पिछले दो सालों से मेरी एक सहेली, नूतन, मुझे उसके साथ शिवरात्रि पर बड़े मंदिर चलने को कह रही थी। नूतन एक ब्यूटी पार्लर चलाती है और जब भी मैं उसके यहाँ जाती तो वह गुरु कृपा के बारे में मुझे पर्याप्त बातें बताती। पर मैं अपना जाना टालती रही। शायद अभी गुरुजी का आदेश नहीं था क्योंकि मेरे ईश्वर से मिलने की महत्त्वपूर्ण घड़ी अभी नहीं आई थी।
इसका एक और कारण यह भी था कि मेरे पति किसी बाबा या संत के यहाँ जाने के इच्छुक नहीं थे, यद्यपि मैं 1997 से एक संत की भक्त रही थी। मैं शिरडी साईं बाबा को भी इतना मानती थी कि मुझे और कहीं जाने की आवश्यकता ही नहीं लगती थी। हर बृहस्पतिवार मैं साईं बाबा के मंदिर में भजन गाती थी।
पहली मुलाकात: एक ॐ पेंडेन्ट के साथ सुनहरा जुड़ाव
गुरुजी के बारे में नूतन से इतना निराला वर्णन सुनकर मुझे भी गुरुजी के दर्शन की इच्छा हुई। पर मैं जानती थी कि मेरे पति, मासूम, को साथ लेकर जाना इतना आसान नहीं होगा। मुझे एक उपाय सूझा। 2006 में मेरे जन्मदिन के अवसर पर, जो 4 अगस्त को होता है, मैंने अपने पति से कहा कि मैं अपना जन्मदिन अपने अनुसार मनाना चाहूँगी। मैंने उनसे वादा भी लिया कि मैं जहाँ भी उन्हें ले जाऊँगी वे चलेंगे और जो भी खाने को कहूँगी वे खायेंगे। मैंने उसी समय नूतन को फोन किया और उसने कहा कि मैं उसके घर शाम को 6.45 पहुँच जाऊँ जहाँ से हम साथ ही गुरुजी के यहाँ जायेंगे। साधारणतया मैं दोपहर में सोती नहीं हूँ, पर उस दिन घर के काम करके मैं सो गई। मैंने सपना देखा कि गुरुजी एक ऊँचे आसन पर बैठे हुए हैं और पास ही मैंने 'ॐ' और 'एक ओम्कार' के चिन्ह देखे। गुरुजी के आस-पास, एक सुनहरा गरुड़ उड़ रहा था। जब बाद में मैं नूतन से मिली तो मैंने उसे अपने सपने के बारे में बताया। वह खुशी के मारे ऊँचे स्वर में बोल पड़ी: गुरुजी मुझ से खुश थे और मिलने से पहले ही उन्होंने मुझे दर्शन दे दिए थे।
जब हम छोटे मंदिर पहुँचे तो गुरुजी रसोईघर के पास लकड़ी के एक साइडबोर्ड पर बैठे हुए थे। नूतन ने गुरुजी से कहा कि वह अपनी एक सहेली को साथ लेकर आई थी। गुरुजी ने अपने सरलता भरे अंदाज़ में पंजाबी में पूछा, "पक्की कि कच्ची (वो तेरी अच्छी सहेली है या बस ऐसी ही)? नूतन ने जवाब दिया कि मैं उसकी पक्की सहेली थी। गुरुजी ने हमारे काम के बारे में पूछा: "की करदे ने" (क्या काम करते हो)? हमने जवाब दिया कि हम पेशेवर गायक थे। गुरुजी ने मुझसे पूछा, "किहो जिआ गांदे हो" (कितना अच्छा गाते हो)? हमने हँसते हुए जवाब दिया कि जब वह हमारा गाना सुनने के लिए मान जायेंगे तो उनको पता चल जाएगा।
जल्द ही हमें चाय प्रसाद मिला। मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे अमृत मिल गया हो। मेरा गला खराब था पर जैसे ही मैंने चाय प्रसाद ग्रहण किया, मेरा दर्द चला गया। फिर गुरुजी अपने कमरे में गए और कुछ देर बाद एक सुन्दर चोले में बाहर आए। संगत हॉल में शबद चल रहे थे और भक्त आते जा रहे थे। जन्मदिन मनाने के लिए चुनी गई यह जगह मेरे पति और बच्चों को अजीब लग रही थी। और उनको और अधिक अजीब लगा जब लंगर परोसा गया जो चार लोगों को साथ में खाना था। मेरे छोटे बेटे ने कुछ भी खाने से मना कर दिया। हमने लंगर किया और गुरुजी से जाने की आज्ञा माँगी। गुरुजी बोले, "ऐश करो आंटी।" उन्होंने मेरे पति को सोने का 'ॐ' लाने को कहा और यह भी बताया कि उसका वज़न कितना हो। अपनी नादानी में हमने यह सोच लिया कि गुरुजी सबको सोना लाने को कहते होंगे और बहुत सारे पैसे बना लेते होंगे। हमारे मन में ऐसा विचार इसलिए आया क्योंकि इससे पहले हम जितने भी बाबा और संत के पास गए थे उनका बस एक ही उद्देश्य था: पैसे बनाना।
