गुरूजी ने मुझे आर्थिक विनाश से बचाया

राकेश गुप्ता, मार्च 2008 English
जब कोई नहीं आता, मेरे गुरूजी आते हैं

स्टॉक मार्किट में मुझे कई बार आर्थिक नुकसान उठाने पड़े थे पर मैं यह नहीं समझ पाया कि यह व्यापार मेरे लिए ठीक नहीं है। गुरूजी की शरण में आने के बाद जनवरी 2006 में मैंने शेयर का व्यापार बंद कर दिया और तब मुझे एहसास हुआ कि अब मैं मानसिक और आर्थिक रूप से ज़्यादा शान्त था।

दुर्भाग्यवश, अपने पहले हुए नुकसान का हर्जाना पूरा करने के लिए मैंने शेयर मार्किट में रुपया लगाने का निर्णय लिया। कुछ महीने मुझे अच्छा मुनाफा हुआ। उस आधार पर मैंने अक्टूबर 2007 में इस्तीफा देने का निश्चय किया पर गुरूजी ने मुझे ऐसा मार्च 2008 तक नहीं करने दिया। जनवरी 2008 में मुझे संगत में किसी से गुरूजी का संदेश आया कि मुझे शेयर का व्यापार बंद कर देना चाहिये पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। उसी महीने, थोड़े दिनों बाद मुझे फिर वही संदेश मिला पर मैंने फिर उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। अगले ही दिन स्टॉक मार्किट एकाएक गिर गया। जब 21 जनवरी को मैंने अपने नुकसान का हिसाब लगाया तो वह एक करोड़ रुपये से ज़्यादा का था।

तब मुझे समझ आया कि गुरूजी क्यों मुझे इस्तीफा देने से रोक रहे थे। पर मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ। मैंने बस गुरूजी को याद किया और उनसे माफी माँगी; मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था।

क्योंकि वो भोलेनाथ हैं, सबसे भोले-भाले भगवान, उन्होंने मेरी सुनी। आधे घंटे के अंदर दो घोषणाएँ हुईं। द यूनाइटेड स्टेटस फेडरल रिज़र्व ने इंटरेस्ट रेट इतनी ज़्यादा मात्रा में घटाया जितना बीस सालों में कभी नहीं घटाया था और भारत सरकार ने घोषणा की कि हिसाब चुकता करना ( जिसमें व्यापारी शेयर बेचते और खरीदते हैं और फिर सौदा पूरा करने के लिए विपरीत लेन-देन करते हैं ) अनिवार्य नहीं था। इससे मार्किट ऊपर चढ़ा, इतना कि दो दिनों में निफ्टी 3800 पॉइंट्स से 5200 पॉइंट्स पर आ गया -- और मेरा नुकसान थोड़ा सहनीय स्तर पर आ गया। मैंने सर्वशक्तिमान गुरूजी का शुक्रिया अदा किया। गुरूजी ने ना सिर्फ मेरी नौकरी बचायी, साथ ही अपूरणीय नुकसान से भी मुझे बचाया, जो मैं खुद ही अपने ऊपर लाया था - गुरूजी के आदेश की अवज्ञा करके। इस में हम सबके लिए सीख है कि गुरूजी का आदेश बिना किन्तु-परन्तु के तत्काल ही मानना चाहिए।

बिना पेट्रोल के स्कूटर चला

जनवरी 2008 में, रात को करीब 2:30 बजे मैं अपनी पत्नी के साथ स्कूटर पर इफको चौक, गुड़गाँव, से अपने घर जा रहा था। जब मैंने स्कूटर चलाने की कोशिश की तो वह चला नहीं। मैंने पेट्रोल की टंकी देखी तो पाया कि वो खाली थी। करीब तीन बजे हम एक पेट्रोल पम्प पहुँचे जहाँ मैंने लोगों से अनुरोध किया कि ज़्यादा पैसे लेकर वो मुझे पेट्रोल दे दें। उन्होंने यह कहकर कि पेट्रोल पम्प सुबह 6 बजे ही खुलेगा, मुझे मना कर दिया। उन दिनों ठंड बहुत ज़्यादा थी इसलिए पैदल घर जाना संभव नहीं था। तभी मुझे सत्संग याद आए जिनमें संगत की गाड़ियाँ बिना पेट्रोल के ही चली थीं। मैंने गुरूजी का नाम लिया और एक बार फिर स्कूटर शुरू करने की कोशिश की। इस बार स्कूटर चल पड़ा! जब मैं घर पहुँचा तो मैंने देखा कि पेट्रोल की टंकी पूरी भरी हुई थी। गुरूजी के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है क्योंकि वह भगवान शिव हैं।

सहारनपुर में गुरूजी की सुगंध

मेरा साला और उनका परिवार 2006 में गुरु पूर्णिमा के दिन सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) से बड़े मंदिर आए। गुरूजी का दर्शन पाकर हम सब बहुत खुश थे। तीन साल बाद, 2009 में गुरु पूर्णिमा के दिन वह फिर बड़े मंदिर आए। उस दिन, समारोह के दौरान मेरे साले की पत्नी को उनकी गद्दी पर गुरूजी के दिव्य दर्शन हुए।

कुछ समय बाद, अगस्त में हमें सहारनपुर जाने का मौका मिला। मेरे साले का परिवार बहुत इच्छुक था कि वे गुरूजी का सत्संग अपने घर में रखें - जैसे गुड़गाँव में संगत के घर में होता है। गुरूजी की कृपा से उनके घर में शाम 4 से 8 बजे तक सत्संग हुआ और उसके बाद लंगर। निस्संदेह, गुरूजी अपने आशीर्वाद के साथ वहाँ मौजूद थे। बाज़ार से सजावट के लिए गुलाब खरीदकर लाने से पहले ही, सुबह 11 बजे हमें सहारनपुर में गुरूजी की सुगंध आई। सत्संग के दौरान संगत को भी गुरूजी की मौजूदगी महसूस हुई। एक और बात ध्यान देने वाली है -- सहारनपुर में नियमित रूप से शाम 4 बजे से 12 बजे तक बिजली जाती है, पर उस दिन उस क्षेत्र में एक मिनट के लिए भी बिजली नहीं गई। अगले दिन गुरूजी ने मेरी साली को सपने में भी दर्शन दिए और सबको आशीर्वाद दिया।

गुरूजी की चाय और लंगर प्रसाद अमृत हैं

सितंबर 2009 में खराब खाने की वजह से मेरी बेटी बहुत बीमार थी। उसे बुखार, उल्टियाँ और दस्त थे। उसकी हालत इतनी खराब थी कि दवाइयाँ लेने के बावजूद वह 2-3 दिनों से पानी तक नहीं पचा पा रही थी। फिर, गुरूजी की कृपा से हम शनिवार को बड़े मंदिर गए। हमने हमारी बेटी की हालत की वजह से उसे चाय और लंगर प्रसाद मुख्य हॉल के बाहर ही लेने को कहा, परन्तु जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया, उसकी हालत में सुधार आने लगा। और उसने चाय प्रसाद मंदिर के मुख्य हॉल में और लंगर मंदिर के बेसमेंट में लिया। गुरूजी के आशीर्वाद से वह तुरन्त ही स्वस्थ हो गई। जो प्रमाणित दवाइयाँ 2-3 दिनों में कुछ नहीं कर पायीं, गुरूजी के आशीर्वाद भरे प्रसाद ने एक क्षण में कर दिया। जय गुरूजी !

राकेश गुप्ता, गुड़गाँव स्थित भक्त

मार्च 2008