जब मीरा गुरुजी से मिलीं, उनको रीढ़ की हड्डी में अत्यन्त पीड़ा थी। उनकी रीढ़ के जोड़ आपस में जुड़ गये थे, और हड्डियों के बीच में फ़ासले आ गये थे। उन्हें ऐसा प्रतीत होता था जैसे कोई स्नायु रीढ़ की हड्डी से होते हुए दाहिने टाँग तक दब रही थी, जिसके वजह से उन्हें बहुत दर्द था। चिकित्सकों ने यह भी पाया कि उनकी दाहिने टाँग की मांसपेशियाँ नष्ट होती जा रहीं थीं जिसकी वजह से उनकी टाँग भी कमज़ोर हो रही थी। अपनी पीठ को सहारा देने के लिए मीरा ने बेल्ट पहनना शुरू कर दिया, किन्तु उसके बाद भी वह एक बार में पन्द्रह मिनट से ज़्यादा नहीं बैठ पाती थीं।
शुरुआत में जब मीरा गुरुजी के यहाँ जाती थीं, तो वह अपने साथ कुछ तकिये ले जाती थीं ताकि वह संगत में सारा समय बैठ सकें। परन्तु, गुरुजी ने जब यह देखा तो उन्हें मना किया। उन्होंने तकिये छुपाकर ले जाने की भी कोशिश की किन्तु उन्हें सख़्ती से मना किया गया। अतः वह फर्श पर बैठ गयीं - और उन्होंने पाया कि अब वह घंटों तक लगातार बैठ पा रही थीं।
मीरा गुरुजी से 3 अप्रैल 1995 को ग्रेटर कैलाश, नई दिल्ली में मिलीं। गुरुजी ने उनसे पूछा कि उन्हें क्या परेशानी है और वह क्या ठीक कराना चाहती हैं। जब उन्हें परेशानी बतायी गयी, गुरुजी तुरन्त बोले, "चलो ऑपरेशन करते हैं।" मीरा डर गयीं। गुरुजी उन्हें कमरे में ले गये, पीड़ित अंगों पर चमच्च रखा और उनकी गर्दन दाईं और बाईं तरफ ज़ोर से दबायी। मीरा को बहुत दर्द हुआ किन्तु वो ठीक हो गयीं। साथ ही गुरुजी ने कहा कि वह उनकी टाँग का इलाज जालंधर में करेंगे।
गुरुजी के उपचार के बाद, मीरा की रीढ़ की हड्डी की परेशानी गायब हो गयी। किन्तु उन्हें जोड़ों में अभी भी दर्द था। उनकी हाथों की उंगलियाँ सूज गयी थीं और जोड़े बड़ी गाँठों के समान दिखते थे। मीरा ने एक दिन सतगुरु को अपनी परेशानी के बारे में बताया। गुरुजी उनसे बात करते गये और उनके हाथों को अपने हाथों से सहलाते रहे। मीरा गुरुजी से बात करने में इतनी मग्न थी कि उन्होंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया। वह गुरुजी को बताती जा रहीं थीं कि उनको हाथों में कितनी तकलीफ है। आख़िरकार, गुरुजी ने बीच में हस्तक्षेप करके उनको अपने हाथों के तरफ देखने को कहा। मीरा को जैसे अपने हाथों को देखने की इच्छा थी, वो वैसे ही थे: उनकी उंगलियाँ लम्बी और पतली नज़र आ रही थीं, जोड़ों में दर्द नहीं था - और यह सब हुआ जब उनका इस तरफ ध्यान भी नहीं था!
गुरुजी ने एक बार मीरा से कहा था कि वह उसे मरने नहीं देंगे; उन्होंने मीरा के जीवन के दस साल बढ़ा दिए। वह उनको बचाते रहेंगे और उनके रोगों की तबदीली करते रहेंगे। उनका कहा हुआ वचन अनगिनत बार सच साबित हुआ।
कंकड़ों से भरे हुआ पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) का उपचार
मीरा को पेट में तेज़ दर्द था। चिकित्सकी जाँच के बाद पता चला कि मीरा का पित्ताशय कंकड़ों से भरा हुआ था। जो बड़े कंकड़ थे वो आधे इंच से भी ज़्यादा चौड़ाई के थे। चिकित्सकों ने उनकी दवाईयाँ शुरू कीं, किन्तु यह भी कहा कि इसका हल शल्य चिकित्सा ही था।
गुरुजी जालंधर में थे और उन्होंने मीरा को उनके दिल्ली वापस आने तक इंतज़ार करने को कहा। मीरा ने गुरुजी से कहा कि इतना तेज़ दर्द वो सहन नहीं कर पा रहीं थीं। गुरुजी ने अपना हाथ उस जगह रखा और दर्द गायब हो गया। अपने गुरु का कथन मानते हुए, मीरा ने गुरुजी के दिल्ली आने तक का इंतज़ार किया और फिर अपनी शल्य चिकित्सा करवाई। उनका पित्ताशय, जो कंकड़ों से भरा हुआ था, सफलतापूर्वक निकाल दिया गया।
किन्तु मीरा को स्वास्थ्य-सम्बन्धी और भी बहुत परेशानियाँ थीं। उनकी रक्त शर्करा की मात्रा निरन्तर ऊपर-नीचे होती रहती थी। फलस्वरूप, उनकी बायीं आँख पर असर पड़ रहा था और उसमें दृष्टि की हानि हो रही थी। मीरा हस्पताल गयीं और आँख की एंजियोग्राफी करायी। उसमें काफी रिसाव निकला। चिकित्सक ने कहा कि आँख का ऑपरेशन एक हफ्ते में हो जाना चाहिए। वह मंगलवार का दिन था और मीरा बिना गुरुजी को पूछे कोई निर्णय नहीं लेना चाहती थीं; उन्होंने चिकित्सक से कहा कि वह अपने पति से पूछकर तारीख तय करेंगी। चिकित्सक ने जवाब दिया कि उनको अपनी आँख के बारे में सोचना चाहिए, पति से पूछने के बारे में नहीं।
किन्तु, मीरा अडिग रहीं और गुरुजी के पास गयीं। सतगुरु के चरण कमलों में बहुत सारी फूलों की मालाएँ पड़ी थीं और उन्होंने उनमें से एक उठाई और मीरा को दे दी। जब मीरा की आँख का परीक्षण हुआ तो चिकित्सक भौंचक्के रह गए। आँख अपने आप ही ठीक हो गयी थी। कोई और परीक्षण कराने की ज़रूरत नहीं पड़ी; शल्य चिकित्सा का तो सवाल ही नहीं उठा।
