जौहर दम्पति पाँच साल पहले न्यू यॉर्क से भारत वापस आए थे। उनकी वापसी तनाव रहित नहीं थी और ना ही स्नेहमय जैसा वे सोच कर आए थे। उन दिनों मीरा जौहर अक्सर अपनी असंतुष्टता प्रकट करतीं कि उनका मार्ग-दर्शन करने के लिए कोई नहीं था।
यह सब अगस्त 2006 में बदल गया। उनके पड़ोसी, श्री और श्रीमती भाटिआ जो जौहर दम्पति की तरह ही प्रॉपर्टी का काम करते थे, उन्हें उनके पास चलने को कह रहे थे जिन्हें वह बस गुरुजी कहकर सम्बोधित करते थे। अनिल जौहर को समझ नहीं आ रहा था कि इस प्रस्ताव के बारे में वो क्या करें।
अन्त में, जौहर दम्पति एक शाम उनके साथ चलने के लिए मान ही गए। भाटिआ दम्पति के साथ जाते समय मीरा अपने आठ साल के जुड़वा बच्चों के बारे में सोच रही थी जिन्हें वो घर पर ही छोड़ कर जा रहे थे। वह अपने पति से बोलीं कि उन्हें श्रद्धा के साथ जाना चाहिये, और भाटिआ दम्पति जो उनके भले के लिए कह रहे थे, वो उनको वैसे ही सुनना चाहिये जैसे वो अपने माता-पिता की सुनते।
मीरा को डाइबिटीज़ थी और यह बात भाटिआ दम्पति नहीं जानते थे और उन्होंने जौहर दम्पति को कहा कि गुरुजी के यहाँ जो चाय और लंगर प्रसाद मिलता है, उसे ग्रहण ना करना अनुपयुक्त होगा।
इसलिए थोड़ी घबराहट के साथ वो एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के दरबार गए। मीरा ने चाय प्रसाद और फिर लंगर ग्रहण किया जिसमें दाल और रोटी के साथ लडू भी थे। लंगर करने के बाद मीरा को पेट में दर्द होने लगा। एक घंटे तक मीरा को पेट में दर्द रहा। जब जौहर दम्पति गुरुजी के पास गए तो गुरुजी उनसे बोले: "आया करो, ऐश करो!" एम्पायर एस्टेट से बाहर निकलकर भाटिआ दम्पति ने उन्हें कहा कि वे भाग्यशाली थे कि गुरुजी ने पहली बार में ही उनसे बात की थी। श्रीमती जौहर इस बात से प्रभावित नहीं हुईं; वह यह सोच रही थीं कि उनका दर्द कब ठीक होगा।
रात को वो सो नहीं पाईं और गुरुजी के दरबार के बारे में सोचती रहीं, उन्हें अंतर्ज्ञान हो रहा था कि वो कोई "विशेष" स्थान पर होकर आए थे। सुबह उठकर उन्होंने सबसे पहले अपनी ब्लड शुगर जाँची तो पाया कि वो 100 तक नीचे आ गई थी। उन्हें पता था कि ऐसा होना सम्भव नहीं था, क्योंकि घर पर एक रोटी खाने पर भी उनकी ब्लड शुगर बढ़ जाया करती थी।
अगले दो-तीन बार जब मीरा एम्पायर एस्टेट गईं तो अपनी ब्लड शुगर जाँचतीं और हर बार उसे कम पातीं। यहाँ तक कि उनकी ट्राइग्लीसराईड की मात्रा भी, जो 700 तक पहुँच गई थी, अब गिर कर 120 पर आ गई थी और अब सामान्य स्तर पर थी। अन्त में, वह समझ गईं कि गुरुजी के आशीर्वाद से उसकी ब्लड शुगर नीचे आई थी और उसने यह जाँच करना बंद कर दी।
उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसका रक्त छानकर साफ कर दिया गया हो। और यह केवल एक अनुभूति नहीं थी, ऐसा वास्तव में हो रहा था। प्रायः मीरा की रक्त जाँच बड़ी कठिनाई से हुआ करती थी, नस ढूँढ़ने में बहुत परेशानी होती थी, बार-बार ढूँढ़नी पड़ती थी, और जो रक्त निकलता वो गाढ़ा होता था। गुरुजी के यहाँ जाने के बाद, रक्त निकालने के लिए नस पहले प्रयास में ही मिल जाया करती और रक्त आसानी से निकलता।
मीरा को माइनर थैलसीमिया भी थी। उनकी हैमोग्लोबिन की मात्रा कम थी और वह हमेशा थकी-थकी रहतीं। पर अब इन शारीरिक समस्याओं के लिए वह पहले से कम दवाइयाँ ले रही थीं। आज, वह एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रही हैं और एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपने सारे काम और ज़िम्मेदारियाँ आसानी से पूरी कर पा रही हैं।
रोचक बात यह है कि भाटिआ दम्पति यह जानते ही नहीं थे कि मीरा बहुत बीमार थीं; यहाँ तक कि अनिल जौहर भी बीमार थे। उन्हें साइनस की समस्या थी और उनकी हालत इतनी खराब थी कि वह ए सी चलाकर बैठ ही नहीं पाते थे। गुरुजी के यहाँ दो-तीन महीने जाने के बाद, अनिल ने पाया कि उनकी साइनस की समस्या ठीक हो गई थी—अपनी पत्नी के स्वास्थ को लेकर वो इतने चिन्तित थे कि उनका इस बात पर ध्यान ही नहीं गया था!
