जून 2004 में, जब गुरुजी ने अपने चरणों में स्थान दिया, तबसे हम अत्यंत सौभाग्यशाली रहे हैं। उस समय से हमारे जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है, वह हमें अधिक आश्वस्त और आनंदमय लग रहा है। गुरुजी के मंदिर के शांत वातावरण में अत्याधिक ऊर्जा का आभास होता है। उनकी दया से हम अध्यात्म पथ पर अग्रसर होते रहे हैं। हमारा स्वभाव अब शांत, नम्र और सुखमय है। वास्तव में अब दुःख का कोई स्थान नहीं है। यदि कभी कोई कष्ट आता भी है तो हमें पता है कि गुरुजी की छत्रछाया हमारे ऊपर बनी हुई है और उन्होंने हमारे किसी बुरे कर्म के फल को दूर किया है। एक ऐसा अनुभव जो उनके न होते हुए कहीं अधिक दुखदायी होता।
गुरुजी की संगत के साथ एक अनूठा बंधन है जिसमें हम अपने आपको एक बड़े परिवार का सदस्य समझते हैं। हमारे स्वाभिमान का स्थान अब नम्रता ने ग्रहण कर लिया है। हमें संगत से वार्तालाप करना अच्छा लगता है क्योंकि इस प्रकार हम गुरुजी के बारे में और बहुत कुछ जान रहे हैं। सीख के इन अनुभव के साथ इस बड़े परिवार में और सदस्यों के साथ पारस्परिक प्रेम भी बढ़ता है।
सत्संगों को सुन कर हमें पता लगा कि गुरुजी को अपने कष्ट बताने की भी आवश्यकता नहीं है। एक हार्दिक प्रार्थना से ही महापुरुष की कृपा हो जाती है। हमें यह भी आभास हो गया है कि गुरुजी से कुछ विनती करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार वह आशा भले ही पूर्ण कर दें, संभव है कि वह सबसे अच्छी न हो। सर्वोत्तम संतुष्टि और आनंद तब मिलते हैं जब गुरुजी स्वंय कुछ प्रदान करें। इस ज्ञान के प्रतिकूल, जब भी हम दुविधा में होते हैं हम गुरुजी से कुछ माँग बैठते हैं (क्योंकि हम मनुष्य ही हैं)। गुरुजी वह अकांक्षा पूर्ण भी कर देते हैं। मेरी पत्नी, हमारे पुत्र और मैंने गुरुजी के पास जाना एक साथ आरम्भ किया था। मेरी पत्नी और पुत्र को शीघ्र ही गुरुजी में विश्वास हो गया था, मेरा संशय बना रहा।
सशर्त विश्वास का प्रयास
जब हम गुरुजी के पास दूसरी या तीसरी बार ही गये होंगे, मैंने मन ही मन गुरुजी को कहा, "मैं आपको तब गुरु मानूँगा जब आप चंडीगढ़ में एक व्यापारी के पास अटके हुए मेरे पाँच लाख रुपये वापिस दिला देंगे।"
परन्तु कुछ और दिन संगत में आने के बाद मुझे लगा कि गुरुजी के सामने केवल कुछ धन के लिए ऐसी शर्त रख कर मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी थी। मैं फिर उनसे विनती कर क्षमा याचना करने लगा और कहने लगा कि इस धन के लिए मुझे आपकी सहायता नहीं चाहिए। एक सप्ताह के पश्चात् जब मैं बंगलौर में था, मुझे उस व्यापारी का फोन आया। उसने कहा कि वह पैसा वापिस दे देगा और साथ में 3000 रूपये ब्याज भी देगा। गुरुजी महान हैं।
गुरुजी की सुगन्ध
