मानव जाति के सर्वश्रेष्ठ प्राणी किसी की व्यथा में मात्र सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं। ऐसे अवसरों पर गुरुजी जैसे महापुरुष उनकी व्यथा अपने पर अंतरित कर उनका उद्धार कर उनके विश्वास को और दृढ़ करते हैं। ब्रिगेडियर (डॉ.) सैनी के संस्मरण इसके प्रमाण हैं। वह चिकित्सा विशेषज्ञ हैं और उन्होंने गुरुजी को अक्सर ऐसा करते हुए देखा है। यह डॉ. सैनी द्वारा गुरुजी के एक भक्त को दिया हुआ सत्संग है।
चम्मच द्वारा रोग निदान
यद्यपि जालंधर में डॉ. सैनी का घर गुरुजी के मंदिर के समीप ही था, शुरू में वह महापुरुष के दर्शन नहीं कर सके। जब उन्होंने किए, तो उसके पश्चात् उनके जीवन में गुरुजी की दया का प्रवाह स्पष्ट था।
डॉक्टर की पत्नी, गुरुजी की अनुयायी थीं और सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से पीड़ित थीं। इसके कारण उन्हें गर्दन में अति वेदना होती थी। वह भौतिक चिकित्सा के कुछ शारीरिक व्यायाम करती थीं और दर्दनाशक औषधियों का सेवन करती थीं।
यह 1996 के अंत का प्रसंग है जब गुरुजी पंचकुला में थे। डॉ. सैनी गुरुजी के दर्शन के लिए आये हुए थे। प्रतिदिन संध्या के समय चिकित्सक को गंभीर रोगियों को देखने, गहन सेवा केंद्र में जाना होता था। उन्होंने गुरुजी से इसके लिए अनुमति माँगी, तो गुरुजी ने कहा कि सब रोगी ठीक हैं पर उनको जाने दिया।
जब डॉक्टर लौटे तो गुरुजी ने उनको बताया कि उन्होंने उनकी पत्नी का रोग समाप्त कर दिया है। उनको बताया गया कि गुरुजी ने रसोई से एक चम्मच मँगवा कर, उनकी पत्नी की गर्दन पर लगाया था। चम्मच गुरुजी का एक दिव्य उपकरण है - उनकी एक्सरे मशीन, कैट स्केन, एकोकार्दियोग्राफ और पराध्वनि यंत्र! उसके बाद उनकी पत्नी को वह रोग कभी नहीं हुआ।
गुरुजी डॉक्टर सुहृदय बने
एक वर्ष उपरान्त डॉ. सैनी का उपचार हुआ। उस समय तक गुरुजी चंड़ीगढ़ आ गये थे और वह उनके दर्शन के लिए आये। गुरुजी ने उनको बताया कि उनकी एड़ी में दर्द है। डॉक्टर ने परीक्षण करने पर अनुभव किया कि एक स्थान कुछ मुलायम था और उन्होंने अगले दिन एक दर्दनाशक औषधि लाने की बात कही। गुरुजी ने मना कर दिया। डॉ. सैनी ने, जो अब वरिष्ठ सलाहकार हो गए थे, गुरुजी से सेना चिकित्सालय में स्थापित की गई, एक नवीन लेज़र मशीन पर चिकित्सा कराने का परामर्श दिया। कुछ समय उपरान्त गुरुजी चिकित्सालय में डॉक्टर के पास गए और उन्होंने उन्हें तीन दिन के लिए लेज़र मशीन पर चिकित्सा देने की बात कही। डॉक्टर ने कहा कि दस दिन की चिकित्सा अधिक लाभकारी होगी। उनकी इस बात पर गुरुजी ने उन्हें बताया कि वास्तव में वह उनके कल्याण के लिए आये हैं।
गुरुजी का कथन दो सप्ताह उपरान्त सत्य सिद्ध हुआ जब डॉ. सैनी को छाती में दर्द हुआ। ई. सी. जी. में हृदय के परिवर्तन स्पष्ट थे। चिकित्सालय के हृदय रोग विशेषज्ञ ने गहन सेवा केंद्र में रहने की सलाह दी क्योंकि उन्हें शांत दिल का दौरा पड़ा था। चिंतित डॉक्टर ने चिकित्सालय से गुरुजी को फोन किया। गुरुजी ने उनकी पत्नी को उपचार बताया।