पंक्चर हुए पहिये के साथ सफारी सकुशल रही
जनवरी 2007 में जौहर दम्पति कुछ और परिवारों के साथ जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क घूमने गए। जंगली जानवरों को देखने की इस्छा से वो दो गाड़ियों में जंगल गए। पर वो निराश हुए और बच्चों ने तो यहाँ तक कह दिया कि वहाँ से ज़्यादा जानवर तो उन्होंने गुड़गाँव में देखे थे।
जब वे अपने रहने की जगह पर वापस पहुँचे तो पहरेदार ने टिप्पणी की कि वो कितने भाग्यशाली थे कि उन्हें कोई जंगली जानवर नहीं दिखा था। उनके जीप के पिछले पहिये में एक लंबी कील के कारण पंक्चर हो गया था। वह इस बात से बेखबर थे; फिर भी पंक्चर वाले पहिये के साथ एक कठोर इलाके में तीन घंटे की यात्रा में उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई।
गुरुजी ने जौहर परिवार को बचाया था।
मीरा को प्रेम पत्र
जौहर दम्पति को गुरुजी के यहाँ जाते हुए कुछ समय हो गया था जब मीरा का ध्यान इस बात पर गया कि गुरुजी उन्हें श्रीमती जौहर कहकर बुलाते थे जबकि बाकी महिलाओं को "आंटी" कहते थे। एक शाम वह दर्शन हॉल के बाहर बैठकर इसके बारे में सोच रही थीं और अपने पति को बोलीं कि उन्हें लगता था कि गुरुजी उनसे प्यार नहीं करते और वो उनके प्रिय लोगों में से एक नहीं थीं।
कुछ मिन्टों बाद जब आज्ञा लेने का समय हुआ, गुरुजी ने मीरा को एक लिफाफा देते हुए कहा, "मीरा आंटी, लव लेटर (मीरा आंटी, प्रेम पत्र)।" अन्तर्यामी गुरु ने अपने भक्त की मन की बात पढ़ ली थी। एक कार्यक्रम के न्यौते को प्रीतिकर ढंग से "प्रेम पत्र" बुलाकर उन्होंने मीरा के विचार का जवाब दे दिया था। उनके प्रेम में मीरा के सारे संशय गायब हो गए।
मीरा को यह अनुभूति भी हो गई कि गुरुजी के साथ रिश्ता शब्दों पर आश्रित नहीं था; वो तो अवर्णीय प्रेम के माध्यम से कायम रहता है। मीरा का मानना है कि गुरुजी हर जगह हैं, शारीरिक रूप में उनके पास होना आवश्यक नहीं था। गुरुजी एकमात्र दाता हैं, जिन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। उनका क्षितिज असीमित है क्योंकि वह भगवान हैं। उन्हें केवल प्रेम और श्रद्धा चाहिए और उनका आशीर्वाद सबके लिए है।
जौहर दम्पति के यहाँ पावन सत्संग
गुरुजी सर्वशक्तिमान हैं, यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया जब जौहर दम्पति ने गुड़गाँव में अपने घर में सत्संग रखा। मीरा बताती हैं:
हमने इस बड़े उत्सव का आयोजन अपने घर के बेसमेंट में किया। एक दिन पहले जब मैं सत्संग की तैयारी बड़ी उत्सुकता से कर रही थी तो मैं अपने पति से बोली कि कितना अच्छा हो अगर सत्संग के समय गुरुजी की उपस्थिति की अनुभूति हो जाए। गुरुजी ने मेरी इच्छा सुनी और उसे पूरा किया . . . .
