गुरुजी की कृपा और मर्ज़ी के बिना कोई भी गुरुजी या उनके मंदिर के दर्शन प्राप्त नहीं कर सकता। मैंने गुरुजी का सत्संग सबसे पहले अपने देवर, श्री राकेश गुप्ता से सुना। उन्होंने हमें बताया कि गुरुजी साक्षात भगवान हैं पर हमें विश्वास नहीं हुआ। गुरुजी की कृपा से हम 2006 में गुरु पूर्णिमा के दिन पहली बार बड़े मंदिर गए। जब हमें उनके दर्शन प्राप्त हुए तब एहसास हुआ कि हमें जैसा बताया गया था कि गुरुजी भगवान हैं, वह बिलकुल सही था। मंदिर में जो हमने परम आनंद और संतोष महसूस किया उसको मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती हूँ। मैं बस इतना ही कह सकती हूँ कि मैंने पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था।
हमारे पास गुरुजी की दो तस्वीरें थीं जो हमने अपने घर के मंदिर में रख दीं। कुछ समय बाद हमने देखा कि वो दो तस्वीरें तीन हो गई थीं। तीसरी तस्वीर में गुरुजी लाल चोले में थे और बहुत सुन्दर लग रहे थे। यह सब गुरुजी की कृपा थी।
गुरुजी के यहाँ जाने के दो साल बाद, 2008 में, चिकित्सकों ने मेरे पेट में एक पुटी पाई और मुझे कुछ समय विश्राम करने के बाद ऑपरेशन कराने की सलाह दी। मुझे अक्सर तीव्र और असह्य दर्द होता था। एक रात मैंने सपने में गुरुजी देखे। उन्होंने अपना हाथ मेरे पेट पर रखा; मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे अंदर कुछ ठीक हो रहा हो। जब मैं अगले दिन चिकित्सक के पास गयी, उन्हें मेरे पेट में कोई पुटी नहीं मिली। भगवान के अलावा कोई और ऐसा चमत्कार नहीं कर सकता है।
फरवरी 2009 में गुरुजी ने मेरे पति को भी बचाया। एक ट्रक में कागज़ों के गट्ठे चढ़ाये जा रहे थे और कम से कम एक दर्जन कागज़ के गट्ठे जिनका वज़न करीब 100 किलो होगा, मेरे पति के टाँग पर गिरे। उन्हें बस छोटी-मोटी चोट आई। जो एक बहुत बड़ी दुर्घटना हो सकती थी, गुरुजी ने उसे एक छोटी सी चोट में परिवर्तित कर दिया। उसका भी उपचार गुरुजी ने ही किया जब हम 7 जुलाई 2009 को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बड़े मंदिर गए। मेरे पति ने नृत्य किया और वह टाँग का दर्द जिसके लिए उन्हें इतनी दर्दनाशक दवाइयाँ खानी पड़ रही थीं, वहीं ठीक हो गया।
हमने सहारनपुर में अपने घर में 15 अगस्त 2009 को गुरुजी का सत्संग रखा। हमें सुबह 11 बजे से अपने घर में गुरुजी की सुगन्ध आने लगी, यद्यपि हम घर पर कोई फूल नहीं लेकर आये थे। फिर, सामान्यतया जहाँ सहारनपुर में बिजली हर रोज़ 12 घंटों के लिए नहीं होती है, गुरुजी के सत्संग के दौरान बिजली नहीं गयी। लंगर और कढ़ा प्रसाद बहुत स्वादिष्ट थे। संगत यह तक नहीं पहचान पा रही थी कि लंगर में क्या सामग्री डाली गयी थी – वह जादुई सामग्री, निस्संदेह, गुरुजी की कृपा थी।
एक साल बाद, दिवाली के दिनों में, अचानक मेरे बेटे को तेज़ बुखार हो गया और उसका तापमान 104 डिग्री पहुँच गया। हम चिन्तित हो गए और उसे चिकित्सक के पास लेकर गए जिसने कहा कि हमारे बेटे को टाइफाइड है और उसे करीब 30 दिन तक विश्राम करना पड़ेगा। घर वापस आकर मेरे पति बोले कि गुरुजी सर्वोच्च चिकित्सक हैं। हमने बेटे के सीने पर गुरुजी की तस्वीर छुआई और गुरुजी का नाम लेने के बाद उसे थोड़ा पानी पिलाया। कुछ ही समय में उसका तापमान 100 डिग्री आ गया। हमने उसे कोई दवाई नहीं दी। अगले दिन हम फिर उसे चिकित्सक के पास जाँच के लिए लेकर गए। चिकित्सक ने पुष्टि की कि वह बिलकुल ठीक था और उसे किसी दवाई की ज़रूरत नहीं थी। चिकित्सक विस्मित और चकराया हुआ था। निस्संदेह, उपचार गुरुजी के आशीर्वाद से हुआ था।
गुरुजी भगवान हैं और हम सबको असीमित आशीर्वाद देते हैं। हमें एहसास है कि गुरुजी हर क्षण हमारे साथ हैं। वह अगर हमसे कुछ चाहते हैं तो बस प्रेम और समर्पण और यह कि हम कोई अगर-मगर ना करें। गुरुजी के आशीर्वाद से, जो भी हमारी आवशयकता होती है, वह माँगने से पहले ही हमें मिल जाती है। मैं गुरुजी से प्रार्थना करती हूँ कि वह फिर से शारीरिक रूप में आयें क्योंकि हम हर पल उनकी शानदार और आकर्षक मुस्कुराहट को याद करते हैं।
ललिता गुप्ता, एक भक्त, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
दिसम्बर 2009