बड़े मंदिर में संगत का सैलाब

कमल, अगस्त 2008 English
मुझे पहली बार गुरुजी के दर्शन का अवसर जुलाई 2003 में मिला। मेरा पाँव टूटा हुआ था, जिसकी जल्दी ही शल्य चिकित्सा होने वाली थी। यह शल्य चिकित्सा पहली बार नहीं हो रही थी। गुरुजी के दर्शन से पहले भी मेरी तीन बार शल्य चिकित्सा हो चुकी थी, जो कि असफल रहे थी, क्योंकि संक्रमण (इनफ़ेक्शन) काबू से बाहर हो गया था। लेकिन इस बार मैं गुरुजी के पास आया और शल्य चिकित्सा करवाने की आज्ञा ली। गुरुजी ने आज्ञा दे दी।

हमें दो चिकित्सकों के बीच चुनाव करना था, मैंने गुरुजी से पूछा की हम किसका चुनाव करें। गुरुजी ने चयन हमारे ऊपर छोड़ दिया और कहा किसी से भी करवा लो। गुरुजी की आज्ञा से मेरी शल्य चिकित्सा रेवाड़ी (हरियाणा) के एक अस्पताल में हुई और मुझे छः महीने तक आराम करने की सलाह दी गई। यह मेरे व मेरे परिवार के लिए अत्यन्त आश्चर्य की बात थी कि शल्य चिकित्सा पूरी तरह कामयाब हुई थी। मैं सामान्य अवस्था में वापस भी आ गया। इस प्रकार से, अभी तक जो स्वास्थ्य लाभ पिछले तीन-चार प्रयासों में भी नहीं मिल पाया था, वह गुरुजी की कृपा से इतनी सहजता से हो गया था।

मेरी शादी हुई: सपना हुआ सच

इसके कुछ ही दिन बाद मेरे माता-पिता मुझ पर विवाह के लिए दबाव देने लगे। मेरा एक मित्र विनोद, जो गुरुजी की संगत का ही हिस्सा है, को स्वप्न में गुरुजी के दर्शन हुए। उसने देखा कि गुरुजी शिव मंदिर में, जो कि (शंकर रोड) दिल्ली में है, भगवान शिव के आसन पर विराजमान हैं। हम दोनों एक ऊँचे स्थान पर बने गुरुजी के आसन के पास जा रहे हैं। जैसे ही हम वहाँ बैठते हैं, विनोद को गुरुजी के चरण दबाने का मौका मिलता है। अचानक गुरुजी एक निमंत्रण पत्र निकालते हैं और विनोद को यह कहते हुए देते हैं कि यह कमल (मेरी) की शादी का कार्ड है। विनोद प्रत्युत्तर देते हुए पूछता है कि उसकी शादी कब होगी? गुरुजी उसको जवाब देते हैं कि जब सही समय आएगा वह स्वयं अपना विवाह तय कर लेगा। साथ ही गुरुजी यह भी भविष्यवाणी करते हैं, तथापि विनोद ने अपनी माताजी को खो दिया है लेकिन उसे एक बहुत प्यार करने वाली और ध्यान रखने वाली सास मिलेंगी।

यह सब मंगलवार को घटित हुआ, और अगले ही दिन विनोद ने पूरे स्वपन् का वर्णन मुझसे किया। जब गुरुवार को हम मंदिर गये, गुरुजी हमें देखकर मुस्कुराए, जो कि उनकी तरफ से दिया गया एक प्रमाण था। अगले ही दिन मेरा परिवार लड़की के परिवार से मिला। यह दोनों ही परिवारों की पहली मुलाकात थी। शनिवार के दिन मैं वापस संगत में गया और विवाह के लिये गुरुजी की आज्ञा और आशीर्वाद लिया, और सभी विवाह संबंधित कार्य शीघ्रता से आरंभ कर दिये। रविवार को मेरी सगाई हुई और एक सप्ताह से भी पहले गुरुवार को मेरा विवाह भी सम्पन्न हो गया।

जब मैं शुक्रवार को मंदिर पहुँचा और मैंने गुरुजी को विवाह के बारे में बताया, उन्होंने "बहुत अच्छे, बहुत अच्छे, बहुत अच्छे" कहा। गुरुजी के यह पवित्र वचन अविस्मरणीय हैं और सदैव हमें इस बात से आश्वस्त करते हैं कि उनकी कृपा सदैव हमारे साथ है। जब मेरी पत्नी पहली बार मेरे साथ गुरुजी के मंदिर गई, गुरुजी ने उसे, "जा ऐश कर" कह कर आशीर्वाद दिया।

अगर मेरे विवाह में कोई भी प्रामाणिकता है, तो कोई भी अनुमान लगा सकता है कि गुरुजी के स्वप्न, सिर्फ स्वप्न नहीं होते - वह गुरुजी के साक्षात् दर्शन के ही समान हैं। गुरुजी का एक स्वप्न जो हकीकत बन गया - मेरा विवाह एक ऐसा ही प्रकरण है।

गुरुजी के महासमाधि लेने के बाद, तथा दिवाली के एक सप्ताह पहले, नवंबर 2007 में मुझे गुरुजी के दर्शन हुए। मैंने एक बड़ा मैदान देखा (बड़े मंदिर की माप से दस गुना बड़ा) जिसमें एक ही कमरा है जहाँ गुरुजी अपनी गद्दी पर बैठे हुए हैं। गुरुजी किसी बड़े समारोह की तैयारी के लिए लोगों को निर्देश दे रहे हैं। वह हजारों जवान सेवादारों को संगत को नियंत्रित करने व संभालने के लिए आदेश दे रहे हैं, और यह भी बता रहे हैं कि संगत लाखों में होगी। सेवादारों को आपस में संपर्क करने के लिए वॉकी-टॉकी दिये गये हैं। उसके बाद गुरुजी ने मुझे और एक और भक्त, मनोज को, कमरे के अंदर बुलाया, और अन्य संगत को बाहर जाने के निर्देश दिए। वह हमें कह रह था कि संगत को बिना उसके निर्देश के आने नहीं दिया जाए। मैं कमरे के भीतर था और मनोज बाहर तैनात था। संगत गुरुजी की आज्ञानुसार आ-जा रह थी। जब गुरुजी ने मुझसे लंगर खाने के लिए कहा, तो मनोज को भीतर बुला लिया। थोड़े समय में जब संगत की भीड़ बढ़ने लगी गुरुजी स्वयं संगत को दर्शन देने बाहर आ गये उन्होंने पैंट और टी-शर्ट पहनी हुई थी। यह सिर्फ एक संकेत मात्र है कि गुरुजी सदैव अपनी संगत के साथ हैं, चाहे वह भौतिक रूप से नहीं हैं।

सचमुच गुरुजी एक अंतहीन प्यार का सागर हैं तथा हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हम उनकी चिरकालिक शरण में हैं। गुरुजी से यही प्रार्थना है कि वह हम सभी पर कृपा बनाये रखें।

जय गुरुजी!!

कमल, एक भक्त

अगस्त 2008