श्री गुरुजी महाराज भगवान के अवतार हैं। राम और कृष्ण के समान उन्होंने भी इस पृथ्वी पर लोगों को उनके कष्टों से मुक्त करने के लिए जन्म लिया है। वह हार्दिक कामनाओं की पूर्ति कर देते हैं। एक रुपया भी व्यय किये बिना लाखों लाभान्वित हुए हैं। जहाँ पर चिकित्सक द्वारा लाखों, पंडित और तांत्रिक द्वारा सहस्रों व्यय करवा देने के पश्चात् भी सफलता संदेहास्पद रहती है, वहाँ गुरुजी को केवल आस्था, विश्वास और समर्पण चाहिए। दर्शन कीजिए और उनका आशीष पाइये। गुरुजी की दया के बिना परम की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
गुरुजी ने हमारा जीवन परिवर्तित कर दिया है। मेरा पूरा परिवार अब हर समस्या के हल के लिए गुरुजी से प्रार्थना करता है। गुरुजी महाराज की कृपा से, हमारी समस्याएँ, जो अत्यंत जटिल थीं, बुरे स्वप्न समान समाप्त हो गयी हैं। हमें सदा गुरुजी का अपने आस-पास होने का आभास होता है। वह सदा हमारी सहायता करने के लिए तत्पर हैं।
अपने एक मित्र के माध्यम से हम दिल्ली के ग्रेटर कैलाश क्षेत्र में, गुरुजी के पास 1995 में पहुँचे। उनके इस दर्शन के पश्चात् मेरे स्थानान्तरण और व्यवसाय जनित परिस्थितियों के कारण उनके पास नहीं जा सके। उस भयंकर भूल को हम उस समय समझ नहीं पाये। कुछ वर्षों के पश्चात् हमें बहुत दुःख सहने पड़े।
2003 में हमारी बेटी को कुछ अवांछित तत्त्व घर से बहला-फुसला कर ले गये। कुछ माह तक उसका अता पता नहीं चला। अंत में जब उसका पता चला तो वह उनको छोड़ कर घर आने को तत्पर नहीं हुई। हम कई पंडितों और तांत्रिकों के पास गये, पूजाएँ की और मंदिरों में गये परन्तु सब व्यर्थ रहा।
2005 के आरम्भ में हमने एक पड़ोसी से गुरुजी के बारे में पुनः सुना। हमें तुरन्त याद आया कि उन्होंने पिछली बार हमारी कितनी सहायता की थी और हम भागे-भागे उनके चरणों में पहुँचे। अब हमें प्रतीत होता है कि गुरुजी ने स्वयं हमें बुलाया था। उन्होंने आश्वस्त किया कि बेटी उन लोगों को छोड़ कर सदा के लिए घर वापस आ जायेगी। उनका आशीर्वाद मिलने के बाद वह घर वापस आ गयी और गुरुजी की अनुयायी बन गयी है।
उसे वापस लाने के लिए हमें केवल गुरुजी का आश्रय लेना पड़ा। अन्य स्थानों पर हमने बहुत धन और समय व्यय किया था किन्तु यहाँ पर ऐसा कुछ भी नहीं करना पड़ा।
गुरुजी महाराज अत्यंत दयालु हैं और सब भक्तों की समस्याएँ जानते हैं। मेरी पत्नी मेरुदंड की अंतिम अस्थि की वेदना और बवासीर से बारह वर्ष से पीड़ित थी। पीड़ा इतनी अधिक थी कि वह सख्त भूमि पर दस मिनट से अधिक बैठ नहीं पाती थी। वह तीव्र औषधियाँ नियमित ले रही थी और चिकित्सकों ने तुरन्त शल्य क्रिया का परामर्श भी दिया था। हम इसके लिए तैयार भी हो गये थे।
जब हमने गुरुजी के पास जाना आरम्भ किया तो मेरी पत्नी को चिंता थी कि वह इतने लम्बे समय तक कैसे बैठ पायेगी। कुछ ही दिनों में मेरी पत्नी का उपचार हो गया और वह सब पीड़ाएँ भूल गयी। उसके पश्चात् उसे यह समस्याएँ कभी नहीं हुई हैं। उसने गुरुजी को इनके बारे में बताया भी नहीं था पर उन्हें इसका ज्ञान था। केवल उनका प्रसाद, लंगर और उनकी कृपा से यह संभव हुआ है।
