दिव्य स्टेथोस्कोप से दिल की शल्य चिकित्सा

डॉ एम एम बजाज, जुलाई 2007 English
'ॐ नमः शिवाय, गुरुजी सदा सहाय'

मैं गुरुजी के पास अपने छोटे बेटे की बेचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) में दाखिला करवाने के लिए आया क्योंकि मेरी पूरी कोशिशों के बावजूद उसका दाखिला कहीं नहीं हो पाया था। मैं विशेषतः उसकी दाखिला मनिपाल BDS में कराना चाहता था। गुरुजी ने मेरे बेटे को आशीर्वाद दिया, और उसने एम बी बी एस (MBBS) की सब परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मेरा बड़ा बेटा भी डॉक्टर है जो चंडीगढ़ में रहता है। वह सुखपूर्वक अपना शादी-शुदा जीवन व्यतीत कर रहा है और व्यावसायिक तौर पर भी अच्छा कर रहा है।

मैं एक दंत्य सर्जन हूँ और फरीदाबाद में काम करता हूँ। गुरुजी से मिलने के बाद, मैं काफी कठिन जबड़े की शल्य चिकित्सा कर पाया हूँ, जो रोगियों के मर्ज़ की वजह से जटिल थीं। पर गुरुजी के आशीर्वाद से वह सब ठीक हुईं। मरीज़ हमेशा अपनी शल्य चिकित्सा से संतुष्ट होते और कभी कोई शिकायत नहीं आई।

मेरी बेटी पर्ल एकडेमी ऑफ फैशन डिज़ाइनिंग के फैशन डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी (FDT) में दाखिला लेने की कोशिश कर रही थी। वह लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण हो गयी और उसका साक्षात्कार भी अच्छा गया, परन्तु उसे चुना नहीं गया। क्योंकि मुझे अपनी बेटी के जीविका की चिंता हो रही थी, मैं गुरुजी के पास गया। वह बुधवार का दिन था, जो संगत का दिन नहीं होता है। मुझे यह पता था, फिर भी मैं बदरपुर की तरफ से महरौली रोड को गया। मैं एक बस के साथ गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गया। मुझे चोट नहीं पहुँची पर मेरी गाड़ी को आगे की तरफ ज़ोर से टक्कर लगी थी। टक्कर इतनी गंभीर हुई थी कि गाड़ी का बोनेट खुल गया था; रेडिएटर, ए सी ग्रिल और हेडलाइट को भी नुक्सान पहुँचा था।

फिर भी मेरी गाड़ी चलती रही और 15-20 किलोमीटर बाद मैं गुरुजी के यहाँ पहुँचा (गाड़ी का बोनेट अभी भी खुला था)। गुरुजी वहाँ नहीं थे। मुझे बताया गया कि गुरुजी रात को बहुत देर से आने वाले थे। जैसे मैं वापस आ रहा था, गुरुजी की गाड़ी मेरे सामने आ गई। गुरुजी ने मुझे देखा; मैं हाथ जोड़े रो रहा था। गुरुजी पाँच मिनट तक वहाँ खड़े रहे और फिर अन्दर चले गए। मुझे प्रसाद और लंगर परोसा गया। मुझे गुरुजी का संदेश मिल गया था; मेरी जान बच गई थी; नई गाड़ी आ जाएगी और चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। मुझे अपने घर वापस जाना था और सब ठीक हो जाएगा।

मैं गाड़ी वापस ले गया। सुबह जब गाड़ी की मरम्मत कराने के लिए उसे ले जाने लगे तो उसे रस्सी से खींचकर ले जाना पड़ा और किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि दुर्घटना के बाद ऐसी हालत में गाड़ी ए सी के साथ 50 किलोमीटर चली थी - क्योंकि रेडिएटर में पानी नहीं था, गाड़ी की बैटरी काम नहीं कर रही थी और ए सी भी खराब हो गया था। फिर भी, गुरुजी के आशीर्वाद से गाड़ी इतनी चली थी। मैंने इस दुर्घटना के बाद नई गाड़ी भी खरीद ली।