एक्स-रे में नज़र आए कैंसर के धब्बे अगली सुबह गायब
गुरुजी की कृपा मीरा के पति पर भी हुई। उनके मुँह के अंदर एक सफ़ेद धब्बा था। चिकित्सकों को काफी हद तक लग रहा था कि वो कैंसर है, किन्तु वो निर्णय तक पहुँचने से पहले बायोप्सी के परिणाम का इंतज़ार कर रहे थे। इस बीच, वह दोनों सफदरजंग हस्पताल गए जहाँ चिकित्सकों का करीब-करीब वही जवाब था। मीरा झट से गुरुजी के पास अपनी परेशानी लेकर पहुँची और वे बोले: "मौज कर"। मीरा थोड़ा हैरान हो गयीं, किन्तु गुरुजी के कहे हुए शब्द उनका आशीर्वाद थे।
जब बायोप्सी हुई, मीरा और चिकित्सक स्तब्ध रह गये यह देखकर कि मुँह में कैंसर के कोई धब्बे थे ही नहीं, हालाँकि पिछली रात को ही दो बजे जो एक्स-रे हुआ था उसमें कैंसर के धब्बे साफ़ नज़र आ रहे थे। चिकित्सक भौंचक्के थे: रातों-रात धब्बे गायब हो गए थे। मीरा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। गुरुजी उनके लिए सब कुछ तुरन्त ही कर देते हैं, ऐसा इस निष्ठावान महिला का कहना है।
चेतना में वापसी
उनके पति, श्री कपूर, जो कपड़ों का थोक का व्यवसाय करते हैं, को कुछ राशि लेकर पंजाब जाना था। उन्होंने अपने आने-जाने की टिकट शताब्दी पर बुक की थी। मगर, जब वह रकम लेकर जालंधर रेलवे स्टेशन पहुँचे, कोहरा बहुत ज़्यादा था। उन्होंने ट्रेन से न जाकर, दिल्ली के लिए बस लेने का निर्णय लिया। घर फोन करके उन्होंने बता दिया कि वह रात को 10:30 बजे तक पहुँच जाएँगे।
अगला फोन जो मीरा को आया वो कश्मीरी गेट पुलिस स्टेशन से था। रात के एक बजे थे। पुलिस ने कहा कि उनके पति एक बस के अंदर बेहोश पाये गये थे जो डिपो जा रही थी। मीरा ने अपने देवर से, जो उस वक्त उनके साथ था, कहा कि फोन करने वाले की पहचान निश्चित करे। पुलिसवाले ने कहा कि उनके पति ऐसी हालत में नहीं थे कि बात कर सकें और वो उन्हें हस्पताल ले जा रहे थे।
जब उनका परेशान परिवार हस्पताल पहुँचा, तो उनकी चिकित्सकी देखभाल का स्तर देखकर वे बहुत निराश हुए। उन्होंने उनको निजी हस्पताल में ले जाने का निर्णय लिया। मगर उन्हें अभी भी होश नहीं आया था।
मीरा गुरुजी के पास गयीं तो गुरुजी बोले कि उनके पति को कुछ नहीं हुआ था और उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए। सतगुरु के ऐसा कहने पर, उनके पति में पहली बार सचेत होने की हल्की प्रतिक्रिया नज़र आयी। वह कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे। तत्पश्चात, चिकित्सकों ने उनको जगाने की कोशिश की। जब उन्हें पूरी तरह होश आ गया, चिकित्सकों ने मीरा को तीन महीने तक उनके पास ही रहने को कहा, क्योंकि उन्हें कुछ समय तक बेहोशी के दौरे पड़ सकते थे।
मीरा जानती थीं कि ऐसा करना उनके लिए नामुमकिन जैसा था क्योंकि उनको अपनी कपड़ों की दुकान भी देखनी थी। परन्तु, गुरुजी उनको बोले कि उनके पति बिल्कुल ठीक थे और मीरा को कोई ज़रूरत नहीं थी उनके पास सारा समय रहने की। और ऐसा ही हुआ: उनके पति को बेहोशी के कोई दौरे नहीं पड़े।
हुआ ऐसा था कि बस में श्री कपूर की दोस्ती उनके एक सह-यात्री के साथ हो गयी थी। उसने श्री कपूर को कुछ बिस्कुट दिए खाने को और खुद भी खाये। उसके बाद श्री कपूर की आँख हस्पताल में खुली।
परिवार को बहुत निराशा हुई कि उनको पैसों का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ था। मगर गुरुजी बोले कि उनकी परेशानियाँ चली गयी थीं और उन्हें अब चिंता नहीं करनी चाहिए, वह और दे देंगे। मीरा कहती हैं कि समय ने सिद्ध किया है गुरुजी की उदारता हमेशा उम्मीदों से ज़्यादा रही है और उनको अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा ही मिला है।
गुरुजी के यहाँ से आते हुए और वहाँ जाते हुए चमत्कार
श्री कपूर, मीरा और उनकी सास गुरुजी के दर्शन के लिए चंडीगढ़ जा रहे थे। वह रात को पहुँचे और गुरुजी ने उन्हें उसी रात वापस जाने को कहा। वह दिल्ली के लिए रात को करीब 2 बजे निकले, उस समय प्रचलित आतंकवाद के वजह से वे आशंकावान थे। मुख्यमार्ग (हाईवे) पर चंडीगढ़ से अम्बाला तक का रास्ता बंद था और इससे उनकी चिंता और बढ़ गयी क्योंकि उनको पंचकुला से होकर जाना था। वह एक डरावनी रात थी क्योंकि अंधेरे में एक शख्स भी नज़र नहीं आ रहा था, सड़क पर घोर अंधेरा था और खेतों से होकर गुज़रना था।