सत्संग शाम को 5 से 7 बजे था; परन्तु कुछ संगत 4:25 के पर ही आ गई। संगत के आते ही हमें पूरे घर में गुरुजी की सुगन्ध आई। हम बहुत खुश हो गए। परन्तु, यह तो अभी प्रारंभ था। गुरुजी ने हमारे लिए एक सुन्दर और अविस्मरणीय शाम का आयोजन किया था।
बेसमेंट हॉल में हमने गुरुजी की तस्वीर लगाई हुई थी। उनके दर्शन के लिए हम गुरुजी की तस्वीर को घेर कर खड़े थे जब हमने देखा कि गुरुजी के माथे पर एक विशिष्ट त्रिशूल (भगवान शिव का चिह्न) बन गया था। त्रिशूल त्रिविमीय (3 डी) था और रोशनी से जगमगा रहा था। हम स्तब्ध थे। भगवान ने हमारे घर में अपनी पावन उपस्थिति की अनुभूति कराकर हमें धन्य कर दिया।
जल्द ही संगत पहुँचने लगी और गुरुजी की आरती की गई। सब बड़े प्रेम से सत्संग का हिस्सा बने। फिर लंगर के बाद संगत ने जाना आरम्भ किया। देर शाम को, जब कुछ ही लोग वहाँ रह गए थे, हमने फिर एक चमत्कार देखा; गुरुजी की एक और तस्वीर पर, जो घर की निचली मंज़िल पर थी, एक सुन्दर और सुस्पष्ट शिवलिंग दिखाई दे रहा था। हमारे लिए यह एक और अकथनीय, अविस्मरणीय और विशेष पल था!
आज अगर कोई मुझसे पूछे कि क्या मैंने भगवान को देखा है तो मैं तुरंत बोल दूँगी कि हाँ, मैंने देखा है। वह मेरे एकमात्र आश्रय हैं, स्वयं दिव्यता, हमारे प्यारे गुरुजी। उन्होंने हमें अपना आशीर्वाद और अनमोल प्रेम दिया और मुझे और मेरे परिवार को अपनी शरण में तब लिया जब मैं एक स्वस्थ जीवन के लिए जूझ रही थी। उनकी कृपा मेरे ऊपर हुई और मुझे उनका प्रेम भरा आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
गुरुजी ने संगत द्वारा संदेश भेजा
गुरुजी सर्वव्यापी हैं। वह अभी भी अपनी संगत के साथ हैं और अपने हर भक्त के लिए विशेष प्रबंध की योजनाएँ करते हैं। उनके तरीके भले ही अलग हों, पर उनसे मानव जाति का कल्याण ही होता है। गुरुजी हमेशा कहते थे, "कुछ भी संयोग से नहीं होता।" गुरुजी के चरण कमलों में आने के बाद मैं पूरी तरह से स्वस्थ और तंदुरुस्त अनुभव कर रही थी, पर बायीं ओर जो मुझे स्पॉन्डिलाइटिस का कष्ट था, वो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था। दर्द मेरी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन गया था, पर मैं इसके बारे में कभी कुछ नहीं बोली क्योंकि गुरुजी ने जो हम पर मेहर की थी, उनके सामने यह कुछ नहीं था।
एक बार हम मंदिर जाने के लिए अपने घर से चले। अचानक मुझे लगा जैसे मेरे सिर के ऊपर से मेरी गर्दन की बायीं ओर कोई गहन और गाढ़ा द्रव पदार्थ बहता हुआ आ रहा था। मुझे लगा कि मुझे ब्रेन हेमोरेज हो रहा था और मैंने अपने पति को मुझे अस्पताल ले जाने को कहा। चिकित्सकों को पहले से ही अपेक्षा थी कि ऐसा कुछ हो सकता था, पर वो गुरुजी की शरण में आने से पहले की बात है। मैंने दृढ़ता से निश्चय किया कि अस्पताल जाने के बजाय मैं मंदिर जाऊँगी। मंदिर जाते समय हम बिलकुल चुप थे और गाड़ी में सन्नाटा था। मंदिर पहुँचते ही मैंने जोशी अंकल का सत्संग सुना। उन्होंने स्पष्ट रूप से संगत को बताया कि कैसे उनकी जानकारी के बिना गुरुजी ने उन्हें अमृत दिया और उनकी लम्बे समय से चल रहे स्पॉन्डिलाइटिस के कष्ट का निवारण किया था। उनको भी सिर से एक गाढ़ा द्रव पदार्थ बहने का अनुभव हुआ था। यद्यपि उस समय मुझे यह अनुभूति नहीं हुई कि यह सत्संग मेरे लिए था, जैसे ही मैं घर पहुँची तो मैं बहुत खुश हो गई क्योंकि मेरे बायें कंधे और बाँह का दर्द अब नहीं था। गुरुजी के तरीके अद्भुत होते हैं। उन्होंने मेरा उपचार किया और नीरवता से सत्संग के माध्यम से मुझे इस बात से अवगत भी करा दिया।
गुरुजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं
गुरुजी हमारा जीवन सहजता से चलाते आ रहे हैं। हम सबको यह अनुभूति होती है कि हमें कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता। 8 सितम्बर 2008 को मैंने ग्रेटर कैलाश मार्किट जाने का सोचा था। क्योंकि हम गुड़गाँव में रहते हैं, हमारा दिल्ली जाना अधिक नहीं हो पाता था और खरीददारी के लिए दिल्ली जाने को लेकर मैं बहुत उत्सुक थी। पर उसी सुबह को मुझे स्पॉन्डिलाइटिस का असहनीय दर्द हुआ। ग्रेटर कैलाश जाना तो अब सम्भव ही नहीं था; और उसके स्थान पर मुझे उपचार के लिए आरटीमिस अस्पताल जाना पड़ा। मैंने गुरुजी से पूछा कि क्या मैं कुछ गलत कर रही थी जिसके लिए मुझे यह कष्ट उठाना पड़ रहा था (यद्यपि गुरुजी ने इसका उपचार पहले ही कर दिया था)। पूरा दिन मैं रो रही थी और मन में गुरुजी से बात किए जा रही थी, पर मुझे कोई जवाब नहीं मिला।
देर शाम को हमने समाचार देखा कि ग्रेटर कैलाश मार्किट में बम्ब विस्फोट हुए थे। क्योंकि मैं बहुत दर्द में थी, मैं इस बात का परस्पर सम्बन्ध नहीं कर सकी। एक पूरा सप्ताह निकल गया। मैं अस्पताल जाती रही पर मुझे ना के बराबर आराम मिला। सप्ताह के अंत में मंदिर से वापस आते समय हमने गुरुजी की सी डी के बजाय रेडिओ चलाया। उसमें कैलाश खेर का गाना चल रहा था जिसके बोल थे, "अल्लाह के बन्दे हँस दे, दर्द भी तेरा काम आएगा।" (यह गाना है - टूटा, टूटा एक परिंदा ऐसा टूटा)। मैं और मेरे पति सोच में पड़ गए कि क्या इसमें हमारे लिए कोई संदेश था: मुझे जो इतना दर्द हुआ था वह मेरी भलाई के लिए था, क्योंकि अगर मुझे वह दर्द नहीं होता तो मैं उस दिन वो बम्ब विस्फोट की जगह आवश्यक जाती और वो तो बहुत बड़ा अनर्थ साबित होता। बाद में मुझे पता चला कि गुरुजी ने और भक्तों को भी अन्य माध्यमों से ग्रेटर कैलाश जाने से रोका था। जहाँ तक मेरे स्पॉन्डिलाइटिस का सवाल उठता था, वह पूरी तरह से ठीक हो गया। अब मैं जानती हूँ कि दर्द और दवा दोनों ही गुरुजी की देन हैं।
गुरुजी के साथ हमारे असंख्य अनुभव हैं और कितनी बार तो हमें पता ही नहीं चलता है कि गुरुजी कैसे हमारा बचाव करते हैं। यह एक यात्रा है जो हम सभी कर रहे हैं। एक बार हम गुरुजी को समर्पण कर लें और उन्हें अप्रतिबंधित प्रेम करें तो हमें गुरुजी से चमत्कारी और अविश्वसनीय आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। उनके आशीर्वाद अपार हैं। परन्तु वह हमेशा इस बात पर कहते थे कि हमें उनसे कुछ नहीं माँगना चाहिए, क्योंकि वह भगवान हैं और जानते हैं कि हमारे कब क्या आवशयकता है।
उनके चरण कमलों में स्वर्ग है। भगवान स्वयं धरती पर आए और हमारे बीच रह रहे हैं। गुरुजी भगवान हैं: GOD - G से गिवर (देने वाले); O से ओम्नीप्रेसेंट (सर्वव्यापी); और D से डिवाइन (दिव्य)।
मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि आप आँखें बंद करेंगे तो उनसे बात कर पायेंगे। वह अपने सब भक्तों के अन्दर ही रहते हैं। वह हमारे बुरे कर्मों को साफ करके उनकी पीड़ा कम कर देते हैं। इसके परिणाम स्वरूप, वो नकारत्मकता को सकारत्मकता में परिवर्तित कर देते हैं जिसके कारण हम मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठते हैं। उनके दिव्य हस्तक्षेप से ना केवल हमारा जीवन बदल जाता है साथ ही उनका भी जो हमारे प्रिय हैं। मैं आदरपूर्वक गुरुजी के आगे सिर झुकाकर प्रणाम करती हूँ और उनसे प्रार्थना करती हूँ कि मुझे और मेरे परिवार को सदा अपनी शरण में रखें।
मीरा जौहर, एक भक्त
जून 2010