उनकी कृपा से हमारा कल्याण हुआ

सविता भाटिया, जून 2010 English
हमारे गुरुजी भगवान शिव के अवतार हैं। अपनी संगत को आशीर्वाद देने के लिए और अपने भक्तों के कल्याण के लिए उन्होंने मानव रूप में जन्म लिया और आज भी वे अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं। हमें अधिकतर आशीर्वाद उनके मानव शरीर छोड़ देने के बाद ही मिले हैं। वास्तव में, आज भी संगत को उनके आशीर्वाद वैसे ही मिल रहे हैं जैसे उनके मानव रूप में होने पर मिल रहे थे।

हम अप्रैल 2004 में गुरुजी की शरण में आए। मेरे पति गुरुजी के पास उसके थोड़े समय बाद आए। गुरुजी के यहाँ आने के बाद हमारे जीवन में सब कुछ अच्छा होने लगा। हमारी सोच और दृष्टिकोण सकारात्मक और आशावादी हो गए।

मेरी बड़ी बेटी अमेरिका में रहती है और उसके परिवार वाले राधा स्वामी को मानते हैं। जब हम गुरुजी के पास गए थे, उस समय उसने गुरुजी के दर्शन नहीं किये थे, पर गुरुजी की कृपा ऐसी है कि अमेरिका में भी उसे गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा।

गुरुजी ने उसे बड़े मंदिर के दर्शन भी कराये। उसने गुरुजी को उनकी कुटिया में बैठे देखा और गुरुजी ने उसे "ऐश करो" कहते हुए आशीर्वाद दिया। तब तक हमें यह नहीं पता था कि बड़े मंदिर में कुटिया है। हम यहाँ दिल्ली में लंगर करते और मेरी बेटी हमें बताती कि हमने लंगर में क्या खाया और उसका स्वाद उसे वहाँ अमेरिका में आता !

मेरी बेटियों को आशीर्वाद मिला

मेरी छोटी बेटी, जो मेरे साथ गुरुजी के यहाँ चलती थी, मास्टर्स इन कॉमर्स (एम्. कॉम) या बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी. एड) करने का सोच रही थी। गुरुजी ने उसे दर्शन दिए और कहा कि बी. एड छोड़कर वह एम्. कॉम करे। उसने दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा में भाग लिया किन्तु पहली सूची में उसका नाम नहीं आया। हमने दूसरी सूची के बारे में पूछा तो हमें बताया गया कि दूसरी सूची कभी नहीं निकलती है। पर मेरी बेटी को गुरुजी में पूरा विश्वास था और वह बोली कि गुरुजी ने उसे एम्. कॉम करने को कहा था तो किसी भी तरह उसे दाखिला मिल जाएगा। जल्द ही, दूसरी सूची निकली और उसमें सबसे पहला नाम मेरी बेटी का था। गुरुजी की कृपा से, उनकी मेहर से, ना सिर्फ उसको बल्कि अन्य विद्यार्थियों को भी दाखिला मिला।

हमें गुरुजी के एक और सौभाग्यपूर्ण दर्शन हुए। उनकी महासमाधि से दो सप्ताह पहले, 14 मई 2007 को, शाम को करीब 6:30 बजे, गुरुजी ने कहलवाकर भेजा कि बड़ा मंदिर खाली किया जाए। हम मंदिर से निकल चुके थे और प्रमुख द्वार के बाहर ही खड़े थे जब गुरुजी अपनी गाड़ी में आए। हम बहुत भाग्यशाली थे कि सबसे पहले हमें उनके चरण कमलों में माथा टेकने का अवसर मिला। जितनी भी संगत उस समय वहाँ उपस्थित थी, गुरुजी ने उन्हें जाने से रोका और अपने हाथों से प्रसाद दिया। सबको चाय प्रसाद भी दिया गया।

फिर उन्होंने मुझे और मेरे पति को बुलाया और एक घंटे से अधिक के लिए हमें अपने पास बिठाया और हमें दो बार चाय प्रसाद मिला। गुरुजी ने हमसे पूछा कि हम कहाँ रहते थे। हमने जवाब दिया कि रोहिणी में ; वह बोले : "अच्छा गुरुद्वारा पीछे है, आगे मॉल बना हुआ है।" हमने विस्मित होकर बस हामि भर दी।