मीरा ने गुरुजी से निर्देशन के लिए प्रार्थना की। उनकी सास ने थोड़ा कटु शब्दों में कहा कि इतनी सुनसान जगह में गुरुजी कैसे मदद करेंगे। तभी खेतों में से दो लोग निकल कर आए। वो मोटर साइकिल पर थे और उनकी लम्बी दाढ़ी थी। मीरा ने अपने पति को गाड़ी रोकने को कहा ताकि वह उनसे मुख्यमार्ग तक की दूरी पूछ सके।
उन्होंने बताया कि मुख्यमार्ग बस 13 किलोमीटर ही दूर था। मीरा ने आपत्ति उठाई कि वहाँ कोई सूचना-पट्ट था नहीं और इतनी सुनसान सड़क थी: मुख्यमार्ग तक की दूरी सिर्फ 13 किलोमीटर कैसे हो सकती थी? मीरा ने दोबारा सवाल किया। मीरा की सास को शंका थी कि वे दोनों आतंकवादी थे और मीरा और उनकी सास दोनों डर गये जब उनमें से एक आदमी मीरा के करीब आया और भारी आवाज़ में बोला कि वाकई में मुख्यमार्ग 13 किलोमीटर की दूरी पर था।
वे मुश्किल से 200 मीटर आगे गये होंगे कि उन्हें एक सूचना-पट्ट नज़र आया जिसपर 13 किलोमीटर लिखा हुआ था और ठीक 13 किलोमीटर बाद, सड़क 'प्रिंस होटेल' के सामने थी और वे मुख्यमार्ग पर थे।
देर रात को खेतों में से कौन निकलकर आया था उन्हें मुख्यमार्ग तक की दूरी बताने के लिए?
गुरुजी चाट खाने गये
हालाँकि गुरुजी जो मदद करते हैं वो कभी-कभी प्रत्यक्ष रूप से नज़र आती है, ज़्यादातर वह गुप्त रूप से ही अपने चमत्कार करते हैं। उनके शब्द या उनकी करनी समझने के लिए अपना दिमाग लगाना व्यर्थ है। आगे बताये गये अनुभव दर्शाते हैं कि कैसे उनके बाहरी दिखने वाले कार्यों का उनके अनुयायी के कर्मों से रिश्ता होता है - कम से कम अभी तक तो हम यही समझे हैं। कौन जाने कि असल में वह क्या करते हैं!
गुरुजी ने मीरा और श्रीमती सब्बरवाल को बड़े मंदिर, जो गुड़गाँव से लगभग 20 किलोमीटर दूर है, जाने को कहा। मीरा और श्रीमती सब्बरवाल गुड़गाँव के निवासी थे और नियमित रूप से मंदिर जाते रहते थे। एक शाम, जब दोनों बड़े मंदिर जा रहे थे, उन्होंने देखा कि गुरुजी की सफेद कन्टेस्सा गाड़ी ब्रिस्टल होटेल के बाहर खड़ी थी।
वे उसी समय गुरुजी के पास गये। गुरुजी उस दिन बड़े मिलनसार मिज़ाज में लग रहे थे और मौके का फायदा उठाते हुए, दोनों ने वहीं गुरुजी से आधे घंटे से ज़्यादा तक बातचीत की। फिर गुरुजी ने चाट खाने की इच्छा ज़ाहिर की, और सारी संगत मानेसर में स्थित हल्दिराम, एक भोजन करने का स्थान, चाट खाने चली।
गुरुजी ने हल्दिराम के बाहर घासदार मैदान में थोड़ी देर सुस्ताने का सोचा। वह लेट गये और संगत उन्हें घेरे हुए बैठी थी और उनका ख़्याल रख रही थी। संगत अपने रूमालों से उनको पंखा कर रही थी; किसी की चुन्नी उनका तकिया बन गयी थी। गुरुजी की लीला ऐसी है कि एक चिकित्सक, जो पास ही खड़े थे, यह सब देखकर करीब आये। वे जानना चाहते थे कि क्या उनको चिकित्सकी मदद चाहिए थी, उस व्यक्ति के लिए जो ज़मीन पर लेटा हुआ था और ठीक नहीं लग रहा था। उस चिकित्सक को आश्वासन देकर कि सब ठीक है, वापस भेज दिया गया।
इसी बीच, चाट लायी गयी। सब लोग चाट का मज़ा ले रहे थे, और गुरुजी ने मीरा को अपने पास बुलाया। मीरा को अभी तक याद है कि गुरुजी ने उनसे उनके परिवार के सभी सदस्यों के बारे में बहुत सारे और काफी विस्तार में सवाल किये। उनकी बेटी और दामाद कहाँ थे? वह कब वापस आ रहे थे? मीरा ने गुरुजी को बताया कि वह दोनों मनाली में थे और जल्द ही वापस आने वाले थे।
जल्दी ही यह सैर-सपाटा ख़त्म हुआ और सब अपने-अपने घर खुशी-खुशी लौट गये। हल्दिराम जाने का असली कारण एक महीने बाद ज्ञात हुआ।
मीरा की बेटी और दामाद की नई गाड़ी लाल बत्ती पर खड़ी थी जब वह दुर्घटना का शिकार हुए। एक ट्रक ने पीछे से आकर उनकी गाड़ी को ज़ोर से टक्कर मारी। गाड़ी बिल्कुल नष्ट हो गयी थी। मीरा की बेटी ने उनको फोन करके दुर्घटना के बारे में बताया, और उनसे यह भी कहा कि वह गुरुजी को इस दुर्घटना के बारे में अवगत कराएँ।
मीरा देर रात को एम्पायर एस्टेट पहुँचीं। उन्होंने गुरुजी को हॉल में खड़े पाया जैसे वो मीरा का ही इंतज़ार कर रहे हों। मीरा ने गुरुजी को दुर्घटना के बारे में बताया और गुरुजी ने मीरा को बताया कि दुर्घटना कहाँ हुई थी - ग्रेटर कैलाश के गोलचक्कर पर। मीरा ने गुरुजी को बताया कि उनके दामाद को एम्स (AIIMS) ले जाया जा रहा था, तब गुरुजी ने मीरा को हल्के से याद दिलाया कि उनको वसंत कुंज में स्पाइनल कॉर्ड्स इंजरीज सेंटर ले जाया जा रहा था - और मीरा की बेटी ने वास्तव में फोन करके यही कहा था। चिंतित मीरा को देर लगी समझने में कि गुरुजी उनको दुर्घटना का सारा विवरण दे रहे थे, वो गुरुजी को नहीं!
