राजेन्द्र रंधावा जलन्धर के एक होनहार राजनीतिज्ञ थे जब अचानक उनके जीवन में तूफान आ गया। वह जलन्धर जनपद युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उस समय वह अकाली दल (बादल) से समझौता करने पुलिस थाने जा रहे थे। राज्य सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए एक बंदूकधारी दिया हुआ था।
जैसे ही दोनों दल पुलिस थाने पहुँच रहे थे, रंधावा पर आक्रमण हुआ। उनका बंदूकधारी रक्षक अकाली दल के राजनीतिज्ञ और रंधावा के बीच में आ गया। विरोधी दल के उस राजनीतिज्ञ ने अपनी पिस्तौल निकालने का प्रयत्न किया पर उस हंगामे में बंदूकधारी की गोली चलने के कारण उस राजनीतिज्ञ की मृत्यु हो गयी। रंधावा पर दफा 302 के माध्यम से अभियोग लगाया गया जिसमें दस वर्ष तक कारावास की संभावना थी।
उनके परिवार वालों ने साधुओं और संतों के चक्कर लगाये पर कोई लाभ नहीं हुआ। फिर रंधावा की पत्नी गुरुजी के द्वार पर आयी। गुरुजी ने उसको कहा कि उनका प्रेम विवाह हुआ है और उसकी प्रेम शक्ति उसके पति को बचा लेगी। उन्होंने भविष्यवाणी की कि दोनों दलों में समझौता हो जायेगा। फिर गुरुजी दिल्ली चले गये। रंधावा सुनवाई आरम्भ होने की प्रतीक्षा में कारावास में ही रहे। उनके पास गुरुजी का चित्र था जिसे वह अपना जीवनरक्षक समझ कर सदा अपने पास रखते थे।
शीघ्र ही रंधावा को दो सप्ताह की ज़मानत मिली। निकलते ही वह गुरुजी के पास भागे हुए आये और उनके चरणों में अपने को रोने से रोक नहीं पाये। गुरुजी ने कहा कि वह विधान सभा के सदस्य और मंत्री भी बनेंगे। रंधावा तो उस समय अपने कारावास में रहने के अन्यथा कुछ सोच ही नहीं पा रहे थे। गुरुजी से परामर्श लेने के पश्चात उन्होंने छः मास की ज़मानत के लिए आवेदन किया जो उन्हें मिल गयी।
इस अंतराल में ही मृत अकाली नेता के परिवार के साथ समझौता हो गया। रंधावा ने उस घटनाक्रम का वर्णन करते हुए बताया कि क्या हुआ था और कैसे उन जैसे निर्दोष पर अभियोग लग गया था।
जहाँ तक मुकदमे का प्रश्न था, प्रमाण रंधावा के पक्ष में थे किन्तु मुकदमा लम्बा होता जा रहा था और न्यायधीश तिथि बढ़ाते जा रहे थे। अंतिम सुनवाई से एक दिन पहले गुरुजी जलन्धर पहुँचे। रंधावा कहते हैं कि गुरुजी अपना आशीर्वाद देने ही आये होंगे। उनकी पत्नी सतगुरु के पास पहुँची तो गुरुजी ने कहा कि न्यायधीश अगले दिन अपना निर्णय सुना देंगे।
सब कुछ गुरुजी के कहे अनुसार ही हुआ। न्यायधीश ने रंधावा को निर्दोष घोषित कर उन्हें मुक्त किया और पूर्ण निर्णय भी उसी दिन दे दिया। न्यायालय से मुक्त होने के पश्चात रंधावा सीधे गुरुजी के कमल चरणों में गये। मुक्त नेता राजनीति छोड़ना चाह रहे थे किन्तु गुरुजी ने उनका कर्तव्य बताकर उन्हें राजनीति में बने रहने के लिए कहा। गुरुजी की कृपा से ही रंधावा मुक्त हुए।
पालतू पशु पर दया
गुरुजी दया के स्वरुप हैं। उनके लिए कोई भी उच्च या निम्न नहीं है। शांत प्रकृति की पुकार भी उन तक पहुँच जाती है। आश्चर्य नहीं है कि रंधावा के पालतू पशुओं को भी उनका आश्रय प्राप्त हुआ। रंधावा को कुत्तों से प्रेम था और वह उनके बचपन से उन्हें पालते रहे थे किन्तु कोई भी जीवित नहीं रह पाता था।
ऐसा लग रहा था कि उनके रॉटविलर का भी पहले पशुओं जैसा अंत हो जायेगा। रंधावा उसको पशु चिकित्सक के पास लेकर गये तो उसके उपचार का अथाह प्रयत्न किया गया किन्तु वह उल्टियाँ किये जा रहा था। रंधावा उस नन्हे पशु को वापिस ले आये। फिर अचानक उनके मन में विचार आया और वह उसे गुरुजी के पास लेकर चले। मार्ग में ही उन्हें गुरुजी कुछ भक्तों के साथ मिल गये। दोपहर का समय था और उन्होंने रंधावा से पूछा कि क्या उन्हें पशुओं का भी ध्यान रखना पड़ेगा। रंधावा ने उत्तर दिया कि वह तो संयोग से मिले थे। गुरुजी के आशीष से उसका स्वास्थ्य ठीक हो गया और वह छः - सात वर्ष और जीवित रहा।
राजेन्द्र पाल सिंह रंधावा, जलन्धर
जुलाई 2007