मैं बड़े मंदिर 2008 की दिवाली के समय अपनी माँ के साथ गई। मेरे माता-पिता जुलाई 2007 से गुरुजी से जुड़े थे। जब मैं पहली बार गई और बैठी सत्संग सुन रही थी तो मुझे एक अवास्तविक सा एहसास हुआ जिसमें अन्य सब वस्तुओं का अस्तित्व खत्म हो गया; मंदिर जैसे एक खालीपन के बीच तैर रहा था और अन्य सब मिथ्या था।
इस अनुभव से मेरे अंदर कुछ जागा। बचपन से मुझे पढ़ने का बहुत शौक था, विज्ञान की तरफ झुकाव था, तर्क शास्त्र में विश्वास था और धर्म के सिद्धांतों पर मैं सवाल उठाती थी। उस दिन मंदिर में बैठे हुए, मेरे सारे संशय हवा हो गए और मेरे अंदर एक नया विश्वास जागा।
गुरुजी के दर्शन ने मुझे मुश्किल समय में संभाला
जनवरी 2009 में एक रात मैंने सपना देखा जिसमें मैं बड़े मंदिर में बैठी हुई थी और एक संगत मुझे अपनी समस्या के बारे में बता रहे थे जिसका वो सामना कर रहे थे। जब मैंने ऊपर देखा तो पाया कि गुरुजी की जो बड़ी तस्वीर है उसने दूसरा स्वरूप ले लिया था। एक ओर उनकी तस्वीर नज़र आ रही थी और सीधी ओर गुरुजी स्वयं थे -- वास्तविकता में बैठे हुए और गौर से सुनते हुए अपनी संगत को। गुरुजी यह बतला रहे थे कि जब संगत होती है तो मंदिर में वह भी मौजूद होते हैं और सबकी परेशानियाँ जानते हैं।
सुबह उठकर जब मैंने टी. वी. देखा तो मुझे पता चला कि जिस कम्पनी में मैं काम कर रही थी वो आर्थिक परेशानी में थी और भविष्य अनिश्चित लग रहा था। मेरा दिल डूबा जा रहा था। मैं उस कम्पनी में अच्छे से टिकी हुई थी और मैं अपने हिसाब से काम कर सकती थी जिसकी मुझे ज़रूरत थी अपने छोटे बच्चे के साथ। इसके जैसी और नौकरी मिल पाना कठिन था। पहले तो मुझे बहुत धक्का लगा पर फिर मुझे समझ आया कि क्यों एक रात पहले गुरुजी ने मुझे दर्शन दिए थे: उन्हें पता था कि जब यह समाचार सुबह मुझे मिलेगा तो इससे मुझे बहुत बड़ा सदमा पहुँचेगा। उन्होंने मुझे पहले ही आश्वासन दे दिया कि वह मेरी और बाकी सारी समस्याओं के बारे में जानते थे और सब कुछ उनकी देख-रेख में हो रहा था।
क्योंकि उन दिनों मुझे कम काम था, मैं गुड़गाँव अपने माता-पिता के पास नैतिक सहारे के लिए आई और हम हर हफ्ते बड़े मंदिर जाते। पुणे जाते समय मुझे अनुभूति हुई कि गुरुजी चाहते थे कि मैं गुड़गाँव में रहूँ और वह मुझे यहीं बुला लेंगे। अगले दिन मेरी कम्पनी ने मुझे सूचित किया कि मैं नयी नौकरी ढूँढ़ना शुरू कर दूँ।
हमने निश्चय कि मैं गुड़गॉंव आकर बस जाऊँ। व्यापारिक मंदी के बावजूद मुझे उसी महीने इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। मुझे बोला गया कि कुछ समय के लिए तो किसी को नौकरी पर नहीं रखा जाएगा, पर तीन महीनों में मुझे नौकरी दी जाएगी। मैंने वो समय घर पर अपने चार साल के बेटे के साथ और आराम करते हुए बिताया - जो मैं हमेशा से करना चाहती थी पर अपनी नौकरी की वजह से कर नहीं पाई थी। और निस्संदेह मुझे नौकरी भी मिल गई।
ऐसा लग रहा था जैसे गुरुजी मुझे समय देना चाहते थे जो मैं अपने माता - पिता और बेटे के साथ बिता सकूँ, और अपने दीर्घकालिक लक्ष्य के बारे में सोच सकूँ और आत्मविश्लेषण करूँ। अब मैं यहाँ अच्छे से बस गई हूँ और मंदिर जाती हूँ, जो गुरुजी चाहते थे, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करके सम्मानित महसूस करती हूँ।