मैंने नूतन से इसके बारे में बात की और वह बोली कि गुरुजी ने जैसा कहा था हमें वैसा ही करना चाहिए। बृहस्पतिवार को जब हमने गुरुजी को सोने का ॐ दिया तो गुरुजी ने मेरे पति की जन्म तिथि पूछी और फिर उन्होंने मेरे पति को वह ॐ गले में पहनने को कहा। अपनी मूर्खता में मैंने गुरुजी से यह पूछने की हिम्मत कर ली कि क्या मुझे भी कुछ मिलेगा। गुरुजी बोले, "ओ, कमली, एक्को ही कनेक्शन हैगा" (पगली, एक ही कनेक्शन है)। यह मेरी समझ के बाहर था। मैं इतनी श्रद्धा के साथ आई थी और मुझे कुछ नहीं मिला और वहीं मेरे पति, जिन्हें बिलकुल श्रद्धा नहीं थी, उन्हें ॐ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। फिर गुरुजी ने मेरे पति से पूछा कि वह किस जगह से थे। मेरे पति बोले कि वो जम्मू से थे। गुरुजी ने मेरी ओर मुड़कर पूछा कि क्या मैं सरदारनी थी और अम्बाला और चंडीगढ़ से थी? मैंने मन में सोचा कि गुरुजी यह कैसे जानते थे जबकि नूतन को भी इस बात का पता नहीं था।
फिर हमने गाया और गुरुजी ने हमें आशीर्वाद दिया।
समय बीतता गया और हम छोटे मंदिर शनिवार या रविवार को जाने लगे। एक दिन गुरुजी मेरे पति को बोले, "बाजा लै आ; आज तेरा गाना सुनिए" (अपने संगीत वाद्य ले आ; आज तुम्हारा गाना सुनेंगे)। मेरे पति बोले कि वाद्य घर पर थे और हम गुड़गाँव में रहते थे। इस पर गुरुजी बोले, "गुड़गाँव केड़ा पाकिस्तान है। चुक के लै आ बाजा ते आंटी नू इत्थे छड दे।" (गुड़गाँव कौनसा पाकिस्तान है। अपनी पत्नी को यहाँ छोड़ और घर जाकर अपना बाजा लेकर आ)। मेरे पति घर के लिए तो निकले पर मुझे इतने गुस्से से देखा कि मैं डर गई की रात को आवश्य घर पर क्लेश होगा।
मेरे पति संगीत वाद्य लेकर इतनी जल्दी आ गए कि मुझे पूरा यकीन था कि उन्होंने गाड़ी तीव्र गति से चलाई होगी। हमने लंगर किया और जब कुछ ही संगत रह गई थी तो गुरुजी ने हमें गाना गाने को कहा। मैंने एक शबद गाया और गुरुजी प्रसन्न लग रहे थे। उन्होंने मेरे पति को गज़ल गाने को कहा जो उन्होंने गायी। फिर गुरुजी ने मेरी ओर देखा और मैंने एक और भजन गाया। फिर गुरुजी लता मंगेशकर का पुराना गाना सुनना चाहते थे। मैं उसके लिए तैयार नहीं थी और सोच में पड़ गई कि क्या गाऊँ।
तभी मेरी निगाह एक गाने पर पड़ी जो मैं अपने साथ सूची में लिखकर लायी थी, 'तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता . . . ' और मैंने यह गाना गाया। गुरुजी प्रसन्न हुए और बोले कि मेरी आवाज़ बहुत सुरीली है। उनके शब्द थे: "कुड़ी दी आवाज़ बड़ी मिट्ठी है" (उसकी आवाज़ बहुत मीठी है)। हमने गज़लें गायीं, युगल गीत गाये और अन्य गाने भी गाये। ऐसा कई महीनों तक चलता रहा। हमें समझ नहीं आया कि क्यों हमेशा गुरुजी हमें बिठाते और अपनी उपस्थिति में गवाते। वास्तव में वह हमें आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे। वह हमेशा हमें कहते, "अंकल, अपना बाजा लेकर आ; हिट गाने और एल्बम नहीं बनाने?"
