डा. इन्द्र मोहन भाटिया अमृतसर के एक समृद्ध व्यापारिक परिवार से हैं। उनके पिता, जो अनेक बार अमृतसर नगर महापालिका के मेयर रह चुके हैं, निम्न वर्ग की सेवा में लगे रहते थे। उनके पुत्र की भी यही रूचि रही है। इसी परम्परा के कारण उन्होंने डाक्टर बनने का निर्णय लिया। राजकीय चिकित्सा महाविद्यलाय, अमृतसर से 1962 में एम बी बी एस की परीक्षा पास करने के चार वर्ष बाद, 30 वर्ष की आयु में उन्होंने एम्स से मास्टर ऑफ़ सर्जरी की। उनकी स्पेशीऐलिटी थी आक्यलर ट्रौमा और आगे जाकर वे एम्स में इसी विभाग के हेड बने।
स्वाभाविक है कि डाक्टर ने अपने व्यवसाय से सम्बंधित विज्ञान को गहराई से अपनाया। आधुनिक युग के इस ज्ञान की पद्दतियों में उनकी अटूट आस्था रही है। 2002 में कुछ ऐसी घटना घटी जिसने उनके समस्त ज्ञान को पूरी तरह से झिंझोर कर रख दिया। वह अपनी पुत्रवधू के साथ गुरुजी के दर्शन के लिए आये। उन्हीं के शब्दों में उस अनुभव का वर्णन:
"हम पूरी तरह से अपरिचित थे। सबको चाय दी गयी। मैंने चाय पी ली किन्तु मेरी बहू ने उसे अस्वीकार कर दिया। गुरुजी ने यह देखकर उसे कहा कि यह चाय नहीं बल्कि दवाई है जिसे पीकर उसे पुत्र की प्राप्ति होगी जिसके लिए वह गुरुजी के पास आई थी। मेरी बहू के विवाह को चार वर्ष हो गए थे और सर्वोत्तम डाक्टरों ने कहा था कि उसका गर्भवती होना असंभव नहीं तो बहुत ही मुश्किल है। इस बात से वह बहुत दुखी थी। गुरुजी के मुँह से यह सुनकर हम हैरान हो गए क्योंकि इसके बारे में संगत में किसी को भी कुछ भी मालूम नहीं था। एक महीने बाद वह गर्भवती हुई और उसने एक प्यारे से पुत्र को जन्म दिया। मेरे जिन भी डाक्टर मित्रों को इस समस्या का पता था, वे बोले कि यह वाकई में एक चमत्कार था।"
डाक्टर की विज्ञान के समस्त नियमों पर टिकी हुई आस्था डगमगा गई। वह कहते हैं कि गुरुजी की इस अद्भुत घटना को समझ पाना या स्वीकार कर लेना उनके लिए बहुत मुश्किल था।
अभी वह इस चमत्कार को स्वीकारने की कोशिश ही कर रहे थे कि उन्हें गुरुजी की दैवी शक्ति का एक और उदाहरण मिला। उनकी बहू की 70 वर्षीय दादी, जिन्हें डाइबीटीज़ थी, पीठ दर्द से पीड़ीत हो गयीं और उनकी टांगों के निचले हिस्से में परैलिसिस होने लगा। वह ठीक से चल फिर नहीं पा रही थीं। एम्स के उच्च नुरालजिस्ट ने उनका परीक्षण किया और पूर्ण लकवे से बचने के लिए सर्जरी कराने को कहा।
"जब मैं गुरुजी के पास उनको लेकर आया तो उनकी सर्जरी की तारीख निश्चित हो चुकी थी।" वह अपने शब्दों में वर्णन करते हैं : "चलते हुए मैंने गुरुजी से उनकी सर्जरी की सफ़लता के लिए विनती करी।" गुरुजी ने मुझसे पूछा, "कैसी सर्जरी?" उनकी तरफ़ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि उन्होंने प्रसाद ग्रहण कर लिया है और अब वह ठीक हो जायेंगी। अतः हमने सर्जरी को स्थगित कर दिया और वह ठीक होने लगीं जिसमें कुछ ही हफ़्ते लगे।
डाक्टर भाटिया कहते हैं की आने वाले वर्षों में उन्होनें बहुत से अद्भुत उपचार देखे। ह्रदय के रोग और कभी न ठीक होने वाले रोग भी ठीक हुए हैं। गुरुजी को बताये बिना भी चमत्कार हुए हैं। डाक्टर भाटिया का विश्वास है कि गुरुजी की कृपा का पात्र बनने के लिए पूर्ण आस्था, धैर्य और समर्पण की क्षमता होना आवश्यक है। उनके व्यक्तित्व का पूर्ण परिवर्तन गुरुजी का उनको सबसे बड़ा उपहार रहा है। " मेरे जीवन में अब पूर्ण शान्ति है," डाक्टर भाटिया कहते हैं। "उन्होनें मुझे ईश्वर के अस्तित्व में पूर्ण विश्वास और शरण दी है।"
डा. इन्द्र मोहन भाटिया, गुडगाँव
जुलाई 2007