गुरुजी ने शिव भक्त का हाथ थामा और उसे सही रास्ता दिखाया

रोहन जैन, सितम्बर 2015 English
साल 2009 में मैं पहली बार बड़े मंदिर गया। मैं शिव भगवान का पक्का भक्त हूँ और सब धर्मों का आदर करता हूँ पर शिव भगवान के लिए मेरे मन में जो प्यार है उसे मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता। मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे गुरुजी के बारे में बताया और कहा कि वह भगवान शिव के अवतार हैं। मैं ऐसा मूर्ख कि मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। परन्तु शिवजी के लिए मेरे उत्साह को जानते हुए मेरे दोस्त ने मुझे बताया कि बड़े मंदिर में शिवरात्रि कैसे मनायी जाती है और मुझे वहाँ चलने को कहा। कुछ महीनों बाद, मैं अपने कॉलेज के दो और दोस्तों के साथ पहली बार बड़े मंदिर गया।

आखिरकार हम बड़े मंदिर पहुँचे – पृथ्वी पर जन्नत का द्वार। हमने गुरुजी की समाधि पर माथा टेका, और फिर शिवजी की मूर्ति देखी जिसे देख कर मैं बहुत खुश हुआ। हम हॉल में गए और मेरी नज़रें केवल शिवजी पर टिकी हुई थीं, कहीं और नहीं। मैंने गुरुजी की गद्दी और स्वरूप देखे पर मेरे अहंकार ने मुझे अंधा कर दिया था। मैंने अपने दोस्तों और बाकी संगत को शान्त और तनाव मुक्त बैठे हुए देखा परन्तु मैं प्रभावित नहीं हुआ। मैंने अपने आप से कहा कि शान्ति तो मुझे घर में भी 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करके मिल सकती थी, इसके लिए मुझे इतनी दूर आने की क्या आवश्यकता थी। उस दिन सोमवार था, भगवान शिव का दिन, इसलिए मैं मंदिर चलने के लिए माना था। परन्तु अपने अहंकार के वजह से मैंने गुरुजी से कोई जुड़ाव महसूस नहीं किया। गुरुजी के बारे में मैं कुछ नहीं जानता था।

घर वापस पहुँचकर मैंने इस सब के बारे में सोचा भी नहीं। मेरे अहंकार के वजह से मैंने नादानी की थी पर मेरा मन जान गया था कि मैं सही जगह पहुँच गया था। मैं गुरुजी में मानता नहीं था, परन्तु मेरा मन उनका हो चुका था और हमेशा उनका रहेगा।

कुछ समय बीत गया और मैं कई बार मंदिर भी गया, वो भी सोमवार के दिन और इस शर्त पर कि मुझे अपने साथ कोई लेकर जाएगा ताकि इतनी दूर जाने में मेरा पेट्रोल बर्बाद ना हो। मेरे दोस्तों को मंदिर जाकर शान्ति मिलती परन्तु मैं किन्तु-परन्तु में उलझा रहा। मैं अपने आप को दृढ़ता से यही कहता कि शिवजी का भोले भंडारी रूप ही मेरे लिए एकमात्र सच था और कोई बाबा उनकी जगह नहीं ले सकते थे। मेरी मूर्खता के लिए मुझे माफ कर दीजिए गुरुजी !

फिर भी मैं दिल से गुरुजी का आदर करता था और बस मन में ही उनके आगे माथा टेकता था परन्तु बड़े मंदिर जाने का मेरा बिलकुल मन नहीं करता था।

साल 2013 में पहली बार मुझे घर में गुरुजी के दर्शन हुए। मैं ध्यान में था और ॐ नमः शिवाय जप रहा था। अचानक मुझे लगा जैसे मेरा शरीर मेरा है ही नहीं; अब वह गुरुजी का था। मेरा शरीर गुरुजी का बन गया था और मैं मंत्र जाप किए जा रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा था और इसका मतलब क्या था। पर मैंने सोचा कि क्योंकि गुरुजी आए थे तो मुझे कम से कम एक बार तो मंदिर जाना चाहिए। अगले सोमवार मैं अपने एक दोस्त के साथ, जो उसी दिन लखनऊ से आई थी, मंदिर गया। हमें बहुत सुन्दर दर्शन हुए और हम मेन हॉल की ओर जाती हुई सीढ़ियों के नीचे बैठे। ज़िन्दगी में पहली बार मैंने मंदिर में शान्ति महसूस की और मैं सम्पूर्ण महसूस कर रहा था। मुझे मंदिर की पावन और विस्मित कर देने वाली ऊर्जा और गुरुजी का शर्त-रहित प्यार महसूस हुआ। मेरी दोस्त को भी शान्ति महसूस हुई। हमें बाद में समझ आया कि मेरी दोस्त को भी अपनी शरण में लेने की यह गुरुजी की दिव्य योजना थी।

