मैं 1995 से गुरुजी की भक्त थी और मुझे कई बार गुरुजी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं गुरुजी के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से संबंध तब जोड़ पाई जब मेरी जिंदगी में संकट आया। मैं उस समय जर्मनी में अपने परिवार के साथ रह रही थी और गुरुजी को अपना भौतिक शरीर का त्याग किये सात साल हो चुके थे।
अक्टूबर 2013 में गुरुजी ने मुझे सपने में दर्शन दिए और कहा कि बुरा समय आने वाला है। गुरुजी ने मुझे बुरे समय से निकलने का उपचार भी बताया। मैंने वह पांच दिन तक किया और यह सोच कर छोड़ दिया कि यह एक सपना ही तो था। मेरे गुरुजी में विश्वास की कमी के परिणाम तो सामने आने ही थे।
जून 2014 में मुझे एक अजीब सा सपना आया जो सच सा लग रहा था। भविष्य में यह सपष्ट हो गया की यह एक भविष्यवाणी थी।
मैं गूढ़ निद्रा में थी जब अचानक मेरे दायें कान में किसी ने धीरे से पंजाबी में कहा "तेरी बहुत जल्दी मौत होन वाली है"। मैंने अपनी बायीं ओर देखा तो गुरुजी वहां काले चोले में खड़े थे। वह मेरी तरफ चुपचाप गंभीर मुद्रा में देख रहे थे। मैं डर कर उठ गई। मैंने अपनी माता और भाभी, जो गुरुजी के भक्त हैं, को भारत में फ़ोन किया। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि गुरुजी की उपस्थिति ही इस बात का प्रतीक है कि कुछ भी बुरा नहीं होगा। मैं शांत हो गई और कुछ ही दिनों बाद मैंने यह सपना अपने मन से निकाल दिया।
एक माह पश्चात, 17 जुलाई 2015 को मेरे दायें वक्ष में पिंड हो गया। ऐसा लग रहा था कि यह अचानक एक ही रात में हुआ है। मैं स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गयी जिसने अल्ट्रासाउंड करके बताया कि यह पिंड एक पानी की रसौली है परन्तु इस रसौली के नीचे कुछ है जो साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है। चिकित्सक ने मुझे मैमोग्राफी करवाने को बोला जिस से पता चला कि रसौली के नीचे कुछ विकास हो रहा है। बायोप्सी के बाद मेरा शक विश्वास में बदल गया जब पता चला कि यह कैंसर है। चिकित्सक ने तत्काल ऑपरेशन करवाने की सलाह दी।
यह सब जाँच करने में दस दिन लग गए। तब तक हमारी बेटी का ग्रीष्मकालीन अवकाश शुरू हो रहा था और हमने भारत जाने की उड़ान भी सुरक्षित करा रखी थी। हमने जाने का निर्णय लिया। हमने अपने परिवार के साथ दिन बिताये और बड़े मंदिर जाकर गुरुजी को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। फिर हम सब वापस आ गए। बड़े मंदिर में जाने के पश्चात मुझे आत्मविश्वास हो गया था कि सब ठीक हो जाएगा। सितम्बर 2015 में मैं ऑपरेशन के लिए गई।
