2005 में जब श्री दीपक गुप्ता बड़े मंदिर में गुरुजी के जन्मदिन की तैयारियों में व्यस्त थे, उनको एक और भक्त का फ़ोन आया। वह उसको एक बैग देना भूल गए थे। अब उन्हें दस किलोमीटर दूर छत्तरपुर मंदिर मोड़ पर जाकर वो बैग देना था। वह बैग देना अति आवश्यक था।
बहुत तेज़ बारिश हो रही थी, सड़क गीली थी और दीपक 100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति पर जा रहे थे। छत्तरपुर मंदिर से 3 - 4 किलोमीटर पहले, एक मोड़ पर अचानक उन्होनें देखा कि एक टेम्पो रास्ता रोककर खड़ा था।
गाड़ी इतनी तेज़ गति पर जा रही थी कि टक्कर होने से पहले उसे रोक पाना मुमकिन नहीं था और ना ही टेम्पो से बचकर निकलकर जाने की जगह थी। 100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति पर जाते हुए उन्होनें ब्रेक लगाई, अपनी आँखें बंद कर लीं और गुरुजी का स्मरण किया।
धम....धम....धना ....धन... उनको बस कुछ झटके महसूस हुए और उन्होनें अपनी आँखें खोलीं। उन्होंनें देखा कि उनकी गाड़ी टेम्पो से आगे निकल चुकी थी, न्यूट्रल गीयर में थी और उसका इंजन बंद था। टेम्पो का ड्राईवर उनको घूर रहा था। टेम्पो के दोनों ओर गाड़ी निकलने के लिए जगह नहीं थी पर गाड़ी टेम्पो को पार करके खड़ी थी।
दीपक हैरान रह गए और उनको समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या। बैग देने के बाद वह मंदिर लौट आये। उन्होनें किसी को अपनी कार देखने को कहा क्योंकि उन्होंनें टक्कर की आवाज़ सुनी थी। हैरानी की बात थी कि कार को कुछ भी नुकसान नहीं हुआ था और गाड़ी पर कोई निशान भी नहीं था जिससे लगे कि गाड़ी की टक्कर हुई थी। यह चमत्कार ही था कि वह सुरक्षित थे।
दीपक गुप्ता, नॉएडा
जुलाई 2007