गुरुजी से मिलने से पहले हम बहुत बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे; हमारे बच्चे भी अवज्ञाकारी हो गए थे। हमारे आपस का रिश्ता भी बिगड़ता जा रहा था। मेरे पति कभी मेरी नहीं सुनते थे। हम दोनों की सोच आपस में बिलकुल नहीं मिलती थी। हमें बाबा, पंडितों और औरों ने जो कुछ भी करने को कहा, हमने किया पर हालात में कोई सुधार नहीं आया। हमारे रिश्तेदारों ने हमसे मुँह मोड़ लिया। हम हमेशा तनाव में रहते और उधार देने वाले हमेशा हमसे पैसे वापस माँगते रहते थे।
गुरु बाबा, ब्रह्मा और भगवन्त हैं
मेरा जीवन से मन उठ गया था और इस तनाव भरे जीवन से मैं छुटकारा पाना चाहती थी। एक दिन, हर ओर से निराश होने के बाद, मैं छोटे मंदिर के एक कोने में बैठी रो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरी सारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ थीं। पहले मैं कृष्ण भगवान को पूजती थी, फिर साईं बाबा को और फिर मैं यहाँ गुरुजी के चरणों में आकर बैठी थी। मैं यह सब क्यों और किसके लिए कर रही थी? मुझे यहाँ से क्या मिलेगा? हाँ यह सच था कि थोड़े समय के लिए मुझे मन की शान्ति मिलती थी परन्तु जैसे ही मैं मंदिर के बाहर आती, आर्थिक परेशानियों की चिंताएँ फिर मुझे घेर लेतीं । मैं सोच रही थी कि या तो भगवान को पूजना व्यर्थ था और मेरी सारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ थीं, या मैं किसी एक स्थान पर टिक नहीं पा रही थी और बस ऐसे ही एक बिन पेंदी के लोटे के समान हो गई थी। अगर मुझे एक स्थान से कुछ नहीं मिलता, तो मैं स्वार्थी हो कर तुरंत किसी और की पूजा करने लग जाती। मेरे मन में हज़ारों शंकाएँ थीं।
अचानक, यह शबद चलने लगा: "गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविन्द; गुरु मेरा पार ब्रह्म, गुरु भगवन्त।" शबद के बीच में बाँसुरी की हल्की ध्वनि सुनाई दे रही थी। मैंने तुरंत एक चमत्कारी बदलाव देखा: ठीक मेरे सामने, मैंने गुरुजी की जगह कृष्ण भगवान बाँसुरी बजाते हुए देखे। फिर मैंने गुरुजी को बाँसुरी बजाते हुए देखा। फिर, गुरुजी की गद्दी पर मैंने साईं बाबा को मुकुट पहने हुए देखा। एक पल के लिए तो मुझे कुछ समझ नहीं आया और मुझे लगा कि यह सब मेरी कल्पना होगी। मैंने मुड़कर अपने आस-पास देखा। संगत अपनी आँखें बंद करके बैठी हुई थी और ध्यान में लीन लग रही थी। मैं उनसे पूछना चाहती थी कि मैंने जो देखा वो सपना था या सच, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई। लंगर के बाद मैंने अपना यह अनुभव अपने पति को बताया तो वह बोले कि उनको भी ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ था। वास्तव में, इस परिकल्पना के द्वारा गुरुजी ने हमें स्पष्ट कर दिया था कि वे ही सब कुछ हैं–वह पारब्रह्म हैं और भगवन्त भी। गुरुजी में मेरा विश्वास पूरी तरह से हो गया था।
अपने गानों के कार्यक्रमों के कारण हमें दिन में घर से बाहर रहना पड़ता और मेरे पति को यह ठीक नहीं लगता था कि दिन में बच्चे घर पर अकेले हों और हम रात को देर से घर लौटें। फिर एक दिन मेरे पति ने घोषणा कर दी कि वह गुरुजी के यहाँ तब तक नहीं जाएँगे जब तक वह एक अच्छी रकम नहीं कमा लेते और उन्होंने लक्ष्य के तौर पर एक धन राशि भी तय कर ली . . . यह दिसम्बर 2006 की बात है और गुरुजी की कृपा से फरवरी 2007 तक हमने उतनी राशि कमा ली थी। फलस्वरूप मेरे पति ने कहा कि हमें गुरुजी के पास जाना चाहिए। मैंने भगवान का धन्यवाद अदा किया। जैसे ही हमने गुरुजी के चरण कमलों में माथा टेका, वे पंजाबी में बोले, "ओए किद्दर गायब हो गए सी; आंदे रिया कर " (कहाँ गायब हो गए थे? आते रहा करो)। मेरे पति ने जवाब दिया कि उनके कार्यक्रम शुक्रवार और शनिवार को होते थे इसलिए वो आ नहीं पाते थे। गुरुजी बोले: "भाई, तू जेड़े मर्ज़ी दिन आ, पर आया कर" (तू किसी भी दिन आ, पर आया कर)।
जल्द ही शिवरात्रि का दिन आया और उस पावन अवसर पर गुरुजी ने हमें अपने संगीत वाद्यों के साथ आने को कहा। शिवरात्रि के अवसर पर गुरुजी ने हमारे गाने सुने और दिल खोल कर हमें आशीर्वाद दिया। सुबह के करीब तीन बजे थे और मेरे पति सोच रहे थे कि वह घर जाकर बियर पियें। उसी क्षण गुरुजी ने मेरे पति की ओर देखा और बोले, "मैंने तेरी डायबिटीज़ ठीक कर दी; कल जाकर बियर पी लेना।" मेरे पति दंग रह गए।
जहाँ तक मेरा सवाल था, मेरी सोच थी कि गुरुजी ने कहा था कि मेरी आवाज़ सुरीली है पर मुझे कोई काम नहीं मिल रहा था। हम घर वापस गए और अगले ही दिन मुझे मुम्बई से फोन आया और साथ ही, एक गायक, शान के साथ एक सिंधी फिल्म में गाना गाने का प्रस्ताव। मेरे सवाल का यह कितना अद्भुत जवाब था!