वहाँ से निकलकर, डॉ. सैनी गुरुजी के पास पहुँचे तो गुरुजी ने उनको अपने कक्ष में लिटा कर उनके पूरे शरीर पर चम्मच घुमा दिया। उसके बाद जब उनके हृदय रोग के परीक्षण सेना के रेफेरल और रिसर्च चिकित्सालय में हुए, तो सब परिणाम सामान्य थे और उनको हृदय रोग हो चुके होने के भी कोई लक्षण नहीं थे। सेना के वार्षिक परीक्षणों में भी न तो उनके हृदय में रोग के कोई अवशेष निकले, न ही उन्हें फिर कभी यह रोग हुआ।
दिव्यात्मा ने इस प्रकार चिकित्सक और रोगी के संबंधों को पलट दिया। गुरुजी तीन दिन तक उनके रोगी बने और उन्होंने डॉक्टर के रोगों के लक्षणों को समाप्त कर दिया।
बंद धमनी खुली
सतगुरु उनका भी भला करते हैं जो उनके अनुयायी नहीं हैं। सबकी व्यथा उनकी अपनी है। कर्नल मदन, डॉ. सैनी के विभाग में ही कार्यरत थे। कर्नल मदन लम्बे समय से हृदय रोगी थे। एक धमनी बंद होने के पश्चात् उनका बायपास हो चुका था। उन्हें हृदय में पीड़ा और साँस लेने में कठिनाई होती थी। इस कारण उन्हें अपना सामान्य कार्य करने में भी रुकावट होती थी। परीक्षणों से पता लगा कि उनकी बायपास वाहिनी अवरुद्ध (ब्लॉक) हो गयी थी; यह अति गंभीर समाचार था।
ब्रिगेडियर सैनी और जनरल आहुजा, गुरुजी के एक अन्य अनुयायी, ने कर्नल मदन को गुरुजी का आश्रय लेने की सलाह दी। अत: कर्नल मदन गुरुजी के पास आए। गुरुजी ने उन्हें तांबे के लोटे के माध्यम से आशीर्वाद दिया और गले में माला के साथ पहनने के लिए ॐ की आकृति में अभिमंत्रित लटकन दिया।
कर्नल मदन का स्वास्थ्य तुरन्त सुधरने लगा। कुछ मास के उपरान्त जब एंजियोग्राफी की गई, तो परिणामों से चिकित्सक अचम्भे में पड़ गये। वह धमनी जो बंद थी और जिसे बायपास किया गया था, खुल गई थी। डॉ. सैनी कर्नल मदन को पुन: 2003 में मिले जब वह गुरुजी के दर्शन के लिए एम्पायर एस्टेट में आए। वहीं पर उन्होंने गुरुजी का हार्दिक धन्यवाद करते हुए संगत को यह प्रसंग सुना कर गदगद कर दिया।
पत्नी के हृदय का वॉल्व ठीक हुआ
डॉ. सैनी की पत्नी को बचपन में रूमेटिक फीवर हुआ था। यद्यपि वह उसी समय समाप्त हो गया था, उस ज्वर में उनके हृदय का बायाँ वॉल्व क्षतिग्रस्त हो गया था और उसमें से रिसाव होता था। सबसे पहले उनके पति को इसका संदेह हुआ; तब से हर दो वर्ष में उनका एकोकार्दियोग्राफ होता रहता था।
2003 में डॉ. सैनी दिल्ली में सेना के प्रमुख चिकित्सालय, रेफरेल और रिसर्च चिकित्सालय में सेवारत थे। इस समय उनकी पत्नी को चलते हुए साँस लेने में कठिनाई होने लगी। एकोकाद्रियोग्राफ परीक्षण से पता लगा कि क्षतिग्रस्त वॉल्व में रक्त रिसाव बहुत अधिक होकर उल्टी दिशा में बह रहा था। चिकित्सा शास्त्र में इसे 'मिट्रल रिगर्जिटेशन' का नाम दिया गया है। उन्हें हृदय का वॉल्व बदलने का सुझाव दिया गया। इस अंतराल में उन्हें रेमिप्रिल नामक औषधि दी गयी; इससे कुछ रोगियों को खाँसी होती है।
एक दिन जब सैनी दम्पति गुरुजी के पास बैठे थे, तो पत्नी ने कहा कि वह औषधि नहीं लेंगी क्योंकि उससे उन्हें बहुत खाँसी हो रही थी। गुरुजी ने केवल "ठीक है" कहा। जब दम्पति चलने को हुए तो सतगुरु ने उन्हें कहा कि उन्होंने उनके हृदय पर कृपा कर दी है। उन्होंने डॉ. सैनी को अपने सब संशय दूर करने के लिए अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान में हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. तलवार से परीक्षण करवाने को कहा।