गुरुजी से मेरा जुड़ाव उनको अभिनन्दन करने से शुरू हुआ। मैं अक्सर उनको 'हाय', 'हैलो' या 'नमस्ते' बोलता।

एक साल बाद मुझे गुरुजी के एक और यादगार दर्शन हुए। एक दिन मेरे कॉलेज की क्लास कैंसिल हो गई तो मैंने मंदिर जाने का निश्चय किया। मैं दोपहर में एक बजे मंदिर पहुँचा तो मैंने देखा कि वह बंद था। मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया तो उसने मुझे बताया कि उस दिन गुरुजी का जन्मदिन था और मंदिर दो बजे खुलेगा। मैंने कतार में इंतज़ार किया और मुझे शिवलिंग के ऊपर गुरुजी और शिवजी के दर्शन हुए पर मैंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। मैं रेकी और 'एंजेल थेरेपी' करता हूँ और मुझे अक्सर फरिश्ते 'नज़र' आते हैं। क्योंकि मैं अपने अहंकार में अंधा हो गया था, मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं कितना खुशकिस्मत था कि मुझे यह दर्शन हुए थे। लंगर प्रसाद करके मैं घर वापस गया।

बिना किसी गुरु के मार्गदर्शन के, रेकी के साथ आध्यात्मिक कार्य करने के वजह से जल्द ही मुझे परेशानियों का सामना करना पड़ा। रेकी जैसे तरीकों से हमें सारे विश्व की ऊर्जा उपलब्ध होती है पर हमें यह नहीं पता होता है कि उसमें से हमें कितनी ऊर्जा लेनी चाहिए या कितनी ऊर्जा का हम नियंत्रण कर सकते हैं। कई बार मुझे ज़्यादा ऊर्जा मिल जाती और मैं सो नहीं पाता था। पहली बार जब मुझे यह परेशानी हुई तो रात का समय था। बिना सोचे मैं गुरुजी का नाम जपने लगा और मैंने उनसे विनती की कि वह आकर मेरी मदद करें। मेरे मन में विचार आया कि मुझे उनकी गोद में सिर रखकर सोना चाहिए। मैं उनका नाम जपता रहा और मुझे नींद आ गई और फिर मैं सुबह के तीन या चार बजे उठा। मुझे गुरुजी अपने बहुत करीब महसूस हुए, जैसे उन्होंने अपना हाथ मेरे सिर पर रखा हुआ हो और वह बोले: "सो जा।" फिर मैं आराम से सो गया। ऐसा ही कुछ दोबारा हुआ।

जैसे-जैसे मैं रेकी और 'एंजेल थेरेपी' उत्साहपूर्वक करता रहा, मेरी परेशानियाँ बढ़ती गईं। ना सिर्फ मुझे आसानी से 'आत्माएँ' नज़र आतीं बल्कि नकारात्मक ऊर्जा और तत्व मुझसे चिपक भी जाते। साल 2014 में सितम्बर-अक्टूबर तक मैं उसमें बुरी तरह फंस गया था। मैं एक अंकल को जानता था जो तंत्र विद्या करते थे। उनकी मौजूदगी में वो नकारात्मक ऊर्जा मुझे छोड़ देती थी। मैंने खुद से वो नकारात्मक छाया हटाने की कोशिश की तो वह नहीं हटी। इस बात ने मुझे सोच में डाल दिया कि वो अंकल जब मेरे आस-पास नहीं होंगे तो मैं अपनी रक्षा कैसे करूँगा? उनकी गैरमौजूदगी में मैं क्या करूँगा? एक बार देर रात हो चुकी थी और इतनी नकारात्मकता के वजह से मैं सो नहीं पा रहा था तो मैंने गुरुजी से मदद माँगी। आधे घंटे के अंदर मैं अच्छा महसूस करने लगा। मैं शांत हो गया, रात के दो बजे मैंने खाना खाया और फिर मैं सो गया।

यह मेरा सौभाग्य था कि अगला दिन सोमवार था और मैं गुरुजी का धन्यवाद करने मंदिर जा सकता था। मैं रात को 7:30 बजे मंदिर पहुँचा। जैसे ही मुझे चाय और समोसा प्रसाद मिले, मंत्र जाप शुरू हो गया। मैं जानता था कि उस नकारात्मक ऊर्जा ने अभी मुझे छोड़ा नहीं था इसलिए मैंने गुरुजी से प्रार्थना की: "श्रीमान, मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करके देख ली पर कुछ नहीं हुआ। मैंने अपने तांत्रिक अंकल से भी मदद ली पर उनसे भी कुछ नहीं हो पाया, इसलिए गुरुजी अब आपको ही मेरी मदद करनी होगी और मुझे बचाना होगा। अब मैं पूरी तरह से आपका हूँ, श्रीमान।" ऐसा बोलते ही मुझे लगा जैसे कुछ हुआ और मंत्र जाप जब खत्म हुआ तो मैं हल्का महसूस कर रहा था।

