2004 से हितेश जेथरा मुझे गुरुजी के पास आने के लिए कह रहे थे, लेकिन मुझे उनके पास पहुँचने में दो साल लगे - उनके द्वारा चुने गए समय और जगह पर, यह मेरा पूरी तरह से मानना है।
28 जनवरी 2006 की सुबह थी जब हितेश ने मुझे फोन किया यह बताने के लिए कि गुरुजी गुड़गाँव आ रहे हैं और मुझे भी उनके दर्शन के लिए आना चाहिए। मैंने इस बारे में अपनी पत्नी और बच्चों से बात की, पर उनकी वहाँ जाने में कोई रुचि नहीं थी और उन्होंने मेरे साथ चलने से मना कर दिया। इसी बीच, हितेश ने मुझे फिर फोन किया और मुझ पर ज़ोर डाला कि मैं आऊँ। मेरे परिवार ने मना कर दिया, परंतु मैंने हितेश से कहा कि हम आएँगे। जब उसने मुझे दोबारा फोन किया तो मैंने कहा कि हम रास्ते में हैं।
अब मैंने अपने परिवार के साथ एक समझौता किया था: वह मेरे साथ तभी चलते अगर मैं उसी समय वहाँ से वापस आने को राज़ी हो जाता जब वह मुझे वापस आने को कहते। वह लंगर लेने के लिए भी नहीं माने थे।
परंतु जब हम वहाँ पहुँचे जहाँ गुरुजी का कार्यक्रम रखा गया था, मेरे परिवार में परिवर्तन आ गया। हमें ऐसा लगा जैसे हम स्वर्ग पहुँच गए थे और हमने बैठकर शबद सुने, गुरुजी का लंगर खाया और वापस आये।
बीस दिन बाद हम गुड़गाँव के मासिक सत्संग में गए और फरवरी 2006 में एम्पायर एस्टेट गए।
मुझे कम्पनी सेक्रेटरी बनाया
मैं पहली बार एम्पायर एस्टेट गया और जब मैं गुरुजी से घर जाने की आज्ञा ले रहा था, वह बोले, "आओ, कम्पनी सेक्रेटरी"। पर जब मैंने उनकी ओर देखा तो उन्होंने मुझे नज़रअंदाज़ कर दिया। मुझे लगा कि कम्पनी सेक्रेटरी बनने की बात गुरुजी ने किसी और व्यक्ति को कही होगी।
मैंने गुरुजी की संगत से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे गुरुजी के कहे गए शब्दों का मतलब बाद में समझ आएगा। वैसे भी, उस वक्त मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट तथा कम्पनी सेक्रेटरी था पर मैंने कम्पनी सेक्रेटरी के तौर पर कभी काम नहीं किया था।
इन दर्शन के तीन महीने बाद, मई 2006 के दूसरे हफ्ते में, मेरी पत्नी की इच्छा हुई कि मैं अपना शेयर ट्रेडिंग का व्यापार छोड़ दूँ। उसने ऐसा सुबह के करीब 10 बजे बोला होगा। आधे घंटे बाद, मुझे एक कम्पनी का ऑडिट करने के लिए मानेसर बुलाया गया।
वह बृहस्पतिवार का दिन था और कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर जो पुणे में स्थित थे, मानेसर आये हुए थे। हमने लेखांकन (एकाउंटिंग) और कर-निर्धारण (टैक्सेशन) से जुड़े हुए मामलों पर विचार विमर्श किया। वह मुझसे बोले कि उनका उद्योग एक और व्यक्ति की तलाश में थी जो कम्पनी सेक्रेटरी और चार्टर्ड अकाउंटेंट हो। उन्होंने मेरे सामने फिनैंशियल कंट्रोलर और कम्पनी सेक्रेटरी की नौकरी का प्रस्ताव रखा, बिना मेरा बायो-डेटा देखे या मेरा औपचारिक इंटरव्यू लिए।
उस शाम हम एम्पायर एस्टेट गए, यह सोचकर कि गुरुजी से पूछेंगे कि मैं यह नौकरी लूँ कि नहीं। मैं हिम्मत नहीं जुटा पाया कि गुरुजी से पूछूँ और मैंने अपनी पत्नी, सोनी, से कहा गुरुजी से यह पूछने के लिए। उसने अभी इतना ही बोला था, "गुरुजी आज . . ." जब गुरुजी ने जवाब दिया, " हाँ जॉइन करो "। उसने दोबारा अपना प्रश्न पूरा करने की कोशिश की, और गुरुजी ने फिर से अपने शब्द दोहराये। जब सोनी ने तीसरी बार बोलने की कोशिश की, गुरुजी बड़ी सरलता से बोले, "चल भाग, जॉइन करो"।