इतना ही नहीं, मेरी बेटी को एक विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। उसे गुरुजी के जन्मदिन, 7 जुलाई, को दाखिला मिला। अब मेरी बेटी अपने कोर्स में बहुत अच्छा कर रही है और उसे अभी तक दो वज़ीफ़े भी मिल चुके हैं। यह सब गुरुजी के आशीर्वाद से ही हुआ है।

पिछले दो-तीन सालों में मेरा व्यवसाय कुछ अच्छा नहीं चल रहा था। मेरे लिए मेरे परिवार का खर्चा उठाना मुश्किल हो रहा था, जबकि मेरा परिवार पूरी तरह से मुझ पर निर्भर था। मैं अपना घर बेचना चाहता था और अपना व्यवसाय छोड़ना चाहता था। मैं अपनी आर्थिक परेशानियों से बहुत हताश था।

एक संगत ने गुरुजी को मेरे हालात के बारे में बताया और एक बार मेरे बड़े बेटे ने भी उनको मेरे हालात से अवगत कराया था। और मेरी परेशानी सुलझ गई। गुरुजी के आशीर्वाद से, मैं अपने उसी चिकित्सालय से अपने घर का खर्चा आराम से उठा पा रहा हूँ और अपने पुराने ऋण भी चुका सका हूँ।

इस दौरान मैंने सिर्फ गुरुजी से प्रार्थना की थी। गुरुजी में मेरी श्रद्धा कभी व्यर्थ नहीं गई है। मैंने गुरुजी का मंदिर अपने घर और चिकित्सालय में बनाया है और सत्संग में हम जो गुरबानी सुनते हैं, हमेशा मेरे चिकित्सालय में चलती है। मेरे अधिकतर मरीज़ गुरुजी के बारे में पूछते हैं और गुरबानी का आनंद उठाते हैं।

गुरुजी ने एक मरीज़ की 'शल्य चिकित्सा' की

चार-पाँच साल पहले, एक बुज़ुर्ग महिला मरीज़ अपने दामाद, जो मेरा मरीज़ था, के साथ मेरे पास आई। वह अपने बेटे के साथ अमेरिका में रहती थी। वह 73 साल की थीं। उसे एक प्रमुख शल्य चिकित्सा की ज़रूरत थी, जिसमें जबड़े की हड्डी का संशोधन (ग्राफ्टिंग) होना था। यह शल्य चिकित्सा जनरल एनेस्थीसिया में होनी थी। उसे उच्च रक्त चाप था, जो 160-180 Hgmm या 200 भी पहुँच सकता था।

अमेरिका में चिकित्सकों ने उच्च रक्त चाप की वजह से शल्य चिकित्सा करने से मना कर दिया था। दिल्ली में भी चिकित्सकों का यही जवाब था। कोई भी चिकित्सक इतना बड़ा जोखिम उठाना नहीं चाहता था। वह महिला पिछले दो सालों से दर्दनाशक दवाईओं पर जी रही थी। मैंने भी शल्य चिकित्सा करने से मना कर दिया। वह अपनी बात पर अड़े रहे किन्तु मैं नहीं माना। उस महिला की बेटी ने मेरे चिकित्सालय में गुरुजी की तस्वीर देखी और मुझे शल्य चिकित्सा करने को कहा। उसका यह मानना था कि चूँकि गुरुजी मेरे अर्थार्त उनके चिकित्सक के साथ थे, कुछ भी अप्रिय नहीं होगा। उसके यह शब्द सुनने के बाद मैंने शल्य चिकित्सा की तैयारी शुरू की।

मैंने शल्य चिकित्सा जनरल एनेस्थीसिया में की जिस में दो से तीन घंटे लगे। शल्य चिकित्सा के दौरान एनेस्थेटिस्ट चिंतित हो गया और उसने मुझे दो बार चेतावनी दी कि मरीज़ की स्थिति खराब हो रही है। किन्तु शल्य चिकित्सा बहुत सफल रही। उस महिला ने अपनी बेटी को बताया कि उसने दो बार गुरुजी को सफ़ेद चोले में देखा और गुरुजी ने उससे बात की और उसे आश्वासन दिया कि वह ठीक हो जाएगी। शल्य चिकित्सा के बाद ना कोई दिक्कत आई, और उसे कोई सूजन या दर्द भी नहीं था।

