श्रद्धा का आधार है गुरुजी को समर्पण

डी. एन. दुआ, जून 2010 English
एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि मेरा बेटा कभी भी देश के बाहर नहीं बस पाएगा। पर गुरुजी के आशीर्वाद से 2006 में वह बायो-मेडिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स ऑफ साइंस ( एम. एस. ) करने के लिए अमेरिका गया। उस समय मैं सरकारी नौकरी कर रहा था और उसकी पढ़ाई के लिए मैंने 20 लाख रुपये का ऋण लिया था। दिसम्बर 2007 में उसने एम. एस. की पढ़ाई पूरी की। एक महीने बाद, जनवरी 2008 में, अमेरिका में आर्थिक मंदी का समय आया।

लिया हुआ ऋण मुझे पाँच सालों में चुकाना था। ब्याज मिलाकर हर महीने 35,000/- रुपयों की किश्त जानी थी। पर मेरे बेटे को अमेरिका में तब तक कोई नौकरी नहीं मिली थी और वहाँ उसे बहुत कठिनाइओं का सामना करना पड़ रहा था। मैं निरंतर उसे गुरुजी से प्रार्थना करने के लिए कहता रहता। ऋण चुकाना भी हमारे लिए चिंता का विषय बन गया था। यद्यपि मेरे वेतन से यह किश्त भर पाना बहुत कठिन हो रहा था, जैसे-तैसे मैं ऐसा करता रहा।

जून 2008 में मैं सेवानिवृत्त होने वाला था और ऋण चुकाने के लिए मैं अपने प्रोविडेंट फंड से सारी जमा-पूँजी निकाल चुका था। जो ऋण मुझे पाँच साल की अवधि में चुकाना था वह मैंने दो साल में चुका दिया यह सोचकर कि ऐसा करने से ना सिर्फ मेरा ऋण चुकता हो जाएगा बल्कि मुझे ब्याज भी कम देना पड़ेगा। पर सेवानिवृत्त होने के बाद मैं क्या करूँगा--मेरी सारी जमा-पूँजी खतम हो गई थी और मेरे पास आय का स्रोत भी नहीं रहेगा तब?

हम गुरुजी के पास नियमित रूप से जाते थे और मन में उनसे प्रार्थना करते कि वे हमारी सहायता और मार्ग दर्शन करें।

गुरुजी ने हमारी आर्थिक चिंताएँ दूर कीं

मई 2008 के अंतिम सप्ताह में, मेरी सेवानिवृत्ति से एक महीना पहले, बैंगलोर से मुझे मेरे एक मित्र का फोन आया। उसने मुझसे पूछा कि सेवानिवृत्त होने के बाद मेरा क्या करने का विचार था। मैंने उससे कहा कि मैंने कुछ नहीं सोचा था और 38 साल नौकरी करने के बाद अब मैं कुछ महीनों तक आराम करना चाहता था और उसके बाद सोचूँगा कि आगे मुझे क्या करना है। उसने मेरे जवाब को अनसुना कर दिया और कहा कि मैं उसे अपना कार्य अनुभव भेज दूँ। उसने मुझे एक व्यक्ति से बात करने को भी कहा। मैंने उससे कहा कि मैं ऐसा जून के बाद करूँगा किन्तु उसने मुझपर दबाव डाला कि मैं उसी दिन उसे अपना कार्य अनुभव भेज दूँ। मैंने अपना कार्य अनुभव भेज दिया और अगले ही दिन मुझे साक्षात्कार (इंटरव्यू) के लिए फोन आया।

मैं साक्षात्कार के लिए गया और मुझे चुन लिया गया। मुझसे पूछा गया कि मैं कबसे नौकरी प्रारंभ करूँगा। क्योंकि मुझे सेवानिवृत्त होने में अभी एक महीना बाकी था तो मैंने उन्हें कहा कि मैं कम-से-कम एक महीना आराम करना चाहूँगा इसलिए उसके बाद ही मैं नयी नौकरी में काम प्रारंभ करने की तिथि तय करूँगा। किन्तु उनको वो स्थान तुरन्त भरना था इसलिए उन्होंने मुझे जून के बाद जितना जल्दी हो सके, नौकरी पर आने को कहा। मैंने गुरुजी के जन्मदिवस की तिथि, 7 जुलाई, के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। मेरा नियुक्ति पत्र तुरंत जारी किया गया। मैं उसे लेने से थोड़ा हिचकिचा रहा था क्योंकि मैं उसे जून में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद ही स्वीकार सकता था। साक्षात्कर्ताओं ने इस बात पर दबाव डाला कि क्योंकि वे मेरी नियुक्ति पक्की कर चुके थे, मुझे वो नियुक्ति पत्र उनकी ओर से नियुक्ति का प्रस्ताव समझकर ले लेना चाहिए। यह सब अविश्वसनीय सा लग रहा था: मेरी सेवानिवृत्ति से पहले ही गुरुजी ने मेरी परेशानियाँ हल कर दीं। और अपनी वर्तमान नौकरी में मैं जितना कमा रहा था मुझे उससे तीन गुना वेतन का प्रस्ताव दिया जा रहा था !

