बुरे समय में मित्र की सहायता

मुकेश अलका कुमार, मार्च 2010 English
अगस्त 2009 में जब मैं भारत आया हुआ था तो मुझे पता चला कि मेरे बचपन के एक मित्र को रक्त स्राव (हेमरिज) हुआ था जिसके वजह से उसके शरीर के बायें हिस्से में लकवा हो गया था।

मैं उसे देखने अस्पताल गया और मैं सोच में था कि कैसे मैं उसकी सहायता कर सकता था। अचानक मुझे याद आया कि मेरे पास गुरूजी की तस्वीर थी।

क्योंकि मेरा मित्र बहुत ज़्यादा सिगरेट और शराब पीता था, उसे गुरूजी की तस्वीर देने का मेरा मन नहीं था। मैंने उससे पूछा कि क्या वो अपनी यह दो बुरी आदतें छोड़ने के लिए तैयार था। मैंने उससे कहा कि इसके बदले उसका उपचार हो जाएगा। उसने सिगरेट और शराब दोनों छोड़ देने का वादा किया। मैंने उसके तकिये के नीचे गुरूजी की तस्वीर रख दी और उसकी पत्नी को तस्वीर संभाल के रखने को कहा। फिर मैं वहाँ से चला आया।

अगले ही दिन वह अच्छा महसूस करने लगा -- इतना अच्छा कि उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गाई और वह घर तक पैदल चल कर गया !

चार दिन बाद उसने मुझे फोन करके कहा कि उसके लिए अपना वादा पूरा करना मुश्किल होगा। यह सुनकर मैं दुःखी हुआ और उसके लिए चिन्तित भी हुआ क्योंकि उसका ठीक होना उसके शराब और सिगरेट छोड़ने पर निर्भर था। मैं उसे यह दोनों आदतें छोड़ने के लिए मना नहीं पाया और मैंने सब गुरूजी पर छोड़ दिया।

मुझे नहीं पता क्या हुआ पर दो घंटे बाद उसने मुझे फोन करके कहा कि उसका मन बदल गया है और वह अपना वादा पूरा करेगा। यह एक चमत्कार ही था।

आज मेरा मित्र खड़ा हो पाता है, चल सकता है, धीमी गति से और थोड़े दर्द के साथ परन्तु इतना कि वह ऑफिस जा सके और अपनी रोज़ की दिनचर्या पूरी कर सके। मुझे पूरा यकीन है कि यह सब गुरूजी के आशीर्वाद से हुआ है । मेरे मित्र का पूरी तरह से ठीक हो जाना हो जाना अब दूर नहीं है।

मुकेश अलका कुमार, एक भक्त

मार्च 2010