मदात्यय दूर हुआ

मुनीत जाखर, जुलाई 2007 English
बचपन में मैं जब भी अपने परिवार के साथ जालंधर जाता था, मैं अपने नाना-नानी के घर में रहता था। मेरे नाना-नानी के परिवार में सब नियमित रूप से जालंधर में गुरुजी के यहाँ जाते थे। इस प्रकार से एक बार जब मैं जालंधर में था, तो मैं अपने परिवार के संग गुरुजी से मिला।

उनके यहाँ जब हम अंदर प्रविष्ट हुए, वहाँ पर इतनी खुशबू थी जैसे किसी ने पूरे कमरे में इत्र छिड़का हो। हम बैठकर देखते थे कि लोग कैसे उमड़ कर आते थे गुरुजी से आशीर्वाद लेने के लिए। फिर गुरुजी अपनी मनकों की माला से गिलास के पानी को अभिमंत्रित करके हमें देते थे और हम वह जल पी लेते थे। उस जल से एक विशिष्ट सुगंध आती थी। हालाँकि हम बच्चे थे, फिर भी हम बिना बेचैनी के वहाँ बैठे रहते और हमें पता ही नहीं चलता कि इतना समय कैसे गुज़र जाता था।

मेरे पिता एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें भगवान के अलावा किसी और में विश्वास नहीं है। वह मुझे और मेरी माँ को गुरुजी के यहाँ जाने से मना करते थे क्योंकि उन्हें यह पसंद नहीं था। इसलिए हमने वहाँ जाना छोड़ दिया। करीब आठ साल तक हम गुरुजी के यहाँ नहीं गए, किन्तु मेरी मामी और ममेरी बहनें नियमित रूप से वहाँ जाते रहे। गुरुजी अक्सर हमारे बारे में पूछा करते थे और उन्हें कहते थे कि वह हमें यहाँ आकर उनसे मिलने के लिए कहें। कुछ समय बाद गुरुजी दिल्ली चले गए।

2003 में एम बी ए करने के लिए मैं भी दिल्ली आ गया। क्योंकि मैं अकेला रहता था और मुझे मदिरा पसंद थी, मैंने पीना शुरू कर दिया। चार महीने पहले मैंने अपने माता-पिता के ज़ोर देने पर अपना लिवर फंक्शन टेस्ट कराया। मैंने एक बार पहले भी यह टेस्ट कराया था और तब परिणाम कुछ खराब आए थे किन्तु मैंने उन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था।

इन परिणामों के आधार पर, एक सामान्य व्यक्ति को कुल 40 IU/L (इंटरनेशनल यूनिट्स प्रति लीटर) होना चाहिए; जबकि मेरे परिणाम थे 347 यूनिट - सामान्य से कहीं ज़्यादा। यह स्पष्ट था कि यदि मैंने पीना नहीं छोड़ा तो मुझे लिवर सिरोसिस हो जाएगा, जो लाइलाज होता है। अत्यधिक मद्यासक्त के कारण लिवर पर चर्बी जमा हो जाती है जिसके वजह से लिवर सिकुड़ता जाता है और ठीक से काम नहीं कर पाता है। इस रोग का मृत्यु के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।

इस दौरान मेरी माँ मेरे साथ रहने के लिए आई थी क्योंकि मैं अपना घर वसंत कुंज से द्वारका बदलने की सोच रहा था और वह मेरी सहायता करने के लिए मेरे साथ रह रहीं थीं। मेरी माँ, जो बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की हैं, गुरुजी के यहाँ उनका आशीर्वाद लेने और मेरी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों के वजह से गयीं। वह गुरुजी के यहाँ नियमित रूप से जाने लगीं और उन्होंने मुझ पर भी वहाँ चलने के लिए ज़ोर डाला। एक दिन गुरुजी ने मेरी माँ को कहा कि उनकी संतान बहुत पीड़ा में है और मुझे आने के लिए कहा।