गुरुजी ने मेरे पति को एक नया हेयर कट, बाजा और व्यवसाय दिलाया
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा था और मुझे माइग्रेन होता था। जब तापमान अचानक ऊपर-नीचे होता तो मुझे भीषण बदन दर्द होता। इसलिए जब मैं मंदिर के एयर-कंडिशन्ड हॉल में बैठती तो मेरी हालत बहुत खराब हो जाया करती थी। बैसाखी के अवसर पर गुरुजी ने हमें बड़े मंदिर आने को कहा। हमें गाते हुए सुन कर गुरुजी खुश दिखाई पड़ रहे थे। जब हमने जाने की आज्ञा ली तो गुरुजी ऐसे शब्द बोले जो मैं आजीवन नहीं भूलूँगी। वह बोले, "आंटी, मैंने तुझे आशीर्वाद दिया। आज से तुझे कभी बदन दर्द नहीं होगा।" मैं उनके यह शब्द सुन कर विस्मित थी। मैंने अपने बदन दर्द के बारे में कभी कुछ नहीं कहा था। तब से मुझे कभी बदन दर्द नहीं हुआ है। मैंने भक्ति तो बस थोड़ी ही की थी और गुरुजी के प्रेम और देख-रेख की वर्षा हो रही थी!
मार्च से लेकर मई तक हमें कोई काम नहीं मिला। मेरे पति की आदत थी कि अगर उनके पास काम नहीं होता तो वह मेरे और गुरुजी के खिलाफ शिकायत करने लगते। वह बोलते, "अगर गुरुजी सब कुछ जानते हैं तो वह हमें काम क्यों नहीं दिला सकते। वह हमें कष्ट उठाते हुए देखते हैं फिर भी हमारी मदद नहीं करते हैं।" गुरुजी, अन्तर्यामी, सब कुछ सुनते पर फिर भी कभी हम से कुपित नहीं हुए।
एक दिन गुरुजी ने अपनी करुणाशील दृष्टि हम पर डाली और हमें पूजा करवाने के लिए कहा। उनके निर्देश अनुसार हमने नियमित रूप से वो पूजा की। कुछ समय बाद गुरुजी ने हमें एक नया संगीत वाद्य खरीदने के लिए और मेरे पति को उनके लम्बे बाल कटवाने के लिए कहा।
नया संगीत वाद्य खरीदने की बात ने हमें आर्थिक परेशानी में डाल दिया। पहले तो गुरुजी ने हल्के से नये संगीत वाद्य के बारे में पूछा। फिर वह मेरे पति को गुस्सा करते हुए बोले, "अंकल, बता मुझे, क्या तूने नया बाजा खरीदा?" अन्त में, गुरुजी के क्रोध से डर कर, मेरे पति ने एक नया हारमोनियम खरीदने का निश्चय कर लिया। पहले उन्होंने अपने लम्बे बाल कटवाये। पर जैसे ही उन्होंने आईना देखा वह मुझ पर चिल्लाये। उन्हें ऐसा लगा कि उनका स्टाइल अब खराब हो गया था।
पर जब हम मंदिर गए तो सब ने मेरे पति के नये हेयरस्टाइल की तारीफ की और कहा कि अब वह दस साल जवान लग रहे थे। गुरुजी मेरे पति के साफ-सुथरे बाल देख कर अत्यंत प्रसन्न हुए। वे मुस्कुराते हुए बोले, "तैनू बंदा बना दित्ता" (तुझे बंदा बना दिया) और यह भी बोले कि पहले वो जानवर की तरह दिखते थे। फिर उन्होंने मासूम को नया संगीत वाद्य ना लेकर आने के लिए डाँटा। मेरे पति बोले कि उसे खरीदने के लिए उनके पास ना काम था और ना ही पैसे। गुरुजी बोले, "ओ कमलिया, काम बथेरा मिल जाणा है। तूं बाजा तां लै के आ" (पगले, काम बहुत मिल जाएगा। तू बस नया बाजा तो ले कर आ)।
हमने एक विक्रेता से बात की और पुराने बाजे के बदले में एक नया बाजा लेकर किश्तों में उसके पैसे देने का सौदा कर लिया। उस व्यक्ति ने हमें 500 रुपये देने को कहा और कहा कि बाकी की रकम हम अपनी सुविधा के अनुसार दे सकते थे। यह एक अकल्पनीय सौदा था और बिना किसी परेशानी के हमें एक नया संगीत वाद्य मिल गया। पर किसी ना किसी कारणवश हम वो नया वाद्य मंदिर नहीं ले जा सके।
27 मई को मुझे तीव्र इच्छा हुई कि मैं गुरुजी के यहाँ जाकर माथा टेकूँ और मैंने अपने पति पर दबाव डाला कि हमें गुरुजी के पास आवश्य जाना चाहिए; और मैं बोली कि उसके बाद अगर मेरे पति नहीं जाना चाहेंगे तो मैं कभी उनकी इच्छा के विरुद्ध उनको वहाँ जाने के लिए नहीं बोलूँगी। अन्त में, हम मंदिर पहुँचे। उस दिन गुरुजी बहुत गुस्से में लग रहे थे। मैंने कभी उनका ऐसा रूप नहीं देखा था पर फिर भी मैं गुरुजी के चेहरे से अपनी दृष्टि हटा नहीं पायी। मुझे एक अजीब सा एहसास हो रहा था कि मैं फिर कभी गुरुजी के चरण कमलों में नहीं आ पाऊँगी। आने वाले समय को लेकर मैं बहुत बेचैन और चिंतित थी। फिर अचानक से गुरुजी कुछ शब्द बोले जो मैं मरते दम तक नहीं भूलूँगी: "हुण मैं तुड़ जाणा है; मेरे कोल टाइम घट है।" (अब मुझे जाना है, मेरे पास अधिक समय नहीं है )। मैंने उनके शब्दों को समझा नहीं और मुझे लगा कि वो पंजाब जाने के बारे में कह रहे थे और मुझे लगा कि अब उनके दर्शन के लिए जा पाना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा। गुरुजी ने अन्य संगत से भी बातें कीं और उनके कहे गए शब्द सदा के लिए मेरे हृदय में कैद हैं।
गुरुजी को देखते हुए मुझे लगा कि अब वह हमें गाने के लिए नहीं कहेंगे और गुरुजी का हमारे नये संगीत वाद्य के बारे में पूछने का तो सवाल ही नहीं उठता था। परन्तु उसी क्षण गुरुजी ने मेरे पति से पूछा कि क्या वो नया बाजा लेकर आए थे और मेरे पति ने हामी भरी। फिर गुरुजी मेरे पति को बोले, "तू इतना तनाव में क्यों है? जाने से पहले मैं तेरा बाजा ब्लैस करूँगा . . . जा जल्दी अपना बाजा लेकर आ।" फिर गुरुजी ने यह सबसे यादगार शब्द कहे, "मैं तेरा बाजा ब्लैस करने के बाद ही जाऊँगा।" मेरे पति जल्दी से बाजा लेकर आए। गुरुजी ने हमारे गाने सुने और इस तरह उस नये बाजे को अभिमंत्रित किया।
"शायद इस जनम में मुलाकात हो ना हो . . ."
