मुझे गुरुजी के प्रथम दर्शन दिसंबर 1995 में हुए जब मैं अपने एक घनिष्ठ मित्र, श्री राजपूत के पुत्र के विवाह पर आयोजित स्वागत समारोह भोज पर गया था। मुझे और मेरे परिवार को जालंधर, पंचकुला, चंडीगढ़ और दिल्ली में गुरुजी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता रहा है। 2006 में दिल्ली में उनके दर्शन हमें दो साल के बाद हुए। इस अवधि में हम उनके आदेश के अनुसार उनके पास नहीं गये थे। गुरुजी के साथ हमारे वर्षों के अनुभव से मैं कह सकता हूँ कि वह हमारे युग के सच्चे महापुरूष हैं।
अमृत के स्त्रोत
घटना 1994 की है, जब गुरुजी चंडीगढ़ में थे। मेरी पत्नी, मेरी पुत्र-वधु और मैं उनके दर्शानोपरांत घर के लिए निकल ही रहे थे कि हमें वापस बुलाकर उनके कक्ष में ले जाया गया। गुरुजी ने कहा कि वह हमें आशीर्वाद देंगे। उन्होंने हमें अपना मस्तक, वक्षस्थल और कन्धों के पीछे सूंघने के लिए कहा। हमें ऐसी सुगन्ध प्राप्त हुई जो पहले कभी नहीं मिली थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह स्थल दिव्य अमृत के अनंत स्त्रोत हैं।
औषधि बिना उपचार
उसी वर्ष मेरे दोनों टखनों में अत्यंत पीड़ा होने लगी। दर्दनाशक औषधियाँ लेकर मैं पंचकूला में अपने पारिवारिक चिकित्सक के पास गया। परीक्षण से पता लगा कि मेरे हिमोग्लोबिन का स्तर 13-14.1 से गिरकर मात्र 7.2 रह गया था। टखनों की वेदना को भूल कर उन्होंने इस पर ध्यान देने का परामर्श दिया। चिंतित, सेक्टर 34 में स्थित सिटी चिकित्सालय और पी जी आई में दिखाया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ तो मैं दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन क्षेत्र में स्थित एक हिमोग्लोबिन विशेषज्ञ के पास गया। उन्होंने अनेक परीक्षण करवाये और पता लगा कि मेरा ई एस आर 105 था, जो अत्याधिक उच्च माना जाता है। उनके विचार से मेरा निम्न हिमोग्लोबिन का सम्बंध अस्थियों से था। कोई अन्य विपरीत लक्षणों के अभाव में वह मुझे एक चिकित्सालय ले कर गये जहाँ पर अस्थि मज्जा का परीक्षण होना था। जब हमें पता लगा कि यह रक्त केंसर के लिए है, हम भौंचक्के रह गये। उस शनिवार के दिन मेरे शरीर से 20 से अधिक नमूने एकत्रित किये गये। परिणाम सोमवार की संध्या को पता लगने थे। मैं भयभीत था और मैंने चंडीगढ़ में अपने पुत्र को गुरुजी से मिलकर उनको स्थिति से अवगत कराने और मेरे जीवन के लिए प्रार्थना करने को कहा। आदरणीय गुरुजी ने मेरी पुकार सुनी और कहलवाया कि सब परिणाम अनुकूल आयेंगे। उन दो दिनों में हम अत्यंत चिंतित रहे। परिणाम आने पर हमारे और चिकित्सक, सबके लिए अचम्भे की बात थी। विशेषज्ञ ने नौ विटामिन निर्धारित किये और इस प्रकार मुझे प्रतिदिन दो दज़र्न से अधिक गोलियां और केप्स्युल खाने थे। अगले दिन मैंने चंडीगढ़ में गुरुजी की संगत में उनको विस्तार में बताया। गुरुजी महाराज ने मुझे सब औषधियाँ छोड़कर प्रतिदिन एक ग्लास अनार का रस और भ्रमण करने के लिए कहा। मैंने उनके निर्देशों का अक्षरशः पालन किया किन्तु दिल्ली में विशेषज्ञ को कुछ नहीं बताया।
एक माह के बाद जब मैं उस विशेषज्ञ के पास दिल्ली गया तो मेरी स्थिति मे अत्यंत सुधार था। उन्होंने औषधियों की मात्रा आधी कर दी। अगले मास जब और सुधार दिखाई दिया तो औषधियाँ कम से कम कर दी गयीं।
गुरुजी को जब इतने सुधार के बारे में बतलाया गया तो उन्होंने अनार का रस बंद करने को, जीवन में आनंदित रहने और जब इच्छा हो व्हिसकी पीने को कहा। उनकी दया से मैं उनके निर्देशों का पालन कर रहा हूँ और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा हूँ।