मैं इस बात से चिंतित था कि मैंने अपनी साड़ी पूँजी ऋण चुकाने में खर्च कर दी थी। परन्तु गुरुजी के आशीर्वाद से मेरी सारी परेशानियाँ दूर हो गईं तथा मुझे एक दिन भी बिना नौकरी के नहीं रहना पड़ा। यहाँ तक कि दो साल बाद भी मैं वही नौकरी कर रहा हूँ और गुरुजी की कृपा से वो अच्छी चल रही है।

वहीं दूसरी ओर, मेरा बेटा अमेरिका में बहुत परेशान था क्योंकि पाठ्यक्रम पूरा करने के छः महीने बाद भी उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी। हमने उसे भारत वापस आकर यहाँ नौकरी ढूँढ़ने का सुझाव दिया पर वह इसके लिए तैयार नहीं था। इस दौरान हम सारा समय उसे गुरुजी से प्रार्थना करते रहने के लिए कहते रहे। मेरे बेटे को गुरुजी में पूरा विश्वास है और अमेरिका में अपने घर में उसने छोटा सा मंदिर भी बनाया हुआ है। हमने उससे कहा कि गुरुजी उसकी प्रार्थना आवश्य सुनेंगे। उन दिनों, हम नियमित रूप से एम्पायर एस्टेट जाते रहे और गुरुजी का आशीर्वाद लेते रहे। जब भी बड़े मंदिर में समारोह होता तो हम वहाँ भी जाते।

ऐसे ही एक अवसर पर जब हम 7 जुलाई को बड़े मंदिर गए जो सोमवार का दिन था, एक भक्त जिन्होंने हमें गुरुजी के बारे में बताया था, डॉ. जेथरा, ने मेरे बेटे के बारे में पूछा। जब मैंने अपनी कठिन परिस्थिति के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि हमें सोमवार को बड़े मंदिर आना आरम्भ करना चाहिए क्योंकि यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव (गुरुजी) से सम्बन्धित है। बहुत से भक्त सोमवार को मंदिर आते हैं और उस दिन सत्संग सुना जा सकता है और गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। हमने ऐसा ही किया और अगले सोमवार, यानि 14 जुलाई को हम बड़े मंदिर गए।

इसके चार से पाँच दिनों के अंदर ही मेरे बेटे को दो नौकरियों के प्रस्ताव मिले। वह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे कौन सा प्रस्ताव स्वीकारना चाहिए इसलिए उसने मुझसे राय ली। मैंने उससे दोनों कम्पनियों के बारे में पूछा और फिर उसे छोटी कम्पनी में नौकरी करने का सुझाव दिया। पर उसने बड़ी कम्पनी का प्रस्ताव स्वीकारा यह सोचकर कि उसमें उसे अधिक तजुर्बा और बेहतर अवसर मिलेंगे।

अभी मुश्किल से बीस ही दिन हुए थे कि उसने शिकायत करना आरम्भ किया कि उसे वहाँ अच्छा नहीं लग रहा था और वह नौकरी बदलना चाहता था। मैंने उसे ऐसा करने से मना किया यह याद दिलाते हुए कि उसे यह नौकरी बहुत कठिनाई से मिली थी और उसे इतनी जल्दी छोड़नी नहीं चाहिए। दो महीने निकल गए और वो बहुत हताश हो गया था। मैंने उसे गुरुजी से प्रार्थना करने और उनका ध्यान लगाने को कहा।

उसी समय उसे नौकरियों के प्रस्ताव मिलना आरम्भ हो गए जिसमें से एक उसकी पसंद की थी। पर उसमें एक कठिनाई थी : अभी जितना उसका वेतन था, इस नौकरी में उसे उसका आधा ही मिल रहा था और शहर में रहने की लागत (अगर वह ये नौकरी लेता तो उसे स्थानांतरित होना पड़ता) दोगुना हो जाता। वह बड़े असमंजस में था। जहाँ वह अभी काम कर रहा था उन्हें पता चल गया कि वह नौकरी बदलने की सोच रहा था। उन्होंने उसे स्थायी पद और वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव दिया; उन्होंने उसके लिए एच-1 बी वीज़ा का आवेदन देने का भी आश्वासन दिया। पर वह उस कम्पनी में और काम नहीं करना चाहता था। साफ मना करने में भी उसे संकोच हो रहा था क्योंकि वह कम्पनी उसे वेतन में पर्याप्त वृद्धि दे रही थी। दूसरी ओर, जो कम्पनी उसे अच्छी लग रही थी, वह बहुत छोटी थी और वेतन भी बहुत कम दे रही थी। इस स्थिति से बाहर निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। इसके अतिरिक्त कार्यभार ग्रहण करने के लिए उसके पास केवल दो दिन थे, शुक्रवार तक।