भगवान ने हमें मुश्किल समय में बचाया
एक बार मैंने विदेश की एक बैंक से पैसा यहाँ की बैंक में ट्रांसफर किया था। दो साल बाद, मार्च 2009 में मुझे इन्कम टैक्स विभाग का नोटिस आया और हमें पता चला कि अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए बैंक ने इस कार्यवाही को पहले की तारीख दे दी थी। जाँच-पड़ताल के दौरान हमसे ऐसे प्रश्न पूछे गए जिनके जवाब हमारे पास थे, पर उसमें बहुत समय, मेहनत और खर्चा लगता क्योंकि भारत आने के बाद विदेश में मेरे बैंक-खाते बंद हो गए थे। कोई चाहे जितना भी सच्चा और ईमानदार हो, कानून के लपेटे में आने पर उसे बहुत कठिनाई होती है और एक अनचाहा सा डर मन में बैठ जाता है। हमारे साथ भी यही हुआ।
मेरे पिताजी पुणे से मेरे पास आए और जिस तरह से मुझ से पूछताछ की जा रही थी वो देख कर बहुत परेशान हुए। सुबह जब वो गुड़गाँव के लिए निकल रहे थे तो बहुत चिंतित थे। उनके जाने के बाद मैं गुरुजी से बातें करते हुए सो गई। मैंने गुरुजी से कहा, "गुरुजी, अगर मैं आपसे पूछूँगी कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है तो आप कहेंगे कि यह हमारे पिछले जन्मों के कर्मों का हिसाब है। पर मैं आपसे विनती करती हूँ कि एक व्यक्ति ने इस जन्म में क्या किया है, आप उस पर भी विचार कीजिए; मेरे पिताजी एक दयालु इंसान रहे हैं जिनके लिए उनकी प्रतिष्ठा का सबसे ज़्यादा महत्त्व रहा है। आजीवन मेहनत करने के बाद उनके साथ ऐसे गलत नहीं होना चाहिये।"
मुझे नींद आ गई और मैंने सपने में देखा कि मैं और मेरे पिताजी उसी गाड़ी में बैठे हुए हैं जिसमें हम इन्कम टैक्स विभाग जाते थे। जैसे ही ड्राइवर ने एक मोड़ तेज़ी से लिया, गाड़ी के पीछे के दोनों पहिये पहाड़ी के उभरे हुए भाग के ऊपर से होते हुए गए और गाड़ी एक गहरी खाई के ऊपर झूल गई। मैं स्तंभित रह गई और ड्राइवर की तरफ देखने लगी जो खतरे से अनजान लग रहा था। तभी गाड़ी ऊपर की ओर उठी और हवा में उड़ती हुई गई। मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे कि गुरुजी ड्राइवर की सीट पर बैठे हुए थे और मेरे पिताजी और मैं खुश और चिंता-मुक्त हो गए। अगले ही पल मेरी नींद खुल गई और मैं समझ गई कि गुरुजी ने इशारा कर दिया था कि अब मेरी परेशानी उनकी ज़िम्मेदारी थी।
उस समय मेरे पिताजी गुड़गाँव वापस जाने के लिए हवाई जहाज़ में थे इसलिए इस दर्शन के बारे में बताने के लिए मैंने उनको एस एम एस किया और अपनी माँ को फोन करके सपने के बारे में बताया। सबने बिना किसी शंका के यह माना कि इस सपने का क्या मतलब था और चिंता करना छोड़ दी।
हम अपने टैक्स सलाहकार से रोज़ बात करते और आगे की कार्यवाही के बारे में पूछते पर दर्शन के बाद हमने एक बार भी उसे फोन नहीं किया। एक हफ्ते बाद हमें उसका फोन आया और उसने हमें बताया कि इन्कम टैक्स विभाग हमारा केस बंद कर रहा था। मैंने उसका शुक्रिया अदा किया। मेरी आवाज़ में हैरानी नहीं थी और मुझे पूरा यकीन है कि उसने सोचा होगा कि ऐसा क्यों था। उसे क्या मालूम कि गुरुजी ने इस समस्या को सुलझाया था !
