सब के लिए पूर्ण आशीर्वाद

ममता अग्रवाल, सितम्बर 2016 English
मैं गुरुजी की सच्ची भक्त हूँ। मेरी एक बूटीक (कपड़ों का स्टूडियो) है जो मैं अपने प्रबंधक शिवलाल के साथ पिछले दस साल से चला रहीं हूँ। एक दिन शिवलाल बहुत उदास नजर आया। पता चल कि उसकी बेटी तुलसी वेस्ट बंगाल में गाँव में अपने घर में तेज बुखार से पीड़ित है। शिवलाल चिंतित था। मैंने उसे बताया कि यह केवल बुखार ही है और वह चिंता न करे। अगले दिन शिवलाल अपने घर जाना चाहता था, उसकी बेटी को अस्पताल में भर्ती करा दिया था। गाँव वालों को विश्वास था कि उसकी बेटी काले जादू की शिकार है।

मैंने उस दिन शिवलाल को बड़े मंदिर लंगर के किये भेजा और उससे कहा कि वह तुलसी के लिये गुरुजी से प्रार्थना करे। क्योंकि वह मंदिर में था, इस लिए उस का मोबाइल बंद था। इसी बीच शिवलाल की पत्नी जो उसको संपर्क करना चाहती थी, उसका मोबाइल न मिलने के कारण उसने मुझे संपर्क किया। उसने बताया कि उनकी बेटी की हालत बहुत खराब थी और वह शिवलाल से तत्काल बात करना चाहती है। मैंने शिवलाल की पत्नी से कहा कि वह मेरी बात गाँव के अस्पताल के चिकित्सक से करवा दे। चिकित्सक ने बताया कि उनकी बेटी को मस्तिष्क ज्वर (मेनिन्जाइटिस) है और उसके गाँव में जीवित रहने की संभावना कम है। तुलसी को शायद किसी बड़े अस्पताल में ले जाया जाये तो वह स्वस्थ हो सकती है।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। यह सोच कर कि जो हो रहा है, वह गुरुजी ही कर रहे है। मैंने अपने एक अंकल को जो चिकित्सक हैं, पटना में फ़ोन किया। उन्होंने कहा कि तुलसी को शीघ्र ही पश्चिम बंगाल के किसी अस्पताल में दाखिल कर देना चाहिए परन्तु उन्होंने किसी विशेष अस्पताल का नाम नहीं बताया। मेरे अंकल ने मुझे गूगल पर किसी अच्छे अस्पताल का नाम ढूँढ़ने को बोला। मैंने गुरुजी का नाम लेकर एक अस्पताल का नाम ढूंढा और सब कुछ तय कर दिया। मैंने गाँव वाले अस्पताल से संपर्क किया और उन्हें तुलसी को एम्बुलेंस में बड़े अस्पताल ले जाने को कहा। गाँव में चिकित्सकों ने बताया कि छठ पूजा के कारण सड़कों पर बहुत भीड़ होगी और तुलसी को ले जाने में पाँच घंटे लग सकते है जब कि गाड़ी से वह चार घंटे में पहुँच सकती है।

जब शिवलाल मंदिर से वापिस घर आया तो उस समय पहले ही तुलसी एम्बुलेंस में थी। मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि मैंने शिवलाल से तुलसी को बड़े अस्पताल में ले जाने की अनुमति नहीं ली थी। इस के अतिरिक्त चिकित्सकों भी उसके ठीक होने का भरोसा नहीं दे रहे थे। तुलसी अचेत दशा में थी।

तुलसी तीन घंटे के असंभव समय में अस्पताल पहुँच गयी। शिवलाल के भाई ने अस्पताल से तुलसी के बारे में सूचना दे दी थी। उसने एक खराब खबर भी दी। उसने बताया कि तुलसी आईसीयू में बुरी अवस्था में है और किसी को पहचानती नहीं है। मैंने चिकित्सकों से आग्रह किया वह जितना कर सकते हैं, अवश्य करें और खर्चे की चिंता न करें। मैंने शिवलाल को गुरुजी से प्रार्थना करने को कहा और उसे गुरुजी के स्वरूप के साथ अगले दिन गाँव भेज दिया।