जब गुरुजी भौतिक शरीर में थे, उनकी तब की एक लाल चोले में छोटी सी तस्वीर मेरे पास थी जो मैं सदैव अपने पास रखती थी। ऑपरेशन वाले दिन भी अनस्थिसिआ के बाद भी वह तस्वीर मेरे दायें हाथ में थी। जब मैं ऑपरेशन थिएटर में जा रही थी तो मेरे पति ने वह तस्वीर मेरे तकिये के नीचे रख दी। मेरे पति ने नर्स से भी कह दिया कि वह इस तस्वीर को वहीँ रहने दे। परन्तु ऑपरेशन थिएटर में मुझे ऑपरेशन टेबल पर ले जाया गया और वह तस्वीर बिस्तर पर ही रह गयी। चिकित्सकों ने पिंड को हटा दिया और टांके लगाने वाले ही थे। उसी वक्त अचानक मुझे होश सा आया। मुझे अभी भी याद है कि मैंने सर्जेन्स को मास्क लगाये हुए अपने पास देखा था।
यद्यपि मुझे अनेस्थेसिआ के कारण धुंधला नज़र आ रहा था परन्तु मैं पूरे होश में थी।
मैंने बायां हाथ उठा कर सर्जन्स से गुरुजी की तस्वीर के बारे में पूछा। चिकित्सक मुझे होश में देख कर चकित रह गए। एक ने मेरे से पूछा "क्या आप जानती है कि आप कौन है?" क्येंकि मैं केवल तस्वीर के बारे में ही सोच रही थी, मैंने थोड़ा सा चिढ़ कर बोला "हाँ मैं जानती हूँ मैं कौन हूँ। अब आप बताओ कि तस्वीर कहाँ है?" चिकित्सकों और नर्सो ने जल्दी में तस्वीर ढूंढी और मुझे दिखाई। मैंने देखा कि वह गुरुजी की तस्वीर है। मैंने उस तस्वीर को मेरे तकिये के नीचे रखने को कहा। इस के बाद मैं बेहोश हो गयी, मैं मुश्किल से एक मिनट ही जागी होउंगी।
मुझे बाद में पता चला कि तस्वीर को तकिये के नीचे रखने के बाद ही चिकित्सकों के मन में और जाँच करने की जिज्ञासा हुई। उन्हें पता चला कि कैंसर कुछ और लिम्फ नोड्स तक फैल चुका था। उन्होंने उसे भी निकाल दिया। ऐसा लगता है कि गुरुजी ने ही उनको प्रेरित किया कि वह और आगे जाँच करें, नहीं तो यह कैंसर और फैलता जाता।
मुझे लगा था कि मेरा भयानक सपना समाप्त हो गया क्योंकि चिकित्सकों ने सारी जगह से कैंसर को हटा दिया था। परन्तु चिकित्सक कीमोथेरेपी करना चाहते थे ताकि बचे हुए कैंसर सेल्स भी पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएँ। क्योंकि चिकित्सक कैंसर को पूरी तरह से समाप्त करना चाहते थे, इस लिए उन्होंने कीमोथेरेपी को अधिक खुराक के साथ शुरू किया। पहले चार सत्र बिल्कुल ठीकठाक निकल गए और कोई दुष्प्रभाव भी नहीं था। मैं 15 दिन में एक बार सुबह कीमो के लिए जाती थी और बिना किसी समस्या के अपने दफ़्तर का और घर का कार्य कर लेती थी।
मेरी कीमो शुरू होने से पहले चिकित्सकों ने मुझे डिप्रेशन न होने की दवाई भी दी थी, परन्तु मैंने वह केवल दो दिन ही ली और उसे छोड़ दिया। मैं इस दवाई पर निर्भर नहीं होना चाहती थी। इसके बदले जब भी मुझे डिप्रेशन होता, मैं इस साइट (गुरूजीमाहाराज.कॉम) पर गुरुजी के सत्संग पढ़ लेती थी और यूट्यूब पर गुरुजी के वीडिओ देख लेती थी।
