दिल्ली के एक प्रसिद्ध चिकित्सालय में शल्य क्रिया करवाने के बाद श्रीमती प्रोमिला मेहता अपने जीवन के लिए जूझ रहीं थीं। वह 1995 से उच्च रक्त चाप से पीड़ित थीं। जुलाई 2000 में उनकी गर्भयोच्छेदन, गर्भाशय निकालने, की क्रिया हुई। चिकित्सकों ने शल्य क्रिया करते हुए उनके उच्च रक्त चाप की उपेक्षा कर दी। शल्य क्रिया के पश्चात् उनका रक्त चाप बढ़ कर 180/120 हो गया और दो सप्ताह तक उसी स्तर पर रहा।
फलस्वरूप उनके गुर्दे क्षतिग्रस्त हो गये और उसका कोई उपचार नहीं था। उनका क्रिएटिनिन का परिणाम 1.8 पहुँच गया जो सामान्य मनुष्य के लिए अति उच्च स्तर माना जाता है। प्रोमिला ने स्वस्थ होने के लिए शल्य क्रिया करवायी थी किन्तु उसके पश्चात् उनकी जान को बन आयी। शरीर के दूषित रक्त को स्वच्छ करने वाले दोनों गुर्दों ने कार्य करना बंद कर दिया।
प्रोमिला कई चिकित्सकों के पास गई। उनका उपचार बैंगलोर, दिल्ली के एम्स और नोएडा के कैलाश चिकित्सालयों में हुआ किन्तु कहीं भी लाभ नहीं हुआ। उन्होंने आयुर्वेदिक, होम्योपेथी और एकुपंक्चर पद्धतियों से भी उपचार करवाये पर सब असफल रहे। चिकित्सकों ने कहा कि गुर्दों का ट्रांसप्लांट ही अंतिम समाधान है।
समस्या गंभीर होने के पाँच वर्ष उपरान्त उनकी एक सहकर्मी ने गुरुजी के बारे में बताया। उन्हें अप्रैल 2004 में बताया गया था किन्तु उनको गुरुजी के दर्शन का अवसर 21 जुलाई 2004 को ही मिला। गुरुजी ने उनके आने के लिए संभवतः वही दिन निश्चित किया होगा - उस दिन गुरु पूर्णिमा थी।
गुरुजी ने उन्हें एक ताम्र लोटा लाने को कहा जिसे उन्होंने अभिमंत्रित किया। वह रोज उसका जल पीती थीं। जुलाई 2005 से दिसंबर 2005 तक वह गुरुजी के दर्शन के लिए चारों दिन (वृहस्पतिवार से रविवार तक) आती थीं। उस लोटे का जल ग्रहण करने के कुछ दिन उपरान्त ही उन्होंने देखा कि उनकी त्वचा, जो वृद्धों जैसी दिखने लगी थी, विशेषकर गर्दन के आसपास, में सुधार आने लगा। एक दिन जब वह गुरुजी के पास बैठी थीं, उन्होंने गुरुजी से कहा कि उनके शरीर में रक्त ही नहीं है और वह सदा दुःखी रहती हैं। गुरुजी यह सुनकर मुस्कुराये पर कुछ नहीं बोले।
13 दिसंबर को प्रातः पाँच बजे वह अचानक उठीं तो उन्हें अपनी नाक कुछ चिपचिपी सी लगी। उन्होंने बत्ती जलाये बिना ही अपनी नाक अपने रात्रि वस्त्र से पोंछ ली। थोड़ी देर के बाद उन्हें लगा कि वह फिर भी बह रही है। उन्होंने बत्ती जलाई और अपने नाक से रक्त बहते हुए देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुईं। एक रूमाल शीघ्र ही रक्त से भर गया। उन्होंने अपने पुत्र को जगाया और वह दोनों कैलाश चिकित्सालय भागे। चिकित्सकों ने रक्त रोकने का भरसक प्रयत्न किया किन्तु उसके न रुकने के कारण उन्हें प्रविष्ट कर लिया।
