मैंने अपने भाई हरमिंदर सिंह से गुरुजी के बहुत गुणगान सुने थे। 2003 में जब मेरा तबादला जयपुर हुआ, मैं अपने भाई के साथ गुरुजी के यहाँ गया। संगत में मैंने बहुत लोगों के अनुभव सुने कि कैसे गुरुजी ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया था।
इन सत्संग से मुझे उम्मीद मिली, और मैंने गुरुजी से मेरा दाहिना हाथ ठीक करने की प्रार्थना की। एक दुर्घटना में मेरा हाथ बहुत गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था और शीत ऋतु में उसमें बहुत दर्द होता था या कुछ काम करने के बाद, खासकर लिखने के बाद, उसमें बहुत दर्द होता था। मुझे गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और मुझे अगली बार ताम्र का लोटा लाने का निर्देश मिला।
मैं ताम्र का लोटा लेकर गुरुजी के आगे बैठा था कि मैंने अपने हाथ में तीक्ष्ण लहर और ताकत की वृद्धि महसूस की। अब मैं अपना हाथ बिना किसी दर्द के हिला सकता था।
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मुझे काफी यात्रा करनी होता है और मैं दुर्घटना प्रवृत्त हूँ, किन्तु जबसे मैं गुरुजी से मिला हूँ मैं सुरक्षित महसूस करता हूँ। एक बार, करीब रात को दस बजे, मैं अजमेर से जयपुर आ रहा था, और गाड़ी की पिछली सीट पर आराम कर रहा था। अचानक मुझे किसी ने उठाया और मैंने चिल्लाकर ड्राइवर को सावधान किया कि सड़क पर एक ट्रक खड़ा है। ड्राइवर ने फ़ौरन ही ब्रेक लगायी और दुर्घटना टल गयी। मैं समझ गया कि गुरुजी ने ही मेरे ज़हन में वो शब्द डाले थे कि मैं ड्राइवर को चौकन्ना कर सकूँ।
मैं हमेशा यह महसूस करता हूँ कि गुरुजी की मुझ पर बहुत कृपा है और उन्होंने मुझे बहुत खुशी और संतोष प्रदान किये हैं। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैं रोज़ जालंधर में गुरुजी के मंदिर जा पाता हूँ।
मनमोहन जे एस कुकरेजा, इंडिअन ऑइल कॉरपोरेशन, जालंधर
जुलाई 2007