गुरुजी, भगवान, ने मुझे बचाया। मुझे महसूस हो रहा था कि मेरी 90 प्रतिशत नकारात्मकता खत्म हो गई थी और मैं बहुत खुश हुआ। मैंने सोचा कि अपनी बची हुई नकारात्मकता मैं खुद ही निकालूँगा परन्तु गुरुजी ने वह भी कर दिया। मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे बृहस्पतिवार को मंदिर जाने का बुलावा आया था और उस रात मैंने पहली बार लंगर प्रसाद खाया। उस दौरान मैं सत्संग में जाता और वह सब करता जो गुरुजी मेरा मार्गदर्शन करके मुझसे करवाते। मुझे महसूस हो रहा था कि मेरे सारे चक्रों की सफाई और संतुलन की जा रही थी और मुझे बहुत सकारात्मकता और प्रेम महसूस होता। मैं आज्ञा लेकर बाहर आया और पहली बार मैंने गुरुजी का स्वरूप माँगा। करीब 10-15 मिनटों बाद, जिन संगत ने मुझे स्वरूप दिया, उन्होंने मुझे सीधे घर जाने को कहा। उस दिन मेरे दोस्त को भी गुरुजी का स्वरूप मिला था और मैं उसके साथ सीधे अपनी गाड़ी तक गया। हमने उन संगत के कथन को गुरुजी का हुक्म माना और गाड़ी की ओर मुस्कुराते हुए गए। हमें लगा था कि हम थकान महसूस करेंगे पर हम ऊर्जा से भरे हुए महसूस कर रहे थे। मैंने अपने दोस्त को कहा कि गुरुजी ने हमें पूरी ज़िन्दगी के लिए आशीर्वाद दे दिया था।

उस क्षण मुझे गुरुजी से पूरी तरह से प्यार हो गया। अब मैंने अपनी आत्मा, शरीर और दिमाग, सब कुछ गुरुजी को समर्पण कर दिया है।

गुरुजी हर दिन, हर घंटे, हर क्षण हम पर कृपा करते हैं। उनकी कृपा से हर क्षण एक सत्संग बन जाता है। गुरुजी वास्तव में कौन हैं, यह समझने में मुझे थोड़ा समय लगा पर उनके आशीर्वाद से अब मैं यह समझ गया हूँ कि वह ही एकमात्र सत्य हैं। वह महाशिव हैं, दुनिया के रचियता, वह सारा ब्रह्माण्ड हैं, वह इस दुनिया के मालिक हैं। हम बहुत खुशकिस्मत हैं कि हमें स्वयं दुनिया के रचियता गुरु के रूप में मिले हैं, क्योंकि एक गुरु ही हमें मोक्ष प्रदान कर सकता है।

गुरुजी हमारी सारी ज़रूरतें पूरी करते हैं: हमें बस पूरी तरह से समर्पण करना है और उनमें पूरा विश्वास रखना है; वह कुछ भी कर सकते हैं; इस दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं। हमारी सोच सीमित होती है, उनकी कृपा की कोई सीमा नहीं है।

हाँ, हमें अपने बुरे कर्मों का सामना ज़रूर करना पड़ेगा परन्तु गुरुजी इतने दयालु हैं कि जिस क्षण हम उनके पास आ जाते हैं, वह हमारे 90 प्रतिशत बुरे कर्म अपने ऊपर लेकर हमें आशीर्वाद देते हैं। गुरुजी इतने महान हैं कि अगर हम पूरी तरह उनको समर्पण कर दें तो वह हमारी 110 प्रतिशत परेशानियाँ दूर कर देते हैं। मुझे कई बार महसूस हुआ कि गुरुजी ने मेरी सारी परेशानियाँ अपने ऊपर ले ली हैं।

मैं गुरुजी से शारीरिक रूप में कभी नहीं मिला पर टेलिपथी से मिला हूँ: मैं जब भी सत्संग में या बड़े मंदिर जाता हूँ तो वह मुझे दर्शन देते हैं: विश्वास रखिए कि वह अपनी गद्दी पर विराजमान हैं और वह आपको चमत्कार दिखाएँगे और आप उनका गुणगान करते रह जाएँगे।

गुरुजी मेरे गुरु हैं, मेरे सबसे अच्छे दोस्त, मेरे मालिक, मेरे प्रिय, मेरे सब कुछ। एक क्षण ऐसा नहीं होता है जब मैं उनको याद नहीं करता हूँ। मेरे अंदर से अब 'मैं' खत्म हो गया है और कुछ बचा है तो सिर्फ गुरुजी। मेरी गुरुजी से यही प्रार्थना है कि मेरी हर सोच और हर कर्म उनके हुक्म के पालन में हो।