उस महिला ने मुझे बताया कि वह साई बाबा की भक्त थी पर गुरुजी ने उसे नया जीवन दिया था। उसने मुझसे गुरुजी की एक तस्वीर ली और वह बहुत खुश थी। उसे दर्द या सूजन की कोई शिकायत नहीं थी, जो ऐसी शल्य चिकित्सा में असाधारण होता है। जो महिला पिछले दो सालों से दर्दनाशक दवाईयाँ लेकर काम चला रही थी, शल्य चिकित्सा के बाद उसे एक भी दर्दनाशक दवाई लेने की ज़रूरत नहीं पड़ी थी। यह सिर्फ गुरुजी के आशीर्वाद से मुमकिन हुआ था। मुझे अभी भी यही लगता है कि यह शल्य चिकित्सा उन तीनों चिकित्सकों ने नहीं, बल्कि मेरे गुरुजी ने की थी।

मेरे दोस्त की सहायता हुई

मेरे दोस्त की आठ साल की बेटी को ह्रदय के वाल्व की गंभीर समस्या थी और उसे दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में शल्य चिकित्सा कराने का सुझाव दिया गया था। शल्य चिकित्सा की तारीख़ तय हो गई थी और मैंने गुरुजी से उस बच्ची के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की और उसके माता-पिता को गुरुजी द्वारा दिए गये प्रसाद और फूल दिये।

उसकी शल्य चिकित्सा दिल्ली में हुई परन्तु बच्ची की हालत बहुत नाज़ुक थी। मैं गुरुजी के पास गया तो उन्होंने कहा, "सब ठीक हो जायेगा।" मैं बच्ची के माता-पिता से मिलने रात को एक बजे अस्पताल गया। वे परेशान थे। मैंने उन्हें प्रसाद लेने को कहा और कहा कि सब ठीक हो जाएगा। गुरुजी ने मुझे अपनी एक तस्वीर भी दी जो बच्ची के कमरे में रखनी थी। जैसे गुरुजी का कथन था, बच्ची स्वस्थ हो गई।

गुरुजी की तस्वीर बच्ची के कमरे में है और वह रोज़ गुरुजी से प्रार्थना करती है। एक साल बाद फिर उस बच्ची की हालत गंभीर हुई और उसे एक और शल्य चिकित्सा कराने को कहा गया। गुरुजी उस समय जालंधर में थे। गुरुजी ने मुझे चिन्ता न करने को कहा और कहा कि सब ठीक हो जाएगा। उन्होंने कहा, "तू लंगर कर, चिंता न कर, कुड़ी ठीक हो जाएगी।" वह फिर सवस्थ हो गई और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रही है।

एक बार गुरुजी पंजाब में अपने गृह-नगर गए। मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि वह कहाँ हैं और जब दस दिन तक मुझे उनके दर्शन नहीं हुए, मैं बहुत परेशान हो गया और सो भी नहीं पा रहा था। एक दिन, अपनी पत्नी के साथ देर रात का शो देखकर मैं गुरुजी के यहाँ गया। अंधेरिया मोड़ पर मेरी गाड़ी का आगे का पहिया फट गया और मेरी गाड़ी एक तरफ झुक गयी। थोड़ी दूरी पर कुछ रोशनी थी और दो ट्रक खड़े थे। मैं किसी तरह अपनी पत्नी की मदद से गाड़ी को वहाँ तक ले गया। मैंने एक ट्रक के ड्राइवर को गाड़ी का पहिया बदलने को कहा। वह मेरी मदद के लिए आये, पर विश्वास कीजिए, गाड़ी का पहिया बिल्कुल ठीक था और कहीं कोई पंक्चर नहीं था। उन्हें लगा कि मैं पिया हुआ हूँ और उन्होंने मुझे कहा कि गाड़ी का पहिया बिल्कुल ठीक है। मेरी पत्नी और मैंने गाड़ी का पहिया देखा था और काफी दूर तक किसी तरह गाड़ी लाये थे। हम दोनों स्तभित हो गए और हमें यकीन ही नहीं हो रहा था। मैं वहाँ से घर वापस चला गया और गुरुजी के यहाँ नहीं जा सका।