अब मुझे पश्चिम बंगाल चिकित्सकों के लिए पैसे भेजने थे परन्तु मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे करूँ। मैंने फेसबुक पर अनुरोध किया। मेरी एक सहेली दीक्षा ने बताया कि उसका देवर वहाँ पैसे पहुँचाने का काम कर देगा। जब शिवलाल अस्पताल पहुँचा तो मैंने उसे गुरुजी का स्वरूप आईसीयू में तुलसी के तकिए के नीचे रखने को कहा। परन्तु चिकित्सकों इस बात के लिए मना कर रहे थे और बाधक बन रहे थे। मैं अपनी सहेली के देवर से, जो पैसे भेज रहे थे, बात की और पूछा कि क्या वह पता कर सकते हैं कि चिकित्सकों तुलसी का ठीक से उपचार कर रहें है, कहीं मूर्ख तो नहीं बना रहे। मेरी सहेली के देवर ने बताया कि वह इस अस्पताल में केवल एक ही अच्छे चिकित्सक को जानता है, जो उसका मित्र भी है। उसने चिकित्सक का नंबर भी मुझे दे दिया। चिकित्सक से बात करने के बाद पता चला कि वही चिकित्सक तुलसी का उपचार कर रहा था।

अस्पताल के कर्मचारियों ने मुझे ठीक से नहीं बताया। क्योंकि अब मेरे पास चिकित्सक का मोबाइल नंबर था, मैंने उसे गुरुजी का स्वरूप तुलसी के तकिए के नीचे रखवाने के लिए आग्रह किया और उसने इस बात की अनुमति दे दी। चिकित्सक ने मुझे बताया कि तुलसी वास्तव में बहुत गंभीर स्थिति में है।

हम सब गुरुजी से प्रार्थना करते रहे। अगले दिन तुलसी ने अपनी आँखें खोली और माता को पहचान लिया। उसके बाद दिन प्रतिदिन उसकी स्थिति में सुधार होता गया और वह स्वस्थ और प्रसन्न होती गयी। तुलसी ने मुझे बताया कि गुरुजी तुलसी को स्वप्न में दर्शन देते हैं। गुरुजी का बहुत बहुत धन्यवाद कि मैं छोटी सी लड़की की जान बचा पायी और यह सत्संग आप सब के साथ बाँट पायी।

गुरुजी ने मेरे पिता का ध्यान रखा

मेरे पिता मधुमेह के रोग से पीड़ित है और उनकी एक किडनी पूरी तरह से काम नहीं करती है। वह सिंगापुर से अपना इलाज करवा रहे हैं। इस हालत में भी वह पिछले पच्चीस साल से अपनी सैर की आदत रखे हुए है। परन्तु कुछ माह पहले जब दिल्ली में स्वाइन फ्लू फैला हुआ था, मेरे पिता बीमार पड़ गए। वह काम पर तो जा रहे थे परन्तु सैर नहीं कर पा रहे थे। मैंने अपनी माता से पिता के सैर न करने की शिकायत की और कहा कि वह सुस्त से होते जा रहें है। उन्हें अपनी सेहत के किये सैर अवश्य करनी चाहिए।

शुक्रवार का दिन था, मैं सत्संग के लिए गयी और मेरे पिता को लंगर प्रसाद खाना पड़ा। अगले दिन उन्होंने फिर लंगर खाया। जब मैं उनसे को सोमवार को मिली तो मैंने उनको स्वाइन फ्लू की जाँच कराने के लिए कहा। चिकित्सकों ने स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि कर दी। हम सब भयभीत हो गए क्योंकि उनकी की इस हालत में इस का होना ठीक नहीं था। अगले दिन शिवरात्रि थी और उनको अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।

शिवरात्रि के दिन मैं अपने घर के मंदिर में गुरुजी के स्वरूप को देख रही थी और रो रही थी क्योंकि मैं अपने पिता के लिए भयभीत हो रही थी। परन्तु गुरुजी हमारी बात बहुत जल्दी सुन लेते है। मैं अभी अपने मंदिर में ही बैठी थी जब गुरुजी की एक संगत नीरा ने मुझे फ़ोन किया और पूछा कि मैं बड़े मंदिर स्पेशल दर्शन के लिए जाना चाहूँगी। मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं आया। जब मैं दर्शन के लिए मंदिर पहुँची तो अभी लंगर शुरू नहीं हुआ था। मैंने अपने मन में गुरुजी को अपने पिता के लिए कुछ प्रसाद देने की प्रार्थना की। इतनी देर में एक भक्त वहाँ आये और उन्होंने मुझे बेर प्रसाद दे दिया। मैं प्रसाद को घर ले गयी और वह अपने पिता को भेज दिया।