मेरा बेटा गुरुजी की तस्वीर के आगे बैठकर सारी रात उनसे प्रार्थना करता रहा। सुबह उसे अपने बॉस से एक ई-मेल आया जिसमें लिखा था कि उसकी वर्तमान कम्पनी उसे बढ़ा हुआ वेतन और अपना वादा पूरा करने में असमर्थ थी। उसमें यह भी लिखा था कि आर्थिक मंदी के कारण कम से कम तीन महीनों तक वह उसके लिए एच-1 बी वीज़ा का आवेदन नहीं दे पाएँगे और अगर वह नौकरी छोड़ना चाहे तो ऐसा कर सकता था। गुरुजी की कृपा से एक और चमत्कार हो गया था : मेरे बेटे का बॉस वह सब कह रहा था जो मेरा बेटा बोल नहीं पा रहा था।

उसकी नौकरी की अंतिम तिथि से दो दिन पहले उसके बॉस ने उसे बुलाकर उसे कम्पनी के लिए पार्ट-टाइम काम करने का प्रस्ताव दिया। साथ ही यह भी कहा कि वह खाली समय में अपनी नयी नौकरी के साथ-साथ ही उनके लिए काम कर सकता था--और यह सब उतने वेतन के साथ जितना उसे फुल-टाइम काम करके मिल रहा था। इस तरह गुरुजी ने उसकी दोनों समस्याओं का हल कर दिया--शहर में आधे वेतन और दोगुने खर्चे का प्रबंध।

पार्वती जिनके साथ हैं

एक रात मेरे बेटे को गुरुजी के दर्शन हुए। उसने देखा कि गुरुजी हमारे घर आए हैं और उसने गुरुजी से पूछा : "आप कौन हैं?"

गुरुजी ने जवाब दिया, "मैं हुण पार्वती नू हर वक्त अपणे नाल लेकर घुंमा ? " ( क्या मैं सारा समय पार्वती को अपने साथ रखूँ जिससे पता चले कि मैं भगवान शिव हूँ ?) फिर गुरुजी ने अपना हाथ हिलाया और अगले ही पल माँ पार्वती उनके साथ बैठी हुईं थीं। गुरुजी ने माँ पार्वती से पूछा कि क्या उन्होंने उनके बेटे को फल ( विशेष आशीर्वाद ) दिया? हाँ कहकर वह समाधि में चली गईं।

गुरुजी का दरबार एक ऐसी जगह है जहाँ संगत उनसे मिल सकती है जो सब भगवान के भी ऊपर हैं। संगत भगवान को प्रत्यक्ष रूप से गुरुजी में देख सकती है। गुरुजी को पूरी तरह से समर्पण करके सब उन पर छोड़ दें, मन में बिना किसी किन्तु-परन्तु के।

हमारी धार्मिक पौराणिक कथाएँ हमें उन संतों के बारे में बताती हैं जो जंगलों या गुफाओं में जाकर सैकड़ों वर्षों तक तपस्या करते थे। उनका उद्देश्य क्या था ? भगवान के साथ एक होना ! और गुरुजी के रूप में हमारे पास स्वयं महाशिव हैं। हमें ऐसी कोई तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। हमें बस गुरुजी के चरण कमलों में समर्पण करना है और वह हर बात का ध्यान रखेंगे। संगत इस बात की साक्षी है। बहुत लोगों ने अनुभव किया है कि माँगी हुई या यूँ ही सोची गई इच्छा भी गुरुजी पूर्ण कर देते हैं।

मैं संगत को बताना चाहूँगा कि गुरुजी का आशीर्वाद और उनके चरण कमलों की धूल प्राप्त करने के लिए उन्हें नियमित रूप से बड़े मंदिर जाना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को उनसे जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

जिसे गुरुजी के लिए सच्ची श्रद्धा है, हर उस भक्त को गुरुजी के दिव्य दर्शन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। उनकी सभी समस्याओं का निवारण गुरुजी ने किया है। इंसान होकर, हम सारा समय भौतिक लाभ के पीछे भागते रहते हैं और गुरुजी से वही माँगते हैं। पर कोई विरला ही होता है जो गुरुजी से असल वस्तु माँगता है। मेरी गुरुजी से प्रार्थना है कि हमें हिम्मत और संवेदनशीलता प्रदान करें कि हम सही मायनों में उनके चरण कमलों से जुड़े रहें और उन्हें समर्पण कर सकें। जय गुरुजी !

डी. एन. दुआ, एक भक्त

जून 2010