एक लड़की के लिए, गुरुजी उसके पिता

खुशबू बंगिआ, दिसम्बर 2009 English
14 अगस्त एक तिथि है जो मैं कभी भूल नहीं सकती। यह वो दिन था जब मैं पहली बार गुरुजी के दरबार आई। और जिन घटनाओं की वजह से यह हुआ वो बहुत रोचक हैं। वह 'सावन' का महीना था, जो भगवान शिव से सम्बंधित होने के कारण पावन माना जाता है, और इस महीने में मैं नियमित रूप से व्रत रखती थी। अगस्त 2008 में पहली बार हुआ जब मैंने व्रत नहीं रखा। इसलिए मैं चिन्तित और डरी हुई थी और भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि वह मुझे क्षमा कर दें। बृहस्पतिवार की सुबह को मुझे सपना आया जिसमें माँ पार्वती ने मुझे दर्शन दिए और मुझे आश्वासन दिया कि शिवजी मुझसे नाराज़ नहीं हैं। लेकिन सपने में भी मैंने माँ पार्वती से शिवजी के दर्शन माँगे, क्योंकि उसी से मैं संतुष्ट होती। और तब शिवजी और हनुमानजी आए और मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

उस सुबह जब मैं उठी तो बहुत खुश थी: मेरे दिन की शुरुआत उत्तम हुई थी। जब मैं अपनी ट्यूशन टीचर के पास गई तो उन्होंने मुझे गुरुजी की तस्वीर दिखाई और पहली बार मुझे गुरुजी के दर्शन का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। मेरी टीचर ने मुझसे पूछा कि क्या उस शाम मैं उनके साथ गुरुजी के मंदिर जाना चाहूँगी। वह मुझसे बोलीं कि गुरुजी और शिवजी एक ही हैं और मैंने तुरन्त हाँ कर दी। उसी शाम हम गुरुजी के दरबार में बैठे हुए थे।

उन्होंने मेरी शंका दूर की

संगत से मुझे गुरुजी की कृपा और उनके द्वारा किये गए चमत्कारों के बारे में पता चला। गुरुजी से आने वाली सुगंध के बारे में भी मुझे पता चला। और यह भी कि जब गुरुजी शारीरिक रूप में विद्यमान नहीं हैं तब भी उनकी सुगंध आती है -- उनकी सर्वविद्यमानता की सूचक। मंदिर में संगत से मुझे पता चला कि गुरुजी की महासमाधि के बाद भी उन्हें उनकी सुगंध आती थी। मंदिर में बैठे हुए मैंने गुरुजी से पूछा कि मैं कैसे उनकी सुगंध पहचानूँ। मुझे गुरुजी के शारीरिक रूप में कभी दर्शन नहीं हुए थे और मंदिर में सुगंध फूलों की भी हो सकती थी, ऐसा मुझे लगता था। मैंने गुरुजी से विनती की कि किसी अनोखे ढंग से मुझे अपनी सुगंध का एहसास करायें। गुरुजी ने मुझे इंतज़ार नहीं करवाया। वह मेरे घर आये और और मेरा कमरा अपनी कृपापूर्ण दिव्य सुगंध से भर दिया। और मेरे कमरे में सुगंध का कोई और स्रोत नहीं था। अब संदेह करने का कोई कारण नहीं बचा था। बहुत बहुत धन्यवाद गुरुजी, इस अदभुत सुगन्धित अनुभव के लिए और मेरे कमरे में आकर मुझे आशीर्वाद देने के लिए।

गुरुजी के दर्शन

जैसे ही गुरुजी एक मॉंग पूरी कर देते हैं, हमारी और माँगें हो जाती हैं। अब मुझे गुरुजी के दर्शन उनके चोले में चाहिए थे। संगत से गुरुजी के सजीले और अदभुत पहनावों के बारे में इतनी प्रशंसा सुनने के बाद मैंने गुरुजी से अनुरोध किया कि वह मुझे अपने उन चोलों में दर्शन दें जिनको देखकर संगत मंत्रमुग्ध हो जाती थी। गुरुजी से यह अनुरोध करके, मैंने गुरुजी की तस्वीर अपने तकिये के नीचे रखी और सो गई।