अगले ही दिन मेरे उनको अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। गुरुजी के आशीर्वाद के कारण उन्हें स्वाइन फ्लू के दुष्प्रभाव से कष्ट नहीं उठाने पड़े। मेरी माता को, जो सदैव मेरे पिता के साथ रही, भी स्वाइन फ्लू का प्रभाव नहीं हुआ। ऐसी है गुरुजी की शरण! गुरुजी सदैव हमें अपने चरण कमलों में रखें।

गुरुजी ने मेरी जिंदगी की रक्षा की

इस साल मैंने गुरुजी का जन्म दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया। अगले दिन, जब मैं अपने लड़के को चिकित्सक के पास ले जा रही थी, तो रास्ते में मैं ड्राइवर के साथ गाड़ी में गुरुजी का सत्संग करती गयी। ज्यों ही मैं गाड़ी से उतरी, मैंने गुरुजी का लाकेट ड्राइवर को दे दिया। यह लाकेट मुझे छोटे मंदिर से मिला था।

जब मैं उतर कर अपने घर में भूतल से तहखाने की तरफ जा रही थी तो सीढ़ियों में मेरा पैर फिसल गया और मैं तहखाने तक लुढ़कती चली गयी। मेरी ठोड़ी सीढ़ियों में तीन बार लगी। उस समय मेरे पास एक शीशे की बोतल थी, जो गिरने से टूट गयी और शीशे के टुकड़े सीढ़ियों में बिखर गए। एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि मैं गयी, परन्तु सीढ़ियों के नीचे लुढ़कने के बाद मैं उठ कर खड़ी हो गयी और मैंने अपने आप को बिलकुल ठीक-ठाक पाया। केवल मेरी कमीज पर कुछ खून के धब्बे थे। मैंने अपने आप को अच्छी तरह से देखा कि कहीं मेरी कोई हड्डी तो नहीं टूट गयी है, परन्तु सब ठीक था, केवल मेरे हाथों और पैरों पर कुछ चीरे थे। गुरुजी की कृपा ने मुझे बचा लिया था। मुझे जल्दी समझ आ गया कि गुरुजी ने मेरे प्रमुख नकारात्मक कर्मों को ले लिया है। मैं यह सोच कर आज तक आश्चर्य चकित हूँ कि मैं बगैर किसी बड़ी चोट के कैसे रही। जय गुरुजी। गुरुजी का शुक्राना। गुरुजी सब की रक्षा करें।

(निम्नलिखित भाग जनवरी 2016 को जोड़ा गया है)

गुरुजी ने मेरे पति को डेंगू से और बेटे को चोट से बचाया

एक सोमवार, मेरे पति अनुज जब घर वापस आए तो उन्हें 104 डिग्री बुखार था। उस समय सारे शहर में डेंगू फैला हुआ था और मुझे शक हुआ कि शायद उन्हें भी डेंगू हुआ हो। जाँच की रिपोर्ट आने में चार दिन लगते परन्तु मैंने इंतज़ार नहीं किया।

अगली सुबह मैंने अनुज को जल प्रसाद देना शुरू कर दिया और साथ ही आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाइयाँ भी शुरू कर दीं। रिपोर्ट में डेंगू की पुष्टि हुई परन्तु मुझे एहसास हुआ कि गुरुजी हर कदम पर हमारा मार्गदर्शन कर रहे थे - नहीं तो मुझे कैसे यकीन हुआ कि अनुज को डेंगू था और मैंने उनका इलाज शुरू कर दिया? जैसा कि इस बीमारी में होता है, बुखार उतर गया और फिर उनकी प्लेटलेट की गिनती कम हो गई और वह और ज़्यादा बीमार महसूस करने लगे।

