दिसंबर 2005 के एक शनिवार को, दिल्ली में प्रातः आठ बजे, मैं घर पर बैठे हुए समाचार पत्र पढ़ रहा था कि मेरे एक घनिष्ठ संबंधी का फ़ोन आया। रिश्ते में मेरे भाई, पी एन राजू ने बताया कि उनके भाई पी एन नरसिम्हन और उनके दो अन्य सहकर्मी की प्रातः चार बजे पोंडिचेरी से घर आते हुए भंयकर दुर्घटना हो गयी थी। बात करते करते राजू रो पड़े।
मैंने राजू को तुरन्त पोंडिचेरी जा कर गुरुजी का चित्र उन आहतों के पास रखने को कहा। मैंने उसे गुरुजी का एक चित्र कुछ माह पूर्व ही दिया था।
जिस मारुति कार में वह यात्रा कर रहे थे वह एक खड़ी हुई बैलगाड़ी से टकरा गयी थी। कार आगे से नष्ट हो गयी थी। आगे बैठे हुए दोनो लोगों को सिर में चोटें आयीं थी, उनकी बाहें टूट गयी थीं। पर पीछे बैठे हुए श्री अरुण की अवस्था चिंतनीय थी। उनका सिर कार की छत से जा लगा था और उन्हें भयंकर अंदरूनी चोट लगी थी।
जब राजू चिकित्सालय पहुँचे तो चिकित्सकों के अनुसार तीनों की अवस्था गंभीर थी। अरुण की अवस्था तो अत्यंत शोचनीय थी और उनके अनुसार वह सात घंटे से अधिक जीवित नहीं रह सकता था। एक्स-रे में उसकी सिर की चोट बहुत गहरी थी, मस्तिष्क के भीतर रक्त प्रवाह नहीं हो रहा था और उस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था। अतः उन्होंने अरुण का उपचार बंद कर दिया था और उसके रिश्तेदारों को उसके अंतिम समय के लिए तत्पर रहने को कह दिया था।
राजू ने आस्था नहीं छोड़ी। उसने गुरुजी का चित्र तीनों के सिर पर रखा। यह उसने किसी भी रिश्तेदार को बताये बिना किया क्योंकि किसी को भी गुरुजी के बारे में ज्ञान नहीं था।
मैं राजू से हर तीन घंटे में बात कर रहा था। वह जब भी रोगियों के समीप होता तो गुरुजी का चित्र उनके पास रख कर गुरुजी से प्रार्थना करता था।
परिणाम तुरन्त ज्ञात होने लगे। चिकित्सकों ने जब रोगियों का परीक्षण किया तो दो को तो उन्होंने संकट से बाहर घोषित कर दिया परन्तु उन्हें गहन चिकित्सा केन्द्र में देखरेख के लिए रखने पर बल दिया। अरुण का परीक्षण करने पर वह चकित रह गये। न केवल उसने वह सात घंटे की सीमा पार कर ली थी, उसकी अवस्था में सुधार भी हो रहा था। चिकित्सकों से प्रश्न करने पर वह कुछ उत्तर नहीं दे पा रहे थे।
अगले दिन चिकित्सक स्तब्ध रह गये। अरुण का परीक्षण करने पर उन्होंने उसका तीव्रता से सुधार होता देखा। तब उन्होंने कहा कि वह ठीक तो हो जाएगा पर सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पायेगा। दुर्घटना के दो सप्ताह बाद तक राजू गुरुजी का चित्र रोगियों पर रखता रहा। एक माह के उपरान्त अरुण पुरानी बातें याद करने लगा और उसने शैय्या से उठने की आकांक्षा व्यक्त की।
गुरुकृपा से वह स्वस्थ होता गया और तीन मास के बाद उसने कार्यालय भी जाना आरम्भ कर दिया। अरुण का उपचार करने वाले चिकित्सक केवल आश्चर्य कर सकते थे। उनको पता नहीं था कि गुरुजी ने अपने अनुयायी की पुकार सुन कर उनकी रक्षा की है जिन्होंने गुरुजी के बारे में सुना भी नहीं था।
सत्संग से उपचार
गुरुजी के आशीर्वाद का एक अवसर नौ मास पूर्व भी आया था, जब मैंने गुरुजी के दर्शन भी नहीं किये थे। मैं अपने दो अतिथियों से वार्तालाप कर रहा था - मेरी मामी, श्रीमती विजया और भाभी, श्रीमती राजलक्ष्मी।
मेरी मामी स्पोंडिलोसिस की रोगी थीं और भाभी पिछले 15 वर्ष से माइग्रेन से पीड़ित थी। वार्ता करते हुए विजया ने बताया कि न तो वह शैय्या पर सो पाती थी, न ही किसी भी वाहन, जैसे रिक्शा, कार, बस या ऑटो में यात्रा कर पाती थी। वह अपने मन की शांति खो चुकी थी। तमिलनाडु के एक विशिष्ट स्पोंडिलोसिस विशेषज्ञ, डॉमईल वाहनं ने कह दिया था कि उनको इस वेदना के साथ ही शेष जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।
श्रीमती राजलक्ष्मी को इतनी अधिक पीड़ा होती थी कि वह आत्महत्या करने का सोचने लगती थी। कई बार उसने सोने की अधिक गोलियाँ ले भी ली थीं पर असफल रही थी।
मुझे पता नहीं कि मेरे मन में यह विचार कैसे उत्पन्न हुआ किन्तु मैंने उनको कह दिया कि गुरुजी के समक्ष यह समस्याएँ रखने से उनको मुक्ति मिल जाएगी। उस समय मेरे पास गुरुजी का एक ही चित्र था। पर मैं उनको गुरुजी के बारे में बताता गया। मैंने उनको बताया कि कैसे उनसे भी अधिक गंभीर रोगी गुरुजी की कृपा से स्वस्थ हुए हैं। मैं उनको गुरुजी के सत्संग कोई दस मिनट तक सुनाता रहा।
अविश्वसनीयता से यह सब सुनने के बाद विजया और राजलक्ष्मी दोनों ने अपने रोग में सुधार होने की बात कही। विजया ने कहा कि उसका स्पोंडिलोसिस का दर्द शीघ्रता से कम हो रहा था। राजलक्ष्मी ने भी कहा कि उसकी वेदना जो वार्ता प्रारम्भ होने के समय बनी हुई थी, घट रही थी। उसको लग रहा था जैसे उसके सिर से एक बहुत बड़ा बोझ हट गया है।
उनके स्वास्थ्य में प्रगति बनी रही। उस रात विजया दस वर्ष के पश्चात् पहली बार शैय्या पर सोयी। राजलक्ष्मी ने उस रात कोई औषधि नहीं ली। यह चमत्कार देखने के तुरन्त बाद मैंने कर्नल चटर्जी को फोन किया और उनसे गुरुजी के पास जाने के मार्गदर्शन लिए। एक सप्ताह के बाद हमने सतगुरु के दर्शन किये और उनसे आशीर्वाद लिया।
उस वार्ता को हुए तीन वर्ष हो गये हैं और चेन्नई में रह रही वह महिलाएँ रोज़ गुरुजी के चित्र के सामने उनसे प्रार्थना करती हैं। अब उनमें उन रोगों के कोई आसार शेष नहीं हैं।
आर कृष्णास्वामी, दिल्ली
जुलाई 2007