जब डॉ. सैनी ने अपनी पत्नी के रोग की स्थिति डॉ. तलवार को बतायी तो वह उसे परीक्षण कक्ष में ले गये और वहाँ बहुत देर तक रहे। जब वह बाहर निकले तो वह अचंभित थे। उन्होंने कहा कि डॉ. सैनी द्वारा अपनी पत्नी के बारे में बताये हुए लक्षणों के अनुसार वह क्षतिग्रस्त वॉल्व देख रहे थे पर उन्हें सब सामान्य लगा, हृदय में कोई क्षति नहीं मिली।
गुरुजी के दिव्य आशीष ने भक्त के हृदय पर चमत्कार कर दिया था। डॉ. सैनी के अनुसार गुरुजी के दो-चार शब्दों ने वह किया जिसकी चिकित्सा क्षेत्र में कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
अटल केंसर सूखा
मई 2002 में डॉ. सैनी एक गंभीर प्रकार के केंसर से पीड़ित हुए जिसका उपचार प्राय: असंभव माना जाता है - नॉन-होज्किंस लिम्फोमा। यह केंसर होरमोन प्रणाली पर हावी होता है। डॉक्टर ने नौ मास तक औषधियों का सेवन किया। पर उन्हें कभी कीमोथेरेपी के लक्षण नहीं हुए और उनका सुधार देख कर उनके चिकित्सक भी अचम्भे में थे। प्रत्यक्ष था कि गुरुजी की कृपा उनके ऊपर थी। एक वर्ष में उनका रोग समाप्त हो गया।
2004 में उनके अंडाशय पर तीन ग्रंथियाँ फिर से सूज गयीं। परीक्षण से केंसर के होने का संकेत मिला और उनकी शल्य क्रिया हुई। उसके पश्चात् उनका बोन मेरो परीक्षण होना था। गुरुजी से प्रार्थना करने पर, दयावान ने उन्हें परीक्षण की तिथि दी। डॉक्टर अति चिंतित थे कि यदि परिणाम सकारात्मक हुआ तो फिर से पाँच मास तक कीमोथेरेपी होगी, पर गुरुजी की दया से परिणाम में कुछ नहीं आया।
सतगुरु द्वारा उनकी माँ की आयु वृद्धि
डॉ. सैनी की माँ को स्तन केंसर के साथ-साथ हृदय रोग और गठिया थे। 2000 के अंत तक उनकी स्थिति अत्याधिक खराब हो गयी थी। एक दिन वह अचानक बीमार हो गयीं और उन्हें तुरन्त ही घर के निकट एक चिकित्सालय में प्रविष्ट कराना पड़ा। उनके हृदय ने कार्य करना बंद कर दिया था और उनका रक्तचाप और नाड़ी अत्यंत धीमे थे।
जब यह घटनाएँ घर पर हो रहीं थीं, डॉ. सैनी की भतीजी जालंधर में गुरुजी के मंदिर में बैठ कर, अन्दर ही अन्दर चुपचाप रो रही थी क्योंकि उसे पता था कि उसकी दादी का अंत समय निकट है। अन्तर्यामी गुरुजी ने उसी समय उस प्रक्रिया को रोक कर उस बालिका को कहा कि उन्होंने उसकी दादी के जीवन के पाँच वर्ष अधिक कर दिए हैं।
गुरुजी के इस वक्तव्य के साथ उसकी दादी की अवस्था में तुरन्त सुधार हुआ और वह पाँच वर्ष और जीवित रहीं। वास्तव में अपने अनुयायियों के लिए गुरुकृपा अद्भुत होने के साथ विधाता के मातृभाव समान कोमल है। फिर भले ही वह अच्छे या बुरे हों, भले ही उनके भक्त हों अथवा भौतिकवाद में डूबे हों, गुरुजी उनकी सहायता करने को सदैव तत्पर हैं।
चिकित्सालय के तकनीशियन को आशीष