उस रात गुरुजी ने अपने भिन्न-भिन्न चोलों में मुझे दर्शन दिए और वह एकदम अदभुत अनुभव था। परन्तु उसके बाद जो हुआ वह अविश्वसनीय था। जब मैं अगली सुबह उठी, एक सहेली से मुझे गुरुजी की वेबसाइट के बारे में पता चला। जब मैं गुरूजीमहाराज.कॉम वेबसाइट पर गई और तस्वीरों के भाग में गई, तो मैंने पाया कि वहाँ गुरुजी की उन्हीं चोलों में तस्वीरें थीं जिनमें उन्होंने मुझे पिछली रात दर्शन दिए थे! एक बार फिर, बड़े ही आश्चर्यजनक ढंग से गुरुजी ने संदेह की सम्भावना दूर कर दी।

गुरुजी अपने सभी बच्चों का ध्यान रखते हैं और हम सब के लिए शर्त-रहित प्रेम का स्रोत हैं। मैं बताती हूँ किस तरह। गुरुजी के यहाँ आना आरम्भ करने से पहले मेरी माँ एक ज्योतिषी के पास गयीं जिसने भविष्यवाणी की कि जल्द ही मेरा भाई निखिल बहुत बीमार पड़ेगा और उसे हस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। और वैसा ही हुआ। माँ की सारी कोशिशों के बाद भी उस दिन हम अपनी दुकान नहीं खोल पाए। हम उस ज्योतिषी में विश्वास करने लगे।

तीन बार फिसलना

गुरुजी के यहाँ आने के बाद मेरी माँ उस ज्योतिषी के पास फिर गयीं। उसके पास फिर हमारे लिए बुरी खबर थी। उसने भविष्यवाणी की कि दिवाली के समय हमारे लिए मुसीबतें अपनी चरम सीमा पर होंगी: हमारी दुकान का काम अच्छा नहीं चलेगा और मेरे दोनों भाई और माँ बीमार पड़ जाएँगे। हमें बहुत बड़े आर्थिक नुकसान की सम्भावना नज़र आ रही थी।

यह भविष्यवाणी होने के बाद जब अगली बार मेरी माँ बड़े मंदिर आयीं, हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। वह संगत हॉल की ओर जाती हुई मंदिर की मुख्य सीढ़ियों पर बहुत ज़ोर से फिसलीं, पहली से लेकर अंतिम सीढ़ी तक। जब संगत उन्हें उठने में मदद करके शौचालय तक ले जा रही थी तो वह दो बार और फिसलीं। यद्यपि वह तीन बार फिसली थीं, वह खुशकिस्मत थीं कि उन्हें कोई बड़ी चोट नहीं लगी। मंदिर में संगत ने हमें कहा कि कोई आने वाली बड़ी मुसीबत को गुरुजी ने छोटी सी तकलीफ में परिवर्तित कर दिया था। हमें यह बात तब समझ आई जब दिवाली आई। हमारी दुकान का कारोबार असामान्य रूप से अच्छा रहा और परिवार में सबकी सेहत भी अच्छी रही। इस तरह तीन लोगों ( मेरी माँ और दो भाई ) की विकट बीमारियों को गुरुजी ने मेरी माँ का मंदिर में तीन बार फिसलने में परिवर्तित कर दिया।

