मुझे मेरे गुरु मिले

एन. आर. गोयल, दिसम्बर 2009 English
मुझे गुरुजी के बारे में कर्नल (सेवानिवृत्त) एस. के. जोशी से पता चला। उन्होंने गुरुजी के साथ अपने निजी अनुभवों के बारे में बताया जिनका सम्बन्ध बीमारियों, आर्थिक परेशानियों, जायदाद और पारिवारिक विषयों से था जिनका चमत्कारपूर्ण ढंग से समाधान हुआ था। गुरुजी के पावन दर्शन के लिए मैं उनके साथ छोटे मंदिर (एम्पायर एस्टेट) गया।

गुरुजी के मुख पर तेज (आध्यात्मिक प्रभामंडल) देखकर मैं विस्मित रह गया और मैंने बहुत तृप्त महसूस किया। गुरुजी की संगत में बैठना एक अदभुत अनुभव था। जो शान्ति और स्थिरता मैंने वहाँ महसूस की, ऐसा मैंने जीवन में पहली बार महसूस किया था। और मैंने महसूस किया कि एक गुरु के लिए मेरी खोज अब पूरी हुई थी क्योंकि गुरुजी यथार्थतः वैसे थे जैसे आध्यात्मिक मार्ग दर्शक की मैंने कल्पना की थी।

शबद सुनकर, गुरुजी के दर्शन पाकर और गुरुजी से पावन प्रसाद पाते हुए मेरा समय अत्युत्तम व्यतीत हुआ। मुझे वो जगह बहुत अच्छी लगी। इस पसंद को एक लत में परिवर्तित होने में बहुत समय नहीं लगा, गुरुजी के दर्शन, प्रसाद, शबद और उनके शर्त-रहित प्रेम की लत। मैंने हफ्ते में एक बार नियमित रूप से जाना शुरू कर दिया, और जब भी अवसर मिलता मैं हफ्ते में दो बार जाने से भी नहीं हिचकिचाता।

इसका परिणाम यह हुआ कि गुरुजी की कृपा से मैं आज स्वस्थ और तंदुरुस्त हूँ। वास्तव में गुरुजी के चरण-शरण में रहकर मैं अपने संचित बुरे कर्मों से भी छुटकारा पा सका हूँ।

गुरुजी की इच्छा और आज्ञा से हम में से कुछ को अवसर मिलता है कि हम गुरु परिवार में अपने मित्रों को भी शामिल कर सकें। मुझे भी ऐसा ही अवसर प्राप्त हुआ जब मेरे एक मित्र, महिंदर कुमार मित्तल, ने मुझसे गुरुजी के बारे में सुना और वह संगत में आने के लिए इच्छुक हुआ। मैं उसके साथ गुरुजी के यहाँ चलने के लिए तैयार था।

बहुत समय से महिंदर अपनी बेटी के लिए एक अच्छे रिश्ते की खोज में था पर अभी तक असफल रहा था। गुरुजी के दरबार में आने के एक हफ्ते में ही उसे अपनी बेटी के लिए एक योग्य रिश्ता आया। वह गुरुजी के पास उनकी आज्ञा और आशीर्वाद के लिए आया। गुरुजी ने उस रिश्ते के लिए अपनी स्वीकृति दी और बोले, "तेरा कल्याण हो गया।" बाद में जब महिंदर ने गुरुजी को शादी का निमंत्रण-पत्र भेंट किया, गुरुजी ने वर-वधू को एक अत्युत्तम भावी जीवन का आशीर्वाद दिया। आज वो दम्पति एक खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं और महिंदर संगत में नियमित रूप से आता है।

सही मूल्यों को फिर से पाना

गुरुजी के यहाँ आने के बाद मेरे जीवन की परिभाषा ही बदल गई। एक बार उनके दरबार में प्रवेश करने के बाद सभी सांसारिक चिन्ताएँ भूल जाती हैं, और कुछ रह जाता है तो बस गुरुजी और आप। यह अनुभूति सिर्फ मुझ तक सीमित नहीं थी; महिंदर और बहुत सारी संगत भी ऐसा ही महसूस करती है।

गुरुजी की महासमाधि एक घोर सदमा था जिसने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया। परन्तु यह अनुभूति कि गुरुजी अभी भी हमारे साथ ही हैं, अपना आशीर्वाद और प्रेम हम पर बरसाते हुए, मुझे जल्द ही हो गया। मंदिर में गुरुजी की खुशबू और जीवन के हर पहलू में उनका आशीर्वाद पूर्णतः स्पष्ट है।

करीब चार महीने पहले गुरुजी ने मुझे सपने में दर्शन दिए और अपने अनोखे तरीके से मुझे बुलाकर बोले, "ओये, गोयल, ऐथे आ . . . . संगत विच जाना ना छडीं (गोयल, इधर आ . . . . संगत में जाना कभी मत छोड़ना।) गुरुजी के दर्शन हमेशा मुझ में जोश भर देते हैं और मेरी स्मृति में अमिट रूप से छपे हुए हैं। साथ ही, मैं उनकी आज्ञा का हमेशा पालन करूँगा।

गुरुजी हमारे बीच ही हैं और हमसे प्रेम करते हैं और अपनी कृपा उन पर बरसाते रहते हैं जो उनसे जुड़े हुए हैं।

एन. आर. गोयल, एक भक्त

दिसम्बर 2009