मन्जीत सिंह, एक बेफिक्र सरदार, के लिए धर्म कोई खास मायने नहीं रखता था। इसलिए जब एक दोस्त उसे गुरुजी से मिलवाने के लिए चंडीगढ़ ले गया, उसने सोचा कि वह बस जल्दी से उनके दर्शन करेगा। ज़्यादा से ज़्यादा 15 मिनट के लिए। इसके विपरीत, वह ज़मीन पर तीन घंटे बैठा रहा, अपनी पीठ की तकलीफ से परेशान हुए बिना। गुरुजी के शांतिदायक प्रभुत्व से वह बहुत प्रभावित हुआ। मन्जीत कहता है कि उनकी उपस्थिति में शान्ति की हुकूमत होती है। उनकी अंदरूनी शान्ति की भेंट से मैं खुद को दूर नहीं कर पाया। मन्जीत के लिए हैरान कर देने वाली अभी और चीज़ें होनी बाकी थीं। गुरुजी उससे बोले कि वह उसकी राह देख रहे थे, इक्बाल सिंह के बेटे की।
गुरुजी बोले कि वह मन्जीत के पिताजी से सालों पहले मिले थे जब मन्जीत छोटा था। गुरुजी कैसे जानते थे कि मन्जीत इक्बाल सिंह का बेटा है, यह अभी भी एक पहेली है। वह जानते थे कि डायबिटीज़ की वजह से मन्जीत ने व्हिस्की छोड़ दी थी। और उन्होंने मन्जीत को एक हफ्ते में 2 पेग व्हिस्की पीने को कहा। वह डायबिटीज़ के रोगी को व्हिस्की पीने को कह रहे थे! परन्तु मन्जीत अब डायबिटीज़ का रोगी नहीं रहा था - आगे होने वाले परीक्षण से यह स्पष्ट हो गया था। 'मेरी ब्लड शुगर की परेशानी मानो हवा में गायब हो गई थी, बस ऐसे ही और मेरी स्लिप डिस्क की परेशानी भी। ऐसा लगता था मानो मुझे यह परेशानियाँ कभी थी ही नहीं।'
आगे और भी बहुत कुछ होना था। मन्जीत के दूसरे बेटे ने अलाहाबाद में कम्प्यूटर कोर्स में एडमिशन के लिए आवेदन दिया हुआ था। हफ्ते निकल गए और स्वीकृति (या अस्वीकृति) की चिठ्ठी अभी तक नहीं आई थी। बेचैन मन्जीत और उसका बेटा गुरुजी के पास गए और गुरुजी ने बेटे को एक पाँच तोले का तांबे का कड़ा पहनने को कहा। 'ठीक उतने वज़न का कड़ा हमने पूरे शहर में ढूँढ़ा। अंत में हमें वो मिला। अगले दिन कोरियर से चिठ्ठी आई जिसमें मेरे बेटे को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। जब हम वहाँ गए तो हमें पता चला कि दिल्ली ज़ोन की मेरिट लिस्ट में उसने टॉप किया था। मेरे बेटे का मानना है कि यह गुरुजी ने किया। और वह बिलकुल सही है; ऐसा मन्जीत का कहना है।
मन्जीत के बहनोई (जो पटियाला में रहता है) की आँखों की रोशनी जा रही थी। उनकी आँखों का तरल पदार्थ सूख गया था। मन्जीत उसे गुरुजी के पास लेकर गया, और गुरुजी ने उसे टॉफी प्रसाद दिया। 'वो टॉफी खाने के लिए मुझे मेरे बहनोई को मनाना पड़ा।' मैं खुश हूँ कि मैंने ऐसा किया क्योंकि एक हफ्ते में उसकी आँखों की रोशनी में सुधार आया, मन्जीत बताते हैं। उसके बहनोई ने पटियाला से फोन करके बताया कि उसके चिकित्सक ने निश्चित रूप से कहा था कि उसकी आँखों की रोशनी सामान्य हो गई थी, और वह अभी भी समझने की कोशिश कर रहे थे कि ऐसा चमत्कार कैसे और क्यों हुआ था।
मन्जीत सिंह, सीनियर मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक
अप्रैल 2008