जब कीमो का पांचवा दौर हो चूका था, एक दिन सुबह सवेरे मुझे कुछ आभास सा हुआ। मुझे पूरी तरह से याद तो नहीं है, परन्तु मुझे ऐसा लगा कि गुरुजी एक सूक्ष्म रूप धारण किये मेरे चेहरे के पास हैं। उन्होंने अपने दायें हाथ से किसी को पांच बार इशारा किया और कहा "भाग जा"। मैं उठ गयी और अपने पति को बताया कि शायद गुरुजी ने मुझे पूर्णतया स्वस्थ कर दिया था। हमें ऐसा लगा कि शायद कठिन परीक्षा समाप्त हो गयी है।
अगले ही दिन मेरे चेहरे के दायीं ओर लकवे का प्रहार हो गया। यह बिलकुल भी संयोग नहीं था। मेरी मृत्यु के बारे में भी मेरे दायें कान में बोला गया था। कैंसर भी मेरे दायें स्तन में हुआ था। मुझे बहुत बीमार हो कर हस्पताल में जाना पड़ा। इस बार लकवे (बेल्स पाल्सी) के कारण मैं हस्पताल में थी। मुझे अपना संतुलन रखने में कठनाई हो रही थी। मैं न तो चल ही पा रही थी ओर न ही मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा था। इस कारण मुझे व्हीलचेयर पर रहना पड़ा, नहीं तो मुझे बिस्तर पर ही लेटे रहना पड़ता। मैं जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही थी ओर आशा खो रही थी। 17 दिन के पश्चात हस्पताल से छुट्टी मिली ओर कहा गया कि मैं अपनी इस गिरती हालत के बावजूद बाक़ी के कीमोथेरेपी के चार दौर पूरे करूँ।
मेरी इस हालत में जब की मेरे सर में सूजन थी ओर मेरी सीमित दृष्टि और व्हीलचेयर पर होने के बावजूद मुझे कभी भी सरदर्द नहीं हुआ। मेरा अनुभव बाक़ी भक्तों के आस्था के लिखे हुए लेख को साबित करता है कि गुरुजी आपके 90% बुरे कर्मों को ले लेते हैं लेकिन बाक़ी के 10% आप को भोगने पड़ेगे। दूसरे शब्दों में आप लगभग बुरे कमों के फल से मुक्त हो जाते हैं।
मैंने भारत में अपने परिवार से संपर्क किया और उन्हें गुरुजी के आशीर्वाद वाला लोटा भेजने को कहा। गुरुजी के एक भक्त सुमीत जैथरा ने वह मुझे भेजा और उसने एक गुरुजी का मुस्कराता हुआ स्वरुप भी ईमेल किया जिसमें गुरुजी दूधिया रंग का चोला पहने हुए थे। मैंने यह तस्वीर बड़े मंदिर में भी देखी थी। सुमीत जब ट्वेंटीस में था तो उसे भी मैलिग्नैंट ट्यूमर (कैंसर) हुआ था। उसको बड़ा निराशाजनक भविष्य बताया गया था और कहा गया था कि वह केवल कुछ ही महीने जीवित रहेगा। लेकिन गुरुजी ने उसे आशीर्वाद दिया। अब दो दशक हो चले हैं, वह पूरी तरह से तंदरुस्त और स्वस्थ है और आनंद से शादीशुदा जीवन व्यतीत कर रहा है। वह दो बच्चों का गर्वित पिता है। उसने गुरुजी की कृपा से कैंसर पर विजय पा ली। उसने जो मेरी सहायता की है, उसके लिए उस पर गुरुजी का आशीर्वाद बना रहे।
लोटा जनवरी 2015 के पहले सप्ताह में पहुंचा और मैंने सुबह प्रतिदिन उससे जल पीना प्रारम्भ कर दिया। कुछ दिन के पश्चात मेरी कीमो कम डोज़ के साथ शुरू की गयी परन्तु मेरे चेहरे पर लकवा अभी भी था और मेरे लिए संतुलन करना कठिन था। इस के अतिरिक्त मुझे यह भी पता नहीं था कि कीमो के अगले दौर कैसे होंगे।