सर्वव्यापी परमेश्वर और उनके तरीके
मैंने भक्तों को कहते हुए सुना था, "हमें नहीं पता कि हमारे लिए क्या अच्छा है या क्यों हम किसी परेशानी से गुज़र रहे होते हैं, इसलिए हमें गुरुजी से कुछ नहीं माँगना चाहिए।" फिर भी, जब हम किसी परेशानी या तकलीफ से गुज़र रहे होते हैं तो हम उनसे सहायता के लिए प्रार्थना करते हैं।
एक बार अक्टूबर में, जब मैं रात को सोने लगी तो इस सब के बारे में सोच रही थी और गुरुजी से पूछ रही थी कि क्यों वह मेरी सहायता नहीं कर रहे थे और क्यों इतने समय से उन्होंने मुझे दर्शन नहीं दिए थे। सुबह-सुबह मैंने देखा कि हमारे घर में एक नया ड्राइवर आया था। वो रसोईघर से निकल कर डाइनिंग रूम में आकर खड़ा हो गया। फिर उसने कमरे की एक दीवार को छू कर कहा कि दीवार में बहुत सकारात्मक ऊर्जा थी। मैंने सोचा कि उसे कहूँ कि हो सकता है कि गुरुजी की तस्वीर की वजह से उसे ऊर्जा का आभास हो रहा हो। मैंने मुड़कर तस्वीर देखी तो पाया कि उस तस्वीर की जगह एक बड़ा फ्रेम था जिसमें एक नाटा व्यक्ति गद्दी पर बैठा हुआ था और मेरी ओर मुस्कुराते हुए देख रहा था। मेरे देखते देखते उस व्यक्ति ने अपनी मुद्रा बदली, पर मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराता रहा। मैंने ड्राइवर की ओर देखा तो उसने भी मुझे वैसी ही मुस्कुराहट दी। मैं चकरा गई: उस ड्राइवर की मुस्कान गुरुजी की तरह थी, पर दोनों गुरुजी से बिलकुल अलग दिख रहे थे। तभी मैंने गुरुजी को अपने सामने खड़े पाया, अपनी भव्य अप्रतिम सुंदरता में। वह मेरी ओर मुस्कुराते हुए देख रहे थे और अपना सिर हिलाते हुए मुझसे बोले: "हुण पता चल गया (अब तो तू जानती है कि वो मैं ही हूँ।)" मैंने ये शब्द बार बार सुने, बिना उनके ये बोले हुए।
मैंने भावविभोर होकर गुरुजी को गले लगा लिया और चिल्लाकर अपने माता-पिता और बहन को आवाज़ दी: "गुरुजी यहाँ हैं, आकर दर्शन कर लो !" मैंने सोचा कि अब जो वो यहाँ हैं तो मुझे लगता है कि हम अपनी परेशानी के बारे में उनसे पूछ सकते हैं, वह हमारे सवालों का जवाब देंगे। गुरुजी चलकर मेरे साथ मेरे कमरे तक आए जो मैं अपनी बहन के साथ शेयर करती हूँ, और तभी गुरुजी मुड़े और बोले कि उनको दूसरे कमरे में किसी और को देखने जाना था। मैंने उन्हें जाने दिया और जल्दी-जल्दी अपने बेटे अरमान को ढूँढ़ने लगी जो हमेशा बोलता था कि वह गुरुजी को देखना चाहता है। जब मैं अपने कमरे में वापस गई तो गुरुजी वहाँ नहीं थे। मेरी बहन बोली कि वे चले गए। मैं बहुत निराश हो गई क्योंकि मुझे उनसे पूछने का मौका ही नहीं मिला कि मुझे क्या करना चाहिए ...... एक बहुत महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए मुझे उनकी सहायता की आवश्यकता थी।
उस क्षण मेरी नींद खुल गई। पर निराशा महसूस करने के बजाय मैं खुशी और संतोष महसूस कर रही थी। मुझे एहसास हुआ कि गुरुजी हमारे साथ ही थे। यद्यपि जब हम मुश्किलों से घिरे हुए होते हैं तो वो अथाह लगती हैं, गुरुजी हमारे मार्गदर्शन के लिए सदैव होते हैं इसलिए हमें विश्वास नहीं खोना चाहिए। गुरुजी, परमेश्वर, को समर्पण कीजिए, और जीवन सकारत्मकता से भर जाएगा और हम मोक्ष की ओर बढ़ेंगे। जय गुरुजी!
प्रीति झांजी, एक भक्त
मार्च 2010