एक और विशेष बात हुई थी। मैंने घर पर कुछ गाने तैयार किये थे सुनाने के लिए पर वहाँ मैंने कुछ और ही गाना आरम्भ कर दिया। मेरे पति ने मुझे गुस्से से याद दिलाया कि मुझे कोई और गाना गाना था। पर गुरुजी की इच्छा के आगे किसकी चल सकती थी? मैंने जो गाना गाया वो गुरुजी की इच्छा थी। अन्त में गुरुजी ने मुझे लता मंगेशकर का वो गाना गाने को कहा जो मैंने बड़े मंदिर में गाया था। गुरुजी ने वो गाना सुना। उस गाने की दूसरी पंक्ति यह थी, "शायद इस जनम में मुलाकात हो ना हो।" फिर हमें घर जाने के लिए कहा गया। यह उस दिन का अंतिम कार्यक्रम था और गुरुजी की संगत के साथ आखिरी मुलाकात।
31 तारीख को गुरुजी ने महासमाधि ली। मुझे लगा जैसे मैं अनाथ हो गई।
मुझे पता चला कि गुरुजी के जन्मस्थान, डुगरी में अंतिम संस्कार किए जाने वाले थे। मेरे पति की तबियत ठीक नहीं थी इसलिए हम वहाँ नहीं जा सकते थे। यह सोचकर कि मैं डुगरी नहीं जा पाऊँगी, मैं स्नानघर में जाकर बहुत रोयी। पर रात को करीब आठ बजे मुझे नूतन से पता चला कि अंतिम संस्कार अगली सुबह 11:30 बजे बड़े मंदिर में किए जाएँगे। यह सोचकर कि महासमाधि लेने के बाद भी गुरुजी ने मेरी इच्छा पूरी की, मैं फिर रोयी।
मेरे पति मानसिक रूप से बहुत बुरी हालत में थे। उन्हें इस बात का बहुत पछतावा हो रहा था कि जब गुरुजी मानव रूप में थे तो वह भगवान से जुड़ नहीं पाए। गुरुजी ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया था।
दिव्य सम्बन्ध फिर से जुड़ा
यह घटना गुरुजी की महासमाधि से दो दिन पहले की है। मैं नहा कर ही निकली थी जब मैंने देखा कि मेरे पति ने जो ॐ का लॉकेट पहना हुआ था उसमें से इंद्रधनुष जैसी किरणें निकल रही थीं। यह वही लॉकेट था जो गुरुजी ने अभिमंत्रित करके दिया था। मैंने सोचा कि शायद लॉकेट पर रोशनी पड़ने से ऐसा हो रहा होगा, पर फिर मैंने देखा कि उस पर कोई रोशनी नहीं पड़ रही थी। वो किरणें मेरे ऊपर पड़ीं और मुझे झुरझुरी हुई। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। बाद में मुझे याद आया कि लॉकेट अभिमंत्रित करते समय गुरुजी ने क्या कहा था: तुम दोनों का कनेक्शन एक ही है।
मुझे याद आया कि गुरुजी ने कहा था कि वे हमारे घर आएँगे। अब कैसे गुरुजी हमारे घर आएँगे और किस रूप में आएँगे?
अगले दिन जब मैं पूजा करने के लिए अपने मंदिर गई तो एक अप्रत्याशित घटना मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरे मंदिर में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की एक छोटी सी तस्वीर है। तस्वीर में एक शिवलिंग है और उस शिवलिंग के बीचों-बीच एक सुनहरा सर्प है। वह तस्वीर हमारे पास सालों से है पर उस दिन वो सर्प उस तस्वीर में दिखाई नहीं दे रहा था। उसकी जगह, मुझे गुरु नानक देव जी दिखाई दिये। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने अपने पति को जगाया और उनसे कहा कि वो आकर देखें कि क्या उनको भी यह बदलाव दिख रहा था। और उन्होंने भी वैसा ही देखा। कितना अद्भुत तरीका था गुरुजी का हमारे घर आने का और हमें उस बात का अनुभव कराने का!