मुख्य अभियंता के पद पर
मैं पंजाब सिंचाई विभाग से प्रबन्ध अभियंता के पद से 1992 में सेवानिवृत हुआ था। अपने सेवाकाल में मैं 1964-1968 तक फजिल्का में एस डी ओ रहा था। फजिल्का पाकिस्तान सीमा से केवल 4 किलोमीटर सीधी दूरी पर स्थित है। सितम्बर 1965 में, जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था, नागरिकों में हलचल मच गयी थी। प्रशासक होने के कारण मेरे कन्धों पर बहुत उत्तरदायित्व था। महिलाओं और बच्चों को मल्हौत के निकट भेजना था। कार्य शीघ्रता से किया गया था।
उस अवधि में मैंने सेना के साथ भी कार्य किया और उनके साथ भूमि में खुदे हुए उनके बंकरों में भी रहा क्योंकि शहर पर सीमा पार से बमबारी हो रही थी। असैन्य अधिकारी होते हुए यह मेरे कार्यक्षेत्र में नहीं आता था किन्तु मैंने ऐसे संकट भरे वातावरण में कार्य किया था। ऐसी सेवाओं के लिए पंजाब सरकार और रक्षा विभाग से मुझे प्रशंसा पत्र और समय पूर्व पदोन्नति मिलनी चाहिए थी। क्योंकि पंजाब सरकार ने ऐसा नहीं किया था इस भेदभाव के लिए मैंने न्यायालय में आवेदन कर दिया था।
जब से मैं गुरुजी से मिला था वह मुझे सदा मुख्य अभियंता कह कर संबोधित करते थे। मैंने उनको बताया कि मैं प्रबन्ध अभियंता के पद से सेवानिवृत हुआ हूँ पर उन्होंने कहा कि मुझे शीघ्र ही मुख्य अभियंता की पदोन्नति प्राप्त होगी। कालांतर में न्यायालय ने मुझे समस्त सेवा सम्बन्धी सुविधाएँ दीं और गुरुजी के कथन के अनुसार पंजाब सरकार ने 2004 में विशेष अधिसूचना निकाल कर मुझे मुख्य अभियंता का पद प्रदान किया।
परिवार पर दया
गुरुजी की दया मेरे समस्त परिवार पर बनी रही है। 2002-2003 की शीत ऋतु में एक दिन मेरी पत्नी और मैं, एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के पास रात्रि दो बजे तक थे। सर्दी बहुत हो रही थी। बाहर निकलने के बाद मेरी पत्नी ने कहा कि पिछले डेढ़ घंटे से उसकी बायीं हथेली में बहुत पसीना आ रहा है। उस समय कोई चिकित्सक मिलने का प्रश्न नहीं था और कुछ गड़बड़ अवश्य थी। अतः हम वापस गुरुजी महाराज के पास गये और उन्हें समस्या से अवगत किया। उन्होंने मेरी पत्नी का हाथ अपने हाथ में लिया और बोले कि कहाँ दर्द है, कोई दर्द नहीं है, जाओ आनंदमय रहो। उनके यह कहते ही वेदना समाप्त हो गयी। अगले दिन जब हम उनके पास पहुँचे तो उन्होंने पीड़ा के बारे में प्रश्न किया। वह इतने दयालु हैं।
इस भौतिक और माया मोह के संसार में एक सच्चे महापुरुष का दिव्य आश्रय प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। संतों के विस्तृत परिवार में एक को दूसरे से भिन्न करने वाले नियम तभी पता लग सकते हैं जब हम एक ऐसे संत के पास पहुँचें जिसके सदृश कोई और न हो और वह ईश्वर के वास्तविक सन्देश मानवता में फैला रहा हो। दूसरों के जैसे उसे धन और अन्य भौतिक वस्तुओं में कोई रुचि न हो। वह अपनी असीमित शक्तियों का प्रयोग मानवता के कष्ट और चिंताओं को नष्ट करने में लगाये। श्री गुरुजी महाराज ब्रह्मज्ञानी हैं जो इस नश्वर संसार में भटके मनुष्यों को सही राह दिखाने और मोक्ष प्राप्ति के सही मार्ग बताने आये हैं।
हम भाग्यवान हैं कि हमने उनके बारे में सुना, उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ और, उनकी कृपा से ही, उनमें आस्था है। यद्यपि वह मनुष्य रूप में आये हैं, वह मनुष्य नहीं हैं। वह तो गुरु नानक और शंकर का अवतार हैं।
संतोख सिंह, चंडीगढ़
जुलाई 2007