंगे जो गुरुजी चाहेंगे और गुरुजी का जवाब हमें माँ के ज़रिये मिलेगा। अगर वह ऑपरेशन के लिए हाँ कहेंगी तो हम ऑपरेशन करवायेंगे अन्यथा नहीं। बड़े मंदिर से वापस आने के बाद माँ ने कहा कि वह ऑपरेशन के लिए तैयार थीं।

अगले तीन दिन हमने गुरुजी से बहुत प्रार्थना की।

अंततः ऑपरेशन का दिन आ गया। माँ को हस्पताल में भर्ती किया गया और हमने उनके तकिये के नीचे गुरुजी का एक छोटा स्वरूप रख दिया। माँ ने चिकित्सक से लेज़र सर्जरी करने की कोशिश करने का अनुरोध किया। चिकित्सक ने उन्हें हाँ कर दी किन्तु हमें निर्णायक ढंग से कहा कि क्योंकि ट्यूमर बहुत बड़ा था इसलिए लेज़र सर्जरी करना नामुमकिन था।

ऑपरेशन चार से पाँच घंटे चलने वाला था। हमने हस्पताल में रक्त दान करने का निश्चय किया, और मेरी छोटी बहन जो गर्भवती थी, हस्पताल के प्रतीक्षा-कक्ष में प्रतीक्षा कर रही थी।

जल्द ही उसे चिकित्सक का बुलावा आया और उसे ऊपर ऑपरेशन थिएटर के बाहर चिकित्सक से मिलने को कहा गया। वह रोते-रोते हमें बता रही थी और हमें लगा कि सब ख़त्म हो गया। परन्तु ऑपरेशन थिएटर के बाहर चिकित्सक हमें मुस्कुराते हुए मिले। वह आगे बढ़े और उन्होंने मेरी छोटी बहन को गले लगा लिया। चिकित्सक बोले कि वह आश्चर्यचकित थे: एक चमत्कारी सर्जरी हुई थी।

ऑपरेशन से पहले चिकित्सक ने एक एक्स-रे करवाया था जिसमें ट्यूमर बहुत बड़ा नज़र आ रहा था। परन्तु जब उन्होंने ट्यूमर देखा तो वह उसके सिर्फ एक चौथाई नाप का था। अब वह लेज़र का इस्तेमाल कर सकते थे! चिकित्सक को बिलकुल पता नहीं था कि वो ट्यूमर कैसे अपने आप छोटा हो गया, परन्तु हमें पता था कि यह हमारे प्यारे गुरुजी की कृपा से हुआ था।

चिकित्सक ने ट्यूमर निकाल दिया और उसके साथ ही माँ के ऊपरी जबड़े और गाल की हड्डी का आधा हिस्सा भी। उन्होंने वो जगह पैडिंग से भर दी, पर जब वह पैडिंग निकाली जाती तो आँख के लटकने की संभावना थी।

माँ शल्य चिकित्सा के बाद ठीक थीं। वह बात कर पा रही थीं, और उनका चेहरा बिल्कुल ठीक था। जिस दिन उनके चेहरे से वो पैडिंग निकाली गई, एक और चमत्कार हुआ। उनकी आँख अपनी सही जगह पर थी - बिना किसी सहारे के - और माँ की आँखों की रोशनी भी बिलकुल ठीक थी। चिकित्सक हैरान थे, हम बहुत खुश थे और हमने एक बार फिर गुरुजी को धन्यवाद दिया।

माँ के साथ और बहुत चमत्कार हुए। सर्जरी के दस महीने बाद तक वह हमारे बीच रहीं। गुरुजी की कृपा से माँ का चेहरा और आँखों की रोशनी बिल्कुल ठीक थी। उनके गालों की आकृति बिना गाल की हड्डी के भी कायम रही, और आँख बिना किसी सहारे के अपनी जगह पर टिकी रही।

यह सब सिर्फ गुरुजी की कृपा से हुआ। हम गुरुजी के आभारी हैं कि उन्होंने माँ का चेहरा बिगड़ने नहीं दिया। जय गुरुजी!

दीपा गुप्ता, एक अनुयायी

जुलाई 2015