मेरे भाई को गुरुजी के यहाँ जाते हुए आठ महीने हो गए थे। मुझे गुरुजी में विश्वास नहीं था पर अपने भाई के दबाव डालने पर मैं गुरुजी के दर्शन और आशीर्वाद के लिए उसके साथ गई। हम वो दिन भूल नहीं सकते जब हमें एम्पायर एस्टेट में उनके दर्शन हुए। हम संगत के साथ बैठे हुए थे। करीब बीस मिनट के बाद गुरुजी ने हॉल में प्रवेश किया। उनके मनोहर दर्शन पाते ही मुझे पहली निगाह में प्रेम हो गया।
मेरे भाई ने गुरुजी को मेरा परिचय दिया। उन्होंने मेरी ओर दो बार देखा और बोले, "बड़ी चंगी कुड़ी है (बहुत अच्छी लड़की है)।" मैंने आज भी उनके यह शब्द अपने मन में संजो के रखे हैं। हमने गुरुजी के यहाँ हर रविवार को नियमित रूप से जाना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने मेरे सारे विचार और करनी नियंत्रित कर लिए। इस तरह, पहले मैं उनके प्रेम में पड़ी, और फिर धीरे-धीरे उनके प्रेम में उठी।
मैं यू. के. में बसना चाहती थी और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए गई। पर वह बोले: "ठीक है, घूम के आ जाओ।" हम यू. के. गए और एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी खोली, पर गुरुजी तो जानी जहान हैं, वह सब जानते हैं। यू. के. जाने से ठीक पहले हम फिर उनका आशीर्वाद लेने के लिए गए पर वह बोले, "नहीं जाना।" मैं स्तंभित रह गई और मैंने तीन बार उनसे पूछा तो वह भड़क कर ज़ोर से बोले: "मंगी दा नहीं, मनी दा (माँगना नहीं है, मानना है।)" हमें इन शब्दों का अर्थ समझ नहीं आया। हमने एक भक्त, सिंगला अंकल, से पूछा तो उन्होंने इसका अर्थ हमें बताया। उस दिन से, मैंने कभी गुरुजी से कोई भौतिकवादी वस्तु नहीं माँगी। लेकिन यू. के. में बसने की मेरी इच्छा अभी भी थी क्योंकि वह मेरे सारे जीवन का सपना था।
गुरुजी की महासमाधि के बाद सारी संगत चूर-चूर हो गई थी। मैं भी। ऐसा लगा मानो सारी दुनिया ही थम गई थी।
दो साल बाद मैंने फिर अपने पति से यू. के. जाकर बसने की इच्छा ज़ाहिर की। हम एक रविवार को बड़े मंदिर गए। जैसे ही मैं आज्ञा लेकर जाने लगी, एक आंटी मेरे पास आकर बोलीं कि अच्छा हुआ कि मैं यू. के. नहीं गई क्योंकि आजकल वहाँ कुछ भी अच्छा नहीं था। वो यू. के. के बारे में लगातार नकारात्मक बातें बोलती रहीं जब तक मैं मंदिर से नहीं निकली। वापस जाते समय मुझे एहसास हुआ कि यह गुरुजी की ओर से एक सीधा संदेश और स्पष्ट संकेत था कि मुझे यू. के. जाकर बसने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। इस घटना ने मुझे यह बात भी बिलकुल स्पष्ट कर दी कि गुरुजी हमेशा हमारे साथ हैं और हमारे मन में आने वाली छोटी से छोटी बात भी जानते हैं।
मेरी बेटी ठीक हो गई
मुझे अपनी बेटी आस्था की चिंता रहती थी। उसके एडेनॉइड्स बढ़े हुए थे जो ऑपरेशन के द्वारा निकाले गए। उसका ऑपरेशन हमारे गुरुजी से मिलने से पहले हुआ था, जो कामयाब नहीं हुआ और उसके बायें कान की सुनने की शक्ति 80 प्रतिशत नष्ट हो गई थी। हमने गुरुजी को इस समस्या के बारे में बताया और उन्होंने हमारी बेटी के लिए तांबे का लोटा अभिमंत्रित करके दिया।
सितम्बर 2009 में हम बड़े मंदिर में एक भक्त, तूर अंकल से मिले। उन्होंने संगत को अपने बेटे के सत्संग के बारे में बताया तो मेरी आँखों में आँसू आ गए क्योंकि मेरी बेटी की भी वही समस्या थी। जब वह बड़े मंदिर से निकल रहे थे, मैंने तूर अंकल को अपनी बेटी के बारे में बताया। दस दिन बाद उन्होंने मुझे चंडीगढ़ से फोन किया और बोले, "चिंता मत करो, गुरुजी की कृपा से तुम्हारी बेटी बिलकुल ठीक हो जाएगी।"
एक महीने बाद दिवाली की शाम को, हमने घर पर जल्दी पूजा कर ली क्योंकि हम बड़े मंदिर जाना चाहते थे। आस्था ने मुझे पूजा करने से पहले मोमबत्तियाँ जलाने को कहा, पर मैंने उससे कहा कि मैं मोमबत्तियाँ पूजा करने के बाद जलाऊँगी। जब हम पूजा कर रहे थे, आस्था बहुत बेचैन महसूस कर रही थी। मैंने दो बार उसे पूजा पर ध्यान देने को कहा, पर वह ऐसा नहीं कर पाई। पूजा के बाद उसने मुझसे पूछा कि हम आरती इतने ऊँचे स्वर में क्यों गा रहे थे। मैं उससे बोली कि हमने आरती ऊँचे स्वर में नहीं गायी थी। उसकी मशीन की आवाज़ इतनी ऊँची थी कि वह बेचैन महसूस कर रही थी। दस मिनट बाद वह सब कुछ साफ-साफ सुन पा रही थी! मैंने उसका विश्वास नहीं किया जब तक मैंने अपने पति के कान में कुछ फुसफुसाया और उसने वो सुन लिया। वह मुझसे बोली कि अब वह सब कुछ साफ-साफ सुन सकती थी।
हम गुरुजी के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने हमारी बेटी को ठीक कर दिया—एक ऐसा कमाल जो विशिष्ट चिकित्सक ऑपरेशन के बाद भी नहीं कर पाए थे। मैं गुरुजी का धन्यवाद करती हूँ कि हमारे जीवनकाल में उन्होंने हमें अपने दर्शन का अवसर दिया। गुरुजी को हमारा शत-शत प्रणाम। मैं गुरुजी को अपना प्रेम भेंट चढ़ाती हूँ।
लीना ऐंव बॉबी, एक भक्त
दिसम्बर 2009