कई वर्षों से मेरी पत्नी आर्थ्राइटस और जोड़ों के दर्द से पीड़ित थी। छह वर्ष तक उसने एम्स और उसके पश्चात् होम्योपेथी का उपचार करवाया था पर कोई लाभ नहीं हुआ था। जोड़ों के दर्द के कारण वह चल भी नहीं पाती थी, बैठने और उठने में भी सहायता की आवश्यकता होती थी।
मई 1998 में हमारी बेटी ने गुरुजी के बारे में बताया और एक ताम्र लोटे के साथ उनके आशीष के लिए आने को कहा। अगले दिन हमें पहली बार गुरुजी के दर्शन हुए और हमने अपना आदर प्रकट किया। गुरुजी ने ताम्र लोटे को अभिमंत्रित किया। मेरी पत्नी को रात को उसमें जल भर कर रखने के पश्चात् सुबह उसमें से आधा जल पीना था और शेष से स्नान करना था। कुछ समय में उसकी स्थिति में सुधार आया। समय के साथ उसके जोड़ों की वेदना भी कम हुई। गुरु कृपा से वह अब चल, बैठ और उठ पाती है।
अप्रैल 2005 में गुरुजी ने पुनः उसकी रक्षा करी। सीताराम भारतीय चिकित्सालय में नियमानुसार होने वाले परीक्षण में उसका रक्त चाप अति उच्च पाया गया - 230/120। कुछ समय तक उसको देखरेख में रखा गया और लगातार औषधि सेवन करते रहने को कहा गया। दो सप्ताह उपरान्त उसे ब्रांगकाइटस (ब्रोंकाइटिस) का दौरा पड़ा। क्योंकि उसे श्वास लेने में कठिनाई थी, उसे नेबुलाइज़र का प्रयोग करने को कहा गया।
एक दोपहर को उसकी अवस्था अचानक बहुत कष्टप्रद हो गयी और उसे सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। जब तक नेबुलाइज़र लगाते, वह चेतना शून्य हो गयी। थोड़ी देर में उसे होश आया परन्तु वह व्याकुल थी और उसने कहा कि उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। थोड़ी देर में शांति का आभास होने पर वह सो गयी। देर रात्रि में बेटी का फोन आया कि गुरुजी ने कहा है कि माँ की अवस्था शोचनीय है और सुबह उन्हें अशलोक चिकित्सालय में प्रविष्ट करवायें। अतः वैसा ही किया गया। गुरुकृपा से सब सुचारू रूप से चला और दो सप्ताह में स्वास्थ्य लाभ कर वह घर आ गयी।
पूर्ण स्वास्थ्य लाभ होने पर हम गुरुजी के दर्शन के लिए गये। श्रीमती मेहता नामक एक भक्त ने मेरी पत्नी से उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछा। हम गुरुजी के पास ही बैठे हुए थे और गुरुजी ने श्रीमती मेहता से कहा कि वह उसे स्वर्ग से वापस लाये हैं। हमें तुरन्त आभास हुआ कि वह ईश्वर के अवतार हैं। गुरुजी ने पूरे परिवार को अपना आशीर्वाद दिया है। हमारे पुत्र और पुत्री, दोनों उनके अनुयायी हैं और जीवन में बहुत अच्छा कर रहे हैं। हमारा पूरा परिवार गुरुजी की दया के लिए उनका अत्यंत आभारी है।
एन एल सप्रा, नयी दिल्ली
जुलाई 2007