मैं बड़े मंदिर गई और अनुज के लिए रोटी और हलवा प्रसाद लेकर आई परन्तु उन्होंने वो नहीं खा पाए। अगले दिन उनके प्लेटलेट बहुत ज़्यादा गिर गए और चिकित्सकों ने उनको अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा। मेरे पति इसके लिए मान नहीं रहे थे और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैं बहुत डरी हुई थी और तभी एक मित्र, जो गुरुजी की संगत भी हैं, आए और उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि गुरुजी हमारे साथ थे और चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। हमने मेरे पति का अस्पताल में भर्ती होना टाल दिया और चिकित्सक अनुज को अगली सुबह भर्ती करने के लिए मान गए।

मैं सारी रात अनुज को जल प्रसाद और होम्योपैथी की दवाई देती रही। हालाँकि वो करीब-करीब बेसुध थे, मैं उन्हें सत्संग पढ़कर सुनाती रही। अगली सुबह जब प्लेटलेट की जाँच हुई तो उनकी गिनती दोगुनी हो गई थी! गुरुजी की कृपा से उनकी तबियत बेहतर होने लगी परन्तु डेंगू के कारण वह बहुत कमज़ोर हो गए थे।

हम 15 दिन बाद आश्रम गए और अनुज को अभी भी इतनी कमज़ोरी थी कि वह चल भी मुश्किल से पा रहे थे। मंदिर में लंगर करने के बाद वापस जाते समय वह बोले कि अब वह इतना अच्छा महसूस कर रहे थे कि लंबी दौड़ में भी भाग सकते थे।

मेरा बेटा गरम चाय से भी नहीं जला

घर में हम रोज़ गुरुजी की पूजा करते हैं। मेरे बच्चे गुरुजी का ग्रन्थ, 'लाइट ऑफ़ डिविनिटी' पढ़ते हैं और मेरा बेटा, कृष्णा, गुरुजी के स्वरूप के आगे दिया जलाता है। एक दिन कृष्णा का गला खराब था और उसे बुखार भी था। मैंने हम दोनों के लिए चाय बनाई और गुरुजी के ग्रन्थ के सत्संग पढ़ने के लिए बैठ गए। कृष्णा ने जब दिया जलाया तो उससे गलती से चाय को धक्का लग गया और उसकी बाँह पर गर्म चाय गिर गई। मैं चीख पड़ी और फौरन उसे स्नानघर में ले गई और उसकी बाँह पर ठंडा पानी डाला। उसकी पूरी बाँह लाल हो गई थी।

मैं बहुत घबराई हुई थी। बचपन में जब मैं एक बार जल गई थी तो मुझे एक महीना बिस्तर में रहना पड़ा था। परन्तु मैं यह देखकर हैरान थी कि कृष्णा ठीक था और अपने आप को आईने में निहार रहा था। जब मैंने उससे पूछा कि क्या उसकी बाँह जल रही थी तो वह बोला कि उसे बिलकुल पीड़ा नहीं हो रही थी। मुझे उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। यहाँ तक कि मेरी बेटी एकदम बोल पड़ी कि शुक्र है कि चाय ठंडी थी। परन्तु मैं जानती थी कि चाय बहुत गर्म थी।

यह गुरुजी का एक बहुत बड़ा चमत्कार था। गुरुजी हर छोटी और बड़ी दुर्घटना से हमारी रक्षा करते आए हैं। गुरुजी महान हैं और कुछ भी कर सकते हैं। मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ गुरुजी।

(निम्नलिखित भाग जुलाई 2016 को जोड़ा गया है)

गुरुजी ने यात्रा पर हमारी खुशियाँ और सामान लौटाया

गुरुजी हर जगह हैं। हाल ही में एक बार फिर हमें उनके सर्वव्यापी आशीर्वाद का एहसास हुआ। हम लंबे समय से स्पेन की यात्रा की योजना बना रहे थे और 28 मई को हमें निकलना था परन्तु 18 मई को मेरे बेटे कृष्णा को चेचक हो गई। शुक्र है कि हमने अपनी यात्रा पहले ही दो हफ्तों के लिए विलम्बित कर दी थी और अब हम 5 जून को जाने वाले थे। दो हफ्तों बाद कृष्णा ठीक हो गया। परन्तु अब मेरी बेटी को चेचक होने की सम्भावना थी क्योंकि चेचक की इन्क्यूबेशन की अवधि 15 दिनों की होती है। चिकित्सकों का कहना था कि मेरी बेटी को चेचक होने की 90 प्रतिशत सम्भावना थी और मैं हमारी यात्रा रद्द करने के बारे में सोचने लगी।