महासमाधि के बाद, चालीस दिन तक बड़े मंदिर में सुखमनि साहिब का पाठ चला। हम वहाँ प्रतिदिन जाते। एक दिन मैं स्नानघर में फिसल कर गिर गई और हमारा बड़े मंदिर जाना कठिन लग रहा था। हमने शाम को घर में ही पूजा करने का और फिर कड़ाह प्रसाद का भोग लगाने का निश्चय किया। शबद के लिए मैंने टी वी पर वो चैनल लगा दिया जिसमें अमृतसर से लाइव गुरबानी का प्रसारण होता है। गुरुजी की तस्वीर के आगे बैठ कर मैं इतना ध्यान मग्न हो गई कि मुझे समय का पता ही नहीं चला।
शाम की सैर कर के जब मेरे पति लौटे तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैंने प्रसाद बनाया था। मैं बोली कि अभी मैंने नहीं बनाया था। वह बोले कि कड़ाह प्रसाद की सुगंध पूरे घर में महक रही थी; इस पर मैंने कहा कि आवश्य हमारे पड़ोसियों ने हलवा बनाया होगा। तभी बच्चे भी खेल कर घर आये और मैंने उनसे कहा कि वो देख कर आयें कि क्या वास्तव में पड़ोसियों के घर हलवा बना था। बच्चों ने आकर बताया कि पड़ोसियों के घर में तो अंडे की भुर्जी बनी थी और उन्होंने यह भी कहा कि पड़ोसियों के घर से तो अंडों की गंध आ रही थी और कड़ाह प्रसाद की सुगंध तो हमारे घर से ही आ रही थी। मुझे अनुभूति हुई कि गुरुजी मुझे याद दिला रहे थे कि प्रसाद बनाना अभी बाकी था। मैंने जल्दी से प्रसाद बनाया और फिर पूजा घर में गुरुजी की तस्वीर के आगे भोग लगाया। मुझे पूरा विश्वास है कि मुझे आशीर्वाद देने के लिए गुरुजी मेरे घर आये थे। गुरुजी की दृष्टि सदा हम पर रहती है। मैं गुनगुनाई: "अगम अगोचरा तेरा अंत ना पाया।"
"अपने खसम भरोसा"
जब मैं मुम्बई गई थी तो मैंने बुद्ध जप (चैंटिंग) सीखी थी। गुरुजी के महासमाधि लेने के कुछ दिनों बाद, रात को करीब 10 बजे, मैं दीवार की ओर मुँह कर के जप कर रही थी। मेरी आँखें बंद थीं पर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मेरे आस-पास कुछ घूम रहा था; देखा तो 5-6 ततैये थे। मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूँ। उनमें से एक मेरी बाँह पर बैठ गया पर उसने मुझे काटा नहीं। मैंने बत्ती बंद कर दी फिर भी वो नहीं गए। मैंने उसी समय जप बंद कर दिया और जाकर अपने पति को सारी बात बतायी। यह बात उनकी समझ के भी बाहर थी। अगले दिन जब मैं बड़े मंदिर गई तो मुझे पता चला कि चैंटिंग करना गुरुजी को पसंद नहीं था। उस समय मुझे समझ आया कि गुरुजी ही मुझे रोक रहे थे।
एक बार मैं शिव आरती की सी डी लगाकर गुरुजी की आरती कर रही थी। उस समय मैं घर पर अकेली थी। अचानक मुझे अपने बायें कान के पास एक आवाज़ सुनाई दी और मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे साथ आरती गा रहा था। मैं डर गई पर मैंने आरती बंद नहीं की। जैसे-तैसे मैंने आरती पूरी की और गुरुजी के आगे माथा टेका। उसी क्षण मेरे बायें कान के ऊपर से एक काला भँवरा उड़ता हुआ गया। मैं तुरंत समझ गई कि गुरुजी उस रूप में आये थे और मेरे साथ आरती गा रहे थे। मैं व्यर्थ ही डर गई थी।
कुछ दिनों बाद, हम एक बहुत बुरे दौर का सामना कर रहे थे। अपना एल्बम निकलने के लिए हमने उधार लिया था और जो चुकाने की तिथि निकले बहुत दिन हो गए थे। जिस व्यक्ति से हमने उधार लिया था उसने हमें अंतिम चेतावनी दे दी थी। अगले दिन अपने पैसे वापस लेने के लिए वह स्वयं आने वाला था और उसने कहा था कि वह अपने पैसे लेकर ही जायेगा। मेरे पति बहुत तनाव में थे और उन्होंने मुझे कहीं से भी पैसों का प्रबंध करने को कहा वरना उनको बहुत शर्मिन्दगी और समाज में अपमान का सामना करना पड़ता। मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। कई महीनों से हमें कोई काम नहीं मिला था; हमारे अधिकतर मित्र पहले ही हमें उधार दे चुके थे और हम उनसे और नहीं माँग सकते थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ।
