हम गुरुजी के पास चार साल पहले 28 नवम्बर 2003 को गए। हम बहुत परेशानी में थे परन्तु धीरे-धीरे गुरुजी के आशीर्वाद से सब ठीक हो गया। हमारी ज़िन्दगी की गाड़ी पटरी से उतरी हुई थी और सिर्फ गुरुजी ही थे जिन्होंने हमारा हाथ थामा और सब सामान्य किया। उनमें विश्वास रखिए, ज़िन्दगी की घोर अंधकारपूर्ण स्थितियों से निकालने के लिए वह सदा हमारी सहायता करते हैं। गुरुजी सर्वव्यापी हैं। वह अपनी उपस्थिति का बोध हमारी दैनिक ज़िन्दगी में हमें कराते हैं... इस वक्त भी जब मैं यह लिख रहा हूँ मैं अपने आस-पास उनकी दिव्य गुलाबों की महक महसूस कर सकता हूँ। वह सर्वोच्च शक्ति हैं, हमारे स्वामी, हमारे मुक्तिदाता।
हमें बचाने के लिए और हमारा मार्गदर्शन करने के लिए हम गुरुजी का धन्यवाद करते हैं। उनके बिना, बहुत पहले हमारी ज़िन्दगी खत्म हो जाती। हम भाग्यवान हैं कि घर में रखी गुरुजी की तस्वीरों के माध्यम से हमारी आवाज़ गुरुजी तक पहुँचती है और वह सपनों द्वारा हमें जवाब देते हैं - वह भी तो उनके दर्शन हैं।
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गुरु पूर्णिमा से एक दिन पहले, 29 जुलाई 2007 को, शनिवार के दिन, हमने अपना घर और मंदिर फूलों से सजाने और गुरुजी की तस्वीरों पर फूलों की मालाएँ चढ़ाने का निश्चय किया। हमने सुखमनी साहिब (गुरु अर्जन देव, पाँचवे सिख गुरु, द्वारा संकलित 192 प्रचलित शबद, जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में हैं) का पाठ रखने का भी निश्चय किया।
जब हम सजावट में व्यस्त थे मेरी बेटी बोली कि जब हम बड़े मंदिर से लौटेंगे तो पूरा घर गुरुजी की सुगन्ध से भरा होगा। वाकई, जब हम लौटे तो पूरा घर गुरुजी की सुगन्ध और उनके एहसास से भरा हुआ था।
इससे भी ज़्यादा आश्चर्यजनक यह बात थी कि गुरुजी की तस्वीर और मंदिर पर लगाई हुई फूलों की मालाएँ आकार और लंबाई में बढ़ गई थीं। यहाँ तक कि सुबह को गुरुजी की तस्वीर पर लगी हुई फूलों की माला मंदिर के नीचे तख़्ते तक पहुँच चुकी थी। शाम तक वह तख़्ते के नीचे, और थोड़ी देर बाद ज़मीन तक पहुँच गई। हम बहुत खुश थे; हमारा हृदय खुशी से भर गया था क्योंकि गुरुजी अपनी उपस्थिति और हमारे लिए उनके प्रेम का एहसास करा रहे थे।
गुरु पूर्णिमा के बाद हमने मंदिर और सीढ़ियों से सारी गुलाब की पंखुड़ियाँ उठाईं, सीढियाँ साफ कीं और पंखुड़ियाँ नदी में बहा दीं। इस बात को एक महीने से ज़्यादा हो चुका है और तब से हम देख रहे हैं कि गुलाब की कुछ पंखुड़ियाँ हमेशा घर के मंदिर या सीढ़ियों पर पड़ी होती हैं। हमारा यह पूरी तरह से मानना है कि अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास कराने का यह गुरुजी का तरीका है।
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एक और घटना उनकी सर्वविद्यमानता का एहसास कराती है। एक सुबह मैं अपनी गाड़ी में बैठा, जब वह अभी-अभी साफ हुई थी। जैसे ही मैंने गियर छूआ मुझे कुछ चिपचिपा महसूस हुआ। वह कुछ चीनी या शहद जैसा था, गुरुजी की उपस्थिति की तरफ संकेत करते हुए। वह दिव्य रस, या अमृत, घंटों तक रहा।
हमारी हाथ जोड़कर गुरुजी से विनती है कि वह हमें अपने चरण कमलों और संरक्षण में रखें। आजीवन हमें आशीर्वाद दें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें। "रखी चरणा दे कोल, मेहरा वालियाँ साईयाँ रखी चरणा दे कोल।" (हे शोभायमान, हमें अपने चरण कमलों में रखें।) गुरुजी की कृपा सब पर हो।
नरिन्दर रसीन, एक अनुयायी
मार्च 2008