गुरुजी की एक संगत और मेरी सहेली शिवानी ने मुझे मेरी बेटी को बड़े मंदिर ले जाने का सुझाव दिया ताकि उसे शबद, लंगर, जल और चाय प्रसाद के माध्यम से गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हो। मैंने उसकी सलाह मानी। जिस दिन हमें स्पेन के लिए निकलना था, हम हैरान हुए यह जान कर कि हमारे यहाँ काम करने वाली, गीता, को चेचक हो गई थी (उसे ठीक होने में तीन हफ्ते लग गए)। हम अपनी यात्रा के लिए निकले और फ्रैंकफर्ट से होते हुए स्पेन पहुँचे।

स्पेन पहुँचने में हमें 15 घंटे लग गए - और फिर हमें अपने सामान के लिए इंतज़ार भी करना पड़ा। अपने सामान के लिए हमने कन्वेयर बेल्ट पर दो घंटे इंतज़ार किया परन्तु हमारा सामान नहीं आया। या तो हमारा सामान गुम हो गया था या फिर फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर छूट गया था। बच्चे बहुत निराश हो गए। मेरे पति अनुज शिकायत काउंटर पर पूछताछ करने गए और हम पूरी श्रद्धा के साथ गुरुजी का मंत्र जाप कर रहे थे। हम आधे घंटे तक मंत्र जाप करते रहे और तब अनुज आए और बोले कि हमें एक और कन्वेयर बेल्ट पर जाकर अपना सामान ढूँढ़ना चाहिए जहाँ तुर्की के एक विमान का सामान आ रहा था। वहाँ मेरी बेटी, नन्दिनी, की नज़र हमारे सामान पर पड़ी।

हम जानते थे कि ऐसा सिर्फ गुरुजी कर सकते थे और हमें यह जानकर आश्वासन मिला कि गुरुजी चाहते थे कि हम खुश हों। हवाई यात्रा और सामान के इंतज़ार से हम बहुत थक गए थे परन्तु अब हमारी सारी थकान गायब हो गई और हम बहुत खुश थे। ऐसी होती है गुरुजी की लीला। वह हर जगह आपका ख्याल रखते हैं और पूरी तरह से ऐश भी कराते हैं। बार्सिलोना में एक गिरजाघर में हमें गुरुजी की उपस्थिति का एहसास हुआ। हमने वहाँ मोमबत्ती जलाई परन्तु हमें यह नहीं पता था कि कैसे प्रार्थना करें; हमने बस यही कहा: "जय गुरुजी।"

(निम्नलिखित भाग सितम्बर 2016 को जोड़ा गया है)

गुरुजी ने मेरे द्वारा मेरे पिता को नया जीवन दिया

तीन साल पहले मेरे पिता को गुर्दे की गंभीर परेशानी हुई और मेरे भाई ने उनकी रिपोर्ट सिंगापुर में चिकित्सकों को दिखाईं। चिकित्सकों ने कहा कि ट्रांसप्लान्ट के लिए हम दो साल तक रुक सकते थे परन्तु हमें दाता (डोनर) ढूँढ़ना शुरू कर देना चाहिए। मेरी बुआ ने अपना गुर्दा देने का निश्चय किया और हमने उनकी जाँच कराई। इलाज के लिए मेरे पिता हर चार महीने के अंतर पर सिंगापुर जाते रहे। साल 2016 में उनके ट्रांसप्लान्ट का समय आ गया।