पक्षाघात पीड़ित मित्र ने गोल्फ खेला
मेरे एक मित्र, जो हमारे घर से कोई एक फरलांग दूर रहते हैं, को भी गुरुजी की कृपा प्राप्त हुई है। अजीत सिंह, अब उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सेवानिवृत अधिकारी, आगरा से हमारे पड़ोसी थे। वहाँ मैं तीन वर्ष तक कार्यरत रहा था। सौभाग्यवश हम फिर मेरठ और मुरादाबाद में भी साथ रहे। इस अवधि में हमारी पारिवारिक मित्रता हो गयी थी। आगरा में हमें पता चला कि श्रीमती अजीत सिंह 1972-73 से हृदय रोग से पीड़ित रह रहीं हैं। शनैः शनैः उनके हृदय की धमनियाँ सिकुड़ रही हैं। 2004 तक उनकी दो धमनियाँ पूर्ण रूप से और एक अन्य 30-40% बंद हो चुकी थीं। उन्हें अपने घर के द्वार तक आने में भी कठिनाई होती थी। हृदय रोग चिकित्सक ने बायपास कराने की सलाह दी थी। उनको चेतावनी भी दी गयी थी कि यदि इसमें देरी की तो स्थिति प्राणघातक हो सकती थी। दो माह के बाद की तिथि भी निश्चित कर दी गयी थी।
कुछ माह पूर्व अजीत सिंह को पक्षाघात (परैलसस) का एक गंभीर आघात हुआ था किन्तु सौभाग्यवश वह उस रोग से मुक्त हो गये थे। परन्तु अब वह दोनों चिंतित थे। संयोग से हमने उन्हें गुरुजी का आशीर्वाद लेने की बात कही। शुरू में उनके पास आने के लिए वह अनिच्छुक थे किन्तु हमारे आग्रह करने पर वह सहमत हो गये। गुरुजी ने उन्हें ताम्र लोटा लाने को कहा जिसे उन्होंने अभिमंत्रित किया। श्रीमती अजीत सिंह ने गुरुजी के निर्देशानुसार उसका जल पीना आरम्भ किया। उनकी शल्य क्रिया की तिथि निकट आ रही थी।
चिकित्सक ने उन्हें दो दिन पूर्व परीक्षणों को पूरा करने के लिए आने को कहा। चिकित्सक ने उनको संबंधित आपदाओं से भी आगाह करा दिया था। जब मेरी पत्नी को इस बारे में पता लगा तो उन्होंने पहले गुरुजी का आशीर्वाद लेने का सुझाव दिया। श्रीमती अजीत सिंह ने कहा कि यदि चिकित्सालय में सब कुछ सही हो गया तभी वह गुरुजी के पास जायेंगी। उनके पति यह सुन कर इतने चिंतित हुए कि वह चिकित्सालय नहीं गये और उन्होंने अपने बड़े पुत्र को उनके साथ भेज दिया। उनके जाने के पश्चात् अजीत सिंह ने गुरुजी के चित्र के सामने प्रार्थना की।
चिकित्सालय में श्रीमती अजीत सिंह के परीक्षण हुए। जैसे ही परिणाम आये, वही चिकित्सक, जो पिछले कुछ वर्षों से उनका उपचार कर रहे थे, अचम्भित रह गये। परिणामों के अनुसार दो धमनियाँ बिल्कुल साफ थीं। और तीसरी में केवल 40% अवरोध था। चिकित्सकों ने कहा कि केवल चमत्कार से ही ऐसा संभव है। उनके पति को विश्वास है कि यह गुरुजी महाराज के आशीर्वाद से ही हुआ है। अब अजीत सिंह, जिन्होंने पक्षाघात के कारण गोल्फ खेलना छोड़ दिया था, को नोएडा के गोल्फ कोर्स में देखा जा सकता है।
क्षण में कृपा