मैंने अपने पति से कहा कि मैं पैसों के लिए भीख माँगने कहीं नहीं जाऊँगी; हम बस इतना कर सकते थे कि गुरुजी की तस्वीर के सामने बैठकर उनसे प्रार्थना करें। मैंने अपने आप को गुरुजी को पूरी तरह से समर्पण कर दिया था। अब यह गुरुजी के हाथ में था कि हमारा अपमान होता या हम इस कठिन स्थिति से बाहर निकलते। मैं भीख सिर्फ गुरुजी के आगे माँगती, किसी और के आगे नहीं। मेरे पति हताश हो गए और निराशापूर्वक ढंग से मुझे बोले कि मेरी जो इच्छा हो मैं करूँ और बोले कि हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए कि गुरुजी की क्या इच्छा थी।
अगला दिन चढ़ा और जल्द ही दोपहर के बाद शाम भी हो गई। मेरे पति बहुत परेशान थे पर मुझे निरन्तर यह पावन शबद सुनाई दे रहा था, 'अपने खसम भरोसा' (ईश्वर पर भरोसा रखो)।
मेरे विश्वास का मुझे प्रतिफल मिला जब शाम को एक अनजान व्यक्ति का फोन आया। उसने हमारी वेबसाइट देखी थी और हमारे कार्यक्रमों की वह बहुत प्रशंसा कर रहा था। उसने यह भी कहा कि क्योंकि हमें किसी व्यक्ति या कम्पनी ने स्पॉनसर नहीं किया था, वह हमारे लिए कुछ करना चाहता था। बिना कोई शर्तें रखे या अंकुश लगाए, उसने हमारे कार्यक्रमों को स्पॉनसर करने का और उनका खर्चा उठाने का उत्तरदायित्व ले लिया। उसने यह भी कहा कि हमें विस्तृत से कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं थी और हम तुरंत गीतों की रचना प्रारंभ कर दें। वह हमें पैसे भी भेज रहा था। हम उस व्यक्ति को पहचानते नहीं थे और ना ही यह जानते थे कि उसे किस प्रकार के गाने पसंद थे।
शाम को 5:30 बजे एक व्यक्ति आया और बोला कि उसके मालिक ने पैसे भिजवाये थे और यह संदेश भेजा था कि हम तुरंत काम आरम्भ कर दें। जब हमने पैकेट खोलकर देखा तो खुशी से झूम उठे कि उसमें जितने पैसे थे उससे हमारे सारे उधार चुकता हो जाते। जल्द ही हमने गुरुजी की पहली सी डी पर काम करना आरम्भ कर दिया, "हे गुरुजी"। उस दौरान गुरुजी मेरे सपने में आए। वह अमावस की रात थी और पहली नवरात्रि की सुबह को, गुरुजी ने मुझे हरे पत्तों और नारियल से भरा मटका दिया और विलीन हो गए। जब मैं सो कर उठी तो मेरे हाथ ऐसे प्यालीनुमा आकार में थे जैसे वास्तव में उन्होंने मटका पकड़ा हुआ था। जब मैंने अपने पति को गुरुजी के दर्शन के बारे में बताया तो वह बोले कि इसका अभिप्राय यही था कि हमारा नया एल्बम प्रारंभ करने के लिए यह अच्छा समय था। उसी दिन हमें दस कार्यक्रमों की बुकिंग मिली। सब कुछ एक बड़े सामान्य और स्वाभाविक तरीके से हो रहा था। आर्थिक रूप से अब हम बहुत अच्छा करने लगे और हमारी परेशानियाँ दूर होने लगीं।
आज, गुरुजी की कृपा से मेरे पति की शुगर लेवल सामान्य रहती है और मुझे किसी प्रकार का बदन दर्द नहीं होता है और मैं पहले से अधिक फुर्तीली हो गई हूँ, मानो मेरे शरीर की बैटरी रीचार्ज हो गई हो। गुरुजी की कृपा से, मेरे बच्चे जो पढ़ाई में कमज़ोर थे अब अच्छे अंक लाने लगे हैं। हमारा गाया हुआ हर गाना गुरुजी को समर्पित होता है और मेरा सबसे चुनिन्दा गाना है, 'तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है कि जहाँ मिल गया।'
कैसे गुरुजी हमारी जीवन सम्पूर्ण और परिपूर्ण करते हैं
एक दिन मैंने देखा कि मेरे सारे इत्र समाप्त हो गए थे। मैंने गुरुजी से कहा कि पहले तो मैं दुबई जाकर जो चाहे अपने लिए खरीद आया करती थी, पर अब अपने छोटे बेटे के कारण मैं वहाँ जाने में समर्थ नहीं थी। मैंने दोबारा उनसे यह बात बोली। मैं यह सब सोच ही रही थी कि मुझे साउदी अरेबिया से एक कथा लेखक,आफ्ताब, का फोन आया और उसने कहा कि वो हमसे मिलने आ रहा था। वह अपने साथ एक बड़ा उपहार लेकर आया: इत्र!