1998 में एक दिन गुरुजी ने डा. सैनी को कहा कि वह संध्या को चंडीमंदिर के सेना चिकित्सालय में रक्त परीक्षण और सोनोग्राफी स्कैन के लिए आयेंगे। गुरुजी का रक्त परीक्षण करते हुए अनुभवी तकनीशियन ने देखा कि उसमें मधु की मात्र 8-15 के बीच में थी। उसे पता था कि इस मात्रा के साथ कोई भी मनुष्य जीवित नही रह सकता। अत: उसने यह परिणाम डॉ. सैनी को दिखाया और कहा कि यह मानव इस लोक से नहीं हो सकता। गुरुजी ने उस तकनीशियन को आशीर्वाद दिया और कहा कि उसकी पदोन्नति होगी - कुछ दिन बाद वैसा ही हुआ।
भटिंडा से मेजर सिन्हा, विकिरण विशेषज्ञ, उन दिनों चंडीमंदिर के सेना चिकित्सालय में सेवारत थे। गुरुजी के उदर का परीक्षण कर उन्होंने सब कुछ सामान्य पाया। गुरुजी ने उनको भी आशीर्वाद दिया और कहा कि उनके दो पुत्र होंगे और वह मेजर जनरल बनेंगे। गुरुजी से अनभिज्ञ सिन्हा ने कहा कि उनका एक पुत्र है और वह पर्याप्त है। परन्तु गुरुजी ने उनका भविष्य निश्चित कर दिया था।
2004 में डॉ. सैनी दिल्ली के रेफेरल और रिसर्च चिकित्सालय में डॉ. सिन्हा से पुन: मिले। सिन्हा अब लेफ्टिनेंट कर्नल हो गये थे और नुक्लेअर मेडिसिन में प्रशिक्षण ग्रहण कर रहे थे। डॉ. सैनी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें गुरुजी का कथन याद है। सिन्हा को याद था। उन्होंने डॉ. सैनी को बताया कि उस समय स्त्रीरोग विशेषज्ञ ने उनकी पत्नी को बताया था कि उन्हें दूसरी संतान नहीं हो सकती - पर गुरुकृपा से एक और पुत्र उत्पन्न हुआ।
रक्षा और सुरक्षा
सैनी परिवार दिल्ली में गुरुजी के दर्शन करने के उपरान्त वापस चंडीगढ़ जा रहा था। संगत समाप्त होने तक रात बहुत अधिक हो चुकी थी और कार में परिवार के सदस्य ऊँघ रहे थे। अचानक डॉ. सैनी को भी, जो कार चला रहे थे, नींद का झोंका आ गया। उन दिनों राष्ट्रीय राजमार्ग एक तरफा था। कार ने अचानक दाहिना रुख अपनाया और सामने से आते हुए एक ट्रक के सामने जाने लगी ....
उसी समय उनकी पत्नी का हाथ उनके कंधे पर लगा, डॉ. सैनी झटके से जागे और एकदम उन्होंने कार को बायीं और मोड़ा। कार ट्रक से कुछ इंचों से बचती हुई किनारे से निकल गयी। जब वह ऐसे सो रहे थे, कौन जाग रहा था? किसने उसी समय उनकी पत्नी का हाथ उनके ऊपर उन्हें जगाने के लिए डाला था?
उत्तर 2004 में स्पष्ट हुआ।
गुरुजी ने डॉ. सैनी के दन्त चिकित्सक पुत्र, सजल को, जो सोहना में सेवारत थे, अपने कार्य से लम्बी छुट्टी लेने को कहा। उस समय सजल, स्कूटर से बस अड्डे जाकर, वहाँ से सोहना की बस पकड़ते थे। उस अगस्त मास के दिन सड़क गीली थी। सजल ने स्कूटर से आते हुए, एक गाड़ी से बचने के लिए अपना स्कूटर घुमाया, पर एक और से टकरा कर मार्ग पर गिर पड़े। उसी समय गुरुजी ने डॉ. सैनी से, जो उनके दर्शन के लिए पहुँचे हुए थे, पूछा कि उनका बेटा कहाँ है। डॉ. ने उत्तर दिया कि वह सोहना से वापस आ रहा होगा। उसी समय फोन बजा और सजल की पत्नी ने उनको दुर्घटना के बारे में बताया। वह तुरन्त घर वापस आए। सजल को कुछ लोग दुर्घटना स्थल से घर ले गये थे - दिल्ली में एक अनोखी घटना! वह बच गये थे और केवल नाक पर चोट आने से कुछ टाँके लगे थे। चिकित्सालय से वह सीधा गुरुजी को धन्यवाद देने पहुँचे।
सजल अब कहते हैं कि उनका जन्मदिवस उस दिन मनाया जाये जिस दिन गुरुजी ने उनकी जीवन रक्षा की थी। उन्हें नव जीवन मिला है।
ब्रिगेडियर (डॉ.) पृथ्वी पाल सैनी, गुड़गाँव
जुलाई 2007