हाल ही में हम लोग नए घर में आये थे, तभी मुझे हमारे कॉलोनी की एक महिला से सत्संग में आने का निमंत्रण मिला। कुछ ही दिन पहले मैं उस महिला को पार्किंग में मिली थी और हम लोगों ने एक दूसरे को अपने फ़ोन नंबर भी दिए थे। फिर भी वह महिला मुझे व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण देने आई थी।
सत्संग वाले दिन मैं किसी न किसी काम में व्यस्त थी। अंत में मैंने अपनी सहायक को बाकी के काम सँभालने को कहा और स्वयं सत्संग के लिए चली गयी। सत्संग में चाय प्रसाद दिया गया जो कि मैंने मना कर दिया। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि गुरुजी की फोटो के सामने सत्संग में कोई चाय कैसे पी सकता है। मेरा फ़ोन बजता रहा। लोग मेरे नए घर की समस्याओं के बारे में जानकारी ले रहे थे। अंत में मैंने गुरुजी के चरण कमलों में नमन कर के जाने की आज्ञा ली। मेरी सहेली ने मुझे देखा और जब उसे पता लगा कि मैंने चाय प्रसाद ग्रहण नहीं किया है तो उसने मुझे लंगर प्रसाद के लिए दोबारा आने के लिए कहा। स्थिति को समझाने के बाद मैं चली गयी और जैसा कि वादा किया था, मैं आधे घंटे के पश्चात वापस आ गयी।
मेरी सहेली हर माह अपने घर पर गुरुजी का सत्संग रखती है। उसने मुझे अगले सत्संग के लिए फिर निमंत्रण दिया। मैंने अपना पूरा मन बना लिया था कि मैं अगले सत्संग में अवश्य जाऊँगी और जोत जलने से लंगर तक वहीं रहूँगी। सत्संग के दिन उस समय पर मुझे एहसास हुआ कि मुझे पहुँचने में जल्दी करनी पड़ेगी। इसलिए लिफ्ट का इंतजार न करके मैं सीढ़ियों से चढ़ कर जोत जलने से पहले पहुँच गयी और सत्संग के समाप्त होने तक वहाँ रुकी।
अगला सत्संग उस दिन होना था जिस दिन मेरे पति और मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम बना रखा था। मैं केवल गुरुजी से प्रार्थना कर सकती थी कि मैं सत्संग में उपस्थित अवश्य होना चाहती हूँ। मैं अपने पति से प्रोग्राम बदलने के बारे में कहने से हिचकिचा रही थी क्योंकि हमारे मित्रों ने भी हमारे साथ जाने का प्रोग्राम बनाया हुआ था। परन्तु गुरुजी ने मेरी प्रार्थना सुन ली। मेरे पति घर आ कर अनुरोध करने लगे कि हम बाहर जाने का प्रोग्राम दो दिन के लिए स्थगित कर दें और मित्रों से वह स्वयं बोल देंगे। मैं इस निर्णय पर बहुत प्रसन्न हुई और अपने पति को अपने सत्संग में जाने की उत्सुकता के बारे में भी बताया। गुरुजी की कृपा से मेरे सत्संग में जाने का हल ठीक-ठाक निकल आया। गुरुजी आपका धन्यवाद।
यह मेरे आरम्भ के छोटे छोटे अनुभव हैं परन्तु इन अनुभवों के कारण मैं गुरुजी से और संगत से अधिक से अधिक संबंध बना पायी। जय गुरुजी
ऋतु वैद्य, एक भक्त
अगस्त 2015