तब जाकर हमें समझ आया कि जब हम वहाँ पहली बार गए थे तो क्यों उन्होंने मुझे कम्पनी सेक्रेटरी कह कर संबोधित किया था।
सड़क पर मेरी प्रार्थना का जवाब
मुख्यमार्ग से होते हुए बड़ा मंदिर हमारे घर से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर है। डेरा मंडी गाँव से होते हुए एक रास्ता जाता है जो सिर्फ 15 किलोमीटर का है, और वहाँ कम गाड़ियां होती हैं। हम बड़े मंदिर मुख्यमार्ग से ही जाया करते थे। एक दिन हम दूसरी संगत के साथ छोटे रस्ते से गए। क्योंकि इस रस्ते से जाने से समय और पैसा दोनों ही बच रहे थे, हमने आगे से इस छोटे रस्ते से ही जाने का निर्णय लिया। परंतु इस पूरे रस्ते पर ना तो कोई पेट्रोल पम्प था और ना ही कोई गाड़ी का मेकैनिक।
एक बार जब हम बड़े मंदिर से वापस आ रहे थे तो इस रस्ते पर हमने पहले एक और फिर दूसरा गलत मोड़ ले लिया। जल्द ही, हम बिल्कुल अंधेरे में, एक सुनसान जगह पर थे। ना तो हम आगे जा सकते थे और ना ही वापस मुड़ सकते थे। मैं गाड़ी चला रहा था और मैंने बस गुरुजी को याद किया। मैंने मन ही मन उनसे कहा कि मैंने सुना है कि जो बड़े और छोटे मंदिर जाते हैं उन्हें रास्ते में कोई दिक्कत नहीं आती है। पर हम मुश्किल में थे। हमारा मार्ग दर्शन कीजिए; हमें क्या करना चाहिए।
उसी समय, मोटरसाइकिल पर दो लोग सामने आ गए। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम गुड़गाँव जा रहे थे और जब हमने हामी भर दी तो उन्होंने हमें उनके पीछे-पीछे आने को कहा। वो दिव्य दूत हमें मुख्यमार्ग से गुड़गाँव ले गए। हमने उनका धन्यवाद करना चाहा पर वे दोनों गायब हो गए। हममें से किसी को भी वो नज़र नहीं आये। गुरुजी की कृपा से वह हमारी मदद के लिए आये थे। यह अनुभव हमारे लिए महत्त्वपूर्ण अनुस्मारक था कि गुरुजी हमेशा हमारे साथ हैं और हमें सुन सकते हैं।
दिल्ली के मैत्रेयि कॉलेज में मेरी बेटी को दाखिला मिला
मेरी बेटी के बारहवीं कक्षा में 86.25 % अंक आये थे। जब हम दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी. कॉम (होनोर्स) के लिए आवेदन पत्र भर रहे थे, हमें गुरुजी के एक अनुयायी से संदेश मिला कि उसको मैत्रेयि कॉलेज में दाखिला मिलेगा। जब पहली सूची आई तो ऐसा ही हुआ। हमने पहले दिन ही जाकर मैत्रेयि कॉलेज में दाखिला लिया।
जब कक्षाएं शुरू हुईं, विभाग के प्रमुख ने विद्यार्थियों को बताया कि बी. कॉम (होनोर्स) की कट-ऑफ 89 % थी। एक गलती के कारण, अखबार में और दिल्ली यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर 86 % छपे थे। अंकों की इस दिव्य गलती की वजह से, कॉलेज ने 128 दाखिले कर दिए जहाँ केवल 40 होने थे। हमें फिर से इस बात का अहसास हुआ कि गुरुजी हमारी कितनी मदद करते हैं। यह सिर्फ गुरुजी की वजह से ही हुआ कि मेरी बेटी को दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला और वो भी बी. कॉम (होनोर्स) में, जो वह हमेशा से करना चाहती थी।
गुड़गाँव से दिल्ली के कॉलेज जाना उसके लिए लगभग नामुमकिन जैसा था। पर गुरुजी के संरक्षण और आश्रय की वजह से वह बहुत आराम से कॉलेज जा पाती है।
गुरुजी हमारी पूर्वज्ञात और आकस्मिक परेशानियों का ख्याल रखते हैं। एक दिन मेरी पत्नी के सिर पर स्नानगृह में एक बहुत भारी ग्रेनाइट का टुकड़ा गिरा। हैरानी की बात है कि फिर भी उसे चोट नहीं पहुँची। गुरुजी ने उसे नई ज़िन्दगी दी है; गुरुजी भगवान हैं।
आर के गुप्ता, एक अनुयायी
मार्च 2008