सर्वशक्तिमान स्वामी ने अपने अनुयायी के बच्चों पर तकलीफ नहीं आने दी थी। हालाँकि उनके दामाद का चेहरा सूज गया था, उन्हें ना तो दर्द था और ना ही कोई अंदरूनी चोट लगी थी।
मीरा को बताया गया कि दुर्घटना के समय, गुरुजी अपने कमरे में आगे-पीछे चक्कर लगा रहे थे। मीरा कहतीं हैं कि उनके दामाद की पीड़ा गुरुजी ने अपने ऊपर ले ली। और गुरुजी मीरा को बोले, "मैं तेरे साथ हां; डरीं नां"। मीरा कहतीं हैं कि गुरुजी को इस दुर्घटना का पूर्वज्ञान एक महीना पहले ही था जब वह सब चाट खाने गये थे और मात्र उनके परिवार के बारे में पूछकर, गुरुजी ने एक यकीनन विपदा टाल दी।
कपड़ों की दुकान पर अनोखी उपस्थितियाँ
गुरुजी मीरा की करोल बाग़ की दुकान पर आकर उसको उलझा देते थे। वे आते उनकी परेशानियाँ हटाने के लिए या उन्हें कुछ देने के लिए, पर कभी उस रूप में नहीं आते थे जिस रूप में मीरा उनको इतना प्यार करतीं थीं। वह पैसा लेते थे, उनके बुरे कर्म ले जाने के लिए और अपने अनुयायियों पर समृद्धि की बौछार करने के लिए। मीरा हमेशा व्याकुल हो जातीं क्योंकि वो गुरुजी को पहचान नहीं पातीं।
कपूर दम्पति अपना थोक के कपड़ों का काम करोल बाग़ स्थित अपनी दुकान से करते थे। उनकी यह दुकान पहली मंज़िल पर है। एक सुबह, दुकान पर एक अपरिचित व्यक्ति आया। उसने अपना विज़िटिंग कार्ड दिया और बोला कि उसे कुछ छुट्टे पैसे चाहिए थे। मीरा, जो उस वक्त दुकान पर बैठी हुईं थीं, बोलीं कि वे थोक के कपड़ों का काम करते हैं और छुट्टे पैसे नहीं रखते। फिर भी, श्री कपूर ने उनकी मदद करने की सोची और अपने एक कर्मचारी को पास के बैंक 6,400 /- का चेक ले जाकर नकद लाने को कहा। वह अजनबी बैंक के अंदर गया और कर्मचारी बाहर ही इंतज़ार कर रहा था। वह कर्मचारी बाहर इंतज़ार ही करता रहा, जब तक बाहर खड़े पहरेदार ने उसे यह नहीं बताया कि उसने ऐसे किसी आदमी को अंदर जाते हुए नहीं देखा था।
कर्मचारी दुकान पर लौट गया। जब उसने सारी बात विस्तार से बतायी, मीरा ने खुद को अत्यंत बेवकूफ महसूस किया कि वह, जो इतने समय से अपना कारोबार चला रही थी, फिर भी एक अजनबी उन्हें ऐसे धोखा दे गया। मीरा ने यह बात गुरुजी को बतायी, जो बोले, कि उनकी परेशानियाँ लीं गयीं थीं। गुरुजी यह भी बोले कि वह ही थे जो उनका पैसा ले गये थे।
एक और समय, एक लंबा आदमी, जिसका सिर करीब-करीब छत छू रहा था, आया और दुकान के अंदर देख रहा था। उसने कमर पर एक खुरदरी बेल्ट पहनी हुई थी। उसे आवारा समझकर मीरा ने उसे चले जाने को कहा। एक कर्मचारी बोला कि वह भोलेनाथ की तरह दिखता है - भोले-भालों के इश्वर - और मीरा ने उसे दो रुपये दिए। उसने फिर से उस आदमी को चले जाने को कहा। वह चला गया। पहरेदार ने उस आदमी को न आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
शाम को जब मीरा गुरुजी के यहाँ गयीं, वह झेंप गयीं। सतगुरु उसे बोले कि जब वह उसकी दुकान पर आये थे तो मीरा ने उन्हें सिर्फ दो रुपये दिये!