उस साल जून के महीने में मैं अपने माता-पिता के घर रहने गई। एक शाम मैं बड़े मंदिर सेवा करने के लिए गई परन्तु मुझे कहा गया कि सेवा नहीं थी। मैं निराश हो गई और एक कोने में बैठी हुई थी जब एक संगत ने आकर मुझे चाय प्रसाद दिया। उन्होंने मेरे पिता के बारे में पूछा और मुझे सलाह दी कि अभी मैं सेवा के बारे में नहीं सोचूँ और अपने परिवार और बच्चों का ख्याल रखूँ। परन्तु मैंने इस बात की ज़िद्द की कि मैं कम-से-कम उस दिन तो सेवा कर सकूँ। वह अंकल मुझे रसोईघर में लेकर गए और उन्होंने मुझे रोटी प्रसाद सेवा दी जो मैंने पूरी निष्ठा के साथ की। उसके बाद मैंने रसोई भंडार में भी सेवा की परन्तु मुझे उसमें मज़ा नहीं आया। मंदिर से बाहर निकलकर मैंने अपने पति को कहा कि मंदिर में सेवा करने की मेरी इच्छा अब खत्म हो गई थी। मैं बहुत रोयी और साथ ही मुझे एहसास हुआ कि उन संगत ने ठीक ही कहा था।

अगली सुबह, गुरुजी के संकेत देने पर, मैंने अपनी डोनर जाँच कराई। मेरे पति ने मुझसे कोई सवाल नहीं किये। मेरी सारी रिपोर्ट ठीक आईं और मैंने अपनी माँ को वो सब दे दीं ताकि अगली बार जब वे जाँच-पड़ताल के लिए जाएँ तो उन्हें अपने साथ लेकर जाएँ। 12 अगस्त 2016 को सिंगापुर में चिकित्सकों ने कहा कि अब ट्रांसप्लान्ट करने की ज़रूरत थी। गुरुजी की कृपा से मेरी रिपोर्ट बिलकुल ठीक थीं और चिकित्सकों ने मेरी माँ को मुझे सिंगापुर बुला लेने के लिए कहा। मुझे एक दिन में वीज़ा मिल गया और मैं सिंगापुर गई।

मेरे भाई और अन्य रिश्तेदारों ने भी गुर्दा दान करने के लिए कोशिश की परन्तु मैं जानती थी कि मेरे पिताजी के लिए यह मेरी सेवा थी। मैं गुरुजी से सेवा माँगा करती थी और गुरुजी ने आखिरकार मुझे इतनी निस्वार्थ सेवा प्रदान की। मेरी डाक्टरी, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जाँच हुई परन्तु मैं जानती थी वो सब ठीक निकलेंगी क्योंकि मेरा गुर्दा दान करना गुरुजी का हुक्म था। ट्रांसप्लान्ट की तारीख एक महीने बाद की तय की गई। मैं दिल्ली वापस आ गई और मेरे करीबी मित्र और गुरुजी की संगत ने मेरा इतना ख्याल रखा कि वो अविश्वसनीय है। मेरे ट्रांसप्लान्ट ऑपरेशन से दो हफ्ते पहले मुझे छोटे मंदिर जाने का निमंत्रण मिला। मुझे दिव्य दर्शन प्राप्त हुए और मुझे अपने सत्संग सुनाने के लिए भी कहा गया। मैंने बहुत धन्य महसूस किया।

मेरे ऑपरेशन से एक हफ्ता पहले मैं दिल्ली में गुरुजी की संगत से घिरी हुई थी और मुझे उनसे बहुत प्यार मिला। परन्तु ऑपरेशन से कुछ दिन पहले मेरी बेटी नन्दिनी को घुटने में चोट लग गई और चिकित्सक उसका ऑपरेशन करना चाहते थे। मैं पूरी तरह से टूट गई। मैंने गुरुजी से कहा कि मैं स्वयं कोई भी दर्द सह सकती थी परन्तु अपने बच्चों का नहीं। मुझे लगता है कि गुरुजी मेरा इम्तिहान ले रहे थे, इसलिए मैंने तय किया कि इस समय मेरा सारा ध्यान अपने पिता पर होना चाहिए कहीं और नहीं। और फिर नन्दिनी को हम जिस पाँचवे चिकित्सक के पास लेकर गए उसने कहा कि अब नन्दिनी का घुटना बेहतर था इसलिए ऑपरेशन करने की कोई ज़रूरत नहीं थी।