पहले, अगर हमारे मन में कोई इच्छा होती तो हमें वो बहुत कोशिशों के बाद ही मिल पाती थी, पर अब जैसे ही इच्छा करती हूँ, वो पूरी हो जाती है–गुरुजी के आशीर्वाद से ऐसा होता है।
जब हम गुरुजी के चरण कमलों को छूते थे तो हमारे हाथों से एक अनूठी और दिव्य सुगंध आती थी। हमें लगता था कि शायद गुरुजी कोई अनूठा इत्र लगाते थे। पर घर पहुँचकर हमें वह सुगंध हर कमरे से आती थी। अब, गुरुजी की महासमाधि के बाद भी हमें वही सुगंध आती है। कभी-कभी तो जब मीलों दूर तक कोई नहीं होता है, गुरुजी की सुगंध हर जगह होती है-गाड़ी में, कार्यालय में या फिर न्यायालय में भी।
इस तरह, गुरुजी, आप सर्वव्यापी हैं! आप हर क्षण लाखों को देखते, सुनते और उनकी सहायता करते हैं। आपके करने के माध्यम हमारी समझ से परे हैं। आपकी कृपा ऐसी है कि उसे शब्दों में व्यक्त कर पाने के मैं योग्य नहीं हूँ, यहाँ तक कि उन्हें समझ पाने के या उनकी कल्पना कर पाने के भी नहीं। मेरे ह्रदय से वाणी आती है: "हरि अनन्त, हरि कथा अनन्त।" गुरुजी का ना आरम्भ है और ना ही अंत। उनकी लीला असीम और समझ से परे है। मैं दिल से कहती हूँ, "गुरुजी आप हरि हो, हर हो, हर हर महादेव हो।" गुरुजी की समाधि पर सब ने भस्म में ॐ, शिवलिंग और त्रिशूल बने हुए देखे थे। मेरे घर में गुरुजी की जितनी भी तस्वीरें हैं, सब पर ॐ, त्रिशूल और त्रिनेत्र भगवान शिव बनते जा रहे हैं। हमें गुरुजी के माथे पर देवी-देवताओं के भी दर्शन हुए हैं।
बड़े मंदिर में कई बार गुरुजी ने अपनी संगत को दर्शन दिए हैं। मंदिर के पीछे जो झूला है उसे कई बार हिलते हुए देखा गया है। बहुत संगत ने इन दर्शनों को अपने मोबाइल फोन के कैमरा में कैद भी किया है।
गुरुजी की भव्यता और महिमा अवर्णीय हैं। वह दिव्य शक्ति और दिव्य प्रकाश के प्रतीक हैं–अनादि, अविनाशी और अपरिमित।
गुरुजी ने मेरा जीवन सुंदर बना दिया और मेरी कला को आध्यात्मिक प्रेरणा दी। अगर वो ना होते तो मेरा जीवन दिशाहीन होता। गुरुजी ने मेरी जीवन को अर्थपूर्ण बनाया, उसे उद्देश्य और दिशा दी वरना तो जीवन के भवसागर में वह बिना किसी लक्ष्य या उद्देश्य के बस बीत रहा था। मेरा जीवन एक फीके चित्र के समान था जिसमें गुरुजी ने मनोहर रंग भर दिए और उसे एक सुंदर आकृति दी। मैं एक निर्थक तार थी; फिर गुरुजी ने उसे अपने दिव्य हाथों से छूकर उसमें से सुर निर्मित किए। मेरा जीवन को, जो उदासी और खिन्नता से भरा हुआ था, अचानक एक नया अर्थ और उद्देश्य मिल गया। हमारा पूरा जीवन–गृहस्थी, आमदनी और व्यवसाय–सब में एक चमत्कारी परिवर्तन आया। हम तो बस पीतल थे जिन्हें गुरुजी ने छूकर सोना बना दिया। हम पिंजरे में कैद अपंग पक्षियों के समान थे। गुरुजी ने हमें स्वतंत्र कर दिया, हमें पंखों दिए ताकि हम अपनी इच्छा से खुले आसमान में ऊँची उड़ान भर सकें।
अनेकों बार गुरुजी ने बड़े शिवलिंग पर दर्शन दिए हैं। बार-बार मेरे ह्रदय से पुकार निकलती है, "हे गुरुजी, हम पर दया करो और अपनी अनुकम्पा हम पर बरसाते रहो। आने वाले समय में भी हम सदा आपके चरण कमलों में रहें। सो सतगुर प्यारा मेरे नाल है . . ." यही वो है जिसने हमें जीवित रखा है।
ये शब्द हमेशा मेरे कानों में गूँजते रहते हैं: "मेहराँ वालिया साईयाँ रक्खी चरणा दे कोल" (गुरुजी, आप हमारे परमप्रिय हो। आप हमेशा हमारे साथ हो। हे कृपालु गुरुजी! हमें सदा अपने चरण कमलों में रखना)। गुरुजी आप मेरी माँ हो। जैसे माँ को पता चल जाता है कि बच्चे की आवश्यकता का, वैसे ही गुरुजी हम पर अपनी कृपा करना। आप ही जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है। इसलिए, गुरुजी "जेहि विधि राखे आप तेहि विधि रहाई" (जिस हाल में आप आप हमें रखें, हम उसी हाल में रहें)। प्रायः मुझे संगत से गुरुजी के संदेश मिलते हैं। मैं जिन परेशानियों का सामना कर रही होती हूँ, उनके हल मुझे सत्संग से मिल जाते हैं। मेरे मन में जो भी सवाल उठते हैं, मुझे उनके जवाब संगत से मिल जाते हैं। गुरुजी, आप जिनके करीब होते हैं, वो बड़े भाग्यशाली होते हैं।
जय गुरुजी!
सदा मासूम ठाकुर, एक भक्त
जून 2010