गुरुजी से जुड़ने के लिए शबद बहुत ज़रूरी हैं

मैं अब रेकी और बाकी सब आध्यात्मिक रस्में छोड़ चुका हूँ। मैं सिर्फ गुरुजी से जुड़ाव बनाकर रखता हूँ क्योंकि वह सर्वोच्च हैं। सबसे पहले गुरुजी से सीधा जुड़ाव बनाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। सत्संग में गुरुजी के साथ बैठिये, हमेशा समय से पहले पहुँचकर गुरुजी का स्वागत कीजिए। उनसे मन में बात कीजिए। वह हमेशा हमारी सुनते हैं, हमारी मदद करते हैं और हमें जवाब देते हैं। आप गुरुजी में जितना ज़्यादा विश्वास करेंगे, आपको उतने ज़्यादा दर्शन और उनके आशीर्वाद मिलेंगे। जब मैंने मंदिर जाना शुरू किया तो कई साल गँवा दिए और मैं समझ ही नहीं पाया कि गुरुजी कौन हैं और मुझे इस बात का बहुत पछतावा है। मेरे अहंकार ने मुझे अंधा कर दिया था। गुरुजी के करीब आने से हम स्वयं ही खुद को रोकते हैं – कोई और या कुछ और नहीं। अगर हम उन्हें समर्पण कर देंगे और उनमें पूरा विश्वास रखेंगे तो गुरुजी ऐश करा देंगे, यानि कि हम पर उनकी असीमित कृपा होगी।

हमें गुरुजी से सीधे बात करनी चाहिए। सत्संग में बैठने से ही हमें हमारी सोच से भी ज़्यादा आशीर्वाद मिलते हैं। गुरुजी के पास आने के बाद यहाँ-वहाँ कहीं जाने की ज़रूरत नहीं होती है क्योंकि गुरुजी हर समय हर जगह हैं। हमें बस उनके साथ समय बिताना है, उनसे बात करनी है और सत्संग में जाना है। सब्र रखिए क्योंकि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है और उसे देने का सही समय क्या है, वे जानते हैं। उनका स्वरूप ना हो तब भी मन में उनसे बात कीजिए और वह सुनेंगे। किसी रस्म की नहीं बस प्रेम की ज़रूरत है।

सत्संग में बैठना और शबद सुनना आशीर्वाद भी है और सेवा भी। हर किसी को स्वयं मालिक के साथ बैठकर शबद का आनंद उठाने का मौका नहीं मिलता है। गुरुजी से टेलिपथी के द्वारा बात करना भी एक आशीर्वाद है। सेवा के लिए जल्दी करने की ज़रूरत नहीं है। जब सही समय होगा तो गुरुजी बड़े मंदिर या सत्संग में स्वयं सेवा का आशीर्वाद देंगे। शबद सुनना और गुरबाणी से ज़िन्दगी के महत्त्वपूर्ण सबक सीखना भी ज़रूरी है । एक बार उनसे जुड़ाव हो जाए, फिर गुरुजी के साथ बैठने ( उपासना ) की कोशिश करनी चाहिए और हमें गुरुजी से मार्गदर्शन प्राप्त होगा।

कभी-कभी मैं गुरुजी के साथ बैठकर सत्संग का आनंद उठाता हूँ, कभी वो मुझे सेवा का मौका देते हैं और कभी वो मुझे उनसे बात करने का आशीर्वाद देते हैं; सब उनकी इच्छा है। जब आप उनकी शरण में आ जाते हैं तो संयोग नहीं होता, सब गुरुजी का आशीर्वाद होता है। गुरुजी की शरण में हर पल एक सत्संग होता है।

प्राय: गुरुजी का सत्संग दो घंटे का होता है। कुछ संगत को लगता है कि उसके बाद गुरुजी अपनी संगत को छोड़ कर चले जाते हैं परन्तु गुरुजी मौजूद होते हैं। सत्संग खत्म हो जाने के बाद भी मैंने गुरुजी को अपनी गद्दी पर विराजमान देखा है। मुझे हमेशा इस बात का पछतावा रहेगा कि मैं गुरुजी के पास पहले क्यों नहीं आया और उनकी दिव्य मौजूदगी और प्रेम भरी कृपा का आनंद पहले नहीं उठा पाया। पर अब गुरुजी मुझे यह मौका देते हैं – सत्संग में दो घंटों के बाद भी बैठे रहने का, संगत के साथ सत्संग करने का, गुरुजी से टेलिपथी द्वारा बात करने का या फिर गुरुजी के ध्यान में बैठने का – जो भी उनकी इच्छा हो।

जब भी किसी संगत के यहाँ सत्संग हो तो हमें गुरुजी के साथ बैठना चाहिए क्योंकि वह हमारे बुलाने पर आये हैं। गुरुजी हर जगह हैं। हम अपनी सोच में सीमित हैं पर गुरुजी नहीं। जब गुरुजी शारीरिक रूप में थे तब भी एक समय पर से एक ज़्यादा जगह पर मौजूद होते थे। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत है तो बस उनसे सीधा जुड़ाव बनाने की। जब आप सत्संग में हों तो शबद पर ध्यान दीजिए, चाहे वो शबद आपने पहले सुने हों क्योंकि हर बार उनसे कुछ नया सीखने को मिलता है और यह गुरुजी से जुड़ने का एक माध्यम होता है।