उस दिन सोमवार था और गुरुजी का धन्यवाद करने के लिए मैं मंदिर गई। अभी मैंने प्रसाद का एक निवाला ही लिया था जब एक सेवादार ने मुझे अंदर बुलाकर मेरे ऑपरेशन के बारे में पूछा। मैं बहुत हैरान हुई। वह मुझे रसोईघर में लेकर गए, एक चुन्नी दी और उनके साथ दरबार में चलने को कहा। मुझे लगा कि शायद वह मुझे वहाँ बैठने के लिए कहेंगे या मेरे पिता के लिए प्रसाद देंगे। परन्तु हैरानी की बात है कि उन्होंने मुझे गुरुजी का जल भोग उठाकर रसोईघर में वापस ले जाने को कहा। मैं बहुत भावुक हो गई कि मेरे ऑपरेशन से पहले गुरुजी ने इस तरीके से मुझे आशीर्वाद दिया।

इस के बाद अभी और भी कुछ होना था। मंगलवार को मैंने लंगर किया और शुक्रवार को मुझे अपने ऑपरेशन के लिए जाना था जिससे पहले बृहस्पतिवार को मैं आश्रम गई। मेरी गुरु बहन अमृता मुझे अपने साथ लेकर गई। हम गौरव अंकल से मिले और उन्होंने गुरुजी के आशीर्वाद से भरा हुआ सोने का एक सुंदर लॉकेट दिया। उन्होंने मुझे वो लॉकेट ऑपरेशन से पहले पहनने के लिए और ऑपरेशन के कमरे में साथ ले जाने को कहा।

सिंगापुर में सब ठीक चल रहा था। ऑपरेशन सोमवार को रखा गया और मुझे रविवार को अस्पताल में भर्ती होना था। हमारे पास समय था इसलिए हम सिंगापुर में सत्संग में जा सके जहाँ हमने श्री रघुबीर अंकल के सुंदर सत्संग सुने। यहाँ तक कि, अस्पताल में भर्ती होने से एकदम पहले मैंने लंगर भी किया। ऑपरेशन का समय सुबह 9:30 बजे (भारत का समय) निश्चित किया गया। परन्तु दिल्ली में मेरी भाभी श्रेया ने दोपहर 12 बजे सत्संग रखा था। इसलिए गुरुजी की दिव्य मर्ज़ी के अनुकूल, ऑपरेशन का समय बदल कर दोपहर 12 बजे (भारत का समय) हो गया - ऑपरेशन के कमरे में कुछ तकनीकी समस्या हो गई थी। चिकित्सकों ने मुझे लॉकेट ऑपरेशन के कमरे में ले जाने की आज्ञा दे दी और उसे बिलकुल मेरे सिर के साथ रख दिया। मैंने दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखा और मंत्र जाप करने लगी। ऑपरेशन बिना किसी कठिनाई के हुआ और उसमें दो घंटे लगे - बिलकुल उतना समय जितना दिल्ली में सत्संग रखा गया था। जिस समय ऑपरेशन खत्म हुआ, बाहर बैठे एक रिश्तेदार को गुलाबों की खुशबू आई।

मेरे पिता को भी निस्संदेह गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। अपने ऑपरेशन के सिर्फ आधे घंटे बाद उन्होंने पेशाब किया जिससे चिकित्सक बहुत खुश हुए। चिकित्सक इस बात से बहुत खुश थे कि गुर्दा उत्तम तरीके से मेल खा रहा था। मुझे बहुत लोगों के संदेश आए कि मैंने कितनी बहादुरी का काम किया था। परन्तु सच्चाई तो यह थी कि एक महीने के लिए मेरा दिमाग बिलकुल बंद हो गया था और मैं सिर्फ गुरुजी के निर्देश का पालन करती जा रही थी। अपने पिता के नये जीवन का मैं एक छोटा सा माध्यम बनी। गुरुजी हर क्षण आशीर्वाद देते हुए हमारे साथ हैं। मैं गुरुजी और उनकी प्यारी संगत का जितना धन्यवाद करूँ वो कम होगा। गुरुजी के आशीर्वाद और उनकी संगत का प्यार - जो गुरुजी का ही प्रेम है - के वजह से ही हम ज़िन्दगी की इतनी मुश्किल घड़ी इतनी आसानी से पार कर सके। गुरुजी हम से जो भी कराते हैं, बहुत आराम से और अनोखे ढंग से कराते हैं। हम सब आपसे प्रेम करते हैं गुरुजी!

ममता अग्रवाल, एक भक्त

सितम्बर 2016