ऐसा नहीं है कि गुरुजी की कृपा के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। गुरुकृपा तुरन्त विदित होती है। 2006 के आरम्भ में स्पॉन्डिलाइटिस के कारण मेरी गर्दन में वेदना हो रही थी। पीड़ा बायीं बाँह में फैल कर उसको सुन्न कर रही थी। तीव्र दर्द के कारण मैं उसे हिला नहीं पा रहा था। मुझे यह रोग पिछले आठ वर्षों से था। इस दर्द को सहते हुए चार दिन हो गये थे। अचानक मेरी बेटी की सास ने मेरी पत्नी को गुरुजी से प्रार्थना करने को कहा। मैंने अपने आप को धिक्कारा। कैसे मैं इन तीन दिनों की वेदना में, गुरुजी को भूल गया? मैंने गुरुजी के चित्र के सम्मुख खड़े होकर उनसे विनती की। उसके बाद मैं अपनी दिनचर्या में लग गया। एक दिन के पश्चात् जब मेरी पत्नी ने मेरे दर्द के बारे में पूछा, तब मुझे याद आया कि उसके बारे में तो मैं भूल ही गया था। पिछले 30 घंटों में मुझे कोई दर्द नहीं हुआ था। मैंने तुरन्त गुरुजी को उस वेदना को समाप्त करने के लिए धन्यवाद दिया। उस दिन से मैं उस रोग को भी भूल गया हूँ।
क्षणिक मुक्ति का एक और प्रसंग मार्च 2006 में हुआ। मैं अपने परिवार और मित्रों के साथ घर पर था और हम कुछ अल्पाहार कर रहे थे। अकस्मात् मेरे वायुमार्ग में कुछ भोजन चला गया और मुझे श्वास लेने में कठिनाई होने लगी। मेरी आँखों से जल प्रवाह होने लगा, मेरे गले में अड़चन होने लगी और मेरी साँस मानो रुकने लगी। गला साफ करने के लिए मैंने पानी, डबलरोटी और केला खाया पर कुछ लाभ नहीं हुआ। मैं अपने कमरे में आ गया। 15 मिनट बीत गए पर चैन नहीं आया। उसी समय मैं गुरुजी के चित्र के सामने से निकला। मैं बिना कुछ कहे या सोचे, नतमस्तक होकर उनके सम्मुख खड़ा हो गया। मैंने ऐसा किया ही था कि डकार आयी और मेरा वायुमार्ग खुल गया। मुझे गुरुजी पर विश्वास हो गया। वह महान हैं।
परिवार की दुर्घटना में रक्षा
मई 2006 में एक दिन मुझे फोन आया कि मेरे परिवार की गाड़ी दुर्घटना हो गयी है। मैं तुरन्त दुर्घटना स्थल के लिए निकल पड़ा जो पाँच किलोमीटर दूर था। मुझे अपनी पत्नी का फोन आया था कि पीछे से एक गाड़ी ने मारा था, गाड़ी की सीटें गिर गयी थीं और दरवाज़े बंद थे, वह बाहर नहीं निकल पा रहे थे। उस समय रात्रि के 9:15 बज रहे थे।
मेरी पत्नी और तीनों बेटियाँ दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन क्षेत्र में खरीददारी करने के पश्चात् नोएडा घर वापस आ रहे थे। जसोला गाँव के समीप लाल बत्ती थी और वह सब एक यातायात जाम में फँसे हुए थे। अचानक उनकी गाड़ी को पीछे वाली गाड़ी ने टक्कर मारी क्योंकि उसको पीछे सामान से लदे आ रहे एक ट्रक ने मारा था। धक्के से गाड़ी कुछ आगे चली गयी थी। मेरी विवाहित और छोटी बेटियाँ, जो पिछली सीटों पर बैठी थीं, के सिर और पीठ पर चोटें आयीं थीं। मेरी पत्नी के पास गुरुजी का एक चित्र था और उसने गुरुजी का चित्र निकाल कर उनसे विनती की। शीघ्र ही चिकित्सकों ने कहा कि सब सही है और चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। उसे सूजन कम करने के लिए औषधि दी गयी। पीछे वाली गाड़ी को अधिक क्षति पहुँची थी। उसके कुछ यात्रियों को गंभीर चोटें भी आयीं थी। टक्कर इतनी भयानक थी कि ट्रक का अगला भाग तक क्षतिग्रस्त हो गया था।
एक बार फिर गुरुकृपा से मेरा परिवार सुरक्षित था। मैंने अपने परिवार की इतनी भयंकर दुर्घटना में रक्षा करने के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद दिया। गुरुजी सदा निष्कपट और सच्चाई से प्रार्थना करने वालों की सहायता करते हैं।