मैंने गुरुजी के यहाँ जाना शुरू किया। मेरे पिता इस बात से अनजान थे कि हम गुरुजी के यहाँ जा रहे थे। मैं अपना काम खत्म करने के बाद सीधा गुरुजी के यहाँ जाता था, चाय और लंगर ग्रहण करके फिर घर जाता था। मैंने कुछ संगत से गुरुजी के गुणगान सुने और वह यह भी बताते थे कि कैसे गुरुजी ने लोगों की मदद की और उनके कष्ट दूर किये। लोगों को उनके रोगों से मुक्ति मिली थी, जैसे कैंसर, ह्रदय-रोग, इत्यादि; लोगों को उनकी आर्थिक परेशानियों से भी मुक्ति मिली थी और अब वह खुश थे।

गुरुजी ने मेरी माँ को उनके पास 10 दिन लगातार आने को कहा और ताम्र का लोटा लाने को कहा, जिसे उन्होंने अभिमंत्रित किया और मैं रोज़ सुबह उससे जल पीता था। मैं नियमित रूप से गुरुजी के यहाँ जाने लगा और जब मैं वहाँ बैठा करता तो बस एक ही चीज़ पर ध्यान लगाता - उनका आशीर्वाद।

इस दौरान मैं अपने एक दोस्त, जिसका इलाज भी इसी रोग के लिए चल रहा था, द्वारा बताए हुए डॉक्टर के पास गया। मेरा वह दोस्त भी वही दवाईयाँ ले रहा था जो मुझे लेने के लिए कही गई थीं। उसे यह दवाईयाँ लेते हुए चार महीने से ज़्यादा हो गए थे और अभी तक उसके परिणाम सामान्य नहीं हुए थे।

जबकि मेरे लिए, एक दिन गुरुजी मेरी माँ को बोले कि उसे फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि उनकी संतान ठीक हो चुकी थी। और गुरुजी ने मुझे दोबारा जाँच कराने को भी कहा।

मैंने अगले दिन दोबारा जाँच करायी और मैं आश्चर्यचकित रह गया जब परिणाम आए, 40 IU/L, जो सामान्य थे। मैं उनके इस चमत्कार को न ही समझ पाया और न ही कुछ प्रतिक्रिया दिखा पाया। मैंने उसी क्षण गुरुजी के यहाँ जाकर उनको इस आशीर्वाद के लिए धन्यवाद करने का सोचा। गुरुजी ने मुझसे पूछा कि क्या मैंने दोबारा जाँच करायी तो मैंने हामी भर दी; गुरुजी ने मुझे कहा, "ठीक है ना, जा ऐश कर"। मैंने उनके चरण कमल छुए और गुरुजी को ह्रदय में धन्यवाद दिया।

मेरी नानी को ह्रदय रोग से बचाया

उसी रात मेरी माँ और नानी ने मुझे एक चमत्कार के बारे में बताया जो दस साल पहले हुआ था। मेरी नानी को तीन बार दिल का दौरा पड़ा था और चिकित्सकों ने यह कहकर कि वह नहीं बचेंगी, आगे कुछ भी करने से मना कर दिया था। मेरी माँ और मामाजी गुरुजी के पास सहायता के लिए गए, जो उन्होंने आधी रात को की। उन्होंने मेरी माँ और मामाजी को पान के पत्ते लाने को कहा। मेरी नानी जहाँ लेटी हुईं थीं, गुरुजी ने उसके साथ वाले कमरे में स्तुति की और फिर मेरी माँ को मेरी नानी के वक्षस्थल पर पान के पत्ते रखने को कहा। दस मिनट बाद मेरी नानी ने मूत्र त्यागा, जो एक सकारात्मक चिन्ह था, जिसके बाद चिकित्सक उन्हें बाईपास के लिए लुधिआना ले गए। गुरुजी के कारण ही मेरी नानी ज़िंदा हैं और इस बात को आज दस साल हो चुके हैं।

कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो समझाई नहीं जा सकतीं। वह तभी समझी और स्वीकारी जा सकतीं हैं जब वह आपके खुद के साथ होती हैं। जब से मैं रोग-मुक्त हुआ हूँ, मेरा गुरुजी में विश्वास दुगुना हो गया है और मैं यह चाहता हूँ कि सदा ही उनका आशीर्वाद मुझ पर और मेरे परिवार पर बना रहे।

मुनीत जाखर, सेल्स तथा मार्केटिंग मैनेजर

जुलाई 2007