1995 में स्वीडन में 13 वर्ष रहने के बाद स्वदेश वापस लौटने पर मेरी गुरुजी के यहाँ की यात्रा आरम्भ हुई। उस समय से गुरुजी के हर दर्शन का अवसर आशीष से परिपूर्ण है, एक यादगार घटना। जब मैंने गुरुजी के यहाँ जाना आरम्भ किया, मैं शांति और स्थिरता की खोज में थी। मैंने सुना था कि गुरुजी ने कैंसर, ह्रदय रोगियों और अन्य असाध्य रोगों से अपने भक्तों को मुक्त किया हुआ था। एक अवसर पर मेरे साथ एक अनोखी घटना हुई।
बचपन से मुझे विसर्प रोग रहा है। कोई औषधि सफल नहीं हुई थी। हर बार जब वह होता था, मुझे चिकित्सक कॉर्टिजोन दिया करते थे। मेरे हाथ खुरदुरे हो गये थे। एक बार गुरुजी की संगत में बैठे हुए मैं सोच रही थी कि मेरे हाथ तो इतने कर्कश हैं, यदि गुरुजी ने कभी मुझे अपने चरण कमल दबाने को कहा तो मैं क्या करूँगी। कुछ सप्ताह में मुझे आभास हुआ कि मेरा शरीर और मेरे हाथ साफ हो गये हैं और शीघ्र ही मेरा उपचार हो चुका था। फिर एक दिन गुरुजी ने मेरे बड़े भाई, जो कश्मीर में सेना में सेवारत हैं, उनको आने को कहा। मेरे भाई गुरुजी को कभी नहीं मिले थे। अगली बार जब वह दिल्ली आये, गुरुजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी महीने वह वापस कश्मीर चले गये और उनकी बाँह में एक आतंकवादी की गोली लगी। गुरु कृपा से वह बच गये थे।
एक बार गुरुजी ने मुझे अपना एक चित्र देकर उसे शयन कक्ष में रखने के लिए कहा। बचपन से मेरे कमरे में शिव का चित्र रहा है। आज भी मेरे जीवन में कोई समस्या, शंका या सुख के अवसर आते हैं, मैं सदा उन्हें गुरुजी के साथ बाँटती हूँ और गुरुजी ने सदा मुझे उत्तर दिये हैं। जब मैं दिल्ली से बाहर होती हूँ तो उनकी कमी का आभास होता है। गुरुजी ने मुझे स्वप्न में भी दर्शन दिये हैं।
आज मुझे गुरुजी में इतनी आस्था है कि मेरे आसपास की सब वस्तुएँ उनकी याद दिलाती हैं। गुरुजी ने मुझे और मेरे परिवार को आशीष दिया है। मेरे दोनों बेटे, जिन्हें गुरुजी ने आशीर्वाद देकर अमरीका भेजा है, उनके भक्त हैं। उन पर केवल आस्था बनाये रखने से हमें सदा, हर पल उनकी कृपा प्राप्त होती रहती है। मेरे लिए गुरुजी परमेश्वर हैं जिन्होंने मुझे मेरी योग्यता और आवश्यकता से अधिक दिया है। गुरुजी, इस दया के लिए हम आपके अत्यंत आभारी हैं।
नीरा ओबेरॉय, दिल्ली
जुलाई 2007