नये भक्त तैराक की भाँति हो सकते हैं। इससे पहले कि वह स्वयं प्रयास करें वह किसी और को समुद्र पार करते हुए देखना चाहते हैं। इसके विपरीत, गुरुजी, भक्तों के लेकिन - किन्तु - परन्तु करते हुए भी, उनमें आस्था और विश्वास की जागृति करने में सहायता करते हैं।
श्री सचिन पाहवा के मन में गुरुजी के सत्संग सुनने के पश्चात् भी संशय बना हुआ था। उन्होंने गुरुजी की परीक्षा के लिए अपना नियम बनाया : वह दिल्ली के सैनिक फार्म क्षेत्र में अपना घर बनाना चाह रहे थे। वहाँ पर वर्षों से सब निर्माण कार्य बंद थे और मुख्य प्रवेश द्वार पर पुलिस का पहरा रहता था। जब वह यह सब करना चाह रहे थे उनके पास आवश्यक धन राशि भी नहीं थी। अपार बाधाओं के होते हुए उनके घर का निर्माण पूरा हो गया। कर्ज़दार जो अब तक धन के बारे में बात नहीं करना चाहते थे, उनके घर पर आकर पैसा लौटाकर गये। थोड़े ही समय में सचिन गुरुजी के चरणों में थे।
सचिन की सगाई हुए दो वर्ष हो गये थे। विवाह किसी न किसी कारण से स्थगित हो रहा था - धन का अभाव या पारिवारिक परिस्थितियाँ आदि आदि। उन्होंने गुरुजी से विनती करी। दो माह में ही विवाह अत्यंत धूम-धाम से संपन्न हुआ। सचिन की कामनाएँ गुरुजी से एक शब्द कहे बिना ही पूर्ण हो गयीं। यही उनकी मेहर, उनकी कृपा है।
सचिन पाहवा, दिल्ली
जुलाई 2007