यह गुरुजी का हुक्म था कि मीरा दुकान पर बैठें। हालाँकि मीरा को यह लगता था कि इस काम के लिए वह सशक्त नहीं हैं, उन्होंने गुरुजी का हुक्म माना। बाद में जब गुरुजी जालंधर गये तो मीरा उनको बहुत याद करती थीं और उनकी तस्वीर के आगे बहुत रोती थीं। वह पवित्र शिव पुराण भी पढ़ती थीं और माला जपती थीं - ॐ नमः शिवाय, शिवजी सदा सहाय और ॐ नमः शिवाय, गुरुजी सदा सहाय - यह दो मंत्र जपती थीं। जब भी उनको दुकान में गुरुजी की वो विशिष्ट गुलाबों की खुश्बू आती, वो पास में ही अपने घर से कपड़ों का एक और जोड़ा लाकर जालंधर के लिए निकल पड़तीं।
जालंधर की एक ऐसी ही यात्रा के दौरान, गुरुजी ने मीरा को उन्हें इतना याद करके रोने से मना किया। उन्होंने मीरा को 'शिवजी सहाय' मंत्र का और भी ज़्यादा जाप करने का निर्देश दिया। अपने गुरु को सदैव याद करने के कारण, गुरुजी उसकी दुकान पर अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहे।
एक बार एक आदमी, जिसका एक सन्यासी का रूप था, मीरा की दुकान पर आया। वह बोला कि वह मीरा को मनकों की माला देना चाहता है। जब मीरा ने हाथ आगे बढ़ाया, उसने मीरा को सिर झुकाने को कहा और माला डाल दी। उसने यह भी निर्देश दिया कि मीरा वह माला सदा अपने पास रखे।
बाद में, जब मीरा के यहाँ नाति हुआ, गुरुजी रूप बदलकर फिर आये। इस बार वह नवजात शिशु के लिए कंगन देकर गये। वैसा ही कंगन उन्होंने मीरा को भी दिया।
जब मीरा ने दुकान जाना शुरू किया था, उन्होंने वहाँ गुरुजी की तस्वीर लगायी थी। किन्तु, मीरा कहती हैं कि गुरुजी ने इसकी अनुमति नहीं दी और उन्होंने वह तस्वीर वापस अपने घर में लगा दी। दुकान पर जाने के पाँच महीने बाद, गुरुजी ने मीरा को अपनी तस्वीर दुकान पर लगाने की अनुमति दी।
मीरा कहती हैं कि उनकी दुकान बहुत अच्छी चलने लगी और पुराने नुकसानों की भी भरपाई हो गयी।
गुरुजी ने श्री कपूर को भी अपने वचन निभाने में मदद की। श्री कपूर को एक व्यक्ति के तीन लाख रुपये चुकाने थे और उन्होंने वचन दिया था कि उस दिन वह उसकी रकम अदा कर देंगे। मीरा ने अपने पति को बताया कि दुकान में उस रकम का एक चौथाई जितना नकद भी नहीं था, किन्तु श्री कपूर ने जवाब दिया कि उनको दो जगह से रकम मिलने वाली थी और इससे वह अपनी कही गयी रकम चुका सकेंगे।
श्री कपूर खुद ही गये अपनी रकम लेने। एक व्यक्ति ने उन्हें एक हफ्ते बाद आने को कहा, और दूसरे ने कहा कि वो एक दिन बाद ही पैसे दे पायेगा। बिना पैसों के, श्री कपूर ने करोल बाग़ गुरद्वारे के सामने निकलते समय गुरुजी से प्रार्थना की, कि अगर वह अपना वचन नहीं निभा पाए तो यह गुरुजी का निरादर होगा, उनका नहीं। गुरुजी को अपनी परेशानी सौंप कर, श्री कपूर अपनी दुकान को लौट गए।
कुछ समय बाद, उनके ऊपर के दुकानदार ने उनकी दुकान पर एक ग्राहक भेजा। वह आदमी जालंधर से था और उसे कुछ सामान चाहिए था। वह सारा सामान उसे श्री कपूर की दुकान पर मिल गया और उसने खुशी-खुशी, सामान की जाँच किये बिना अपनी रकम अदा कर दी। उसकी दी गयी रकम से बड़ी आसानी से श्री कपूर अपनी रकम अदा कर सके और उनको अपने वचन से मुकरना नहीं पड़ा।
उस शाम जब पति-पत्नि गुरुजी के यहाँ गए तो गुरुजी मीरा से बोले, "की गल ऐ? तेरा पति मैनु फुटपाथ पर याद करदा ऐ!"