मेरी पत्नी पहिये की फिर से जाँच कराना चाहती थी। मैंने एक पेट्रोल पम्प पर उसे दिखाया और पहिया बिल्कुल ठीक था। मेरी पत्नी ने मुझे दोबारा उसे फरीदाबाद में दिखाने को कहा। मैंने सुबह को पहिया खुलवाया और पहिया और उसकी ट्यूब बिल्कुल ठीक थे। गुरुजी के आशीर्वाद ने एक और करिश्मा कर दिखाया था।

यह मेरे कुछ अनुभव हैं, किन्तु अभी और बहुत हैं। जैसे समुद्र का कोई अंत नहीं है, वैसे ही गुरुजी की शक्ति का भी कोई अंत नहीं है। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैं गुरुजी का अनुयायी हूँ और मैं हमेशा गुरुजी का अनुयायी बनकर ही जीना चाहूँगा।

गुरुजी कौन हैं?

मेरे गुरुजी सारी मानव जाति के लिए वरदान हैं। उन्होंने जन्म ही इसलिए लिया कि वह लोगों को अपने आशीर्वाद से जीवन जीने का सही तरीका सिखा सकें। जिन्हें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है वह दुनिया के सबसे भाग्यशाली लोग होते हैं और मैं उनमें से एक हूँ। मुझे भगवान की सबसे बड़ी सौगात यह प्राप्त हुई है कि मुझे मनुष्य जीवन मिला और मैं सर्वाधिक भाग्यशाली हूँ कि मुझे मेरे गुरुजी मिले। हालाँकि मैं 'मेरे गुरुजी' बोलता हूँ, वह सबके लिए हैं, सिर्फ मेरे लिए नहीं। जो भी उनके आगे पूरा आत्मसमर्पण करता है, वह अपने अंदर गुरुजी को महसूस करता है और गुरुजी के बिना रहने की सोच भी नहीं सकता है।

मैं अपने दैनिक जीवन में इतने लोगों से मिलता हूँ, उनमें से अधिकतर मेरे चिकित्सालय के मरीज़ होते हैं, और वह गुरुजी का नाम जानना चाहते हैं। मैं उनको कहता हूँ कि गुरुजी बस गुरुजी के नाम से जाने जाते हैं। उनका कोई नाम नहीं है, और भगवान का कोई नाम नहीं होता है; आप उन्हें कृष्ण, राम, शिव, गुरु नानक जी या अल्लाह बुला सकते हैं। और गुरुजी आपकी निष्ठा किसी भी रूप में स्वीकारते हैं, क्योंकि वही हैं जो पूरन गुरु और महापुरुष हैं हमारे पावन देश में, जो सदियों से ऋषियों और गुरुओं द्वारा पवित्रिकृत किया गया है।

इसलिए मैं अपने मरीज़ों को यही कहता हूँ कि मेरे गुरुजी का कोई नाम नहीं है, और यह उनका सौभाग्य है कि उन्होंने उनकी तस्वीर देखी है और उनके बारे में पूछा है। मैं उनको कहता हूँ कि गुरुजी का एहसास ही बहुत खास है। मेरे गुरुजी के पास शिव की शक्ति और गुरु नानक जी की आध्यात्मिक शक्ति है। उन्होंने जन्म ही लिया है उन लाखों लोगों के दुःख और पीड़ा कम करने के लिए जो उनकी शरण में आते हैं।

आपका स्वभाव, जो सालों से ऐसा होता है, गुरुजी से मिलने के बाद बदल जाता है। आप एक बेहतर इंसान बन जानते हैं, जिसकी कमज़ोरियाँ घट जाती हैं और जो उनकी संगत में जीवन जीना सीख जाते हैं। मेरे जीवन का सबसे अच्छा दौर अब है, जब मैं गुरुजी के आशीर्वाद का आनंद उठा रहा हूँ।