फिर गुरुजी ने मेरे पति से उनकी नौकरी के बारे में पूछा। मेरे पति बोले कि उन्होंने स्वेच्छापूर्वक सेवानिवृत्ति ले ली थी। गुरुजी ने इसका कारण पूछा तो मेरे पति ने जवाब दिया कि उन्हें कहीं और भेजा जा रहा था। गुरुजी बोले : "सारे कमले हो गए ने, की लोड़ थी वी .आर. एस. लेण दी। आंटी तेरा नाम की ऐ, नौकरी करणी ऐ? " (सब पागल होते जा रहे हैं। क्या आवश्यकता थी वी. आर. एस. लेने की? आंटी, तुम्हारा नाम क्या है; तुम्हें नौकरी करनी है?) मैंने जवाब दिया, "नहीं, गुरुजी।"

गुरुजी हमें आशीर्वाद देते रहे, उन्होंने पूछा कि मेरी बड़ी बेटी कहाँ रहती थी, उसके पति का परिवार भारत में कहाँ पर था, और वह भारत कब आने की सोच रही थी। उस समय, उन्हें भारत आने के लिए कठिनाइओं का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें यह नहीं पता था कि भारत आने के बाद वह वापस जा पाएँगे या नहीं। गुरुजी ने उनके आने के बारे में पूछ कर उनकी कठिनाइयाँ दूर कर दीं।

फिर गुरुजी ने मेरी छोटी बेटी के बारे में पूछा। मैंने जवाब दिया कि वह जेनपैक्ट में काम करती थी। इस पर गुरुजी तुरंत बोले, "अच्छा, जनपथ। सोनिआ गाँधी दे कोल?" (अच्छा, जनपथ। सोनिआ गाँधी के साथ?) और फिर वह हँसने लगे।

गुरुजी ने जेथरा अंकल को बुलाया और हमसे पूछा कि क्या हम उनको जानते थे। फिर वह बोले, "मैंने इसे तीन बार न्यू लाइफ दी है।" गुरुजी ने मेरी छोटी बेटी की शादी जेथरा अंकल के छोटे बेटे के साथ तय कर दी। उन्होंने हमें कहा कि प्रत्येक परिवार की ओर से 20-25 लोग होने चाहियें, शादी सादगी से की जाए और जुलाई महीने के आखिर में होनी चाहिए। उनके आशीर्वाद से आज बच्चे एक खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

शादी के रस्मों के समय गुरुजी वहाँ स्वयं विद्यमान थे। शादी के स्थान पर हमें उनकी सुगंध आई। जब हमने मेरी बेटी की मेहंदी की रस्म की तस्वीरें देखीं तो यह देखकर विस्मित हो गए कि उनमें गुरुजी की तस्वीर भी थी। दोनों की शादी गुरु पूर्णिमा के पावन दिन पर हुई।

मेरे पति का जीवन बचाया

एक रात मेरे पति ने देखा कि उनकी मृत्यु हो गई है और यमलोक के दूत उन्हें ले जा रहे थे। तब गुरुजी आए और उनके हाथ से रोशनी की एक किरण निकलकर मेरे पति के चेहरे पर पड़ी और वे जीवित हो उठे।

कुछ दिनों बाद मेरे पति को मुँह में छाले हो गए। दवाइयों से जब कोई सुधार नहीं हुआ तो परिक्षण कराये जिनसे पता चला कि उन्हें कैंसर था। हम बहुत डर गए। दर्शन में गुरुजी ने मेरे पति से कहा, "डाक्टर कंजर ने की करणा ऐ, जो करणा ऐ मैं करणा ऐ।" (चिकित्सक क्या कर सकते हैं? जो भी करना है मैं करूँगा।) उसी सुबह जब मैंने टी वी चलाई तो एक कार्यक्रम आ रहा था जिसमें एक बाबा कह रहे थे कि अगर तुम बीमार हो और तुम्हारे गुरु हैं, तो तुम्हें बस उनमें 100 प्रतिशत विश्वास रखना है और तुम ठीक हो जाओगे। हमने बस यह दो पंक्तियाँ सुनीं और वह कार्यक्रम समाप्त हो गया, पर हमें हमारे गुरुजी का संदेश मिल गया था। हमें संदेश से शक्ति और भरोसा मिला और हम नौ घंटे लम्बी शल्य चिकित्सा के लिए तैयार थे।