प्रारम्भिक दिनों में जब भी हम मंदिर जाते थे, मेरी पत्नी और मेरे पुत्र को उनकी तीव्र सुगन्ध आती थी पर मुझे नहीं। संभवतः मैं गुरुजी में इतना विश्वास नहीं करता था। एक महीने के पश्चात् रात को शय्या पर लेटे हुए मैं सामने गुरुजी का चित्र देख रहा था। उनके बारे में सब अति सुन्दर संत्संग सुनने के पश्चात् भी उनमें संशय के भाव रखने के लिए मैं क्षमा याचना कर रहा था और मन ही मन उनका सच्चा भक्त बनने का वचन ले रहा था। इससे पहले मैंने कभी इतनी निष्कपट प्रार्थना नहीं की होगी। अचानक मेरे तकिये से उनकी तीव्र सुगन्ध आयी, जिसकी पुष्टि मेरी पत्नी ने भी की। अति उदार गुरुजी ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी और मैं उनका सच्चा सेवक बन गया था। उसके बाद मैंने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मेरे गुरुजी महान हैं।
अनुपस्थित पुत्र के लिए लड्डू
मेरा बेटा, समर, नाविक है। वह अपने जहाज पर चला गया था। गुरुजी अक्सर मेरी पत्नी, बब्बू, से उसकी कुशलता पूछते रहते थे। एक शाम को हम गुरुजी के मंदिर में थे। गुरुजी कहीं बाहर गये हुए थे और हम उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वह रात्रि को एक बजे लौटे और संगत में लड्डू बाँटने लगे। यद्यपि उन्होंने प्रत्येक भक्त को एक लड्डू दिया, मेरी पत्नी को दो दिये। मेरी पत्नी खुशी-खुशी मेरे पास आयी और बोली कि गुरुजी ने हमारे बेटे के लिए भी एक लड्डू दिया है।
वह यह कह रही थी कि कर्नल जोशी, गुरुजी के एक अनुयायी मेरे पास आये और अपना फोन मुझे थमा कर बोले कि हमारा बेटा बात करना चाह रहा है। मैंने उससे पुछा कि वह इस समय कैसे फोन कर रहा है। उसने उत्तर दिया कि उसकी बात करने की इच्छा हो रही थी और उसने सोचा कि हम लोग इस समय गुरुजी के मंदिर में ही होगें। गुरुजी महान हैं।
पत्नी के रोग हरण
मेरी पत्नी तीन बार गुरुजी की दया से स्वस्थ हुई है। 1981 में वह मेनियर रोग से पीड़ित थी। इसमें कान से अन्दर के प्राकृतिक तरल का असंतुलन हो जाता है। इससे उसको सिर में चक्कर और अधासीसी के दर्द होते रहते थे। भारत और अमरीका में करवायी हुई चिकित्साएँ असफल रहीं थी। 1992 में एक होम्योपैथी औषधि की सहायता से उसे दबाया जा सका। जब तक वह औषधि लेती रहती थी, लक्षण कम हो जाते थे। गुरुजी की संगत में एक माह जाने के पश्चात्, उसने गुरुजी से मन ही मन निवेदन किया कि वह अब यह होम्योपैथी औषधि कभी नहीं लेगी। उसे स्वस्थ करना अब उनके हाथ में है। औषधि छोड़ने पर उसकी वेदना अति तीव्र हो गयी परन्तु उसने वह दवाई नहीं ली। यह 15 दिन तक रहा। उसके पश्चात् वह जिस प्रकार से शरु हुए थे उसी प्रकार से एकदम समाप्त हो गये। उसके बाद आज तक वह फिर कभी नहीं हुए। गुरुजी महान हैं।
