तीन महीनों से अत्यधिक पीठ के दर्द के कारण मैं शय्या से उठ नहीं पा रही थी। यह 2003 में जून-जुलाई की बात है जब मैंने पाया कि अगर मैं पालथी मारकर बैठती तो दर्द की तीक्ष्ण लहर मेरे रीढ़ की हड्डी से लेकर दाहिनी टाँग से होते हुए मेरे पैर तक दौड़ पड़ती। यहाँ तक कि, एक जगह पर 10-15 मिनट तक खड़े रहना भी बहुत कठिन हो गया था। आधा किलोमीटर भी चलना बहुत कष्टदायक था और सीढ़ियाँ चढ़ना तो एक क्रूर सज़ा लगती थी।
मेरी रीढ़ की हड्डी की चक्रिका दूसरी बार अपने स्थान से हिल गयी थी। 2001 में भी मुझे यही पीड़ा हुई थी और मैं चार महीनों के लिए शय्या पर पड़ गयी थी। मुझे स्टेरॉयड के इंजेक्शन दिए गये और मेरा दर्द कम करने के लिए नसों के इंजेक्शन भी दिए गये। मेरे एम आर आई और नसों के टेस्ट कराये गए और मुझे बताया गया कि मुझे रीढ़ के जोड़ एल 3-एल 4 तथा एल 4-एल 5 में स्पोंडिलोसिस था और हड्डी की विकृति की वजह से स्पाइनल डिस्क उभर गए थे। इसके अतिरिक्त मुझे सारकॉइडोसिस नामक फेफड़ों की बीमारी भी थी, जिसके कारण मुझे यदा-कदा साँस लेने में तकलीफ होती थी।
इन सब परेशानियों की वजह से मैं बहुत दुःखी और अशांत रहती थी क्योंकि यह सब हो रहा था जबकि मैं अभी युवावस्था में थी - मध्य चालीसवें वर्ष में। चिकित्सकों की एक ही राय थी - स्पाइनल फ्यूज़न सर्जरी। मैं - खुद एक डॉक्टर- होमियोपैथी और आयुर्वेदिक इलाज आज़मा चुकी थी किन्तु मुझे कोई राहत नहीं मिली थी।
और फिर एक दिन वह हो गया!
मेरे पति, अविनाश सिंह, डब्लु एच ओ (WHO) में काम करते हैं। उनको उनके एक मित्र, जो चंडीगढ़ में रहते हैं, का फोन आया, और उन्होंने मेरे पति को गुरुजी और उनकी चमत्कारिक उपचारात्मक शक्तियों के बारे में बताया। मैंने और मेरे पति ने तुरन्त गुरुजी के यहाँ जाने का निर्णय लिया। गुरुजी की मौजूदगी में बैठे हुए और गुरबानी की अमृतधारा में ध्यान-मग्न होकर हम दोनों एक अलग ही दुनिया में पहुँच गये - एक दिव्य परमानन्द और सुख की दुनिया। हम गुरुजी के चरण कमलों में नतमस्तक हुए और उन्होंने तत्क्षण यह कहकर हमें आशीर्वाद दिया: "तेरा कल्याण होया"।
गुरुजी के निर्देश अनुसार, हम कुछ दिन बाद उनके यहाँ ताम्र का लोटा लेकर गए, जिसे उन्होंने अभिमंत्रित करके हमें दिया। यह कोई चमत्कार से कम नहीं है कि कुछ ही समय में मेरी पीठ की परेशानी खत्म हो गयी। गुरुजी के चमत्कारिक उपचारात्मक शक्तियों को धन्यवाद कि अब मैं घंटों तक ज़मीन पर पालथी मारकर बैठ सकती हूँ, लम्बे समय तक चल सकती हूँ, यहाँ तक कि सीढ़ियाँ भी चढ़ पाती हूँ। गुरुजी के आशीर्वाद से मैं अपना घर बनवा पाई और उसके भीतर की सजावट (इंटीरियर्स) भी करवा पाई। मुझे कभी नहीं लगा था कि अपनी पीठ की परेशानी होते हुए मैं यह सब करवा पाऊँगी।
फिर, एक दिन, स्कूल में, मेरे बेटे अंगद का कान का परदा फट गया। उसको सुनने में कठिनाई हो रही थी और चिकित्सक ने शल्य चिकित्सा कराने की सलाह दी। किन्तु मुझे मालूम था कि कभी-कभी ही यह शल्य चिकित्सा कामयाब होती थी। गुरुजी के आशीर्वाद से उसके कान का परदा और सुनने की क्षमता सामान्य हो गये।
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, कि मैं उनकी शरण में आयी, जो हमें आश्रय देते हैं : सब दुःख-दर्द और चिन्ताओं से, और हमारे हृदय और आत्मा में गुणकारी, हितकारी और सकारात्मक विचार और ऊर्जा के रंग भर देते हैं। इतना कि मैं मेरे गुरुजी को सारी दुनिया के साथ बाँटना चाहती हूँ।
डॉ जसकिरन सिंह, चीफ मेडिकल ऑफिसर, सी जी एच एस, दिल्ली
जुलाई 2007