हमें पता नहीं होता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम गुरुजी के पास आते हैं और सत्संग में बैठ पाते हैं। बहुत लोग तो सत्संग की असली कीमत समझ ही नहीं पाते हैं। हम गुरुजी की शरण में 2007 से पहले आए हों या बाद में, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनसे सीधा जुड़ाव बनाना ज़रूरी है और हमें बस उनका ध्यान लगाने के बारे में सोचना चाहिए।

गुरु परिवार में सिर्फ प्रेम की जीत होगी

ज़िन्दगी में हमें बहुत लोग मिलते हैं; कुछ के साथ हमारा अच्छा रिश्ता होता है, कुछ लोग बुरे होते हैं और कुछ के साथ हमारी बिलकुल नहीं बनती है। गुरुजी की शरण में आने के बाद, मैंने उन लोगों के साथ जिनसे मेरी नहीं बनती थी, अपने रिश्ते में एक बदलाव देखा है। ऐसा नहीं कि मेरी उनसे लड़ाई या बहस होती है, बस हम आपस में मेल नहीं खाते थे।

इंसान बहुत सीमित होता है; हमें इतना तो याद नहीं रहता है कि हमने किसी को दो महीने पहले क्या कहा था, इसलिए हमें इस बात का अंदाज़ा ही नहीं होता है कि हम पिछले जन्मों की गलतफमियों को साथ लेकर चल रहे होते हैं। परन्तु गुरुजी सब जानते हैं। गुरुजी की शरण में आने के बाद मेरा इस बात पर ध्यान गया कि कुछ लोग मेरे साथ अच्छे से बात करने लगे थे। परन्तु एक सेवादार थे जिनसे मेरी कभी भी अच्छे से बात नहीं हुई थी। मुझे इस बात का बहुत बुरा लगता था और मैंने गुरुजी से प्रार्थना की। मैंने गुरुजी से कहा कि अगर मैंने पिछले जन्म में उन सेवादार के साथ कुछ गलत किया हो तो वह उसके लिए मुझे माफ कर दें। मैंने गुरुजी से कहा: "मुझे अच्छा नहीं लगता है कि संगत परिवार में किसी के लिए भी मेरे दिल में गलत भाव हो, इसलिए कृपया मुझे और उस अंकल को आशीर्वाद दें और हमारे दिल में एक दूसरे के लिए प्रेम भाव ही आए।"

बस एक बार दिल से गुरुजी को प्रार्थना करने की देर थी और अगली बार जब मैं उन अंकल से मिला तो हमारे बीच सब ठीक था। उन्होंने पहली बार मुझे अच्छे से प्रणाम किया और मैं जानता हूँ कि यह गुरुजी के आशीर्वाद से हुआ। जय गुरुजी!

ऐसी स्थिति में हमेशा दो विकल्प होते हैं – एक, कि हम बहस करें, झगड़ें और लोगों के पीठ पीछे उनके बारे में बुरा बोलें। और दूसरा यह कि हम गुरुजी से इसके बारे में बात करें और दोनों के लिए गुरुजी से आशीर्वाद माँगें। अगर आप किसी संगत या सेवादार के बारे में गलत बोलेंगे या सोचेंगे तो आप अपने ही बुरे कर्म बढ़ायेंगे, उनके नहीं। पर आप समझदारी भी दिखा सकते हैं: गुरुजी से अपनी समस्या के बारे में बात कीजिए और अपने लिए और उस दूसरे व्यक्ति के लिए माफी माँगिये – आपको और भी ज़्यादा आशीर्वाद मिलेगा।

हमें किसी संगत या सेवादार के बारे में कुछ बुरा बोलना या सोचना नहीं चाहिए। गुरुजी ने हमें एक सुंदर गुर-परिवार दिया है। हमें एक दूसरे के साथ प्यार से रहना चाहिए और गुर-परिवार में एकता बनाकर रखनी चाहिए क्योंकि यही हमारा असली परिवार है जो मुश्किल में हमारे काम आएगा। जय गुरुजी !

अद्भुत दर्शन: शेषनाग और गुरु नानक देव जी

गुरुजी के आशीर्वादों के बारे में लिखना या उनका वर्णन कर पाना असंभव है। जब हम उनके आशीर्वाद अनुभव करते हैं तभी समझ पाते हैं कि उन्होंने हमें कितना दिया है।

अगस्त 2015 में मेरे एक दोस्त के यहाँ सत्संग था और मैं चाहता था कि मैं वहाँ जल्दी पहुँच कर सेवा करूँ। परन्तु मुझे गुरुजी से निर्देश मिला कि मैं सेवा ना करूँ बल्कि उनके साथ बैठूँ। मैं सत्संग शुरू होने से पाँच मिनट पहले पहुँचा और जब गुरुजी आए तो उनके आगे माथा टेक कर उनके सामने बैठ गया। जैसे ही मैं बैठा मुझे गुरुजी के साथ शेषनाग नज़र आए। पहले तो मुझे लगा कि यह मेरी कल्पना होगी परन्तु गुरुजी ने मुझे दर्शन पर शक करने से मना किया। फिर गुरुजी ने मुझे शिवलिंग दिखाया – जैसा मंदिरों में होता है। जो शबद चल रहे थे, उनमें भी गुरु महिमा की बात हो रही थी।