प्रातः 6:30 बजे प्रोमिला ने अपने पति को फोन किया जो उस समय बैंगलोर में थे और उनको तुरन्त आने के लिए कहा। चिकित्सालय में रहते हुए उनके पास गुरुजी का चित्र था। पता लगा कि रक्त बहने का कारण गुर्दों का सही रूप से कार्य न कर पाना था। समस्या के उपचार के लिए उनका चार दिन में तीन बार डायलिसिस किया गया। साथ ही तीन रक्त की बोतलें और दो प्लाज्मा की बोतलें भी चढ़ाई गयीं। उनकी त्वचा का रंग पीले से लाल हो गया - जिसके लिए उन्होंने कुछ दिन पहले गुरुजी से विनती करी थी। यदि आप गुरुजी से कुछ भी माँगेंगे और वह आपके भले के लिए होगा तो वह आपको मिल जायेगा।
एक सप्ताह में वह चिकित्सालय से बाहर निकल कर गुरुजी के पास आयीं। गुरुजी ने उनको बताया कि उनके दोनों गुर्दे सही हैं और उन्हें नव जीवन मिला है।
वह गुरुजी के दर्शन के लिए आती रहीं और उनके आशीष का अभिन्न अंग, लंगर भी करती रहीं। गुरुजी के लंगर में स्वादिष्ट सब्ज़ियाँ, चटनी, अचार, मिठाई इत्यादि होते हैं जिनका चिकित्सक निषेध करते हैं। पर श्रीमती प्रोमिला उस भोजन को शीघ्रता से पचा पाती थीं और उनका पूरा सप्ताह सुखपूर्वक व्यतीत होता था।
फरवरी 2006 में वह फिर रुग्ण हो गयीं और उन्हें कैलाश चिकित्सालय में तीन बार डायलिसिस कराने पड़े। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में वृक्क रोग (नेफ्रोलॉजी) विशेषज्ञ से मिलने का समय मिल गया तो उन्होंने अल्ट्रासाउंड करवाने का परामर्श दिया। उनके अनुसार यदि उनके गुर्दे का आकार अगस्त 2003 के समान हुआ तो औषधियों का सेवन करती रहेंगी अन्यथा उसके घटे हुए होने पर ट्रांसप्लांट कराना आवश्यक होगा। श्रीमती मेहता ने एक स्थानीय प्रयोगशाला से परीक्षण करवाया तो गुर्दों का आकार कम निकला।
उन्होंने गुरुजी के पास आकर उनके आशीष की कामना करी, यह जानते हुए भी कि चिकित्सकों ने अब ट्रांसप्लांट ही अंतिम उपचार सुझाया है। गुरुजी ने उन्हें पुनः आशीर्वाद दिया।
अगले सोमवार को प्रोमिला ने उसी प्रयोगशाला से अपना परीक्षण करवाया जिसने अगस्त 2003 में किया था। चमत्कार से वह उसी आकार का पाया गया जो 2003 में था। अतः अब प्रत्योरापण का प्रश्न ही नहीं था। चिकित्सालय में रहते हुए उन्होंने गुरुजी के चित्र अन्य रोगियों को भी दिये वह भी शीघ्र ही स्वस्थ होकर बाहर आ गये।
प्रोमिला के स्वस्थ होने पर गुरुजी ने उन्हें सप्ताह में एक बार दर्शन के लिए आने को कहा। गुरुजी के पास हर दर्शन अति निराला अनुभव होता है, किन्तु गुरुजी नये भक्तों को भी समय देना चाहते थे। सप्ताह में एक दर्शन भी उनको प्रफुल्लित कर देता हैं। वह कहती हैं कि उस एक दर्शन और लंगर से भी उनमें पूरे सप्ताह के लिए नवीन ऊर्जा आ जाती है।
प्रोमिला मेहता, नोएडा, द्वारा कथित
जुलाई 2007