गुलाबों की माला से दुकान अग्नि से बची
एक बार जब मीरा अपनी भाभी के साथ गुरुजी के यहाँ गयीं, गुरुजी ने उनकी भाभी को उन पर चढ़ाये गये फूलों में से एक गुलाबों की माला उठाने को कहा। फिर उन्होंने निर्देश दिया कि उस माला से जल को शुद्ध करके, वह जल पूरी दुकान में छिड़का जाए।
किन्तु अगला दिन सोमवार का था और उनकी भाभी का मन नहीं था कि सिर्फ जल छिड़कने के लिए वह जाकर दुकान खोलें। मीरा ने अपनी भाभी को समझाया कि अपना दिमाग लगाने से बेहतर होगा कि गुरुजी के निर्देश का पालन किया जाए।
एक महीने बाद करोल बाग़ मार्केट में भीषण आग लगी। सारी दुकानें जल गयीं। मीरा कहतीं हैं कि आग की लपटों ने उनकी नीचे वाली दुकान जला दी, और आग की लपटें इतनी भीषण थीं कि छत पर लगे पंखे तक जल गये थे। लेकिन गुरुजी के अनुयायी की दुकान सुरक्षित थी। ऐसा लग रहा था जैसे उनकी दुकान से लपटें पीछे हट गयी थीं, क्योंकि हवा की दिशा उल्टी हो गयी थी। उस गुलाबों की माला ने, जो गुरुजी ने अभिमंत्रित करके दी थी, दुकान की रक्षा की।
गुरुजी के परामर्श पर श्री कपूर ने व्यवसाय बदला
कपूर दम्पति का व्यवसाय कुछ अच्छा नहीं चल रहा था। श्री कपूर अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए उसमें बदलाव लाना चाहते थे। वह चीन से कपड़ा मँगाना चाहते थे ताकि वह अपनी लागत घटा सकें। वह गुरुजी के पास उनकी स्वीकृति के लिए गये। गुरुजी ने ऐसा करने से मना किया और बोले कि वह सही समय उन्हें बतायेंगे।
तीन महीने बाद, गुरुजी ने मीरा को छोटी इलायची और मिश्री प्रसाद दिया। गुरुजी ने मीरा को यह प्रसाद अपनी दुकान में बैठकर खाने को कहा। फिर कपूर दम्पति ने गुरुजी को चीन में उस आदमी का नाम बताया जिसके साथ वह व्यापार करना चाहते थे, और तब उन्हें अपना नया व्यवसाय शुरू करने की अनुमति मिली। गुरुजी बोले कि वह अच्छा आदमी है। श्री कपूर कहते हैं कि बिना मिले, उन्होंने चीन में बैठे उस आदमी के साथ करोड़ों का व्यापार किया है। उन्हें कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा।
एक और समय, श्री कपूर चाँदनी चौक में थे, दिल्ली का एक बहुत व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका, अपने ब्रीफकेस में बहुत बड़ी रकम लिए। अपनी गाड़ी में आराम से अंदर जा सकें, उसके लिए उन्होंने अपना ब्रीफकेस साथ वाली गाड़ी के ऊपर रख दिया। फिर वह बिना ब्रीफकेस उठाये घर चले गये।
घर पहुँचकर उन्हें ध्यान आया कि वह अपने साथ ब्रीफकेस नहीं लेकर आये थे। वह बहुत परेशान हो गये क्योंकि उसमें बहुत बड़ी रकम थी। वह उसी समय वहाँ वापस गये हालाँकि उन्हें पता था कि अब तक तो ब्रीफकेस वहाँ से गायब हो गया होगा। उन्हें अचम्भा हुआ जब उन्होंने देखा कि ब्रीफकेस वहीं उसी गाड़ी के ऊपर रखा हुआ था जहाँ वह उसे छोड़कर गये थे।
शाम को जब वह गुरुजी से मिले तो गुरुजी बड़ी सादगी से बोले, "बैग मिल गया?"
ईश्वर की कृपा
सिर्फ मीरा को ही नहीं गुरुजी की कृपा और सुरक्षा प्राप्त हुई, बल्कि उनके परिवार को भी। उनके साथ वाली दुकान के एक कर्मचारी को भी गुरुजी की कृपा प्राप्त हुई, और एक हेड ऑफ डिपार्टमेंट को भी।
कपूर दम्पति पास की एक दुकान में गये[ और वहाँ सत्संग करने लगे। गुरुजी के चमत्कारों का उस दुकान के एक कर्मचारी, जो माँ का भक्त था, पर इतना प्रभाव हुआ कि उसने गुरुजी के यहाँ जाने का मन बना लिया। गुरुजी उस समय जालंधर में थे। उस कर्मचारी ने कपूर दम्पति से वहाँ जाने के लिए निर्देश लिए और दुकान बंद होने के बाद निकल पड़ा। वह गुरुजी के यहाँ पहुँचा, तो गुरुजी ने उससे पूछा कि उसे किसने भेजा था। जब उसने गुरुजी को बताया तो गुरुजी ने उसे गले लगा लिया - इसका कारण वही जानें। फिर गुरुजी ने उस व्यक्ति को दिल्ली वापस जाने को कहा।
इस व्यक्ति की घरेलू ज़िन्दगी में बहुत परेशानियाँ थीं; भाई आपस में झगड़ते रहते थे। जब वह घर वापस पहुँचा तो उसने अपनी पत्नि को कहा कि उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे अब उसकी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। और वैसा ही हुआ। भाई, जिनका झगड़ा जायदाद पर हो रहा था, ने उसका सुझाव माना। एक लॉकर, जिसमें पारिवारिक ज़ेवर रखे हुए थे, खोला गया और ज़ेवरों का बँटवारा भाईओं में किया गया।
उस व्यक्ति को एक मोतियों की माला मिली। उस पर एक पर्ची थी जिस पर लिखा हुआ था कि वह माला उसे मिलनी चाहिए जो सबसे ज़्यादा इसका हकदार हो। उसे एकदम गुरुजी का ध्यान आया। वह जालंधर गया, संगत में बैठा और सोच में पड़ गया कि वह माला गुरुजी को दे कि नहीं। वह बहुत बेचैन हो गया जब गुरुजी ने आकर उससे पूछा कि वह किस दुविधा में पड़ा हुआ है। फिर गुरुजी ने उसे वह माला उन्हें देने को कहा!