मैंने गुरुजी में विश्वास रखा, यह जानते हुए क़ि गुरुजी मेरा पूरी तरह से ख्याल रखेंगे परन्तु डर कुछ अधिक ही था। मेरे विचार से व्यक्ति बीमारी की बजाय बीमारी के भय से ज्यादा मरता है। मेरे पति, सास और मेरे सभी परिवार के सदस्य जो भारत में रहतें हैं, बहुत ही सहायक थे। जब भी मैं अपने लकवे वाले टेढ़े मुहं के बारे में शिकायत करती तो मेरा पति बोलता कि उसे तो टेढ़ा नज़र नहीं आता है।
मेरी माता को गुरुजी में इतनी ज्यादा आस्था थी कि उन्हें पूर्ण रूप से विश्वास था कि मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं हो सकता। परन्तु मुझ में ऐसे विश्वास की कमी थी। ऐसा नहीं था कि मुझे गुरुजी में आस्था नहीं थी, परन्तु मुझे शक था कि मेरी प्रार्थना गुरुजी तक पहुँच रही है या नहीं। क्योंकि मैंने कभी भी गुरुजी को परमात्मा नहीं माना, मैंने सदैव गुरुजी को एक संत ही माना जिन के पास बहुत ही चमत्कारिक शक्तियां हैं। मैं अब स्मरण कर सकती हूँ कि जब गुरुजी ने अपनेआप को परमात्मा होने के संकेत दिए तो मैंने कैसे नज़रअंदाज कर दिए थे। जब गुरुजी भौतिक अवस्था में थे, तब मैंने उनके दर्शन करते समय उनके मस्तिष्क पर शिव को देखा था। उस समय मैंने अपनेआप को यह तर्क दिया था कि गुरुजी ने मुझे सम्मोहित कर लिया था। यद्यपि गुरुजी महाशिव हैं, मैं इस बारे में अनभिज्ञ रही।
मैं ऐसा सोचने लगी थी कि गुरुजी मेरी प्रार्थना इस लिए नहीं सुनते थे क्योंकि मैंने उन पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया। मेरे मन में यह ख्याल ही नहीं आया कि गुरुजी अगर मेरी रक्षा नहीं कर रहे होते तो यह सब कुछ नहीं होता जैसेकि पानी की रसौली से कैंसर का पता चलना, ऑपरेशन थिएटर में गुरुजी कि तस्वीर को ढूँढना, और उसके बाद चिकित्सकों का और गहराई से देखना और पता चलना कि कैंसर और लिम्फ नोड्स तक फ़ैल चुका है। गुरुजी बिना मुझे अवगत कराये ही मेरी रक्षा कर रहे थे।
एक दिन मैं गुरुजी की तस्वीर के सामने बुरी तरह से टूट गई और बहुत रोई। मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि गुरुजी मुझे संकेत दें कि वह मुझे सुन रहे हैं। मुझे केवल एक ही संकेत चाहिए था, केवल एक।
अगले ही दिन सुबह पांच बजे के करीब मैं उठ गयी और मैं रोज की तरह से चिंतित और डरी हुई थी। तभी अचानक मैंने अपने कमरे में दूधिया रंग की तितली जिस के बॉर्डर का रंग गोल्डन था, नज़र आई। यह बिलकुल उसी रंग की थी जिस रंग का चोला गुरुजी ने मेरे कमरे में लगी तस्वीर में पहन रखा था। तितली के अंदर आने का कोई रास्ता नहीं था। जर्मनी में सर्दियों में पारा शुन्य से नीचे चला जाता है और अति अधिक ठण्ड होने के कारण, केंद्रीय हीटिंग चलती है और सभी खिड़कियां बंद होती हैं। क्या तितली वहां पर केवल मेरे लिए प्रकट हुई थी?