एम बी ए में प्रवेश
लुधियाना से मेरा भतीजा एक एम बी ए संस्था में प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के लिए आया था। वह गुरुजी के पास उनके आशीर्वाद के लिए गया और उसने सफलता के लिए उनसे प्रार्थना की। गुरुजी ने उसे आशीर्वाद देकर कहा, "जा, हो जाएगा एडमिशन"। परीक्षा के बाद वह आशावादी था। जब संस्था ने परिणाम घोषित किये तो उसका नाम पहली, दूसरी, तीसरी और अंतिम प्रतीक्षा सूची में भी नहीं था। वह शिवरात्रि से प्रतीक्षा कर रहा था और परिणामों से वह अत्यंत निराश हुआ था। किन्तु गुरुजी महाराज ने उसे आशीष दिया था। अतः अंतिम सूची में उसका नाम न होते हुए भी तीन दिन के बाद उसको प्रवेश सूचना प्राप्त हुई। उसने आनंदित होकर गुरुजी महाराज का धन्यवाद किया। इतने कम समय में वह उनके शब्द और कृपा से अत्यंत प्रभावित हुआ है।
गुरुजी महाराज - सतगुरु
गुरुजी महाराज मन को भी शुद्ध करते हैं। उन्होंने दिव्य संत का अवतार लिया क्योंकि मानव समाज को उनकी अति आवश्यकता थी। गुरुजी अपने आप को अपनी पूर्ण महिमा, असीमित शक्ति, ज्ञान और आनंद सहित प्रकट करते हैं।
गुरुजी महाराज सतगुरु हैं जो सब मनुष्यों को उनके आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करते हैं। उनके लिए जाति, धर्म, लिंग या नागरिकता का कोई अर्थ नहीं है। अदृश्य शक्ति से पृथ्वी के प्रत्येक कोने से लोग आकर्षित होकर उनके पास चले आते हैं। गुरुजी महाराज निपुण शिक्षक हैं जो उचित समय आने पर भक्तों को उनके सही मार्ग पर बढ़ाने के लिए उन्हें अपनी ओर खींच लेते हैं। उनकी आकर्षण शक्ति का वेग इतनी तीव्र होता है कि किसी में उसका प्रतिरोध करने की क्षमता नहीं है।
गुरुजी महाराज जगत गुरु हैं। वह प्रत्येक से उसकी चेतना के विकास के स्तर पर ही व्यवहार करते हैं। वह मनुष्य को अध्यात्म के कठिन मार्ग पर अग्रसर करने के लिए, अपनी शक्ति से उसके अभिमान को नष्ट कर देते हैं। आत्मा के विकास के लिए वह समस्त मानसिक और शारीरिक बाधाओं को मिटा देते हैं। इसके लिए मनस्, सूक्ष्म और विराट स्तर पर उनकी विधि सबके लिए एक समान नहीं होती, अतः उसकी भविष्यवाणी करना असम्भव है।
गुरुजी की आँखें प्रेम में लिप्त हैं और उनके हस्त ईश्वर सदृश हैं। परमात्मा स्वयं उनके कंठ से बात करते हैं। गुरु महाराज शांति, सत्य और भ्रातृभाव फैलाते हैं। उच्च-निम्न, जाति, रंग-भेद आदि को मिटा कर वह कष्ट पीड़ित समाज पर कृपा वृष्टि कर रहे हैं। सत्य, भाईचारे और समानता के जल से वह भौतिकता के विष में डूबे हुए मनुष्यों के हृदयों में भरी हुई ईर्ष्या और दुष्प्रभावों को अपने हाथों से साफ कर स्वच्छ कर देते हैं।
गुरुजी महाराज ईश्वर का प्रतिरूप और उनकी महानता का प्रतीक हैं। पलक झपकते ही वह स्वर्ग तक पहुँच कर वापस आ सकते हैं। सूर्य और चन्द्र, स्वर्ग और नर्क, पृथ्वी और आकाश उनके क्रीड़ास्थल हैं। सत्य वचन हैं - संक्षेप में आप ही परमात्मा के अवतार हो।
श्रीमती व श्री सतीश कुमार लाम्बा, नोएडा
जुलाई 2007