लोग मुझसे पूछते हैं कि गुरुजी संगत को क्या उपदेश देते हैं। मैं उनको कहता हूँ कि गुरुजी अपनी संगत को अपने प्रसाद के साथ अपना आशीर्वाद देते हैं और उनके प्रसाद में ही उनका आशीर्वाद और सीख है। जो समय आप गुरुजी के साथ बिताते हैं, जब वह आपसे बात करते हैं या आपकी ओर देखते हैं, तब आपको उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और आप चिंतामुक्त हो जाते हैं। वह संगत को अपना स्नेह देते हैं, जिसकी तुलना सिर्फ माँ की ममता से की जा सकती है। जब भी वह आपकी तरफ देखते हैं, उनकी आँखों से दिव्य आशीर्वाद की किरणें प्रतिबिम्बित होती हैं। जब आप पूरी सच्चाई से उनको सम्पूर्ण समर्पण कर देते हैं - किन्तु-परन्तु और सवाल छोड़कर, और पूरी श्रद्धा के साथ, तब आप उनको अपने अन्दर महसूस कर सकते हैं।

उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक ही तरीका है कि हम सच्चे दिल से उनकी प्रार्थना करें। जब आप प्रार्थना करते हैं, गुरुजी के साथ होने का दिव्य एहसास आपके अंदर समाता है और आपके साथ रहता है, और जैसा भगवद गीता में लिखा गया है, आपको इसके बदले में कुछ नहीं माँगना चाहिए। हम इंसान हैं और परेशानियों से घिरे रहते हैं, और हम चाहते हैं कि गुरुजी उनका समाधान करें, अर्थात हम गुरुजी से अत्याधिक माँगें रखते हैं। हमें गुरुजी से तभी सहायता माँगनी चाहिए जब हम पर या हमारे परिवार पर कोई बड़ी कठिनाई आई हो। वैसे भी, उनका आशीर्वाद, जो वह संगत को नियमतः देते ही रहते हैं, हमारी सभी परेशानियों को दूर कर देता है, बिना उन्हें कुछ बताये हुए।

मेरे गुरुजी सरल, सहज और निष्कपट हैं। वह हमें कुछ भी खाने या पीने से मना नहीं करते हैं। इन सब चीज़ों का निर्णय वह हम पर ही छोड़ते हैं। वह हमारे निजी जीवन में कभी हस्तक्षेप नहीं करते हैं। वह हमेशा चाहते हैं की हम एक अच्छा और खुशहाल जीवन व्यतीत करें और वह अपने आशीर्वाद से यह सुनिश्चित कर देते हैं।

मैं अक्सर अपने आप से पूछता हूँ कि हम गुरुजी को क्या दे सकते हैं। मेरा दिल मुझसे कहता है कि हम बस उनकी लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और सारी मानवजाति के कल्याण के लिए यही अच्छा है कि वे निष्ठापूर्वक गुरुजी के कथन का पालन करें। यह कभी-कभार ही होता है कि वह किसी को कुछ करने के लिए कहते हैं। अगर आप भाग्यशाली हैं, सम्भव है कि वह आपको कुछ करने के लिए कहें और यकीनन उसमें आपका ही हित होगा। हम उनके आगे तुच्छ प्राणी हैं, किन्तु वह हमारा ख्याल रखते हैं, वैसे ही जैसे एक माँ अपने बच्चों का ख्याल रखती है। हमें हमेशा गुरुजी के स्वास्थ्य का सोचना चाहिए और हमें अपने स्वार्थ का सोचते हुए कभी भी गुरुजी को किसी एक स्थान पर रहने के लिए उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए। हमें उनके अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और हित के लिए सदैव प्रार्थना करनी चाहिए। यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हम गुरुजी से विनती ही कर सकते हैं की वह बार-बार हमें अपने दर्शन करने का मौका दें ताकि उन्होंने हमें जो मार्ग दिखाया है हम उससे हट न जायें।

मेरा संगत से यही निवेदन है कि वह सदैव अपनी प्रार्थनाओं में गुरुजी के हित का ध्यान करें और हमेशा गुरुजी के दिखाए हुए मार्ग पर चलें। हमें सदैव उन्हें पूर्णता समर्पण करना है और उनकी बताई हुई ए बी सी का पालन करना है : कभी किसी को गाली ना दें (डोन्ट एब्यूज), कभी किसी पर आरोप ना लगाएँ (डोंट ब्लेम), कभी किसी के लिए अपशब्द ना बोलें (डोंट कर्स) और जिससे भी आप अपने दैनिक जीवन में मिलते हैं, उसका भला ही सोचें।

डॉ एम एम बजाज, चिकित्सक, फरीदाबाद

जुलाई 2007