मैं बिस्तर में लेटे हुए तितली को एकटक देखती रही। मैं भयभीत और हैरान थी और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि तितली के वहां नज़र आने का अर्थ क्या है। तितली ने मेरे सर के दो चक्कर काटे और मेरे चेहरे के लकवे वाली तरफ को छुआ। मैंने उसकी आवाज फर्श की और जाते हुए सुनी। मैंने जल्दी से कमरे में प्रकाश किया, परन्तु वहां कुछ नहीं था। बीते समय की याद करने पर मुझे विश्वास हो गया कि वह आवाज इस बात की प्रतीक थी कि मैं सपना नहीं देख रही थी और यह सब वास्तव में हो रहा था। उस समय मुझे एहसास हो गया कि गुरुजी मुझे पुनः आश्वस्त कर रहे हैं कि सब ठीक हो जाएगा। उसके पश्चात मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया क्योंकि अब मेरा मृत्यु का भय कम हो गया था। तितली के दर्शन मुझे 11 फ़रवरी 2014 को हुए थे।
दो सप्ताह पश्चात, 25 फरवरी को जब मैं लोटे में पानी डाल रही थी तो मुझे लोटे के तले पर गुरुजी का चेहरा नज़र आया। कभी मुझे स्नानघर के फर्श पर और कभी मेरी बनाई हुई चपातिओं पर "ओउम" का चिन्ह नज़र आता था। इन सब दृश्यों के कारण मैं आशावादी बन गयी और गुरुजी में मेरी आस्था दिन दुगनी रात चौगनी बढ़ने लगी।
कीमोथेरेपी के पश्चात मुझे रेडिएशन दिया गया परन्तु इस के कोई दुष्प्रभाव नहीं हुए। मेरी दृष्टि और संतुलन ठीक हो गया। मैं दोबारा कार चला सकती थी और रोज़मर्रा के काम कर सकती थी।
तभी एक और चमत्कार हुआ। 3 अक्टूबर 2015 को जब मैं गुरुजी की तस्वीर के आगे प्रार्थना कर रही थी, तभी गुरुजी की तस्वीर पर अमृत वर्षा हुई। मैंने जल्दी से उसकी तस्वीर ली। हम किसी फैमिली पार्टी में जा रहे थे। रास्ते में मैंने सोचा, मैं यह तस्वीर भारत में अपने परिवार को भेजूंगी। जब मैं तस्वीर देख रही थी तो एक तस्वीर मुझे ऐसी नज़र आई जिस में गुरुजी के दायें गाल पर खून लगा हुआ था। पहले तो मैं डर गयी, बाद में मुझे समझ में आया कि गुरुजी ने मेरी सारी बीमारी अपने ऊपर ले ली है। और सच में ऐसा ही था। मेरे चेहरे में सुधार आने लगा और आज बहुत कम टेढ़ापन है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरा चेहरा बिलकुल सामान्य हो जायेगा। आख़िरकार, आज मैं जीवित हूँ तो गुरुजी की कृपा से।
मुझे नए साल 2016 के पहले दिन यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मेरा शरीर कैंसर से पूरी तरह मुक्त है। तीसरी नैत्यक जांच के बाद अभी पता चला है कि मेरे खून की रिपोर्ट बिलकुल ठीक है: वास्तव में यह बहुत ही अच्छी है। मेरे ऑन्कोलॉजिस्ट को पूर्ण विश्वास है कि मुझे अब कैंसर कभी नहीं होगा। वह मेरे से इतनी जल्दी पूरे रूप से स्वस्थ होने का राज़ भी जानना चाहता है।
प्यारी संगतजी, गुरुजी को मानो। गुरुजी पर भरोसा रखो और उनमें आस्था रखो, क्योंकि गुरुजी सब की रक्षा करते हैं और हमारा सदैव ध्यान रखते हैं। गुरुजी परमात्मा हैं, महाशिव हैं, और हम सब भाग्यवान हैं कि गुरुजी ने हम सब जो अपनी शरण में लिया हुआ है।
मैं गुरुजी के बग़ैर अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकती। जब मैं पीछे अपने गुजरे हुए कठिन समय को देखती हूँ, तो गुरुजी को मुझे इस से निकालने के लिए धन्यवाद करती हूँ। गुरुजी ने मुझे न केवल अधिक आशावादी, अधिक निडर और प्रसन्नचित बनाया, बल्कि मुझे यह अहसास हो गया कि गुरुजी वास्तव में कौन हैं। संगत जी, गुरुजी आप सब को आशीर्वाद दें। जय गुरुजी।
ज्योति बेकर, एक भक्त
जनवरी 2016