और पहली बार मुझे गुरु नानक देव जी के दर्शन हुए। दर्शन में मैंने देखा कि मैं गुरु नानक देव जी से मिल रहा हूँ, उन्होंने मुझे गले लगाया और उनकी आँखें भर आई थीं। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं सदियों बाद उनसे मिल रहा था। इस बात के कुछ दिन पहले ही मेरे एक दोस्त ने मुझे गुरु नानक देव जी का स्वरूप दिया था। मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पूजा करना ज़रूरी होता है और मैं यह बहुत जन्मों से करता आ रहा हूँ। और इस जन्म में जाकर मुझे गुरु नानक देव जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

ध्यान में मैंने गुरुजी से एक दिव्य खाली स्थान के दर्शन माँगे, निर्मलता भरी एक पावन जगह। मैं ऐसा माँगता रहा और गुरुजी मना करते रहे। मेरे कर्म अभी पूरी तरह साफ नहीं हुए थे, ऐसे दर्शन प्राप्त करने के लिए मुझे दान करके अपने कर्म साफ करने थे।

फिर मैंने गुरुजी से अमृत वर्षा के लिए प्रार्थना की और प्राय: मैं हठ नहीं करता हूँ पर इस बार तो मैं बार-बार यह माँगता रहा। मेरी यह इच्छा तब पूरी हुई जब मैंने अपने ऊपर एक दिव्य सफेद रोशनी की वर्षा होते हुए देखी। मैं एकदम ताज़ा और ऊर्जा से भरा हुआ मेहसूस कर रहा था और मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। बाद में जब मैंने अपने दोस्त को यह बात बताई तो वह बोला कि उसने भी गुरुजी से यही माँगा था और उसे जवाब मिला कि उसकी माँग पूरी हुई पर उसे अमृत वर्षा नज़र नहीं आई थी।

अमृत वर्षा के बाद मैंने देखा कि शेषनाग मेरे आस-पास चक्कर लगा रहे थे और फिर मेरे पास आ गए। गुरुजी बोले कि यह शेषनाग हमेशा मेरे साथ रहेगा और इस कलयुग में मेरी रक्षा करेगा और यह बात सुन कर मैं बहुत खुश हुआ। जब मैंने यह बात अपने दोस्त को बताई तो उसके पिता बोले कि उन्होंने एक परिकल्पना देखी थी जिसमें एक साँप जाकर गुरुजी की गद्दी पर बैठ गया था परन्तु उन्हें इसका मतलब समझ नहीं आया था। अंकल को उनका जवाब मिल गया जब मैंने उनसे कहा कि वो शेषनाग हमारी रक्षा के लिए था।

गुरुजी के साथ मेरे अनुभव हर बार कुछ अलग होते हैं। उसकी खुशी का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता, उसे सिर्फ अनुभव कर सकते हैं।

श्रद्धा का करिश्मा: अस्पताल में माँ की स्मरण शक्ति लौटी

6 जुलाई को हमें मेरे एक दोस्त के यहाँ सत्संग में जाना था। मैं वहाँ जल्दी गया और मेरी माँ वहाँ सत्संग के निर्धारित समय पर पहुँचीं। उनके सिर में बहुत दर्द था जिसके लिए उन्होंने दवाई ली थी और उन्होंने गुरुजी से प्रार्थना की वह उनका सिर का दर्द ठीक कर दें ताकि वह सत्संग में जा सकें। गुरुजी ने उन पर कृपा की और वह सत्संग में जा पाईं। उसके बाद वह घर वापस गईं परन्तु मैं गुरुजी को उनके जन्मदिन की बधाई देकर और केक प्रसाद खाने के बाद ही घर गया। जैसे ही मैं घर के अंदर गया, मुझे गुरुजी की सुगन्ध आई और वह पूरे घर में थी। मैं बहुत खुश था कि गुरुजी हमें आशीर्वाद देने के लिए आए थे। फिर मैं अपनी माँ के कमरे में गया और उन्होंने आँखें खोलीं तो मैंने उनसे कहा कि वह गुरुजी को जन्मदिन की बधाई दे दें जिसके बाद वह सो गईं।

अगले दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि गुरुजी का जन्मदिन था और मैंने निश्चय किया था कि इस दिन मैं गुरुजी से कुछ नहीं माँगूंगा; आज के दिन तो उत्सव मनाना था। मैं बड़े मंदिर गया और मुझे बहुत सुंदर दर्शन हुए। मुझे पूरे चार घंटों के लिए मंदिर में बैठने का मौका मिला और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में था, 'ऐश', गुरुजी के शब्दों में। घर वापस पहुँचकर मुझे गुरुजी की सुगन्ध के रूप में और आशीर्वाद मिले। परन्तु मेरी माँ को सिर में दर्द था और वह सो रही थीं।

