जैसा संगत के कई सदस्यों के साथ हुआ होगा, जब मैं गुरुजी के पास आया मुझे अनेक कष्ट थे और सहायता की कोई किरण शेष नहीं थी। मैं अत्यंत डिप्रेशन में था, जिसका औषधियों और अन्य सहायता से उपचार नहीं हो पा रहा था। मेरी अवस्था दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। अब सोचता हूँ तो महसूस होता है कि मुझे गुरुजी ने बुलाया था अन्यथा रातों रात उपचार कैसे संभव है?
मेरी अवस्था अति गंभीर थी और मैं सदा अपने आप को असहाय महसूस करता था। कई बार मैं रोया करता था और आत्महत्या करने के विचार मेरे मन में आते थे। साहस जुटाकर मैं अपने कार्यालय अवश्य चला जाया करता था और सामान्य दिखने का प्रयास करता था। वहाँ से निकल कर मैं मंदिर जाकर शान्ति के लिए प्रार्थना करता था। यह चलता रहा पर मेरी अवस्था बिगड़ती ही चली गयी। एक दिन मुझे याद आया कि परिवार के एक घनिष्ठ मित्र ने मेरी माँ से गुरुजी का वर्णन किया था। मैंने तुरन्त अपनी माँ को फोन कर उनसे गुरुजी के दिशा निर्देश माँगे।
मैं गुरुजी के पास 2000 में पहुँचा। पहले दिन जल्दि पहुँचने के कारण मुझे आगे बैठने का अवसर प्राप्त हुआ। कई सप्ताह के पश्चात मंदिर पहुँचकर मुझे शांति का आभास हुआ। मुझे वहाँ बैठकर लोगों के असाध्य रोगों के चमत्कारिक उपचार सुनना याद है। मैंने अपने आप से कहा, "मुझे तभी विश्वास होगा जब मैं स्वयं स्वस्थ हो जाऊँगा।"
उस पहले दिन के पश्चात मैं वहाँ पहले नियमित और फिर प्रतिदिन जाने लगा। मंदिर पहुँचकर मुझे सुखद शांति का अनुभव होता था, किन्तु बाहर निकलते ही मेरी पहले जैसे अवस्था हो जाती थी। चौथे याँ पाँचवे दर्शन के बाद जब मैं गुरुजी से जाने की आज्ञा ले रहा था तो उन्होंने मुझ से बात की। उन्होंने पूछा, "तेरी घरवाली सिटीबैंक विच काम करदी है?" उस समय तक संगत में कोई मुझे नहीं जानता था, न ही मैंने किसी से बात की थी। उसी क्षण मुझे अपने अंदर उत्साह का आभास हुआ। शीघ्र ही मैं अपनी सामान्य स्थिति में आ गया। बाहर आते ही मैंने अपनी पत्नी को फोन पर गुरुजी से हुए वार्तालाप की बात बतायी। मैंने यह भी कहा कि अब मैं स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ। फिर मेरी वैसी अवस्था कभी नहीं हुई है।
मैंने मन ही मन गुरुजी से प्रार्थना कर उनसे एक संतान की कामना की। एक माह के उपरान्त मेरी पत्नी ने घर पर जब अपना गर्भावस्था परीक्षण किया तो वह पाज़टिव था। उस संध्या को जब मैं गुरुजी के पास आया तो वह बोले, "घरवाली एक्सपेक्ट कर रही है - जा कल्याण हुआ; मुंडा होगा।" हमारे यहाँ नौ पाउंड के बालक ने जन्म लिया। 2004 में गुरुजी ने मुझे एक और पुत्र दिया। हमें पता है कि हम जो भी कदम लेते हैं, गुरुजी हमारे साथ हैं और हमें सत्पथ पर चला रहे हैं।
पृथ्वी राज सिंह
जुलाई 2007