मीरा के जोड़ों की परेशानी बहुत जल्दी ठीक हो गयी थी और सब इस बात से बहुत प्रभावित हुए थे। जो चिकित्सक मीरा का इलाज कर रही थी, सफदरजंग हस्पताल में ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट की हेड, इस रोग-निवृत्ति की गवाह थी।
मीरा की चिकित्सक को जोड़ों में दर्द रहता था। दर्द इतना ज़्यादा था कि उन्हें मरीज़ों को देखने जाने में भी बहुत दिक्कत होती थी। मीरा ने उन्हें गुरुजी के यहाँ जाने की सलाह दी। वह गयीं और गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त करके लौटीं।
उस चिकित्सक ने मीरा को फोन करके बताया कि अपने मरीज़ों को देखने जाने में उसे कोई दर्द नहीं हुआ था। चिकित्सक ने यह भी कहा कि वह अभी तक इसी सोच में थी कि क्या वाकई में वो ही थी जो अपने मरीज़ों को देखने गयी थी!
जैसे-जैसे मीरा का गुरुजी से लगाव बढ़ता गया, उसने पाया कि उसके पूरे परिवार को गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा था। उसकी भाभी उनमें से सबसे पहले थीं। उनकी भाभी को काफी लम्बे समय से चलती आ रही सर्दी थी और उसके साथ माइग्रेन भी हो जाता था। कान से पानी भी बहता था। उनकी सुनने की शक्ति भी क्षतिग्रस्त हुई थी।
मीरा और उनकी भाभी गुरुजी के यहाँ साथ गये। उनकी भाभी की सर्दी और माइग्रेन गायब हो गये और सुनने की शक्ति में वृद्धि हुई।
किन्तु उसी दौरान उनके बेटे, अंकुर, की आँखों की रोशनी जा रही थी। वह सिर्फ चार साल का था। गुरुजी के सामने यह परेशानी रखी गयी और गुरुजी ने अपना आशीर्वाद दिया। उन्होंने मीरा की भाभी को अंकुर की आँखों में शहद डालने को कहा। माँ को पता था कि आँखों में शहद डालने से बहुत तकलीफ होगी इसीलिए वह ऐसा करने से हिचकिचा रही थी। किन्तु ऐसा करने के लिए उसपर ज़ोर डाला गया और वह आश्चर्यचकित रह गयी जब शहद डालने पर अंकुर को कोई तकलीफ नहीं हुई।
गुरुजी के निर्देश पर अंकुर की आँखों की जाँच करायी गई। उसकी दृष्टि में बहुत वृद्धि हुई थी।
जो परमेश्वर के दर्शन कराते हैं
मीरा के भाई सेना से सेवा-निवृत्त हुए थे। वह श्री रामकृष्ण परमहंस के भक्त थे और संतों के यहाँ बस एक ही आस से जाते थे: कि उन्हें परमेश्वर के दर्शन हो जायें।
गुरुजी के यहाँ जाने के बाद मीरा ने अपने भाई को फोन किया और सतगुरु के बारे में बताया। वह स्वेच्छा से संगत में आये। गुरुजी ने तुरंत ही उन्हें मामा कहकर पुकारा और कुछ माँगने को कहा। आध्यात्मिक आकांक्षा रखने वाले, उन्होंने गुरुजी से उनकी मेहर माँगी। गुरुजी ने फिर से उन्हें कुछ माँगने को कहा, तो उन्होंने परमेश्वर के दर्शन करने की इच्छा ज़ाहिर की। "ठीक है", गुरुजी केवल इतना ही बोले।
तीन दिन बाद, मीरा के भाई को घर पर अलौकिक दर्शन हुए। उनकी आजीवन तलाश पूरी हुई। उन्हें परमेश्वर के दर्शन हो गये थे।
एक अनुयायी के महज़ अनुरोध पर, गुरुजी ने उनको परमेश्वर के दर्शन प्रदान किये। फिर कौन हैं वो?
एक जवाब मीरा के पिता देते हैं। मीरा ने बताया कि उनके पिता कहा करते थे कि गुरुजी कोई साधारण गुरु या संत नहीं हैं, जिन्होंने सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं, और फिर उनका प्रदर्शन करके दुनिया को अचंभित करते हैं और भक्तों का मन जीत लेते हैं। गुरुजी दिव्य रोशनी हैं।
श्री कपूर को भी गुरुजी के दर्शन हुए थे। श्री कपूर, जिनकी पढ़ाई बनारस से हुई थी, जो भगवान शिव का शहर है, ने सपने में देखा कि वह बनारस के विश्वरेश्वरा मंदिर में हैं। मंदिर का द्वार खुलता है और वह गुरुजी को देखते हैं। उनकी नज़र गुरुजी के चरण-कमलों पर पड़ती है, जहाँ वह ब्रह्मा, विष्णु और महेश को देखते हैं।
गुरुजी को इस सपने के बारे में बताया गया। गुरुजी श्री कपूर को बस इतना बोले कि भक्त को दर्शन प्राप्त हो गये थे।
घरेलू कामकाज के स्वामी
मीरा को कुछ ऐसे अनुभव बार-बार हुए जो यह दर्शाते थे कि सतगुरु सीमाबद्ध या अपने दैहिक रूप से सीमित नहीं हैं। वह यहाँ, वहाँ, हर जगह थे। मीरा के घर पर हुई बातचीत सुनते और देखते थे; यहाँ तक कि अपने अनुयायी को छू भी सकते थे।
मीरा अपने करोल बाग़ के घर में एक संयुक्त परिवार में रहती थीं। किन्तु गुरुजी के ज़ोर डालने पर वह गुड़गाँव में रहने लगीं। 25 मार्च 2003 को वह गुड़गाँव आयी थीं। मीरा सोच में थीं कि नए घर की शुद्धिकरण के लिए उन्हें कोई धार्मिक रस्म करानी चाहिए कि नहीं, किन्तु गुरुजी ने ऐसा करने से मना किया। सतगुरु ने बस उन्हें नए घर में पहले उनकी तस्वीर ले जाने को कहा।