शल्य चिकित्सा के बाद, रेडिएशन के दुष्प्रभाव के कारण मेरे पति की गर्दन से रक्त बहता था। हमें गुरुजी के संदेश मिलते रहे और सारे दुष्प्रभाव लुप्त हो गए। आज मेरे पति का उपचार पूरी तरह से हो गया है और वह एक सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

हमारे लिए गुड़गाँव में फ्लैट

गुरुजी ने हमें जीवन दिया, सेहत दी; फिर थी संपत्ति की बारी। हमें गुरुजी से संदेश आया कि हम रोहिणी में अपना घर बेचकर गुड़गाँव में उससे एक बड़ा फ्लैट लें और इस सौदे से बचे हुए धन से जीवन का आनन्द उठायें ("ऐश करो")। गुरुजी की कृपा से हमारा घर 30 मिनट में बिक गया और वह भी उस मूल्य पर जितने की हमने माँग की थी।

परन्तु गुड़गाँव में फ्लैट बहुत महंगे थे। दो दिन घर ढूँढ़ने के बाद अंकल घबराने लगे और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि हम घर के लिए भाग-दौड़ करने में असमर्थ थे और क्या वो कृपा करके हमें वो दिला सकते थे जो भी उनको हमारे लिए ठीक लग रहा था। हमने अपने हाथ ऊपर कर लिए थे और पूरी तरह से गुरुजी को समर्पण कर दिया। गुरुजी ने मुझे नये घर की परिकल्पना दिखाई और हमें वही घर मिला।

किसी को अगर सब्ज़ी भी लेनी हो तो वह बिना देखे-परखे नहीं लेता है और यहाँ तो हम घर खरीदते समय उसे देखने भी नहीं गए। अग्रिम धन देने के बाद ही हमने पहली बार फ्लैट देखा और वो बिलकुल वैसा था जैसा गुरुजी ने मुझे दिखाया था। यह उनका ही घर था, और बहुत सुंदर था।

गुरुजी ने हमें हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे सत्संग करने को कहा। संगत इस सत्संग में आती है और गुरुजी भी अक्सर आते हैं और आकर हमारे पास बैठते हैं। उनकी उपस्थिति की अनुभूति सबको होती है। हम गुरुजी के आशीर्वाद का आनन्द उठाते हैं। गुरुजी हमेशा अपनी संगत के साथ हैं और उनकी हर आवश्यकता का धयान रखते हैं।

करीब दो महीने पहले मेरे पति को पीठ में बहुत दर्द हुआ। उन्होंने दवाइयाँ लीं पर उससे भी सुधार नहीं हुआ। एक दिन गुरुजी ने उन्हें दर्शन दिए और बोले, "कल वीरवार है, मंदिर जाईं" (कल बृहस्पतिवार है, बड़े मंदिर जाना)। वहाँ तुम्हें किशोरी अंकल मिलेंगे। अगर उन्होंने तुम्हें गले लगाया तो तुम्हारा पीठ का दर्द ठीक हो जाएगा। जब हम मंदिर पहुंचे तो बिना ढूँढ़े मेरे पति को किशोरी अंकल मिल गए। प्रायः वे हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं पर उस दिन, गुरुजी की कृपा से, उन्होंने मेरे पति को गले लगाया। जो दर्द मेरे पति को दो महीनों से था, एक क्षण में लुप्त हो गया। गुरुजी के तरीके हमारी समझ से परे हैं। गुरुजी की शरण में आने के बाद अगर कुछ आवश्यकता है तो वो है समर्पण और विश्वास की। जय गुरुजी !

सविता भाटिया, एक भक्त

जून 2010