अप्रैल 2005 में बब्बू की आंख में काले धब्बे होने लगे। नेत्र विशेषज्ञ ने उसका परीक्षण करने के पश्चात् बताया कि उसका दृष्टिपटल सूजा हुआ है और यदि उसने तुरन्त स्टिरोइड की गोलियाँ खानी आरम्भ नहीं करीं तो वह अपनी दृष्टि भी खो सकती है। किन्तु इन्हें खाने से उसका अप्रकट तपेदिक रोग उभर सकता था। अतः उसे उसकी भी चिकित्सा करानी पड़ेगी। यह सुनकर वह चितिंत हो गयी। चूंकि हम गुरुजी से सीधे इसका उल्लेख करने में झिझक रहे थे एक अन्य महिला, गुरुजी की दीर्घकालीन भक्त, ने गुरुजी को इसके बारे में बताया। फिर भी, जब बब्बू उनसे आज्ञा ले रही थी, गुरुजी कुछ नहीं बोले। रोग के भय से बब्बू ने गुरुजी को कहा कि वह स्टिरोइड नहीं लेना चाहती है। गुरुजी ने मुस्कुरा कर हमारे फिरोज़पुर वाले घर में रखा हुआ शुद्ध मधु लाने को कहा। बब्बू जब वह शहद लेकर आयी तो गुरुजी ने उसे अभिमंत्रित किया और उसे अपनी आँखों में डालने के लिए कहा।
कुछ दिन पश्चात् बब्बू का परीक्षण चंडीगढ़ स्थित हमारे पारिवारिक नेत्र विशेषज्ञ ने किया। उसने कुछ औषधियाँ खाने को कहा और आँखों में डालने वाली बूँदे भी दी। उसने आँखों में मधु डालने को मना किया क्योंकि उससे आँखों में डालने वाली बूदों का प्रभाव नहीं रहेगा। हमने चिकित्सक का कहा माना, किन्तु आँखों में शहद भी डालते रहे। दो सप्ताह के उपरान्त उसकी आँखें बिल्कुल ठीक हो गयीं थी और तपेदिक के परीक्षण का परिणाम भी नकारात्मक निकला। चिकित्सक ने बताया कि उनके पास एक अन्य महिला रोगी इसी प्रकार की समस्या के साथ आ रही है - उसका रोग इतना अधिक नहीं है - किन्तु उसे लाभ नहीं हुआ है। बब्बू का उदाहरण तो वास्तव में चमत्कार है। उसने बब्बू से पुछा कि क्या वह भगवान में विश्वास करती है। क्या इसमें कोई शंका थी? गुरुजी महान हैं।
पिछले नौ वर्षों से बब्बू के मुख पर विषाणुजनित मस्से हो रहे थे। त्वचा विशेषज्ञ की अनेक औषधियाँ और उनको जलाने की क्रियाएँ असफल रही थीं। अंततः उसकी चिकित्सा गुरुजी के ही एक अन्य भक्त, डॉ. डी आर चौहान, ने मार्च 2005 में की। एक सप्ताह में ही, कभी फिर वापिस न होने के लिए, वह सब लुप्त हो गये। गुरुजी महान हैं।
दुर्घटना से रक्षा
दिसंबर 2006 में चंडीगढ़ में एक चौराहे पर अस्सी किलोमीटर के वेग से आती हुई एक एम्बेसेडर गाड़ी ने हमारी जे़न गाड़ी पर किनारे से आकर टक्कर मारी। हमारी गाड़ी चार फुट दूर चली गयी। उसके दरवाजे, खिड़कियाँ, मडगार्ड, सामने का शीशा, यहाँ तक कि गाड़ी का यंत्रों वाला हिस्सा भी टूट गया। इतनी ज़ोर से दुर्घटना होने के बाद भी हम चारों सुरक्षित बाहर निकल आये। गाड़ी को ठीक कराने के लिए मुझे कुछ धन व्यय नहीं करना पड़ा क्योंकि एम्बेसेडर गाड़ी के स्वामी ने पूरा पैसा दिया। यह सब केवल गुरुजी की दया से ही संभव हो पाया। गुरुजी महान हैं।
हम गुरुकृपा के लिए उनके अत्यंत आभारी हैं। गुरुजी अक्सर कहते थे कि आने वाले समय में इस संसार में अनेक कठिनाईयाँ आने वाली हैं - कोई किसी की सहायता नहीं करेगा, चाहे वह उसका अति घनिष्ठ संबंधी, भाई, बहन या कोई अन्य ही क्यों न हो। केवल गुरुजी की संगत के इस परिवार में ही सुख, शांति और चैन मिल पायेगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि हम उनकी संगत के सदस्य होकर और उनकी दया के पात्र बन कर सौभाग्यशाली हैं । ॐ नमःशिवाय,गुरुजी सदा सहाय।
मेजर जनरल मोहिंदर पाल सिंह संधू, चंडीगढ़
जुलाई 2007