तब से, कपूर घर में गुरुजी की उपस्थिति और भी ज़्यादा महसूस होती है। ऐसा पहली बार तब हुआ जब अपने मन में मीरा गुरुजी से शिकायत कर रही थीं कि वह कितनी अकेली हैं। यद्यपि मीरा के यहाँ काम करने वाली ने उन्हें बताया था कि साथ वाले घर में रहने वाली उनकी पड़ोसन उनके साथ दोस्ती करने में रुचि रखतीं हैं, मीरा ने इसकी पहल नहीं की।
एक दिन उनकी पड़ोसन घर आयी और दोनों बात करने लगे। हमेशा की तरह, बातचीत गुरुजी के इर्द-गिर्द होने लगी और फिर उन्हीं पर केंद्रित रही। जल्द ही, मीरा को एक सहेली मिल गयी थी।
गुरुजी जानते थे कि क्या हो रहा है। जैसे ही मीरा संगत में आयीं, गुरुजी ने उनसे पूछा कि क्या अब उनकी एक सहेली बन गयी थी। मीरा दंग रह गयीं कि गुरुजी जानते थे कि उनके घर पर क्या हो रहा है।
और सिर्फ ड्रॉइंग रूम (स्वागत - कक्ष) ही नहीं था जिस पर अन्तर्यामी गुरुजी की नज़र थी।
एक बार मीरा और उनके पति की सुबह-सुबह एक बड़ी सामान्य सी और किसी छोटी सी बात को लेकर बहस हो रही थी। शाम को, गुरुजी ने कपूर दम्पति को फोन किया। गुरुजी ने पहले श्री कपूर से बात की, और उनसे पूछा कि क्यों उन्होंने मीरा से सुबह झगड़ा किया था। इससे पहले कि हैरान श्री कपूर कुछ जवाब दे पाते, गुरुजी ने उन्हें फोन मीरा को देने को कहा। गुरुजी ने फिर मीरा से बात की और उन्हें अपने पति से झगड़ा करने के लिए फटकार लगाई।
मीरा कहतीं हैं कि व एक बहुत छोटी सी बात थी जिसपर उनकी बहस हो रही थी फिर भी गुरुजी ने उस बात का ज़िक्र किया, यह दर्शाने के लिए कि वह घर की बातों की कितनी बारीकी से जानकारी रखते हैं।
बारम्बार मीरा को गुरुजी की उपस्थिति महसूस होती रहती थी, जैसे कि गुरुजी हर कदम पर उसे आश्वासन दे रहे हों कि वह नए घर में उसके साथ थे। एक बार मीरा सो रहीं थीं, तो पीछे से किसी ने उसके कंधे ज़ोर से दबाये। मीरा ने मुड़ कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। एक और बार, वह पूजा कर रहीं थीं, तो उन्हें लगा जैसे किसी ने पहले एक कंधे पर और फिर दूसरे कंधे पर उन्हें छूआ। वह डर गयीं और उन्होंने इस पर ध्यान नहीं देना चाहा यह सोचकर कि यह उनकी कल्पना थी, तभी उन्होंने देखा कि पूजा-स्थान के सामने पर्दा हल्का सा हिला - जैसे कि हवा का झोंका आया हो।
उन्होंने मन में गुरुजी से पूछा कि क्या वही हैं। यकीनन, संगत में गुरुजी बोले कि वह ही थे, उसे चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
घर में साँप
जब भी घर में गुरुजी के दर्शन होते तो मीरा बहुत खुश होतीं, पर यह तो हद हो गयी जब स्नान-घर में उन्होंने साँप देखे। एक आधुनिक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में साँपों का पाया जाना कुछ असम्भव सी घटना थी। उनका घर मुख्यमार्ग के साथ ही है जो गुड़गाँव से जयपुर को जाता है। घर के तीनों स्नान-घरों में टाइलें लगी हुई हैं और उस क्षेत्र में कभी किसी ने साँप नहीं देखे हैं।
फिर भी, दिन-प्रतिदिन, जैसे ही मीरा बाथ टब में पैर रखतीं, वहाँ पर साँप होते - बहुत छोटे और करीब चार उन्हें रोज़ नज़र आते। वह बहुत डर गयीं थीं। बाथ टब में पैर रखने से पहले वह गुरुजी को प्रार्थना करतीं, मगर फिर भी साँप आते। और वह उन पर पैर पटक देतीं।
मीरा ने अपने पति को वह बाथ टब हटवा देने के लिए बोला। और बात वहीं रह गयी। तो उन्होंने इस बात का ज़िक्र गुरुजी से किया, जो बोले कि मीरा बहुत भाग्यशाली थीं। मीरा ने जवाब दिया कि वह बहुत डरी हुई थीं। फिर गुरुजी ने मीरा से पूछा कि उन्हें क्या चाहिए। मीरा ने कहा कि वह बाथ टब हटवाना चाहती थीं और चाहती थीं कि साँप गायब हो जायें।
गुरुजी की आज्ञा से मीरा ने बाथ टब हटवाया। जो बाथ टब हटाने के लिए आये, उन्हें पहले से ही आगाह कर दिया गया था कि स्नान-घर में साँप थे। उन्होंने यह बात हँसी में उड़ा दी। जब बाथ टब हटाया जा रहा था मीरा बीच-बीच में देखती रहती थीं कि क्या साँप वहाँ नज़र आ रहे हैं।
मगर, साँप तो गायब ही हो गये थे।
यह घटना आज तक समझ नहीं आई है। एक आधुनिक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में साँप कहाँ से आये? सिर्फ मीरा को ही वे क्यों नज़र आये? उनके दिखाई देने का मतलब क्या था? वे कहाँ गायब हो गये?
यह तो बस भगवान शिव ही जानते हैं।
मीरा कपूर, गृहिणी और व्यवसायी महिला
जुलाई 2007