हम गुरुजी को 1984 से जानते हैं, जब मेरे पति को पहली बार उनके दर्शन हुए। ऐसा लगा मानो वह एक दूसरे को सदियों से जानते हों। यह सम्बन्ध अभी भी कायम है, और यह कहना बहुत मुश्किल है कि यह रिश्ता एक गुरु और उसके शिष्य का है या दो करीबी दोस्तों का।
हमारा हमेशा यह मानना रहा है कि गुरुजी हमारे गुरु हैं, इस बात के बावजूद कि उनके पास दिव्य और चमत्कारी शक्तियाँ हैं। गुरुजी के चमत्कारों के बारे में बता पाना मेरी क्षमता से परे है; वह इस पृथ्वी पर कुछ भी कर सकते हैं और उनके पास जो लोग शान्ति और उपचार के लिए आते हैं, गुरुजी उनकी अंदरूनी आत्मा के बारे में जानते हैं। उनके साथ हुए मेरे निजी अनुभवों के बारे में मैं उल्लेख करना चाहूँगी।
हवा से गुलाब की पंखुड़ियों की उत्पत्ति
मार्च 1998 में जब मेरे पिता मेरे ससुर के क्रिया रस्म के लिए होशियारपुर के गाँव में मेरे ससुराल आए, तब तक वह गुरुजी को नहीं मानते थे। दिवंगत आत्मा के सम्मान में रखा गया शान्ति पाठ के लिए गुरुजी जलंधर से आए थे। मैंने अपने पिता को गुरुजी से मिलवाया और सब हैरान हो गए जब गुरुजी ने हवा से टोकरी भर कर गुलाब की पंखुड़ियाँ उत्पादित कीं। तब से, मेरे पिता गुरुजी के भक्त हो गए।
2006 में मेरे पिता बाथरूम में गिर गए। उन्हें रीढ़ की हड्डी में बहुत ज़ोर से चोट लगी और वह चलने-फिरने से भी विवश हो गए। सबसे अच्छे ओर्थोपेडिक और न्यूरो सर्जन का भी मानना था कि सर्जरी के अलावा कोई और उपाय नहीं था। मैंने यह बात गुरुजी को बताई और उन्होंने मुझे मेरे पिता की तस्वीर उनके पास लेकर आने को कहा। अपने अनोखे अंदाज़ में, गुरुजी ने कुछ ऐसा करने को कहा जो बहुत सीधा-सादा प्रतीत हुआ। जैसे ही मैंने वैसा किया, मेरे पिता की हालत में सुधार आने लगा। 4-5 हफ़्तों में उन्होंने चलना-फिरना भी शुरू कर दिया!
डिप्रेशन का उपचार
बिना किसी वजह के मैं गहरे डिप्रेशन में पड़ गई थी। लगातार कुछ दिनों तक मैं बिस्तर पर पड़ी रहती, कई बार तो मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो जाती कि मुझे लगता वह बाहर ही आ जाएगा। मैंने गुरुजी के दर्शन के लिए जलंधर जाने का निश्चय किया। जैसे कि मेरे आने का उद्देश्य उनको मालूम था, गुरुजी ने मेरी हालत का पूरा वर्णन किया। गुरुजी ने मुझे कुछ करने को कहा जो बहुत ही साधारण प्रतीत हुआ और 3-4 दिनों में ही मेरी हालत में सुधार आने लगा।
2007 में मुझे स्लिप डिस्क के कारण बहुत तेज़ पीठ में दर्द हुआ। चकित्सकों ने मुझे चार हफ़्तों तक बिस्तर पर ही रहने को कहा। मैंने ऐसा ही किया। यद्यपि मेरी हालत में सुधार आया, मुझे दोबारा पीठ का दर्द हो जाता। एक रविवार, जब जनरल ग्रेवाल और उनका परिवार हमारे घर आए हुए थे, करीब 4:30 बजे गुरुजी अचानक ही आ गए। उस वक्त मुझे बहुत तेज़ पीठ में दर्द हो रहा था। गुरुजी ने मुझे लेटने को कहा और मेरे पीठ का कोई हिस्सा दबाया। वो पीड़ा अत्यंत दुःखदायी थी और मैं करीब-करीब चीख ही पड़ी थी - पर यह आखरी बार था जब मुझे दर्द हुआ। सब कुछ एक क्षण में गायब हो गया।
मेरे पति के अपने अनुभव हैं पर वह उनका ज़िक्र किसी से नहीं करते हैं। ना ही गुरुजी ने उनसे वह किसी को सुनाने को कहा है; दोनों का आपस में उत्तम तालमेल है। मैं चाहती हूँ कि ऐसा लंबे समय तक चले।
यद्यपि मैंने यह सब लिखा है, मैं फिर से इस बात पर ज़ोर देना चाहूँगी कि गुरुजी की महिमा वर्णन से परे है।
संतोष सुमन, एक भक्त
नवम्बर 2008