अगले दिन अचानक ही उनकी स्मरण शक्ति चली गई और उनको चीज़ों के नाम नहीं याद आ रहे थे। हमें लगा कि यह समस्या रक्तचाप के वजह से हुई थी और दवाइयाँ लेने से ठीक हो जाएगी। परन्तु चिकित्सक ने उनका एम आर आइ कराने को कहा। माँ डर गईं और उन्होंने एम आर आइ नहीं कराया और बस अपनी दवाइयाँ लीं।

दो दिन बाद यह समस्या और गंभीर हो गई और हम न्यूरोलॉजिस्ट के पास गए। चिकित्सक ने जब माँ से उनका नाम पूछा तो वह बता नहीं पाईं। उन्हें उसी समय अस्पताल में एमर्जेन्सी में दाखिल किया गया और दिमाग के सी टी स्कैन से पता चला कि उसमें एक क्लॉट था। उन्हें फौरन दवाइयाँ दी गईं और वह शाम तक बेहतर हो गईं। यह गुरुजी की कृपा से ही हुआ था कि हमें एक अच्छा चिकित्सक मिला और माँ का इलाज हुआ। चिकित्सकों ने हमें कहा कि माँ की स्मरण शक्ति आने में छः महीने से एक साल तक लग जाएगा पर हम जानते थे कि गुरुजी का लंगर उनको उससे कहीं जल्दी ठीक कर देगा।

दो दिन बाद हमारे घर के निकट एक सत्संग था। मैं माँ के लिए जल प्रसाद लाना चाहता था पर वहाँ जा नहीं पाया। शाम को मुझे किसी संगत ने फोन करके कहा कि उन्होंने हमारे लिए जल प्रसाद की एक बोतल लेकर रखी थी। और मुझे क्या चाहिए था?

कुछ दिनों बाद, माँ को अस्पताल में देखने और उनसे मिलने आए रिश्तेदारों का ख्याल रखने के बीच में मुझे कुछ खाली समय मिला परन्तु घर जाने के बजाय मैं सत्संग में गया। और सत्संग में जाने के एक दिन बाद चमत्कार हुआ: ना सिर्फ माँ को अस्पताल से छुट्टी मिली बल्कि उनकी स्मरण शक्ति भी वापस आ गई। उनको सब कुछ याद आ गया था और गुरुजी का धन्यवाद करने हम अस्पताल से सीधे सत्संग में गए।

हमें अपने कर्म तो भुगतने ही पड़ते हैं परन्तु विश्वास और समर्पण से उनका सामना करना आसान हो जाता है। अगर गुरुजी की कृपा हम पर नहीं होती तो पता नहीं माँ का क्या होता। हम यह समझ ही नहीं सकते हैं कि कैसे गुरुजी हमारा हाथ थाम कर हमारे बुरे कर्म कटवा देते हैं। जिस दिन माँ की स्मरण शक्ति गई थी, उससे एक दिन पहले मुझे घर में गुरुजी की सुगन्ध आई थी जो उनका संदेश था कि गुरुजी जानते थे कि क्या होने वाला है और वह सब संभाल लेंगे। गुरुजी के जन्मदिन के अवसर पर जब मैं उनके आगे बैठा हुआ था तो उन्होंने मुझे कहा कि मैं उनसे कुछ भी माँग लूं। मैंने उनसे कहा कि वह सब जानते हैं और अगर मैं कुछ माँगूंगा तो वह बहुत छोटा होगा जबकि उन्होंने मेरे लिए कुछ बड़ा आशीर्वाद सोच कर रखा होगा। मैं उनसे ऐसा क्या माँग सकता था जो उनके आशीर्वाद से बड़ा हो सकता था जिससे मेरी माँ ठीक हो गईं। इसलिए "मंगो नहीं, मन्नो" और हमारे लिए जो सबसे अच्छा है वह गुरुजी सही समय पर दे देंगे।

मेरे साथ एक और अनुभव हुआ जब गुरुजी ने मुझे ठीक किया। मैं परेशान था और टाँगों में दर्द होने के कारण सत्संग में नहीं जा पा रहा था। मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि कम-से-कम वह मुझे अपने पास तो आने दें। मैंने 'गुरूजीमहाराज.कॉम' वेबसाइट पर सत्संग पढ़ना शुरू किए और बेहतर महसूस करने लगा। अगला दिन सोमवार था और मैं बड़े मंदिर जाना चाहता था परन्तु मैं गाड़ी चलाने की हालत में बिलकुल नहीं था। एक क्षण बाद मुझे संगत से एक आंटी का फोन आया और उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या मैं अगले दिन उनके साथ गाड़ी में बड़े मंदिर जाना चाहूँगा? मैं बहुत भावुक हो गया कि गुरुजी ने मेरी प्रार्थना तत्क्षण सुन ली थी।