अपनी बेटी की तरह मेरा धयान रखा

पर तब भी मेरी माँ को गुरुजी में पूरा विश्वास नहीं हुआ था और यह सब उन्हें एक संयोग लगा। हम गुरुजी के यहाँ नियमित रूप से जाते रहे और अब भी मेरी माँ मेरे लिए एक अच्छे रिश्ते की तलाश में थी और समय बीतते हुए वह थोड़ा घबरा रही थीं। फिर एक दिन एक भक्त, मनोज, जिससे हम अनजान थे, को गुरुजी के दर्शन हुए। गुरुजी ने उन्हें निर्देश दिया कि वह खुशबू की माँ से कहें कि उसे चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि खुशबू अब 'उनकी' बेटी थी और वो मेरा धयान रखेंगे। मनोज ना मुझे जानते थे और ना ही मेरे परिवार को, और उन्होंने गुरुजी से पूछा कि वो कैसे हमें पहचानेंगे या मिलेंगे। गुरुजी ने उन्हें संगत में बेला आंटी से बात करने को कहा। मनोज ने गुरुजी के निर्देशानुसार किया। यह जानकार कि गुरुजी ने मुझे अपनी बेटी बना लिया है, मैं बहुत खुश हुई। पर मनोज मेरी माँ के प्रश्नों से बच नहीं पाया, जो हमेशा उससे पूछती रहतीं कि क्या उसने जो भी कहा था वह सच था। माँ सोचती थीं कि यह बहुत अच्छा है कि मैं गुरुजी की बेटी हूँ, लेकिन उनको तो अपनी सांसारिक ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं।

यह सब सितम्बर में हुआ और जनवरी में हमें गौरव (गुरुजी का भतीजा) का रिश्ता आया। जल्द ही हमारी सगाई हो गई। तब हमें गुरुजी के संदेश का पूरा मतलब समझ आया। गुरुजी ने माँ की सारी चिंताओं का धयान रखा, और आज वह भी गुरुजी में पूरी तरह विश्वास रखती हैं!

गुरुजी की कृपा हर दिन दिखाई देती है और उन सब का वर्णन कर पाना असम्भव है। गुरुजी का आशीर्वाद जीवन के हर स्थिति में विद्यमान है। उदाहरण स्वरूप, जब मेरी शादी का लहंगा चुनना था, पूरे दिन खरीददारी करने के बाद मैं बहुत थक गई थी और कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी। लेकिन माँ के दबाव डालने पर कि हम उसी दिन लहंगे का चुनाव करेंगे, हमने उनकी पसंद से लहंगा ले लिया। बाद में गुरुजी ने मुझे दर्शन दिए: मैंने गुरुजी को स्वयं दर्ज़ी के साथ खड़े होकर मेरी शादी के लहंगे को अन्तिम रूप देते हुए देखा। अदभुत!

वह सर्वोच्च एक ही हैं

एक शाम गुरुजी ने बड़े मंदिर में दर्शन दिए और संगत उनकी तस्वीरें खींच रही थी। मुझे भी एक भक्त से उनकी तस्वीर मिली और मैं उसमें गुरुजी के दर्शन कर पाई। आने वाले दिनों में मैंने पाया कि एक तस्वीर में मैं गुरुजी को पाँच अलग जगहों पर देख पा रही थी। मुझे याद आया कि श्री शिव महापुराण में मैंने पढ़ा था कि शिवजी 'पंचमुखी' (पाँच मुखों वाले) हैं। यहाँ एक ही तस्वीर में मुझे गुरुजी के पाँच मुखों के दर्शन हो रहे थे। इस दर्शन से स्पष्ट हो गया कि गुरुजी भगवान शिव हैं और उन दोनों में कोई अंतर नहीं है।

साथ ही, पहले नवरात्रे पर ही मुझे माँ दुर्गा के दर्शन उनके 'अष्ट भुजा' (आठ भुजाओं वाले) रूप में हुए। मैं विस्मित होकर उनके चरण से लेकर अष्ट भुजा तक और फिर उनके चेहरे को देख रही थी; मैं विस्मित थी: दुर्गा माँ, अपनी पूरी वेषभूषा में सुशोभित, परन्तु चेहरा गुरुजी का था। जैसे-जैसे मैं उनको देखती रही, उनका चेहरा दुर्गा माँ के चेहरे में परिवर्तित हो गया और फिर गुरुजी के चेहरे में, स्पष्ट रूप से ज़ाहिर करते हुए कि सर्वोच्च शक्ति एक ही है। कोई और भगवान नहीं हैं। हम सब भगवान की शरण और उनके निवास-स्थान में आये हैं।

बहुत बहुत धन्यवाद गुरुजी, इन सब अदभुत अनुभवों के लिए। मेरी आप से यही प्रार्थना है कि आप सब को अपनी कृपालु संरक्षण और प्रेम में सदैव रखें।

खुशबू बंगिआ, एक भक्त

दिसम्बर 2009