जैसे ही मैं बड़े मंदिर पहुँचा मेरे टाँगों का दर्द भी गायब हो गया।

गुरुजी मेरी सभी इच्छाओं और परेशानियों का, चाहे वो छोटी हों या बड़ी, ख्याल रखते आए हैं।

एक बार मैं और मेरे दोस्त एक शादी में भाग लेने के लिए कोचीन गए। हम कुछ दिन पहले गए ताकि हम वहाँ घूम सकें और हमारी वापसी की टिकट कन्फर्म नहीं थी। शादी के दौरान हमें अपनी टिकटें कन्फर्म कराने का समय नहीं मिला और हमने तय किया कि हम सीधे एयरपोर्ट पर जाकर बात करेंगे। जिस दिन हमें वापस जाना था, हम एयरपोर्ट पहुँचे परन्तु हमारे पास टिकटें नहीं थीं। मेरे एक दोस्त ने एयरलाइन्स के कस्टमर सर्विस से हठ की कि वे हमें अंदर जाने दें परन्तु उन्होंने हमें हेड ऑफ डिपार्टमेंट से बात करने को कहा जो रात को करीब 7:30 बजे आने वाली थी।

मैंने गुरुजी से प्रार्थना की और उनसे कहा कि मैं उसी फ्लाइट से वापस जाना चाहता था और उनकी कृपा से यह चमत्कार हो सकता था। उसी समय एक महिला बोर्डिंग पास के डेस्क पर आई और गुरुजी ने मुझे कहा कि वह बॉस थी और मुझे उससे जाकर बात करनी चाहिए। मैंने अपने दोस्त को उस महिला से बात करने को कहा और जब वह हिचकिचाया तो मैंने उससे कहा कि मुझे ऐसा लग रहा था कि उस महिला से बात करनी चाहिए। जब उसने जाकर बात की तो उसे 7:30 बजे तक इंतज़ार करने को कहा गया।

हमने इंतज़ार किया और 7 बजे जब वह महिला बाहर आई तो मैंने फिर से अपने दोस्त को उसके पास जाकर बात करने को कहा। वह गया और उसी समय उस महिला ने हमारे बोर्डिंग पास दे दिए और मैंने बहुत गर्व से अपने दोस्तों को कहा कि ऐसा और कोई नहीं सिर्फ गुरुजी ही कर सकते थे।

गुरुजी ना सिर्फ हमें अनदेखी परेशानियों से बचाते हैं बल्कि हमारी मनमौजी इच्छायें भी पूरी करते हैं। एक बार मुझे मदिरा पीने की बहुत तीव्र इच्छा हुई और मैंने गुरुजी से आज्ञा माँगी। परन्तु उस दिन 'ड्राय डे' था और हमें कहीं मदिरा नहीं मिली और मैंने इसे गुरुजी की इच्छा समझकर स्वीकार कर लिया। मैंने सोचा कि अगर वह नहीं चाहते थे तो मैं नहीं पीऊँगा। परन्तु मेरा दोस्त फिर से मदिरा ढूँढ़ने निकला और इस बार उसे मिल गई।

ऐसे ही एक रात मैं अपने मोबाइल पर गेम खेल रहा था। मैं एक राउंड में अटक गया और आगे नहीं बढ़ पा रहा था और मैंने उसी समय गुरुजी से मदद माँगी। मैंने दोबारा वो राउंड खेला और उसे पार कर गया। मैंने गुरुजी का धन्यवाद किया कि इतनी छोटी सी बात के लिए भी उन्होंने मेरी मदद की। उन्होंने मुझे समझाया कि जैसे एक बार बुलाने पर वह मेरी मदद के लिए आ गए, वैसे ही वह किसी भी समय सब की मदद के लिए पहुँचने के लिए हमेशा तैयार होते हैं। मैंने सुबह के तीन बजे उनसे मदद माँगी थी और कुछ ही क्षणों में उन्होंने मेरी मदद की। हमें बस अपना कर्म करना है और फिर अगर हम किसी परेशानी का सामना करते हैं तो गुरुजी ज़रूर हमारी मदद करेंगे।

धन्यवाद गुरुजी, मुझे अपनी शरण में लेने के लिए। आप मेरे मालिक, मेरे प्रभु, मेरे सब कुछ हैं। आपके दरबार में मैं एक भिखारी हूँ जिसकी अपनी कोई औकात नहीं है। मैं बस आपकी रहमत का मोहताज हूँ।

मैंने जो लिखा है गुरुजी की इच्छा से लिखा है; मुझसे अगर कहीं गलती हुई हो तो उसे क्षमा कीजिए।

गुरुजी से मेरी यही प्रार्थना है कि वह अपना दिव्य आशीर्वाद संगत पर सदैव बरसाते रहें।

रोहन जैन, एक भक्त

सितम्बर 2015